2. Quila Rai Pithora :A historical gem in Delhi, Qila Rai Pithora or Lal Kot was built by Rajput king Prithvi Raj Chauhan, who was fondly called Rai Pithora.The ruins of the vast fort bear traces of its former grandeur, and can be seen around areas of Qutub Minar, Saket, Vasant Kunj, Mehrauli and Kishangarh. It is said that the fort came under the rule of Mamluk dynasty, when Prithvi Raj Chauhan was defeated by Qutb al-Din Aibak.Today, it falls under the Archaeological Survey of India (ASI) and makes for an interesting exploration.
लगभग दो साल पहले 2017 में मैं दिल्ली के साकेत इलाके में स्थित बहुप्रसिद्ध पार्क 'गार्डन ऑफ फाइव सेंसेज' घूमने गया था। वहाँ से पैदल लौटते वक्त मैं इधर-उधर देखता चल रहा और साकेत मेट्रो स्टेशन के काफी करीब में मेरी नजर पड़ी एक कूड़े के ढेर पर। चूँकि काफी कूड़ा जमा था वहाँ, इसलिए लापरवाही की ये तस्वीर ना चाहते हुए भी मन में बैठ गयी। मैं उसे देख ही रहा था कि मुझे महसूस हुआ कि वहाँ सिर्फ कचड़े का वो ढेर नहीं, बल्कि उसकी आड़ में छिपा कुछ ऐसा है, जोकि सबके सामने होते हुए भी लोगों की नज़रों से ओझल है। असल में वहाँ कचड़े की ढेर के पीछे लाल रंग का एक धूल-धूसरित बोर्ड लगा हुआ था जिसपर धुँधले अक्षरों में लिखा था-'किला राय पिथौड़ा।'ये वो दौर था जब मैं दिल्ली में नया-नया आया था और घूम-घूमकर इसे जानने की कोशिश कर रहा था। असामान्य चीजों ने ज्यादा आकर्षित किया इसलिए कचड़े के ढेर के पीछे छिपे इस 'किला राय पिथौड़ा' को जानने की उत्सुकता मन में घर कर गयी। मुख्य दरवाजा कचड़ों के कारण एक प्रकार से बंद ही था तो मैंने बगल की छोटी दीवार फाँदकर अंदर जाने का निर्णय लिया। अंदर कूदा तो सामने दिखी वो दीवार जोकि आप अंतिम तीन तस्वीरों में देख रहे हैं। लगभग 5-6 मीटर की ऊँची ये दीवार एक नज़र में ही देखकर महसूस हो जा रही थी कि ये ज़रूर इस किले की बाहरी दीवार है। अंदर के इलाके को ज़रूर नए जमाने की बसावट ने चट कर लिया होगा। कुछ आगे बढ़ा तो कुछ लोग बैठे दिखे जोकि समूह बनाकर ताश खेल रहे थे और उन्हें वहाँ देखकर मुझे कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ। अनदेखी की शिकार ऐसी इमारतों का आमजनों द्वारा ऐसा ही उपयोग होता आया है, और होता रहेगा। खैर, वहाँ और कुछ था नहीं, आगे दीवार थी जोकि इस बात का संकेत दे रही थी ये जगह इतनी भर की ही है। शायद ये बात मुझे खल जाती कि यहाँ आने पर कुछ नहीं मिला अगर ढलती सांझ सांझ में मैंने दीवार की ऊँचाई पर बैठे एक शख्स की तस्वीर न खींची होती जिसके पीछे से सूरज की रोशनी तस्वीर को नया रंग दे रही थी (अंतिम तस्वीर की तरह)। कुछेक अच्छी तस्वीरें खींचने के बाद मन संतुष्ट हुआ, और मैं वापस लौट आया।मैंने जो तस्वीर खींची थी, उसे उस समय लोग काफी पसंद कर रहे थे। लोगों को बेहद खूबसूरत लग रही थी वो। मगर बदकिस्मती से मैंने जिस फोन में उसे खींचा था, उसमें कुछ खराबी आ गयी और सभी तस्वीरों के साथ मुझे उस तस्वीर से भी हाथ धोना पड़ा। हालाँकि बात खटकती रही मगर मन में ये विश्वास भी था कि मैं वह तस्वीर फिर खींच लूँगा।समय बीता और लगभग डेढ़ साल बाद 2019 में एक दिन दोस्तों के साथ यूँ ही घूमने निकला तो कुछ जगह घूमने के बाद ये ख्याल आया कि अब शाम होने वाली है, तो क्यों न साकेत स्थित किला राय पिथौड़ा चलें। यही अच्छा मौका है उस तस्वीर को फिर से खींचने का। मैंने अपने दोनों दोस्त को ये बात बतायी और भी झट वहाँ चलने को राजी हो गए। हम साकेत आये और किला राय पिथौड़ा की ओर चल दिये। जब हम मुख्य दरवाजे पर पहुँचे तो एक चीज बेहतर दिखी और वो ये कि कचड़े का ढेर वहाँ से साफ कर दिया गया था। अब लोहे का वो छोटा दरवाजा, जिसपर लोहे की जंजीर लगी थी, सड़क पर से साफ दिख रही थी। मगर अब भी कोई अनजाना इंसान उसे देखकर ये नहीं बता सकता था कि इस छोटे दरवाजे के पीछे इतना बड़ा राज छिपा है। खैर, हम अंदर गए और चूँकि इस बार फोटो खींचने के ही इरादे से आये थे, तो काम पर लग गए। कई अच्छी तस्वीरें ली हमनें, जिनमें से एक इन तस्वीरों में से सबसे नीचे है। फोन भरकर तस्वीरें लेने के बाद हमनें अपना बैग उठाया और वापस अपने पते पर लौट गए।