सफर। इसकी सबसे सरलतम परिभाषा यही होगी कि एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रस्थान करना। जीवन, जो कि खुद भी अपने आप में एक सफर है; जहां हम जन्म के बाद से मृत्यु तक उम्र में छोटे से बड़े होते चले जाने का सफर तय कर रहे है। और इस जीवन में भी हम सब जीवन भर सफर ही करते रहते हैं। हां बस, सफर की वजह अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग तरह की होती है। कोई पैसे कमाने के लिए गांव से शहर तक का सफर कर रहा है, कोई कमाए पैसे खर्च कर खुशियां खरीदने के लिए शहर से पहाड़ों तक का सफर कर रहा है, तो कोई इन सब मोह माया से मुक्त होकर मन की शांति की खातिर घर-परिवार से दूर से किसी आध्यात्मिक सफर पर निकला हुआ है। आज हम इन्हीं तीसरे तरह के सफर पर निकले अपने साथियों के लिए एक खास जगह की जानकारी लेकर आएं हैं। महाराष्ट्र राज्य में मौजूद इस जगह का नाम है पंढरपुर। हिंदुओ के आस्था का केंद्र यह इलाका 'मंदिरों का शहर' भी कहलाता है। इस इलाके में ढेर सारे मंदिरों के होने और इनके अस्तित्व में आने के पीछे की आध्यात्मिक वजहों के चलते पंढरपुर को 'दक्षिण की काशी' तक कहा जाता है। हिंदुओ में इसके आध्यत्मिक महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आषाढ़ के महीने में महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य से लाखों की संख्या में भक्त पैदल चलकर भगवान विठोबा के दर्शन करने के लिए पंढरपुर मंदिर की यात्रा करते हैं। साथ ही आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह वार्षिक यात्रा करीब हजार साल से लगातार हो रही है।
पंढरपुर में भगवान श्रीकृष्ण के अवतरित होने की कहानी
पंढरपुर में भगवान श्री कृष्ण जी और माता रुक्मिणी का एक विशेष मंदिर है। यहां पर भगवान श्रीकृष्ण की विठोबा, विठ्ठल नाम से पूजा की जाती है। इस शहर और भगवान के इस नाम के पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, 6वीं शताब्दी में एक संत हुए जिनका नाम पुंडलिक था। भगवान श्री कृष्ण एक बार उनकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देने के लिए प्रकट हुए। लेकिन उस समय पुंडलिक अपने माता-पिता के पैर दबाने में व्यस्त थे। इसलिए उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को एक ईंट(मराठी में विट) पर इंतजार करने को कह दिया। और भगवान श्रीकृष्ण अपने कमर पर हाथ रख उसी ईंट पर खड़े होकर पुंडलिक का इंतजार करने लग गए। पुंडलिक माता-पिता के पैर दबाकर जब तक लौटते, तब तक भगवान श्रीकृष्ण उसी विट पर मूर्ति का रूप धारण कर चुके थे। पुंडलिक ने फिर भगवान की मूर्ति को अपने घर में स्थापित कर दिया। इसके बाद से ही पुंडलिक के नाम पर इस इलाके का नाम पहले पुंडलिकपुर और समय के साथ बदलकर पंढरपुर हो गया। और विट पर इंतजार की मुद्रा में खड़े होने के चलते भगवान श्रीकृष्ण के इस स्वरूप की विठ्ठल नाम से पूजा की जाने लगी। इसके बाद जैसे जैसे समय बीतता गया, वैसे वैसे ही विठ्ठल मंदिर की महिमा के प्रचार-प्रसार के साथ इसका आध्यत्मिक महत्व भी बढ़ता चला गया।
भगवान श्रीकृष्ण में विठ्ठल अवतार के दर्शन के लिए पंढरपुर कैसे आएं?
