अब इतना लम्बा ट्रेक करके यहां आने और फिर आते ही टिकट खो जाने के कारण अब तो सारा काम ही बिगड गया था। किसी भी प्रकार से टिकट खरीदने की कोई व्यवस्था वहा नहीं थी। वहा की अथॉरिटी ने मुझे अब प्रवेश के लिए साफ़ मना कर दिया। एक बार तो मुझे मन ही मन पता था कि कोई न कोई चमत्कार तो होगा पर..... ।फिलहाल तो मेरे पांचो साथी भी वही मठ के बाहर मेरे पास बैठ गए और मेरी एक बार फिर अपने कपड़ो और बैग मे टिकट चेक करने मे मदद करने लगे। हम बाते भी थोड़ा तेज तेज आवाज़ मे कर रहे थे कि टिकट कहा गिरा होगा ,अब क्या होगा वगैरह वगैरह...... तभी किस्मत से एक भारतीय नौजवान हमारी बाते सुन मेरे पास आया और अपने पास रखा एक एक्स्ट्रा टिकट मुझे ऑफर किया। मुझे एक बार तो लगा की वो भी मजे ले रहा हैं हमारे..... पर उस भाई ने टिकट मुझे वाकई मे दे दिया। मेरे तो ख़ुशी के ठिकाने नहींरहे। मेने टिकट का अमाउंट उस भाई को देकर टिकट ले लिया। अंदर प्रवेश होते ही एक गाइड हमारे साथ हो लिया जिसका काम था हमको पूरा मठ दिखा कर यहाँ की लोककथा से इसकी बारीकियां बताना।
पहाडी की कगार पर बना यह मठ अंदर कई हिस्सों में बटा हुआ था। उसने हमे बताया कि यहां कुल चार मुख्य मंदिर हैं इसमें सबसे प्रमुख भगवान पद्मसंभव का मंदिर है तथा यह मठ भी भगवान पद्मसंभव से ही जुड़ा हुआ हैं। अंदर चारो मंदिर मे थोड़ी थोड़ी देर हमको मेडिटेट करने के लिए बोला गया। सभी मंदिरो मे बड़ी बड़ी लोकदेवताओं की मुर्तिया लगी हुई थी।गाइड ने बताया कि भगवान पद्मसंभव को स्थानीय भाषा में गुरू रिम्पोचे की कहा जाता है एवं इसी मठ की जगह पर भगवान पद्मंसभव ने तपस्या की थी। पहाडी की कगार पर बनी एक गुफा में रहने वाले राक्षस को मारने के लिए भगवान पद्मसंभव एक बाघिन पर बैठ तिब्बत से यहां उड़कर आए थे एवं फिर राक्षस को मार उन्होंने कुछ वर्ष इसी गुफा मे तपस्या की।भगवान के उड़ने वाली बाघिन पर बैठ कर इस पहाड़ी की गुफा मे पहुंचने के कारण ही इस मठ को टाइगर नेस्ट बोला जाता हैं। करीब 3 घंटे हमने अंदर बिता कर फिर हम चल दिए वापसी की और। क्युकि बाहर का माहौल ही कुछ और था। तेज मूसलाधार बारिश और हलकी हलकी ठंड।
मठ से बाहर निकलते ही आप पहाड़ो की विशाल हरी भरी एवं घनी घाटी देख सकते हैं। क्या पता कितने तरह के जंगली जीव इन जंगलो मे रहते होंगे। बारिश भी अपने विकराल रूप मे बरसती ही जा रही थी । लग रहा था कि अब वापस जाना सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण होने वाला था क्योकि अब अधिकतर जगह सीधी चढ़ाई की जगह सीधा उतार ही मिलना था। अब वापसी ट्रेक शुरू होते ही जगह जगह लम्बे जाम मिलने लग गए क्योकि फिसलन के डर से कई जगह लोगो मे हिम्मत नहीं हो पा रही थी आगे बढ़ने की। अब वापसी मे फिसलने का मतलब था खाई मे गिर जाना या उसमे नहीं गिरे तो भी कम से कम पगडण्डी पर ही 50 फ़ीट तक फिसल कर हड्डिया तुड़वा लेना। जिन रास्तो से हम आये थे वो पुरे पानी मे तब्दील हो चुके थे ,जिस से रास्ता कहा है ये पता नहीं लग पा रहा था। अब सभी वापसी वाले यात्रियों को हर जगह अलग अलग छोटी बड़ी चट्टानों से चढ़ कर रास्ता खुद बनाना था।
कई जगह कुछ लोकल गाइड चैन बना कर यात्रियों को निकाल रहे थे। कुछ पॉइंट्स पर भीड़ ज्यादा होने से हम सब आपस में बिछड़ते जा रहे थे।हम छह लोगो मे से केवल हम 2 लोग ही थे जो ट्रैकिंग के अनुभवी थे। कई जगह तो हम बारी बारी एक एक का हाथ पकड़ 100 फ़ीट तक निचे छोड़ आते और पीछे वालो को लेने के लिए वापस ऊपर जाते ।ऐसे कई अनजान लोग अब हमारे साथ हो गए ,जिनके भी कुछ ट्रेकिंग अनुभवी लोग हमारे साथ मिल कर पीछे रह रहे यात्रियों को जगह जगह से सुरक्षित निकालने लगे।
