![Photo of इतिहास प्रेमियों के लिए खास: भारत के सबसे खूबसूरत बौद्ध स्तूप 1/1 by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/1414073/TripDocument/1555074021_photo_1551156922_a5812979c10a.jpg)
ये तो सभी जानते हैं कि पूरी दुनिया में फैल चुकी बौद्ध धर्म की जड़ें भारत में जमी हैं | बोध गया, जहाँ भगवान बौद्ध को तत्व ग्यान प्राप्त हुआ, से लेकर उन जगहों तक जहाँ घूमकर बुद्ध और उनके शिष्यों ने अपना ग्यान फैलाया, आपको हर जगह बुद्ध और उनकी शिक्षाओं को समर्पित एक ना एक शानदार बौद्ध स्तूप तो ज़रूर मिलेगा | यही वजह है कि हर साल दुनिया के सुदूर कोनों से सैलानी भारत में उन जगहों को देखने आते हैं जहाँ बौद्ध धर्म को बढ़ावा मिला था | ये स्तूप विश्व शांति और प्यार के प्रतीक हैं |
अगर आप भी शांति की खोज में या इतिहास में रूचि रखते हैं तो इन बेहद खूबसूरत और नायाब स्तूपों को देखे भी ना रह जाए, ये थोड़ा मुश्किल हैं।
आत्मज्ञान की प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने कई साल तक राजगीर के पर्वत पर बैठ कर ध्यान किया था | आज इसी पर्वत पर एक खूबसूरत स्तूप बना है और इसके पास ही एक भव्य जापानी मंदिर बना हुआ है | चेयर कार में 20 मिनट की रोमांचक यात्रा के बाद ही इस स्तूप तक पहुँचा जा सकता है |
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यात्रा के टिप्स : बोध गया से नेपाल तक फैले बौद्ध स्थलों में राजगीर भी आता है | अगर आपके पास समय की कमी है तो आप एक साथ सारनाथ, बोधगया, राजगीर और नालंदा भी घूम सकते हैं |
ठहरें : राजगीर में हर बजट के यात्री के लिए ठहराने की व्यवस्था है | सरकारी गेस्ट हाउस से लेकर लग्ज़री रिज़ॉर्ट मौजूद हैं |
वाराणसी से 13 कि.मी. दूर, सारनाथ में बौद्ध धर्म के सबसे पुराने प्रतीकों में से एक धमेक स्तूप स्थित है | इसे सम्राट अशोक ने बनवाया था | इसका काफ़ी भाग नेस्तनाबूद हो चुका है, मगर इसकी ऊँचाई और चौड़ाई देख कर आप आज भी दंग रह जाएँगे |
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यात्रा के टिप्स : वाराणसी होते हुए भी सारनाथ जा सकते हैं | इससे आप इन दोनों जगहों की सभ्यता को एक बार में ही समझ सकते हैं |
ठहरें : वाराणसी में सस्ते होटल, होस्टल, गेस्ट हाउस, और एयर बीएनबी भरे हुए हैं | आप अपनी यात्रा के बजट के हिसाब से कहीं भी ठहर सकते हैं, मगर एक बार रिव्यू ज़रूर जाँच लें क्यूंकी होटल के नामों को लेकर काफ़ी धाँधली चलती है |
लेह लद्दाख टूर पैकेज
शांति स्तूप, लेह
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इस शांति स्तूप को कई लोग सबसे शानदार बौद्ध संरचना भी मानते हैं | लेह जैसे खूबसूरत शहर में स्थित इस स्तूप से लेह और आस-पास के गाँवों का ज़बरदस्त नज़ारा मिलता है | शांति स्तूप से सूर्योदय और सूर्यास्त का नज़ारा देखना ना भूलें |
यात्रा के टिप्स : वैसे तो लेह जाते समय आप शांति स्तूप देख सकते हैं लेकिन चाहें तो अपनी गाड़ी छोड़कर 600 सीढ़ियाँ चढ़कर स्तूप तक जा सकते हैं |
ठहरे: लेह में आपको अपनी ज़रूरत और बजट के हिसाब से ठहरने की जगह मिल जाएगी |
सांची का स्तूप भारत की सबसे अच्छी तरह संरक्षित बौद्ध संरचनाओं में से एक है | भोपाल से 40 कि.मी. दूर स्थित सांची स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने भगवान बुद्ध के अवशेषों पर करवाया था |
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यात्रा के टिप्स : भोपाल को केंद्र मानकर चलेंगे तो भोपाल के पुराने शहर, भीम बेतका की गुफ़ाएँ, और मांडू भी घूम सकेंगे |
