![Photo of चलिए महेश्वर का दीदार करते हैं, नर्मदा के चरणों में मां अहिल्या बाई की अद्भुत नगरी Maheshwar by इन्द्रभूषण मिश्र](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/gen/1703342/TripDocument/1569521003_26220133_1598978916886890_2464499335138169509_n.jpg)
माय टाइम्स टुडे। महेश्वर का इतिहास लगभग 4500 वर्ष पुराना है। यह एक समय होल्कर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। होल्कर महारानी देवी अहिल्या शिव भक्त थी। वह भगवान शंकर की पूजा किए बिना पानी तक ग्रहण नहीं करती थी। वह भगवान शिव की ऐसी अनन्य भक्त थी कि अपने हस्ताक्षर की जगह श्री शंकर लिख देती थी।
महारानी अहिल्या बाई ने औरंगजेब द्वारा नष्ट किए गए कालांतर के किलों का पुन: उद्धार कराया। अनेक मंदिर बनाए और महेश्वर को पुन: सम्पूर्ण सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विकसित किया। रामायण काल में महेश्वर को माहिष्मति के नाम से जाना जाता था। उस समय हैहय वंश के राजा सहस्राजुर्न शासन करते थे। महाभारत काल में इसे अनूप जनपद की राजधानी बनाया गया था। कालिदास ने रघुवंशम् में इंदुमति के स्वयंवर प्रसंग में नर्मदा तट पर माहिष्मति का वर्णन किया है।
महेश्वर के दर्शनीय स्थल :
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महेश्वर किला -
महेश्वर किला नर्मदा नदी के तट पर बना है। यह किला बाहर से जितना सुंदर दिखता है उससे कही अधिक अंदर से मनोरम दृश्यों को संजोए हुए है। यहाँ किले को देखने के लिए हर दिन हजारों की संख्या में सैलानी आते हैं।
शिव मंदिर :
किले के पास ही भगवान शिव का मंदिर है। वैसे तो पूरे परिसर में कई शिव मंदिर और शिव लिंग बने है। इनमें से राजराजेश्वर शिव मंदिर सबसे आकर्षक है। इसका निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने कराया था।
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देवी अहिल्या का पूजा स्थल :
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क़िले के अंदर देवी अहिल्या का पूजा स्थल है, जहाँ पर अनेकों धातु के, तथा पत्थर के अलग-अलग आकार के शिवलिंग, कई सारे देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ और एक सोने का बड़ा-सा झूला है, जो यहाँ का मुख्य आकर्षण है, जिस पर भगवान कृष्ण को बैठाकर अहिल्याबाई होल्कर झुलाया करती थीं।
शिवलिंग पूजन
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माता अहिल्या बाई ने अपने समय में एक अनोखी परंपरा की शुरुआत की थी। वो प्रत्येक दिन छोटे - छोटे शिव लिंग का निर्माण करतीं थी। बताया जाता है कि तब 108 ब्राम्हण प्रतिदिन काली मिट्टी से सवा लाख छोटे शिवलिंग का निर्माण करते थे। उन शिवलिंगों की आराधना कर उन्हें नर्मदा में अर्पित करते थे। अभी के समय में ब्राम्हण प्रत्येक दिन पंद्रह हजार शिवलिंग बनाते हैं, उनकी पूजा करते हैं एवं नर्मदा के जल में उन्हें अर्पित करते हैं।
होटल अहिल्या फोर्ट:
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देवी अहिल्याबाई के पूजा घर से कुछ कदमों की दूरी पर ही एक लकड़ी का द्वार स्थित है, जिसके अन्दर एक आलिशान महल है, जो कभी होल्कर राजवंश के शासकों का निजी आवास हुआ करता था। लेकिन आजकल इस महल को एक हेरिटेज होटल का रूप दे दिया गया है। यहाँ एक अच्छे तीन सितारा होटल के समकक्ष सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।