एक जगह हालत यह थी की शॉर्टकट के चक्कर मे एक विदेशी युवती गलत पगडण्डी पर चली गयी और ऐसी जगह फस गयी जहा से ना वो वापस आ पा रही थी ना जा पा रही थी। वो केवल रो रो कर मदद के लिए पुकार रही थी ,लेकिन सभी उसे देख कर उसको केवल इंस्ट्रक्शन दे रहे थे। वैसे तो मैं आसानी से उसके पास पहुंच गया पर अब मुझे भी वहा से आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिला। मुझे लग गया की आज मेरी भी हड्डिया टूटने वाली हैं। लेकिन करीब 20 मिनट की मशक्क्त के बाद मै उसको सुरक्षित उसके घर वालो के पास ले गया जो कि हेल्प हेल्प चिल्ला रहे थे। रास्ते मे कई बार कई लोगो को अलग अलग जगह फिसलते हुए गिरते हुए देखा जा सकता था पर बारिश तो उसी खतरनाक रूप मे ही बरसती जा रही थी।
ट्रेक के अंत तक तो घना अँधेरा हो गया था । डी जे के अलावा मेरे पुरे बैच का कोई मेंबर मेरे साथ नहीं था।हम दोनों ने काफी देर कर दी थी। पुरे कीचड़ मे लथपथ करीब रात की 8 बजे हमने ट्रेक पूरा किया था। पार्किंग मे पहुंच के देखा तो हमारी बाइक के अलावा अब वहा केवल चार पांच गाड़िया ही वहा पड़ी थी वो भी फोर व्हीलर।मतलब हमारे बैच के सभी साथी ,पांडेय जी भी यहां से निकल चुके थे। निकालेंगे भी क्यूँ नही हमको ट्रेक से पहले ही ये बात बता दी गयी थी कि ऊपर सब बिछड़ जाओगे तो अपने अपने हिसाब से लौट जाना। साथ ही साथ हम दोनों तो नए नए दोस्त बनाते हुए ,मौज मस्ती के साथ आ रहे थे तो लेट तो होना ही था।
होटल तक जाने का भी रास्ता हम भूल चुके थे लेकिन जैसे तैसे लोकल लोगो को पूछ हम शहर पहुंचे। तेज भूख की वजह से गन्दी हालत मे ही एक रेस्टोरेंट पर वेज पिज़ा खाया और जाकर कमरे मे सो गए।
अगले दिन अब हमको फिर रिटर्न यात्रा करके भारत मे पहुंचना था। सभी ने मोबाइल मे जयगांव की लोकेशन सेट कर ली। यहाँ से 150 किलो मीटर दूर जयगांव था। आज कोई लीड नहीं करना था सबको अपने हिसाब से बॉर्डर क्रॉस करनी थी। मै डी जे की बाइक पर हो लिया। तेज बारिश मे 75 किलोमीटर के बाद मेने उस से बाइक ली और कुछ 10 किलोमीटर बाद ही ब्रेक ने काम करना बंद कर दिया। हम सबसे आगे थे बाकी लोग शायद 10 किलोमीटर तक पीछे थे। गाडी अब ढलानों एवं खतरनाक मुड़ावों पर रुक नहीं रही थी। ऊपर से बारिश की सुई जैसे तीखी बुँदे सीधे आँखों मे गिरकर चुभ रही थी। काफी देर तक मेने उसको हैंडब्रेक से चलाया लेकिन एक जगह पूरी आउट ऑफ़ कण्ट्रोल हो कर बाइक अपने हिसाब से चलने लगीऔर बाइक सीधा ढलान मे स्थित एक सब्जी विक्रेता के पास जा रुकी और बंद हो गयी। हमने बाइक घसीट कर उस दुकान पर गए जहा एक युवती कुछ सब्जिया बेच रही थी। उसने बारिश से बचाने हमको अंदर बुलाया। हम दोनों तो ठंड से काँप रहे थे और पुरे अंदर तक भीगे हुए थे। आज रेनकोट पहनने का कोई मतलब नहीं निकला। मेने कैमरा चेक किया ,कैमरा मेरा एकदम सही सलामत था। मेने देखा कि हम दोनों के सारे पैसे भी गीले हो चुके थे। उस युवती ने हमारे पैसे भी कुछ देर सूखा दिए। गीले भूटानी नोट के बदले उसने हमे भारतीय नोट दे दिए। करीब आधे घंटे तक वही बैठने के बाद बैकअप गाडी आयी और हमारी गाडी को ठीक की। लेकिन अब हमे बाइक हैंडब्रेके पर हिचलने को बोल दिया क्योकि मुख्य ब्रेक खत्म हो गया था। मेने उस लड़की के द्वारा मदद मिलने की वजह से उस से कुछ सब्जिया खरीद ली सोचा की आगे किसी जरूरतमंद को दे दूंगा।
चेकपोस्ट पर अपने पासपोर्ट पर छाप लगवा देर रात तक हम बॉर्डर क्रॉस कर जयगांव पहुंच गए। अगले दिन भी पूरी शाम तक ड्राइव कर हम सिलीगुड़ी पहुंच गए। जहा से अगली सुबह मेरी फ्लाइट थी। दो दिन की'लगातार ड्राइव के बाद हमारी हालत खराब हो चुकी थी और सुबह तक इतनी नींद मे हम थे कि मेने सुबह उठ कर ब्रश करने के लिए टूथ ब्रश पर शेविंग क्रीम लगा कर ब्रश करने लगा।😂😂 सोहैल ने एयरपोर्ट छोड़ने के लिए गाड़िया बुलवा ली थी। बाज़ार से कुछ बंगाल के प्रसिद्द रसगुल्ले खरीदवा , हम लोगो को एयरपोर्ट छोड़ दिया गया और वही से हम एक दूसरे से बिछड़ते गए पर कुछ अच्छे नए दोस्त और यादे अब हमारे साथ थी।