महाराष्ट्र के सोलापुर शहर से करीब 60-70 किमी की दूरी पर स्थित पंढरपुर तीर्थ स्थान भीमा नदी के किनारे पर बसा हुआ है। अगर आप रेलमार्ग से आना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पंढरपुर के सबसे निकटतम और प्रमुख रेलवे स्टेशन सोलापुर उतरना होगा। सोलापुर तक जाने के लिए देश के सभी प्रमुख इलाकों से रोजाना ट्रेन उपलब्ध हैं। सोलापुर उतरने के बाद आपको बस स्टैंड से पंढरपुर जाने के लिए बड़ी आसानी से कोई निजी वाहन या फिर सरकारी बसें मिल जाएंगी। जो करीब एक-डेढ़ घंटे में आपको भगवान विठोबा के शहर यानी पंढरपुर पहुँचा देंगी।
सड़क मार्ग से आने वालों के लिए भी पंढरपुर के प्रांगण तक पहुंचना काफी आसान और सुविधाजनक है। मुंबई से 400 किमी, पुणे से 200 किमी, कोल्हापुर से 180 किमी, सतारा से 150 किमी और सांगली से 130 किमी दूर स्थित पंढरपुर तक भक्तों को पहुंचाने के लिए राज्य परिवहन निगम की बसें रोजाना चलती है। वैसे अगर आप चाहे तो निजी वाहन का इस्तेमाल कर अपनी यात्रा को और ज्यादा बेहतर बना सकते हैं। देश के किसी भी कोने से हवाई मार्ग के जरिए पंढरपुर आने वाले लोगों को पुणे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे आना होगा। यहां से फिर आप अपने कम्फर्ट के अनुसार ट्रेन या फिर टैक्सी, बस के जरिए पंढरपुर तक का सफर तय कर सकते हैं।
दक्षिण की काशी पंढरपुर में भगवान विठ्ठल के मंदिर समेत कौन-कौन से मंदिर घुमा जाए?
पंढरपुर में जो सबसे प्रमुख मंदिर है- वो है भगवान विठ्ठल का। जैसा कि अब आप जानते हैं कि विट पर खड़े-खड़े इंतजार करते हुए मूर्ति स्वरूप धारण करने के चलते भगवान श्रीकृष्ण का यह नाम पड़ा। और उनके भक्त के नाम पुंडलिक से इलाके को पंढरपुर नाम से पहचान मिली। इस मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि संतों ने 11वीं शताब्दी में पंढरपुर को एक तीर्थ स्थान के रूप में स्थापित किया। और फिर 12वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव शासकों द्वारा मुख्य मंदिर यानी विठ्ठल मंदिर का निर्माण किया गया। आप जब भीमा नदी में स्नान करने के बाद भगवान विठ्ठल के दर्शन करने जाएंगे तो मंदिर की शुरुआत में आपका सबसे पहले तो संत चोखामेला की समाधि से साक्षात्कार होगा और फिर मंदिर की पहली ही सीढी पर संत नामदेव की समाधि देखने को मिलेगी। इन दोनों ही संतों ने अपने आसान शब्दों में भगवान विठ्ठल की महिमा से आम जनमानस को परिचित कराने का काम किया। इनके अलावा मुख्य मंदिर परिसर में ही आप रुक्मणिजी, बलरामजी, सत्यभामा, जांबवती तथा श्रीराधा जी के दर्शन भी कर सकते हैं।
अपनी पंढरपुर की आध्यात्मिक यात्रा के दौरान पहले दिन प्रमुख मंदिरों के दर्शन करने के बाद आप दूसरे दिन पंढरपुर शहर भर में फैले अन्य मंदिरों के दर्शन पर निकल सकते हैं। आपको बता दें कि भगवान विठ्ठल के मंदिर के अलावा भी पंढरपुर में अनगिनत ऐसे मंदिर है जिनके दर्शन कर आप अपनी आध्यात्मिक यात्रा को सफल और संपूर्ण बना सकते हैं। तो इसके लिए आप सबसे पहले अपने लिए एक निजी वाहन किराए पर ले लीजिए औए फिर पंढरपुर शहर में स्थित अनगिनत मंदिरों में से पुंडलिक मंदिर, लखुबाई मंदिर, अंबाबाई मंदिर, व्यास मंदिर, त्र्यंबकेश्वर मंदिर, पंचमुखी मारुति मंदिर, कालभैरव मंदिर, शकांबरी मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, काला मारुति मंदिर जैसे प्रमुख तीर्थ का आसानी से दर्शन कर पाएंगे। आपका दूसरा दिन मंदिर घूमते-घूमते खत्म हो जाएगा लेकिन फिर भी अंत में ढेर सारे ऐसे मंदिर रह ही जाएंगे, जिनके दर्शन करना बाकी रह जाएगा। अब भला, पंढरपुर को ऐसे ही मंदिरों का शहर तो नहीं कहा जाता है ना।
