पठानकोट शहर पंजाब के बिलकुल उत्तर दिशा में है| पठानकोट को गेटवे आफ जम्मू कश्मीर भी कहा जाता है| पठानकोट पंजाब का आखिरी शहर है इसके आगे आप जम्मू कश्मीर में प्रवेश कर जाते हो | अक्सर लोग पठानकोट को नजरअंदाज कर देते हैं | पठानकोट को सिर्फ डलहौजी, धर्मशाला और जम्मू कश्मीर जाने के लिए एक बेस के रूप में ईसतमाल करते हैं लेकिन इस शहर के आसपास की खूबसूरत जगहों को नहीं घूमते | या तो समय की कमी की वजह या बहुत टूरिस्ट इन अनछुई खूबसूरत जगहों से अनजान है जो पठानकोट शहर के आसपास देखने लायक है | पठानकोट पंजाब का छठा सबसे बड़ा शहर है | यह शहर पहाड़ों के पैरों में बसा हुआ है | पठानकोट कैंट रेलवे स्टेशन पर बहुत यात्री डलहौजी, धर्मशाला जाने के लिए आते हैं| आज हम देखेंगे पठानकोट के आसपास हम किन खूबसूरत जगहों पर जा सकते हैं |
1.
#मुक्तेश्वर_महादेव_मंदिर
पंजाब के बिल्कुल उत्तर में जम्मू कश्मीर के साथ लगता हुआ पठानकोट जिला पंजाब का सबसे छोटा जिला है। पठानकोट के उत्तर में रावी नदी और दक्षिण में बयास नदी हैं। मुझे पठानकोट जिला बहुत पसंद हैं, एक तो यह जिला पहाड़ों के पैरों में बसा है। आप इस जिले में मुक्तेश्वर महादेव मंदिर, गुरुद्वारा बारठ साहिब और रणजीत सागर डैम और शाहपुर कंडी किला देख सकते हो। यह खूबसूरत मंदिर पठानकोट शहर से 25 किमी दूर रावी नदी के किनारे पर बना हुआ है |
यह मंदिर शाहपुर कंडी डैम रोड पर रावी नदी के किनारे पर एक पहाड़ी पर हैं। इस मंदिर का संबंध महाभारत काल के पाडवों से हैं, पाडवों ने यहाँ 6 महीने गुजारे है।
उन्होंने यहां गुफाओं का निर्माण किया है, जिसमें शिवलिंग सथापित हैं। इस जगह को छोटा हरिद्वार भी कहते हैं।
यहाँ पहुंच कर आपको 250 सीढियों को उतर कर मंदिर में प्रवेश करना पड़ेगा। ऊपर से रावी नदी का बहुत खूबसूरत दृश्य दिखाई देता हैं। रावी नदी का पानी पंजाब की नदियों में सबसे ठंडा हैं। यहाँ बैशाखी पर मेला लगता है। अगर शाहपुर कंडी डैम बन गया तो मुक्तेश्वर की गुफाओं को रावी नदी के पानी में डूब जाने का खतरा है।आपको यहां आकर बहुत आनंद आयेगा। रावी नदी यहाँ पंजाब और जम्मू कश्मीर की सरहद बनाती हैं। पांडवों को 12 साल का बनवास मिला था, और एक साल का अज्ञातवास। कुल 13 साल का बनवास। पांडव यहां 12 वें साल के अखीर में आए थे। पांडवों ने ही यहां गुफाओं का निर्माण करवाया था। मुकतेशवर महादेव की गुफाएं महाभारत काल से संबंधित हैं और 5500 साल पुरानी है।
यहां एक गुफा भगवान शिव को समर्पित है जहां शिवलिंग बना हुआ है। उसी गुफा में पांडवों के बड़ै भाई युधिष्ठिर की गद्दी और धूना बना हुआ हैं। पास में ही तीन और गुफाएं हैं, जिसमे पांडव धयान कक्ष बना हुआ है। आप जब भी पठानकोट आए तो मुकतेशवर महादेव मंदिर जरूर दर्शन करना।
2. माधोपुर जिला पठानकोट
माधोपुर पंजाब के पठानकोट जिले में रावी नदी के किनारे पर बसा हुआ एक खूबसूरत कसबा हैं। माधोपुर पंजाब और जम्मू कश्मीर की सरहद पर बसा हुआ है।
इसे हम गेटवे आफ पंजाब भी कह सकते हैं| माधोपुर के पास पंजाब, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश की सरहद मिलती हैं। माधोपुर में हाईडिल वर्कस बना हुआ हैं, जिसमें रावी नदी से UBDC ( अपर बारी दोआब कैनाल)
नाम की नहर निकलती हैं जो पठानकोट, गुरदासपुर, अमृतसर जिलों में पानी की सिंचाई करती हैं।
माधोपुर में UBDC नहर के किनारे पर एक मशहूर होटल
Coral River Resort बना हुआ है| आप इस जगह पर रुक कर कुदरत की खूबसूरती का आनंद ले सकते हैं| इस मशहूर होटल में खाना खा सकते हो |
3.
