कहते हैं दिल्ली तो दिल वालों की है, लेकिन यह देश का वो दिल है जहाँ की धड़कन ने सदियों से इस देश के इतिहास को गुंजयमान बनाया है। यह भारतबर्ष के अतीत का वो दस्तूर है जिसके बारे जितना लिखा जाय, कम है।
आगरा और फतेहपुर सिकरी की गर्मी हम काफी झेल चुके थे, लेकिन फिर भी हमारा अगला पड़ाव था दिल्ली। आगरा से मात्र चार घंटे की ट्रेन यात्रा करके हम नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुचे। ट्रेन में हमें जबरदस्त भीड़ का सामना करना पड़ा। यह मेरी पहली महानगर यात्रा थी।
स्टेशन से कुछ किमी की दुरी पर ही पहाड़गंज नाम का एक जगह है जहाँ आपको ठहरने के लिए हर बजट के होटल मिल जायेंगे। यही पर अराकसाँ रोड में हम होटल में दाखिल हुए और निकल पड़े अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दिल्ली दर्शन करने।
यूँ तो आप दिल्ली घूमने के लिए बसों का सहारा ले सकते है मैट्रो की भी उत्तम व्यवस्था है ही। लेकिन इतने बड़े शहर में बिना किसी गाइड के घूमना हमारे लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही थी। इसीलिए हमने एक ट्रेवल एजेंसी से अगले दिन का टूर बुक करवा लिया था और पहले दिन हम सिर्फ मेट्रो वगेरह में ही घूमते रहे। मेट्रो के प्रति हमारी उत्सुकता किसी बच्चे की तरह थी। नई दिल्ली स्टेशन से ही खुलने वाली मेट्रो में बैठ कर हम राजीव चौक, बाराखंबा रोड, यमुना बैंक, अक्षरधाम आदि जगहों तक गए और वापस आ गए। अक्षरधाम मंदिर हम मेट्रो से पहुंचे। यह आधुनिक जमाने का बनाया हुआ एक बेहतरीन मंदिर है ,लेकिन जूते चप्पल खोल कर जमा करने के लिए लाइन में खड़ा होना एक बहुत बड़ी परेशानी है।
लाल किले को शाहजहाँ ने अपनी
राजधानी आगरा से दिल्ली लाने के लिए बनवाया था। लाल किला घूमने के लिए आपको कम से कम दो घंटो का वक़्त लगेगा इसीलिए यहाँ हम पहले दिन की शाम को ही भ्रमण कर लिए। दिल्ली के चांदनी चौक के एकदम सीध में स्थित दूर से ही किला नजर आ गया। किले के प्रवेश द्वार को लाहौरी दरवाजा कहा जाता है। किसी समय में यहाँ से सीधे सुरंग लाहौर में खुलता था इसीलिए यह नाम पड़ा। चहारदीवारी और भवन के बीच एक गहरी खाई बना दी जाती थी और उसमे पानी के साथ मगरमच्छ जैसे खतरनाक जानवरो को छोड़ दिया जाता था ताकि कोई भी किले को भेदने की जहमत ना उठाये। ये सब उस जमाने के सुरक्षा उपाय थे। अंदर बहुत सारे इमारत थे जो मुग़ल साम्राज्य के धरोहर हैं। दीवाने खास, दीवाने आम आदि कुछ भवन हैं जिनमे राजा का दरबार सजता था। बाग़ बगीचो से भरा यह परिसर मुगलो की शान था। अंदर एक संग्रहालय है जिसमे भारत के स्वतंत्रता संग्राम से सम्बंधित सारे वस्तु रखे हुए हैं। 1857 के विद्रोह के तोपों से लेकर 1945 के सुभाष चंद्र बोस के सिंहासन तक वहां संभाल के रखा गया है। कुछ फेरी वाले हैं जिनकी दुकानें मुख्य दरवाजे के पास ही लगी रहती है जहाँ अनेक प्रकार के सजावटी सामान और आभूषणों की कतार लगी रहती है। कुल मिला कर यह मुग़ल शासन का वो स्मारक है जहाँ से पुरे देश का शासन चलता था। अगर दिल्ली आकर यहाँ नहीं आये तो दिल्ली नहीं आये।
अगले दिन की सुबह हम बस से दिल्ली दर्शन करने निकले। लाल किला तो हम देख ही चुके थे, वहां पर ट्रेवल वालो ने सिर्फ 1 घंटे का समय दिया इसीलिए मैं कह रहा था की यहाँ समय लेकर आईये।
लाल किले के बाद बस वाले ने हमें दिल्ली का विख्यात कनॉट प्लेस दिखाया जहाँ की ऊँची ऊँची इमारतें गगन को चुम रही थी। संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट सब आस पास ही थे।
इंडिया गेट पर हम कुछ देर रुके और आस पास का नजारा देखा। इसे अंग्रेजों ने प्रथम विश्व युद्ध में मरने वाले सैनिको की याद में बनवाया था। एक अमर ज्योति है जो हमेशा जलते रहती है। ये सभी नई दिल्ली के अंदर आते हैं।
फिर आया दिल्ली का ऐतिहासिक जंतर मंतर जो बीते कुछ बर्षो में अनेक आंदोलनों का गवाह रहा है। यह एक बहुत सटीक समय का निर्धारण करने वाली यन्त्र है जिसे किसी जमाने में जयपुर के राजा जयसिंह ने बनवाया था। इस चित्र में आप मुझे लाल रंग वाली उसी यन्त्र के सामने देख रहे हैं जिसमे मात्र छाया के माध्यम से समय का बिलकुल सही माप होता था।
आगे बढ़ने पर आया लोटस टेम्पल जो की एक मंदिर न होकर मैडिटेशन सेंटर है। ये भी काफी भीड़ भाड़ वाली जगह है। लेकिन दूर से ही कमल की आकृति बड़ी सुहानी लगती है।
दक्षिणी दिल्ली में सिर्फ एक क़ुतुब मीनार ही देखने लायक जगह है। यह दक्षिणी दिल्ली में काफी दूर स्थित है। यहाँ पर टिकट लेने के लिए हमें लम्बी लाइन में खड़ा होना पड़ा। यहाँ पहुँचते ही मुझे फनाह फिल्म के गाने चाँद सिफारिश.......जो करता तुम्हारी की याद आ गयी। यह टूरिस्ट बस द्वारा दिखाया गया अंतिम जगह था।
दिल्ली यात्रा के अंतिम और तीसरे दिन हम दिल्ली के चांदनी चौक की रौनक से एक बार फिर रू-ब रू हुए। यह दुनिया के सबसे व्यस्त मार्गो में से एक है। दिल्ली की गलियारों में स्ट्रीट फ़ूड का भी मजा लिया। यहाँ हर तरह के भोजन उपलब्ध थे। यह एक लघु भारत है जहाँ देश के कोने कोने से लोग आकर बस गए हैं।
फतेहपुर सिकरी: जिसे अकबर ने बसाया फुरसत से (Fatehpur Sikri: First Planned City of Mugals)
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