पंढरपुर आने वाले भगवान विठ्ठल के भक्तों के लिए भीमा नदी का भी अपना अलग महत्व है। गंगा नदी की ही तरह इस नदी में भी नहाने से पाप धुलने की मान्यता है। इस नदी के तट पर भगवान विठ्ठल के भक्त संत पुंडलिक का मंदिर है। जो कि एक समय उनका विश्राम स्थल हुआ करता था। भगवान विठ्ठल के बाद उनके इस भक्त के दर्शन का भी अपना अलग महत्व है। इसके अतिरिक्त पंढरपुर आने वाले भक्तों के लिए भीमा नदी में मध्य बना विष्णुपद मंदिर आकर्षण का सबसे प्रमुख केंद्र होता है। 16 मजबूत स्तंभों पर टिका यह मंदिर बारिश के मौसम में तो भीमा नदी के पानी से भरा रहता है। लेकिन बारिश के बाद जब नदी का जलस्तर घटता है, तब मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के पैरों के निशान देखने के लिए भक्तों की भीड़ बढ़ती चली जाती है। वैसे, जब आप संध्याकाल में भीमा नदी के तट से इस मंदिर तक पहुंचने के लिए नौकायान करेंगे। तब नदी के पानी और सूरज की लाली के आध्यात्मिक संगम से तट की खूबसूरती में लगे चार चांद को देखकर आप समझ जाएंगे कि क्यों महाराष्ट्र के इस सबसे बड़े तीर्थस्थल को दक्षिण का काशी कहा जाता है। यकीन मानिए, शाम के समय तट पर ऐसा माहौल बनता है है कि फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि आप पंढरपुर में है या फिर बनारस घाट पर।
वैसे जब आप भीमा नदी के तट भगवान श्रीकृष्ण के विठ्ठल मंदिर की तरफ पीठ कर बैठे विष्णुपद मंदिर की ओर देख रहे होंगे, तब आपको नदी के दूसरी ओर भी भगवान श्रीकृष्ण जी ही नजर आएंगे। इसलिए नहीं कि भगवान श्रीकृष्ण सर्वव्यापी हैं। बल्कि इसकी वजह भीमा नदी के दूसरे छोर पर बेहद ही खूबसूरत इस्कॉन मंदिर भी बन गया है। आप अपनी इस यात्रा से समय निकालकर इस्कॉन मंदिर भी जरूर घूमकर आइएगा। वैसे देखने लायक जगहों की सूची में आप विठ्ठल मंदिर से महज 5 किमी दूर योगीराज तुकाराम बाबा खेड़लेकर आश्रम का नाम भी जरूर शामिल कीजिएगा। क्योंकि यहां आपको भगवान विठ्ठल की सबसे ऊंची मूर्ति के दर्शन होंगे। और इसके बाद अगर आपको भगवान की बेहद ऊंची मूर्ति के साथ उतने ही खूबसूरत परिसर का भी आनंद लेना हो तो फिर पंढरपुर रेलवे स्टेशन के समीप स्थित तुसली वृंदावन घूमना भी मत भूलिएगा। और जैसा कि हमने पहले ही कहा था कि घूमने के लिए आपके पास वक्त कम पड़ जाएगा, लेकन देखने लायक दर्शनीय स्थलों की सूची खत्म नहीं होगी। यही मंदिरों के शहर पंढरपुर की सबसे बड़ी खासियत भी है, जो उसे अन्य धार्मिक तीर्थस्थलों से अलग और विशिष्ट स्थान प्रदान करती है।
भगवान विठ्ठल के शहर पंढरपुर में रहने-खाने का कैसा है इंतजाम?
जाहिर सी बात है कि जब पंढरपुर शहर घूमने में लिए कम से कम दो दिनों का समय लगेगा, तो यहां ठहरने के लिए एक कमरे की भी जरूरत पूरी करनी होगी। तो आपको बता दें कि पंढरपुर में ठहरने के आपके पास हजार ऑप्शन उपलब्ध होंगे। क्योंकि यहां आने वाले यात्रियों के लिए भक्त निवास, धर्मशाला, ढेर सारे ट्रस्ट के साथ-साथ अनगिनत प्राइवेट होटल्स के पास आपकी जेब और सुविधानुसार कमरों की भरमार है। आप चाहे तो 400 से 500 रुपए खर्च कर किसी ट्रस्ट या धर्मशाला में ठहर सकते हैं। और अगर आप 1000 से 2000 रुपए खर्च करने को तैयार है तो फिर सभी सुख-सुविधाओं से संपन्न होटल में भी अपने लिए एक कमरा बुक कर सकते हैं।yatradham.org/yatradham/maharashtra/pandharpur.html इस वेबसाइट के जरिए आप अपने रहने के लिए कमरा आसानी से बुक कर सकते हैं। बाकी, रहने के वाला खाने का भी भगवान के घर सारा इंतजाम है। भगवान की पूजा करने के बाद पेट पूजा के लिए आप स्थानीय व्यजंन का स्वाद जरूर चखियेगा। क्योंकि किसी जगह को आप अपने ज़ेहन भी सिर्फ वहां के पर्यटन स्थलों को देखकर ही नहीं उतार सकते। इसके लिए जरूरी है कि आपने वहां के पकवानों का भी स्वाद चखा हो। क्योंकि दिल में बसने का रास्ता वैसे भी पेट से होकर ही गुजरता है।
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