Ajanta cave is a Buddhist monk built monument located in Aurangabad district of Maharashtra, It is a UNESCO world heritage site.Historians consider it was built between 200 CE to 480 CE. It is considered as one of the most valuable creations of Buddhist religious monuments. There are 29 caves which house one of the most exotic paintings and sculptures of ancient India. These caves are divided into Viharas and chaityas.How to reach :Hired a cab or taxi from Pune it costs us 10k for round trips. The distance is approx 335 km and takes almost 8 hours to reach.From Pune, The journey to Ajanta is very long. We started a little late in the morning but it would be advisable if you are planning, then start early in the morning around 5-5:30. Then you could catch a beautiful sunrise in the countryside.We reached Ajanta around 3 in the afternoon. As i visited during summer the Trek was hard as it was hot.Timing of cave visit :Ajanta caves open at 9 am and close at 6 pm in the evening though official timing is till 5 pm. It takes a lot of time to visit each cave. You can hire a guide who takes you to the most important caves and they charge around 1k.Top attraction:Ajanta cave was the residence of Buddhist monks during  monsoon season. These caves were mainly built as part of a resting place for monks, merchants and pilgrims during their journey. Chaityas - MonasteryViharas - worship hallStorage - food grain storageCave 1,2,16 and 17 house the ancient paintings.The paintings and scriptures are all dedicated to birth and rebirth of Buddha and Buddhist deities.The paintings in the caves are very well maintained, and it is among the oldest artifacts of ancient India.Budget of the travel : Cab charge : 10kTour guide : 1kFood : 700Entry fee : 10 per person
#एलोरा भारतीय पाषाण शिल्प स्थापत्य कला का सार है, यहाँ 34 "गुफ़ाएँ" हैं जो असल में एक ऊर्ध्वाधर खड़ी चरणाद्रि पर्वत का एक फ़लक है। इसमें हिन्दू, बौद्ध और जैन गुफा मन्दिर बने हैं। ये पाँचवीं और दसवीं शताब्दी में बने थे। यहाँ 12 बौद्ध गुफाएँ (1-12), 17 हिन्दू गुफाएँ (13-29) और 5 जैन गुफाएँ (30-34) हैं। ये सभी आस-पास बनीं हैं और अपने निर्माण काल की धार्मिक सौहार्द को दर्शाती हैं। एलोरा के 34 मठ और मंदिर औरंगाबाद के निकट 2 कि॰मि॰ के क्षेत्र में फैले हैं, इन्हें ऊँची बेसाल्ट की खड़ी चट्टानों की दीवारों को काट कर बनाया गया हैं।अपनी समग्रता में २ समग्र६ फीट लम्बा, १५४ फीट चौड़ा यह मंदिर केवल एक खंड को काटकर बनाया गया है। इसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है। इसके निर्माण के क्रम में अनुमानत: ४० हज़ार टन भार के पत्थरों को ताला से बचाया गया है। इसके निर्माण के लिए पहले खंड अलग किया गया और फिर इस पर्वत खंड को भीतर से काट - काट कर 90 फुट ऊँचा मंदिर गंगा गया।] मंदिर के बाहर चारों ओर मर्ति - अलंकरणों से भरा हआ है। दुर्गम पहाड़ियों वाला एलोरा 600 से 1000 ईसवी के काल का है, यह प्राचीन भारतीय सभ्यता का जीवन्त प्रदर्शन करता है। बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्म को भी समर्पित पवित्र स्थान एलोरा परिसर न केवल अद्वितीय कलात्मक सृजन और एक तकनीकी उत्कृष्टता है, बल्कि यह प्राचीन भारत के धैर्यवान चरित्र की व्याख्या भी करता है।[1] यह यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल है।[2.अजन्ता गुफाएँ महाराष्ट्र, भारत में स्थित तकरीबन 29 चट्टानों को काटकर बना बौद्ध स्मारक गुफाएँ जो द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ के हैं। यहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्रण एवम् शिल्पकारी के उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं।[1] इनके साथ ही सजीव चित्रण[2] भी मिलते हैं। यह गुफाएँ अजन्ता नामक गाँव के सन्निकट ही स्थित है, जो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है। (निर्देशांक: 20° 30’ उ० 75° 40’ पू॰) अजन्ता गुफाएँ सन् 1983 से युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित है।नेशनल ज्यॉग्राफिक ‘’’ के अनुसार: आस्था का बहाव ऐसा था कि प्रतीत होता है, जैसे शताब्दियों तक अजन्ता समेत, लगभग सभी बौद्ध मन्दिर, उस समय के बौद्ध मत के शासन और आश्रय के अधीन बनवाये गये हों।*monday holiday so u can't visit...Ellora & Ajantha caves...for ur information. ..