शाहपुर कंडी
माधोपुर से चल कर आप 15 किमी के बाद हम शाहपुर कंडी पहुंच जाओगे| शाहपुर कंडी पंजाब के पठानकोट जिले मे रावी नदी के किनारे पर बसा हुआ प्राचीन कसबा हैं। यहां देखने के लिए शाहपुर कंडी का किला और किले में किले वाली माता का मंदिर है। शाहपुर
कंडी के इस किले को 1505 ईसवी में राजपूत जसपाल सिंह पठानिया ने बनाया, अब यह किला काफी टूट चुका है, सरकार को इस धरोहर को संभाल कर रखना चाहिए।
यहाँ से रावी नदी और पहाड़ों का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है।
किले वाली माता का मंदिर
यह मंदिर दुर्गा माता का है, किले के अंदर होने की वजह से किले वाली माता का मंदिर कहते हैं| आसपास के लोग मंदिर में माथा टेकने आते है|
4. गुरूद्वारा बारठ साहिब
पठानकोट शहर से आठ किलोमीटर दूर एक ईतिहासिक गुरुद्वारा बारठ साहिब है |
गुरु द्वारा बारठ साहिब में बाबा क्षी चंद जी ने 58 साल तक तपस्या की हैं, क्षी चंद जी गुरु नानक देव जी के पुत्र थे। इस गुरुद्वारा में पांच गुरु साहिब आए हैं | सिख धर्म के तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और नौवें गुरु साहिब जी | इस जगह पर आप गुरुद्वारा साहिब में दर्शन कर सकते हो |
5 नूरपुर किला
पठानकोट से नूरपुर की दूरी 25 किलोमीटर और धर्मशाला से 65 किलोमीटर दूर है| नूरपुर शहर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में है|
नूरपुर अपने एक पुराने किले, बृजराज सवामी मंदिर और नूरपुर के शालों के लिए मशहूर हैं। जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के नाम पर इसका नामकरण नूरपुर किया।
हमनें नूरपुर में किले को देखा।
#बृजराज सवामी मंदिर
यह मंदिर क्षी कृष्ण की मूर्ति के लिए मशहूर हैं, कहा जाता है कि यह वही मूर्ति हैं, जिससे मीराबाई भगवान क्षी कृष्ण की पूजा करती थी, नूरपुर के राजा इसे चितौड़गढ़ के राजा से उपहार के रूप में लेकर आए थे।
मंदिर में इस आलौकिक मूर्ति के दर्शन करने के बाद मन आनंद से भर जाता है|
अगली बार जब आप पठानकोट शहर से गुजरे तो इन खूबसूरत जगहों पर यात्रा कर सकते हो| पठानकोट शहर में रहने के लिए हर तरह के होटल आदि मिल जाऐगे| पठानकोट पहुंचने के लिए आप रेलमार्ग से और सड़क मार्ग द्वारा पहुंच सकते हो|