कलसुबाई: महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट में कीजिए आसमान से मुलाकात और बादलों से बातचीत

Tripoto
6th Sep 2023
Photo of कलसुबाई: महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट में कीजिए आसमान से मुलाकात और बादलों से बातचीत by रोशन सास्तिक

कलसुबाई शिखर। महाराष्ट्र के हिस्से वाली सह्याद्री पर्वत श्रृंखला का सबसे ऊंचा शिखर। इतना ऊंचा कि इसकी चोटी पर पहुंचने के बाद आप यह दावा कर सकते हैं कि महाराष्ट्र में आपसे ऊपर दूसरा कोई नहीं। जमीन से 5400 फीट ऊंचाई पर स्थित कलसुबाई को उसकी इसी लंबाई के लिए महाराष्ट्र का माउंट एवरेस्ट कहा जाता है। महाराष्ट्र के इस माउंट एवरेस्ट की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि अहमदनगर जिले के अकोला तालुका के अंतर्गत आने वाले यह इलाका नासिक जिले के साथ बॉडर लाइन साझा करता है। साथ ही ठाणे और पुणे जैसे समृद्ध जिले की परिधि भी इसकी सीमा के बेहद समीप आकर ही खत्म होती है। यही वजह है कि भंडारदरा के जंगल जैसे दुर्गम इलाके में मौजूद होने के बावजूद कलसुबाई शिखर तक पहुंचने के लिए मुंबई, पुणे और नासिक सरीखे शहरों से यातायात के बड़े सुगम संसाधन उपलब्ध है।

महाराष्ट्र में ट्रेकिंग करने वाली कम्युनिटी के लिए कलसुबाई किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है। कुछ समय पहले तक तो ट्रेकिंग का हार्डकोर शौक रखने वाले ही कलसुबाई पर चढ़ाई करने का जुनूनी काम अंजाम दिया करते थे। लेकिन जब से इंस्टाग्राम पर रील्स का दौर शुरू हुआ, तब से हर कोई खुद को 'महाराष्ट्र के माउंट एवरेट' हैशटैग के साथ देखना चाहता है। यही वजह है कि हाल के दिनों में महाराष्ट्र के हर कोने से यहां वाले लोगों की तादाद में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। मॉनसून के मौसम में अगर आप वीकेंड के दौरान कलसुबाई चले गए, तो फिर आपको इस पहाड़ पर पैर रखने तक की जगह नहीं मिलेगी। मुंबई, पुणे और नासिक इन तीनों शहरों से सड़क मार्ग के जरिए वेल-कनेक्टेड होने के चलते वीकेंड्स पर कलसुबाई में आने वाली लोगों की संख्या किसी गांव की जनसंख्या से भी ज्यादा हो जाती है।

अगर आप महाराष्ट्र के बाहर से आ रहे हैं, तो आप अपनी सुविधानुसार मुंबई, पुणे या फिर नासिक इन तीन बड़े रेलवे स्टेशन में से किसी एक पर उतर सकते हैं। अहमदनगर जिले में स्थित कलसुबाई तक पहुंचने के लिए मुंबई से आपको करीब 150 किमी का सफर तय करना होता है। वहीं अगर आप पुणे से सड़क मार्ग के जरिए कलसुबाई तक पहुंचना चाह रहे हैं, तो फिर आपको इसके लिए करीब 170 किमी की दूरी नापनी होती है। नासिक स्टेशन से आप महज 60 किमी का सफर करने के बाद कलसुबाई के बेस विलेज 'बारी' पहुंच सकते हैं। वैसे तो कलसुबाई तक का सफर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के जरिए भी आसानी से किया जा सकता है। लेकिन अगर आप समय के बंधन से मुक्त होकर और यहां तक पहुंचने के लिए किए जाने वाले सफर को जी भरकर एन्जॉय करते हुए आना चाहते हैं, तो फिर निजी वाहन ही सबसे बढ़िया विकल्प होगा।

अगर आप मुंबई से आ रहे हैं, तो फिर कलसुबाई तक पहुंचने के लिए आपको कसारा तक के लिए लोकल ट्रेन पकड़नी होगी। और फिर स्टेशन के ठीक बाहर खड़ी जीप में बैठकर बारी विलेज तक पहुंच सकते हैं। इसके लिए आपको 150 से 200 रुपए तक देने होते हैं। इसके अलावा आप मुंबई से पैसेंजर ट्रेन पकड़कर सीधे इगतपुरी भी जा सकते हैं। यहां से भी आप महज 100 रुपए देकर शेयरिंग टैक्सी के जरिए कलसुबाई के बेस विलेज 'बारी' पहुंच जाएंगे। नासिक और पुणे से आने वाले लोगों के लिए निजी वाहन के अलावा दूसरे विकल्प के तौर पर राज्य परिवहन की बस और शेयरिंग जीप का सहारा है। नासिक से तो आप 60 किमी का फासला महज 2 घंटों में पूरा कर लेंगे। लेकिन पुणे से सड़क मार्ग के जरिए आने वाले मुसाफिरों को बारी तक सफर तय करने में करीब 5 से 6 घंटे लग सकते हैं। वैसे रास्ता लंबा जरूर है, लेकिन उतना ही ज्यादा खूबसूरत भी है।

