इत्तेफ़ाक से ही मेरा इस ओर आना हुआ, और जब आया तो मंत्रमुग्ध हुए बिना न रह सका। महाराष्ट्र के पुणे शहर से लवासा जाने वाले मार्ग में लगभग 45 किलोमीटर दूर पड़ने वाला पानशेत बाँध शहर में पानी भेजने के अलावा मनोरंजन के लिहाज से भी बेहतरीन जगह है। विशेषकर बारिश के मौसम में ये क्षेत्र जल खेलों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।
हुआ कुछ यूँ कि मैं अपने भैया के यहाँ पुणे आया हुआ था और ये इत्तेफाक ही हुआ कि उस वक्त उनके दोस्त राजेश का जन्मदिन भी पड़ गया। रात में केक वगैरह काटने के बाद ये प्लानिंग हुई कि सुबह कहीं घूमने चला जाये। चूँकि मैं बाकी सब लोगों से उम्र में बेहद छोटा था, और उस जगह पर नया भी, तो सबने मुझे ध्यान में रखकर एक जगह जाने का फैसला किया और वो जगह निकली- 'पानशेत।'
सुबह जब तैयार हुआ तो सब बाइक लेकर नीचे खड़े थे। नीलांजल भैया, मोहिंदर भैया, अक्षय भैया, छोटा अक्षय भैया और बड्डे बॉय राजेश भैया के साथ मैं पानशेत के लिए निकला। तीन बाइक पर हम 6 लोग, एक ऐसे जगह के लिए निकले जिसके बारे में बाकी सबको तो पता था, मगर मुझे नहीं। मुझे तो ये भी खबर नहीं थी कि वह जगह, जहाँ हम जा रहे उसका नाम 'पानशेत' है। खैर, पुणे शहर के मुख्य भाग से होते हुए हम जल्द ही बाहरी ओर आ गए और फिर शुरू हुआ इस रोड ट्रिप का सबसे खूबसूरत भाग।
हम जिस रास्ते पर उसका नाम था-'सिंहगढ़ रोड'। इस सड़क से आगे जाते हुए हमें रास्ते में सिंहगढ़ किला भी दिख गया। अगर आपने हाल ही में रिलीज हुई फ़िल्म 'तानाजी' देखी हो, तो शायद आपको इस जगह का नाम परिचित लगे। सूबेदार तानाजी मालुसरे ने इस किले को जीतने में अपनी शहादत दी थी, और उन्हीं की शेर समान वीरता को समर्पित करके इस रास्ते और किले का नाम 'सिंहगढ़' पड़ गया।
पानशेत की ओर जाने वाला ये सिंहगढ़ रास्ता रोड ट्रिप के लिहाज से बेहद खूबसूरत था। पहाड़ पर चढ़ती मोटरसाइकल, दोनों तरफ पेड़, शहर की कोलाहल से दूर, नीले आसमान के नीचे गाड़ी सरपट दौड़ती जा रही थी। हरे-भरे जंगल, और ऊँचाई से दूर बहती नदी देखने में बेहद खूबसूरत लग रही थी। बीच में एक जगह हमने ढाबे पर ठहरकर नाश्ता किया, और फिर आगे की ओर निकल गए। पहले मैं एकदम मूक था जगह को लेकर, पर अबतक के सफर की खूबसूरती देख धीरे-धीरे उसे देखने की उत्सुकता और बढ़ने लगी।
लगातार चलते रहने के बाद गाड़ी पहाड़ की ऊँचाई पर एक जगह रुकी और सबको उतरता देख मैं समझ गया कि अब हम पानशेत पहुँच गए हैं। मैंने उत्सुकता में पूछा कि कहाँ जाना है? तो सबने पहाड़ से नीचे की ओर इशारा कर दिया। आगे पेड़-पौधे थे तो मैं ठीक से समझ नहीं पाया, इसलिए थोड़ा आगे बढ़कर पेड़ों की झुरमुट से नीचे देखा और जो दिखाई दिया उसे वाकई शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। नीचे थी सोने सी चमकती जमीन, बीच में बह रही थी नदी, और ऊपर नीला आसमान। मैंने ऐसा खूबसूरत दृश्य पहले कभी नहीं देखा था। इच्छा की कि वहीं से कूदकर नीचे पहुँच जाऊँ, मगर ये बेहद जानलेवा आइडिया था, इसलिए सही रास्ते से ही उतरना पड़ा।
पहाड़ से नीचे उतरकर हम उस सुनहरी धरती पर आए जोकि दूर तक सोने-सी बिछी थी। नदी का कल-कल बहता पानी, और खूबसूरत मौसम। भैया ने बताया कि बारिश के मौसम में इस जगह ऊपर पहाड़ तक पानी चढ़ जाता है, जहाँ हम अपनी बाइक खड़ी करके आये। मैं तो मंत्रमुग्ध हुए जा रहा था। हमने काफी मस्ती थी, खाये-पिये। नीलांजल और अक्षय भैया तो एक दलदलनुमा कीचड़ में फँस गए और अपनी पैंट खराब कर लिए। बाद में नदी किनारे बैठ कपड़े भी धोए उन्होंने, जिन्हें देख हम खूब हँसे। तस्वीरें और वीडियो भी बहुत बनाई मैंने, मैं उस जगज और समय को किसी भी हाल में मिस करना नहीं चाहता था।
भैया ने जानकारी दी कि हम जहाँ घूम रहे हैं, वह जगह खड़गवासला डैम से आगे है। इस जगह के आसपास पानशेत, टेमघर और वरसगाँव नामक तीन डैम हैं। इन तीनों बाँध से ही पुणे शहर को पानी सप्लाई होता है। पानशेत का पानी खड़गवासला बाँध जाता है, और फिर वहाँ से पूरे शहर। पानशेत बाँध को सूबेदार तानाजी मालुसरे के नाम पर 'तानाजी सागर डैम' भी कहा जाता है। पता चला कि बारिश में यहाँ बोटिंग भी खूब होती है, और लोग घूमने भी बहुत आते हैं। ये अब जानकारी महत्वपूर्ण है, इसलिए मैं जितना हो सका, ध्यान में रखता चला गया।
पानशेत में एक अच्छा समय बिताने के बाद हम वापसी में एक झील में नहाए भी। तस्वीर खिंचवाने के लिए पानी में स्टंट भी किया। झील का पानी साफ-स्वच्छ था, जिसने रोड ट्रिप की धूल-मिट्टी और थकान को झट से गायब कर दिया। नहाकर हम वापस बाइक पर बैठे और पुणे आ गए। ये मेरे लिये बेहद खूबसूरत अनुभव था। अलग ही तरह का माहौल देखा मैंने, ऊपर से रोड ट्रिप इतनी लाजवाब। मेरा पुणे जाना सफल हो गया, और कहना न होगा कि बड्डे भले ही राजेश भैया का हो, गिफ्ट मुझे मिल गया...
कैसे जाएँ?- पुणे से पानशेत के लिए कैब मिल जाती है। निजी वाहन हो तो और बेहतर।
समय:- सूर्योदय से सूर्यास्त।