मैं दिल्ली से हूँ और मेरी पैदाइश है गढ़वाल की जो उत्तराखंड में पड़ता है। दिल्ली वालों के लिए वीकेंड प्लान करना इतना मुश्किल नहीं। बस शुक्रवार शाम बस पकड़िये और 8 से 12 घंटे में शिमला, मसूरी, नैनीताल, मनाली पहुँच कर मज़े कीजिये। पर मैं पिछले छह सालों से मुंबई में हूँ और यहाँ वीकेंड प्लान इतने सुहावने नहीं होते। गर्मियों में तो कहीं भी जाना बेकार है। मॉनसून आने पर मल्शेज घाट, लोनावला खूबसूरत हो जाते हैं पर गोवा की तरह फेवरेट नहीं बन पाते। इसीलिए जब मुझे गणपतिपुले जाने का मौका मिला तो मैं इतनी एक्साइटेड नहीं हो पा रही थी। पर वहाँ जाकर मेरी आँखों को जो सुकून और मेरे मन को जो आराम मिला, उसी को शब्दों में बयान करने की आज कोशिश करूँगी।
मुंबई के बाहर, मज़ेदार वीकेंड की शुरुआत
तो सुबह पाँच बजे हम बैठ गए जन शताब्दी में, जिसके ऐ.सी से मेरी कुल्फी जम रही थी पर लोगों का उत्साह देखने लायक था क्योंकि यही ट्रेन गोवा भी जा रही थी। हमें गोवा से पहले रत्नागिरी स्टेशन पर उतरना था। 6 घंटे का सफर कब कट गया, पता नहीं चला। फिर हम रत्नागिरी के छोटे से स्टेशन पर उतरे और ऑटो वालों से मोल भाव करने लगे। शायद उसका कोई फायदा नहीं था। ₹500 फिक्स्ड रेट पर हम निकल पड़े अपने रिज़ॉर्ट की तरफ। एक छोटे ज़िले जैसा ही था पर एक शांत सी लहर ने जैसे पूरी जगह को घेरा हुआ था। समंदर की खुशबू आने लगी थी और हमारा रिज़ॉर्ट भी पास ही था। रिज़ॉर्ट पहुँच कर समद्र तट के पहले नज़ारे ने मेरा दिल जीत लिया। पहली नज़र में इश्क़ होना इसे कहते हैं। भूल गई मैं गोवा को, और मुम्बई के आस पास वाली बाकी बीच को।
फ़िर हमने रिज़ॉर्ट में चेक इन किया। आपको ₹2000 से ₹5000 के बीच में काफी बढ़िया रिज़ॉर्टमिल जाएँगे जिसमें ब्रेकफास्ट भी मिलेगा।
गणपतिपुले में यूँ गुज़रा वक्त
स्कूटी और बीच एक अद्भुत कॉम्बो है, सबसे पहले हमने हम ने एक स्कूटी मंगवाई जो ₹500 दिन के हिसाब से मिल गई। बस फिर क्या था, पेट्रोल डलवाया और अपने रॉकेट पर बैठकर हम लॉंच हो गए। अब नाम गणपतिपुले है तो गणपति मंदिर तो वहाँ होगा ही, तो हम भी सबसे पहले दर्शन के लिए निकल पड़े। फिर उसके बाद थोड़ा समय बीच पर गुज़ारा जहाँ की लहरों की अब मैं फैन बन गयी हूँ। नहाने के लिए गोवा के सभी बीच से बहतर है यहाँ के दो फेमस बीच जिनका नाम है गणपतिपुले बीच और आरे वारे बीच।
रात को यहाँ गोवा जैसी हलचल की उम्मीद ना कीजिएगा। बस हसीन मौसम और लहरों की टकराने की आवाज़ में मन्त्रमुग्ध हो जाने में समझदारी और मज़ा है। अगले दिन हम एक भारी भरकम ब्रेकफास्ट कर के निकल पड़े अपने राकेट लॉंचर पर। स्कूटी का यही फायदा है, कुछ भी खूबसूरत दिखे तो रोक लो और आँखे सेक लो। ऐसी ही एक पहाड़ी पर हमने स्कूटी रोकी जिसके नीचे समुद्र दिख रहा था वहाँ के नज़ारे की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। यह नज़ारा हमें दिखा जयगढ़ किले से वापस आते हुए जो कि खुद अपने आप में एक छुपा नगीना था।
कभी कभी लगता है कि यह एक ज़िन्दगी शायद काफी नहीं पड़ेगी इस दुनिया की खूबसूरती समेटने के लिए, पर शायद इस टेंशन की जगह हम ध्यान घूमने में लगाएँ तो ज़्यादा मज़ा आएगा। तो जयगढ़ फोर्ट, गणपतिपुले से 40 कि.मी. दूर है और रास्ता छोटे छोटे गाँव से होकर जाता है। ध्यान रखियेगा अपने पहनावे का क्योंकि काफी रास्ते गाँव से गुज़रते हैं और वो लोग हमारी संस्कृति और सोच को शायद इतने खुले ढंग से ना अपना पाएँ। ऐसी कोई दिक्कत आनी नहीं चाहिए पर मैं अपने अनुभव से बता रही हूँ, बाकी आप समझदार हैं। तो जी में अब मान चुकी हूँ कि मुंबई के आस पास भी वीकेंड उतने ही मज़े से गुज़ारा जा सकता है जितना की दिल्ली के पास।
तो आप भी जाइये गणपतिपुले और उसकी खूबसूरती में खो जाइए।