एक बार जब आप कलसुबाई के बेस विलेज बारी के प्रांगण में पहुंच जाते हैं, तब से ही आप एक अलग तरह की खुशी का अनुभव करने लगते हैं। क्योंकि यहां पहुंचकर आपके दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि अब जब इतनी दूर आ ही गए हैं, तो फिर जैसे-तैसे करके किसी भी तरह महाराष्ट्र के इस माउंट एवरेस्ट को फतह करने का कारनामा अपने नाम तो कर ही जाएंगे। बेस विलेज बारी में पहले अपनी गाड़ी पार्क कीजिए और सफर की थकावट को मिटाने के लिए थोड़ा आराम कर लीजिए। इसके तुरंत बाद पहाड़ पर चढ़ने से पहले जरूरी ताकत को स्टोर करने के लिए प्रकृति की गोद मे बैठकर स्वादिष्ट स्थानीय खाने का आनंद ले सकते हैं। यकीन मानिए, बारिश के मौसम में कलसुबाई पहाड़ से बहते अनगिनत झरनों का नजारा आपकी प्लेट में रखे खाने का स्वाद कई गुना बढ़ा देगा।

सारे जरूरी काम निपटा लेने के बाद अब हम अपने मूल काम यानी ट्रेकिंग की शुरुआत कर सकते हैं। जमीन से करीब 5400 फीट की ऊंचाई तक पहुंचने का यह सफर कैसा रहेगा, यह पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस मौसम में इस काम को अंजाम दे रहे हैं। अगर आप गर्मी के मौसम में कलसुबाई पहाड़ के शिखर पर पताका लहराने की सोच रहे हैं, तो भूल ही जाइए। क्योंकि तपती दोपहरी में इतनी ऊंचाई तक की ट्रेकिंग में आपकी हालत खराब हो जाएगी। सफर एन्जॉय करना तो दूर, आपके लिए सरवाइव करना तक मुश्किल हो जाएगा। इसलिए कलसुबाई के शिखर तक का सफर बारिश या फिर ठंडी के मौसम में करना ही बेहतर होगा। क्योंकि इस दौरान एक तो कलसुबाई का परिसर सुहावना हो जाता है और दूसरा ऐसे हरे-भरे माहौल में ट्रेक करते वक्त थकावट का भी खास एहसास नहीं होता।

इसलिए महाराष्ट्र में मॉनसून के आगमन के बाद कलसुबाई पर आने वाले पर्यटकों का मेला लग जाता है। मॉनसून में यहां आने के लिए लोगों की दिलचस्पी इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि मुंबई और पुणे से अनगिनत ट्रेकिंग ग्रुप थोक के भाव लोगों को लेकर यहां पहुंच जाते हैं। आप अगर बारिश के मौसम में आ रहे हैं और भीड़ से बचना चाहते हैं, तो भूल कर भी वीकेंड पर जाने का प्लान मत बनाइएगा। क्योंकि अगर आप वीकेंड पर यहां चले गए, तो फिर आपको सुकून की बजाय सिरदर्द ही नसीब होगा। वीक डेज में आप शांति और सुकून के साथ आसमान से बरसते पानी की बूंदों से सरोबार होकर महज 3 से 4 घंटों में शिखर तक का सफर तय कर सकते हैं। इस दौरान रास्ते में तीन ऐसे पड़ाव आते हैं, जहां आपको सीढ़ियों के जरिए आगे का सफर तय करना होता है। पहले दो तो ठीक-ठाक है। लेकिन शिखर के ठीक नीचे वाली तीसरी और अंतिम सीढ़ी आपको अपनी खड़ी चढ़ान की वजह से थोड़ा डरा सकती है।