ठहरें : भोपाल में आपको बजट से लेकर लग्ज़री होटल तक सबकुछ मिलेगा | अगर अपनी छुट्टियों में शाही तड़का लगाना चाहते हैं तो जहाँनुमा पैलेस ज़रूर जाएँ |
यह भीमकाय बौद्ध परिसर तिब्बत के अनुसंधान संस्थान के पास स्थित है। यह सुंदर संरचना उत्तर- पूर्व भारत में सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप है।
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यात्रा के टिप्स : गंगटोक में घूमते हुए आप इस स्तूप को देख सकते हैं |
ठहरें : गंगटोक में सस्ते होटल, होस्टल और एयर बीएनबी मिल जाएँगे | चाहें तो भीड़- भाड़ भरे गंगटोक से दूर पैराग्लाइडिंग विलेज में खूबसूरत नज़ारों में अपनी छुट्टियाँ मना सकते हैं
महा स्तूप, थोटलाकोंडा
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विशाखापट्टनम शहर से सिर्फ 15 कि.मी. दूर पर्वत की छोटी पर स्थित इस स्तूप से समंदर का नज़ारा दिखता हैं| ये स्तूप ईंटों से बना प्राचीन शिल्पकारी का नमूना है | आज यहाँ बौद्ध भिक्षु शांति में समय व्यतीत करने और ध्यान करने आते हैं
यात्रा के टिप्स : इस स्मारक के साथ ही नीच दिए गये विशाखापट्टनम के अन्य बौद्ध स्मारक भी घूम लें |
बाविकोंडा स्तूप, विशाखापट्नम
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विशाखापट्टनम में आज भी कई प्राचीन स्तूप हैं जो अपनी खूबसूरती के कारण शिल्पकारी का ज़बरदस्त उदाहरण समझे जाते हैं | महा स्तूप की तरह बाविकोंडा भी एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। एएसआई ने यहाँ से खुदाई में कई प्राचीन बौद्ध अवशेष जैसे मिट्टी के बर्तन, सिक्के और मूर्तियाँ निकाली हैं | यूनेस्को ने बाविकोंडा, थोटलाकोंडा, पावुरलाकोंडा और बोजनाकोंडा को विश्व धरोहरों की सूची में जगह दी है |
ठहरें : विशाखापट्टनम में आपको बजट से लेकर लग्ज़री होटल तक सबकुछ मिल जाएगा |
धौलिगिरी या धौली से ही दुनिया के अन्य कोनों में बौद्ध धर्म का प्रकाश फैला | मौर्य और कलिंग सेनाओं के बीच हुए नरसंहार ने सम्राट अशोक को काफी प्रभावित किया और उन्होंने हिंसा त्याग दी | धौली स्तूप युद्धस्थल के सामने ही बना है जिसके आगे धौली नदी बहती है | कहते हैं कि भीषण नरसंहार के कारण नदी का पानी खून में मिलकर लाल हो गया था |
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यात्रा की योजना : उड़ीसा की यात्रा करते हुए अगर अपनी योजना में धौली को भी शामिल करते हैं तो साथ ही पुरी, कोणार्क और भुवनेश्वर भी घूम लेंगे |
ठहरें : चाहें तो पुरी में ठहर सकते हैं या दिन में भुबनेश्वर घूमते हुए धौली जा सकते हैं | चाहें तो भुबनेश्वर में ठहरकर आस-पास के मंदिरों और अन्य अहम पर्यटन स्थल देख सकते हैं |
बिहार में स्थित इस स्तूप को बहुत कम लोग जानते हैं, मगर ये दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप है | वैशाली या बौध गया जाने वाले सैलानी इस स्तूप को इसकी खस्ता हालत में भी देखने आते हैं |
ठहरें : आपको बोध गया या पटना ही रुकना चाहिए क्योंकि यहाँ रुकने की अच्छी सुविधा नहीं है |
इनके अलावा भी आप कई ऐसे बौद्ध स्तूप देखने जा सकते हैं जो बौद्ध इतिहास के पन्नों में अमर हो गए हैं | वैशाली का वर्ल्ड पीस पगोड़ा, दार्जिलिंग का शांति स्तूप, कुशीनगर का रामभर स्तूप, धर्मशाला का नाम्ग्याल स्तूप, देहरादून का क्लेमेंट टाउन स्तूप और अमरावती स्तूप कुछ ख़ास जगहें हैं |
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