लगभग ढाई सौ घरों वाला एक बहुत प्यारा सा पहाड़ी गांव Nongjrong जो कि मेघालय की ईस्ट खासी हिल्स में स्थित है। यहां के सभी लोग क्रिश्चियन धर्मानुयायी हैं लेकिन जैसा कि पूर्वोत्तर की सभी जनजातियाँ धर्म से पहले अपनी संस्कृति को प्रधानता देती हैं, यहाँ के लोग भी स्वयं को खासी ही पहले मानते हैं;
खासी पहाड़ियों में कुछ खूबसूरत दिन
पहले दिन होमस्टे पहुंची तो एक लगभग 56-58 साल की महिला मिलीं जो अकेले एक होमस्टे और एक चाय की दुकान चला रही थीं। होमस्टे एक सुन्दर और साफ-सुथरा तीन बेडरूम का पक्का मकान था। मकान के बाहर एक बड़ा गार्डेन भी था जिसमें सब्जियाँ उगाई गई थीं। यह मेरे लिए आश्चर्य की बात थी क्योंकि इतने दूर दराज गांव में मैने एक छोटे से लकड़ी के होमस्टे की कल्पना की थी! हालाकि इस गांव में अधिकांश घर लकड़ी के ही हैं और इन सभी घरों को ऊपर से एल्युमीनियम/लोहे की सीट से कवर किया गया है ताकि बार-बार होने वाली बारिश से लकड़ी खराब न हो। होमस्टे चलाने वाली लेडी से दो-चार शब्दों और इशारे के माध्यम से बातचीत हुई। फिर थोड़ा आराम करके मैं घूमने निकली।
छोटे बच्चे अपने गाँव में एक अजनबी को देखते ही भागकर छुप जा रहे थे! मैं पहाड़ियों की तरफ निकल गई। शाम हो रही थी और लोग घाटी की तरफ से उपर गाँव में वापस लौट रहे थे। किसी के हाथ में हँसियानुमा उपकरण था तो किसी के पीठ पर सिर के सहारे से टंगी तिकोनी बड़ी टोकरी जिसमे वे लोग कुछ सामान लिए थे। और कुछ लोग मछली पकड़ने के उपकरण दोनो कन्धों में पकड़े हुए चले आ रहे थे।मैनें कुछ लोगों से बातचीत की कोशिश की लेकिन वे लोग हिन्दी या अंग्रेजी दोनो में ही कुछ समझ नहीं रहे थे और न ही घुलना-मिलना पसन्द कर रहे थे। भावशून्य चेहरा लिए आगे बढ़ जा रहे थे। दूर एक चट्टान पर एक वृद्ध महिला बैठी थीं। मै उधर टहलते हुए गई तो वह महिला वहाँ से उठकर चली गईं!
मैं देर तक बैठी सुन्दर पहाड़ियों को निहार रही थी, तभी आवाज आई "where are you from?" मेरे कानों में जैसे कोई मधुर संगीत बज उठा!! ज़िन्दगी में पहली बार अंग्रेजी मुझे मातृभाषा जैसी मीठी लगी!! सामने एक लगभग 55 साल की महिला अपनी युवा बेटी के साथ थीं। पहली बार उस गांव में किसी से मेरी बातचीत हुई। हमारे बीच सामान्य परिचय जितना संवाद सम्भव हो सका। वो लोग मुझे अपने घर ले गए। जाते ही पान जिसमें थोड़ा सा चूना लगा था और अलग से कच्ची नरम सुपारी के एक टुकड़े से मेरा स्वागत हुआ। मैने पान खा लिया और पहली बार मुझे ये पता चला कि पान लाल होने के लिए कत्था की जरूरत नहीं होती और ये केवल चूने से ही लाल हो जाता है। मुँह का स्वाद अजीब सा हो गया और इसके बाद जब भी कोई पान देता तो मैं चुपचाप लेकर रख लेती, लेकिन मना नहीं करती क्योंकि ये उनके स्वागत का तरीका है और मैं उन्हें दुःखी नहीं करना चाहती थी। खासी महिलाएँ हमेशा एक छोटा सा स्लिंग बैग लिए रहती हैं, कुछ महिलाएँ कपड़े के सिले बैग जबकि कुछ ख़ासकर युवा महिलाएँ, आधुनिक रेडिमेड बैग जिसमें उनकी अन्य उपयोगी वस्तुओं के साथ एक छोटा सुन्दर सा फोल्डिंग चाकू लगभग सबके पास होता है जो ताजी और नरम सुपारी को छीलने और काटने के काम आता है!
क्रमशः.......
होमस्टे वाली आण्टी ने मुझे अपना खासी ड्रेस पहना दिया!! अब गाँव के बच्चे भी मुझे पहचानने लगे हैं। नहीं-नहीं ड्रेस की वजह से नहीं, वैसे भी उनसे दोस्ती हो गई है। अब मुझे देखकर छुपते नहीं बल्कि उनमें से कुछ हाथ हिलाकर बाय-बाय भी करते हैं। अभी पिछले लगभग एक साल पहले ही पर्यटन विभाग ने इस गाँव को संज्ञान में लिया है। तबसे सूर्योदय देखने के लिए बने व्यू-प्वांइट पर पर्यटक आने लगे हैं! असम के किसी काॅलेज से कुछ छात्रों का एक ग्रुप घूमने आया है। मुझे स्थानीय परिधान में टी-स्टाॅल पर बैठा देखकर पूछते हैं -- "कोंग(बड़ी बहन) चाय है?" मैं मुस्कराकर बोलती हूँ-- "Yes, please welcome!" उसके बाद आण्टी उन्हें चाय सर्व करती हैं और मैं पहाड़ियों की तरफ निकल देती हूँ!!