लेकिन, एक बार जब आप अपने डर पर जीत हासिल कर कलसुबाई शिखर पर पहुंच जाएंगे, तब जमीन से 5400 फीट ऊंचाई पर होने के अद्भुत एहसास से आपकी खुशी सातवें आसमान पर पहुंच जाएगी। बारिश के मौसम में कलसुबाई शिखर पर पहुंचने के बाद वहां आपको बादलों की घनघोर गर्जना सुनने का मौका मिल सकता हैं। ऐसे वक्त जब आसमान से जोरदार बारिश हो रही हो, बादल तेज आवाज के साथ एक दूसरे से टकरा रहे हो और हवाएं सब कुछ बहाकर ले जाने पर आमादा हो; तब आपको एक अलग किस्म के रोमांच का एहसास होता है। यह सब थोड़ा डरावना जरूर है। लेकिन इसके बदले आपके हिस्से जो मजा आएगा, उसे आप जीवनभर भुला नहीं पाएंगे। अगर आप ठंड के महीनों में कलसुबाई शिखर पर पहुंचते हैं, तो फिर आपको यहां कंपकपाती ठंड में 'चारों तरफ कोहरा ही कोहरा' वाला मोमेंट जीने को मिल सकता है। कलसुबाई शिखर पर कोहरे का ऐसा खेल देखने को मिलेगा, जहां एक पल आपकी आंखों के सामने खूबसूरत सह्याद्री का नजारा होगा और दूसरे ही पल पलक झपकते ही आपकी आंखों के सामने सफेद कोहरे की मोटी चादर बिछ जाएगी। और कुछ नजर नहीं आएगा।

अगर आप सनसेट या सनराइज देखने के दीवाने हैं, तो फिर आप कलसुबाई में कैंप लगाने की योजना भी बना सकते हैं। कल्पना कीजिए कि आप महाराष्ट्र की सबसे ऊंची चोटी पर बैठकर तड़के सुबह सूरज के आने का इंतजार कर रहे हैं, और फिर दूर क्षितिज पर आपको सूरज की पहली किरण नजर आती है। इसके बाद हर बीतते वक्त के साथ सूरज की किरणों की लालिमा बढ़ती ही जाती है। और एक वक्त क्षितिज का रंग इतना सुर्ख लाल हो जाता है कि ऐसा भ्रम होता है मानों आसमान ने लिपस्टिक लगा ली हो। यकीन मानिए, सुबह होने की इस प्रक्रिया के दौरान बहती ठंडी हवाओं से कंपकंपाते शरीर को जब किरणों की गरमाहट का करामाती स्पर्श मिलता है, तब हमारे शरीर का रोम-रोम खुशी से खिल उठता है।

सनराइज के साथ ही यहां से सनसेट का नजारा भी ऐसा नजर आता है कि आपकी नजरें निहाल हो जाएंगी। दूर क्षितिज पर आसमान के दिखाई न देने वाले हिस्से के आगोश में समाता सूरज जैसे जैसे नजरों से ओझल होता चला जाता है, वैसे वैसे शाम की खूबसूरती और भी ज्यादा बढ़ती चली जाती है। इसी दौरान एक वक्त ऐसा आता है कि आसमान का सारा पटल सूरज के सुनहरे रंगों से सरोबार हो जाता है। और यही वो वक्त होता है, जब आपको एहसास होता है कि प्रकृति की गोद में मिलने वाला सुकून असल में कैसा होता है और लोग क्यों ऐसे किसी अनुभव की अनुभूति के लिए सैकड़ों किलोमीटर का सफर करने तक को तैयार हो जाते हैं। जमीन से 5400 फीट ऊंचाई पर बैठकर सूरज को आसमान के एक हिस्से में अस्त होने तक एकटक देखते रहने के दौरान आपके शरीर में शांति और सुकून का जो साझा संचार होता है, वो फिर जीवनभर आपके साथ रह जाता है।

चलते-चलते आपको बता दें कि कलसुबाई शिखर पर पहुंचने के बाद आपको वहां एक मंदिर नजर आएगा। इस मंदिर में कलसुबाई माता की मूर्ति है। और इनके नाम पर ही महाराष्ट्र की इस सबसे ऊंची चोटी का नाम कलसुबाई पड़ा। स्थानीय लोगों द्वारा कलसुबाई माता की हर हफ्ते मंगलवार और गुरुवार को पूजा की जाती है। इतना ही नहीं तो नवरात्रि के समय यहां एक बहुत बड़ा मेला तक लगता है। जिसमें कलसुबाई इलाके के आस-पास के ग्रामीण शामिल होकर आदिवासी रीति-रिवाजों के जरिए कलसुबाई माता को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। अगर आप जल, जंगल और जमीन के जुड़े इन लोगों के जीवन पद्धति को करीब से देखना, समझना और जीना चाहते हैं, तो फिर नवरात्रि का समय आपके लिए सबसे सही समय है।

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