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अजंता की गुफाएं भारतीय कला के शानदार नमूने हैं| अजंता में बड़े बड़े पहाड़ो को काटकर बनाया गया है| अजंता की गुफाओं में बहुत सारे चित्र बनाए गए हैं| अजंता में आपको दो तरह की गुफाओं को देखने का मौका मिलेगा| एक तो स्तूप गुफा और दूसरी विहार गुफा | स्तूप गुफा में प्राथना की जाती थी और विहार गुफा में भिक्षु रहते थे| अजंता की गुफाओं में इनकी छत, दीवार पर अनेक चित्र बनाए गए हैं| इन चित्रों में महल, किसान, सम्राट, भिखारी आदि दिखाई देगें| इन चित्रों में पेड़, पौधे, जानवर आदि भी बने हुए हैं| 16 नंबर गुफा में दीवार पर मरती हुई राजकुमारी का चित्र है| गुफा नंबर 17 में भी शानदार चित्र बने हुए हैं| अजंता के चित्र हमें उस समय की जीवन शैली को दिखाते है| अजंता के चित्रों की रंग योजना बहुत सुंदर है| इस चित्र कला का महत्व इतना है कि इस चित्र शैली का नाम ही अजंता शैली पड़ गया है| पूरे एशिया महाद्वीप पर अजंता की कला का प्रभाव पड़ा| पंजाब के प्रसिद्ध घुमक्कड़ मनमोहन बावा जी जिनकी बहुत सारी किताबें भी लिखी हुई है घुमक्कड़ी के ऊपर | मनमोहन बावा जी ने अजंता, एलोरा और एलीफेंटा के बारे में कहा है अगर आप भारत में रहते हुए इन तीनों जगह पर नहीं जाते तो आप बदकिस्मत हो| तो दोस्तों आप भी भारतीय कला की इस शानदार कला को देखने जरूर जाना अजंता गुफाओं को देखने के लिए| मैं अजंता की गुफाओं को देखने के बाद औरंगाबाद के लिए रवाना हो गया| कैसे पहुंचे- अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र के जलगांव से 60 किमी और औरंगाबाद से 100 किमी दूर है| आप इन दोनों शहरों से अजंता गुफाओं को देखने के लिए जा सकते हो|
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मुझे होमियोपैथी डाक्टरी में मास्टर डिग्री करते समय महाराष्ट्र में आने जाने और रहने का मौका मिला| जब मैं पंजाब से जाता था तो मन में था कि महाराष्ट्र की ईतिहासिक जगहों की भी यात्रा की जाए| इसी तरह मैंने भारतीय कला के शानदार नमूने अजंता और एलोरा की गुफाओं को भी देख लिया| एक बार मैं पंजाब मेल रेलगाड़ी से महाराष्ट्र के मनमाड़ जा रहा था| मनमाड़ रेलवे स्टेशन सुबह तीन चार बजे के आसपास आता है उस दिन किसी वजह से पांच छह घंटे लेट चल रही थी| मुझे मनमाड़ से परभणी के लिए रेलगाड़ी पकड़नी थी | मेरी गाड़ी पहले से ही लेट चल रही थी तो मनमाड़ से मिलने वाली निकल जानी थी | मैंने रेलगाड़ी में बैठे ही मन बना लिया कयों न जलगांव उतर कर अजंता की गुफाओं को देखते हुए औरंगाबाद जाया जाए और फिर वहाँ से रात की बस लेकर सुबह अपने कालेज पहुँच जायूगा| इस तरह मेरी अजंता गुफाओं को घूमने के लिए कोई भी तैयारी नहीं थी बस रेलगाड़ी लेट होने की वजह से जलगांव उतर कर अजंता जाने का पलान बन गया| जलगांव से अजंता की गुफाओं की दूरी 60 किमी के आसपास है| जलगांव रेलवे स्टेशन पर उतर कर तैयार हो कर मैं महाराष्ट्र रोडवेज की सरकारी बस में बैठ कर अजंता की गुफाओं को देखने के लिए चल पड़ा| बस ने मुझे अजंता गुफाओं से दो किलोमीटर पहले एक मोड़ पर उतार दिया| दोपहर का समय था उस जगह पर पूरी बस में मैं और एक मराठी लड़का दो लोग ही उतरे थे| बस से उतर कर हम दोनों पैदल ही अजंता की गुफाओं की तरफ चल पड़े| हम दोनों दोस्त बन गए| वह भी जलगांव किसी काम से गया था और रास्ते में आते समय अजंता की गुफाओं को देखने जा रहा था| हम दोनों ने एक साथ ही अजंता की गुफाओं को घूमा था|