वासोटा किला बहुत लंबे समय हमारे मन मे घर कर रहा था,पर इससे पहले हमने बहुत योजना बनाई थी, पर हमारी कोई भी योजना पुरी नही हुई, लेकिन यह भी संभव नहीं था कि अगर आपकी मन कि कोई इच्छा है, तो आप इसे पूरा नहीं कर पाएंगे।
कहने का यही तात्पर्य था कि जैसा है कि कुछ दिनों पहले मैंने चंदेरी को किला किया था ,भटकी भूतो के समूह के साथ ट्रेक किया था, लेकिन उस समय हमने बहुत मस्ती की थी। उसी तरह, उसकी यादे ताजा हि ठी तब तक,राकेश ने एक नई योजना बनाई, वो थी वासोटा किला !!!
फिर अंत में योजना की पुष्टि हुई और केहते केहते लगभग पंद्रह लोग समूह में एकत्र हुए, हमारा 27 तारीख रात को जाने का निर्णय लिया था। हमारे समूह में किरण और जयेश के अलावा राकेश, सुशांत, अमोल, दर्शन, चंद्रास हैं, यह भटकी भूत थे, अब, इस समूह को नए दोस्तों, अर्थात्, अमित, तेजस, भावेश, महेश,अभिषेक,किरण.भर्ती किया गया था।
आखिर शुक्रवार कि रात आई,हम सब लोग बेसब्रीसे इंतेजार कर रहे थे,गाडी मे हर कोई अपने दोस्तों में व्यस्त था क्योंकि कोई किसीको पहचानता नहीं था, यात्रा बहुत लंबी होणे के कारण हर कोई जल्दी सो गया,सुबह 6.30 बजे हमारी गाडी रुकी, सबने चाय नाश्ता हुआ। सभी ने रात को सोने के कारण चाय पीना पिया ,फिर ट्रेन किले की दिशा में आगे बढ़ने लगी, सुबह का माहौल अच्छा होने के कारण खिड़की से नजारा बहुत अच्छा लग रहा था। ,उसका वर्णन मे आपको शब्दो मे वर्णित किया जाना मुश्किल था। चित्र कुछ ऐसा था पहाड़ की लंबी लंबी दूरी, उस पर पड़ी सुनहरी किरणों की रोशनी,पहाडी के उपर पवनचक्की धीरे-धीरे हमारे आलस को मिटाने की कोशिश कर रही थी। ये प्रकृति के असीम दृश्यों को देखते हुए हम बामनोली गाँव में पहुँच गए।
बामनोली गाँव में पहुँचने के बाद, पहले हम फ्रेश होकार और एक गर्म चाय के साथ दिन शुरू किया और कोयना जलाशय की तरफ दौड़ने लगे। तब तक, राकेश और सुशांतने वन विभाग से अनुमति लेकर के नाव का तिकीट भी साथ लाये थे। फिर,सभी नाव मे पहुँचने के बाद, गणपति बप्पा मोरिया की आवाज़ के साथ नाव शुरू की गई। अब, महाराष्ट्र कोयना नदी के पानी से नाव अपना रास्ता कात राही थी, कोयना नदी में, कोयना की घाटी में, निबिड वन में स्थित किला वासोटा चलने लगे। वहां से कोयना बांध के शिवसागर जलाशय को पार करने में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगा।
जब हम वासोटा वन्यजीव अभयारण्य पहुचे थे, तब हम वन कार्यालय गए और अपनी पानी की बोतलें, प्लास्टिक की थैलियों को पंजीकृत किया और तदनुसार हमें हर वस्तु के लिए 10 रुपये का भुगतान करने के बाद किले में जाने की अनुमति मिली। (ट्रेक से लौटने के बाद, जमा किए गए सभी सामानों को वापस कर दिया जाता है और जंगल में प्लास्टिक के कचरे को कम करने के लिए वन विभाग ने यह अभिनव योजना शुरू की है।) तो हमने वन विभाग के कार्यालय के बाद, जब जंगल शुरू हुआ, 15 मिनट में, एक मंदिर में आया था जिसको एक छत नहीं थी, यहां भगवान हनुमान और गणपति की मूर्ति है। वासोटा फोर्ट के रस्ते मे कहीं भी पानी नहीं है सिवाय इस मंदिर के पीछे एकमात्र जलाशय है। अंतराल को पार करने के बाद, हम आसपास के क्षेत्र में बढ़ना शुरू कर दिया। यहाँ हमें लगने लगा कि गर्मियों की प्रचंड गर्मी के कारण सब कुछ महसूस हो रहा है और पानी की कमी हो गई है। इस बीच, हम 1 से 1.30 घंटे के लिए वसोटा और नागेश्वर के बिचवाले रस्ते में आ गए। सभी बच्चे एक पठार के पार आ गए और पठार को पार कर गए। अभि हम किले के सामने, वासोटा किल्ले के तुटे हुए दीवार को देख रहे थे और पुराने सीडीयो को देख रहे थे। हमारे चारों ओर घना जंगल था। हम उन सीडीयो के साथ ऊपर आ गए।
हम उन सीढ़ियों पर पहुँचे जहाँ दरवाजा था। दरवाजे के सामने, हमारे सामने एक मारुति बिन छपरा
कि मंदिर है। हम लोगों को बहुत भूख लागी थी एसकेलिये हमने पहला भोजन खाने का संकल्प किया।
खाने मे चपाती और साथ में अचार और सब्ज़ी भी थी। खाने पर सभी का पेट भर गया था और भोजन के बाद हम जंगल की दुसरे बाजू जाने लगे और एसके बाद हम बाबू कडा के पास आए। इस कडे का आकार अंग्रेजी 'यू' के समान है। हरिश्चंद्र गड की कोंकण कडा कि ये याद करता है। हमने इस कडा के सामने बहोत सारे फोटोस निकाली। उसके बाद आगे बढ़कर एक जोड़ी टंकी देखी और वापस मारुति मंदिर गए और मारुति मंदिर के दाईं ओर जाकर काळकाई ठाणे की सड़क पर पहुँच गए। इस मार्ग पर बायीं ओर बडा तालाब देखा, इस तालाब में पानी पीने योग्य नहीं है। बाद में, महादेव का सुंदर मंदिर देखकर वाह से चिंचोली मार्ग को माची तक चले गये। माची को देखकर लोहगढ़ में बिच्छू कडा की याद आती है। इस माची को काळकाई ठाणे कहा जाता है। क्षेत्र का पूरा परिदृश्य, चकदेव, रसल, सुमेर, महिपतगढ़ और कून का पानी, जो घनी आबादी वाले पेड़ों से घिरा हुआ है, ये एक रमणीय स्थान है।
हमें अभी जल्दी से जल्दी नीचे इस जंगल से नीचे उत्तरना था और उसके बाद बोट मे जाके जहाँ पे उत्तरे थे वाह पे जाणा था, अभी हम कुछ घंटे मे नीचे बोट के पास पहुचे और बामणोली गाव कि और चलने लगे I
कुछ ही घंटों में हम बामणोली गांव पर पहुंच गये। गाव पहुचने के बाद हमने स्नान किया उसके बाद राकेश ने हॉटेल में जाके रात का खाना बताके आय,उसके बाद हम सबने मिलकर भेळ बनायी,भेळ खाने के बाद कुछ ट्रेक के बात करते करते खाने का time हुआ था, खाने मे चिकन और भाकरी थी,ये सब खाके सबका पेट एकदम फुल्ल हो गया,