जब आपको पूरा साम्राज्य निपटाना हो तो एक ऐसा हथियार ज़रूर साथ रखिए जिसका काट सामने वाले के पास न हो। जब अंग्रेज़ अपने हाथों में दुनिया भर की तोपें, मिसाइलें ताने हिन्दुस्तानियों के सामने खड़े थे तो गाँधी हाथों में अहिंसा का हथियार लिए पूरी अंग्रेज़ कौम को निपटा रहे थे।
बापू का आज जन्मदिन है और पूरा देश उनके जन्म की 150वीं जयन्ती मना रहा है।
गाँधी जी का जीवन भारत के कई गाँवों, शहरों में बीता, जो अब इतिहास के फ़लसफ़े में दर्ज हो चुके हैं और वे जगहें विशेष स्मारक की शक्ल में ढल कर हमारे सामने ज़िन्दा हैं। जगहें, जहाँ बसती हैं यादें बापू की। आज का दिन उन्हीं स्मारकों से मिलने का है जिनमें गाँधी का रंग मिलते ही वे ख़ुदरंग हो गए। आइए, चलते हैं गाँधी के सफर पर
1. कीर्ति मंदिर, पोरबन्दर
पोरबन्दर का कीर्ति मंदिर गाँधी जी का जन्म स्थान है। उनका यह पैतृक घर अब लोगों के लिए स्मारक बन चुका है। गाँधी जी बचपन और विदेश जाने से पहले तक यहीं रहे थे। अपनी आत्मकथा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' में गाँधी इस घर का कई बार ज़िक्र करते हैं।
गाँधी जी को जानने वालों का जमावड़ा यहाँ लगा रहता है। आप भी अपनी छुट्टियों में गाँधी जी को ख़ुद में ढूँढ़ने यहाँ आ सकते हैं।
सुबह 10 से 12 और दोपहर को 3 से 6 बजे तक की समय सीमा है यहाँ की वो भी बिना कोई प्रवेश शुल्क के।
कैसे पहुँचें
पोरबन्दर एयरपोर्ट यहाँ से 10 कि.मी. दूर और रेलवे स्टेशन यहाँ से 2 कि.मी. दूर है। तो आपको पहुँचने में कोई समस्या नहीं होगी।
साबरमती नदी अहमदाबाद से गुज़रती है। उसके ही एक कोने में बना हुआ है गाँधी जी का साबरमती आश्रम जहाँ से डांडी यात्रा और गांधी जी के सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी। अगर गाँधी जी को सच में जानना है तो इस जगह से अच्छी शायद ही कोई जगह भारत में कोई हो। यहाँ लिखे हर वाक्य में बसती है गाँधीगिरी।
आपको गाँधी जी के तीन बन्दरों से लेकर उनका बचपन, जवानी और बुढ़ापा; उनके संदेश, उनका व्यक्तित्त्व, देश से लेकर दुनिया तक उनके विचार और उनकी विचारधारा; गाँधी आज भी ज़िन्दा हैं यहाँ पर। गाँधी के अलावा यहाँ पर विनोबा भावे की कुटी भी है और कस्तूरबा का घर भी।
सूत कातने के जितने तरीक़े यहाँ पर मिलेंगे शायद ही कहीं आपको मिलें।
'मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।' इस पर न जाने कितने नेताओं, अभिनेताओं और कार्यकर्ताओं ने खड़े होकर अपनी तस्वीरें इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक पर डाली हैं।
कैसे पहुँचें
साबरमती आश्रम एयरपोर्ट से 8 कि.मी. दूर है जबकि अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से 7 कि.मी. दूर है।
सड़क मार्ग से आप ऑटो या फिर बस करके पहुँच सकते हैं।
अपने जीवन के आख़िरी 12 साल, 1936 से 1948 तक गाँधी जी वर्धा के इसी आश्रम में रुके। गाँधी के यहाँ तक पहुँचने की कहानी भी दिलचस्प है। सन् 1930 में पदयात्रा करते हुए गाँधी साबरमती आश्रम से निकले और नमक क़ानून तोड़ा। क़ानून तोड़ने के लिए पुलिस ने उनको दो साल के लिए कारावास की सज़ा दी। इसके साथ ही उन्होंने तय किया कि जब तक भारत आज़ाद नहीं हो जाता, तब तक वे साबरमती आश्रम वापस नहीं जाएँगे। अपने क़ारोबारी मित्र जमनलाल बजाज के आग्रह पर वे वर्धा आए।
अप्रैल 1936 में गाँधी ने यहीं वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की नींव डाली। जैसा कि नाम से ही सर्वविदित है, ये आश्रम सेवा करने वालों का ग्राम था।
कैसे पहुँचें
हवाई मार्ग से आपको इसके सबसे नज़दीक नागपुर हवाई अड्डे पर उतरना पड़ेगा।
सेवाग्राम आश्रम के सबसे नज़दीक सेवाग्राम स्टेशन (SEGM) है जो कि आश्रम से 3 कि.मी. दूर है।
सड़क मार्ग से जाएँ तो वर्धा बस अड्डे से यह 5 कि.मी. दूर पड़ेगा।
गाँधी जी की 1917 से 1934 तक की यादें अपने में समेटे हुए मणि भवन मुंबई में लोगों के लिए बड़ा ज्ञान स्रोत है। यही वो जगह है जहाँ से बापू ने सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन की नींव रखी।
बापू में दिलचस्पी रखने वालों की कोई कमी नहीं है। लोगों की दिलचस्पी बढ़ाता और उनके हर सवालों का जवाब है गाँधी के इस घरौंदे में।
मार्टिन लूथर किंग जूनियर 1950 में और बराक ओबामा 2010 में यहाँ पर आ चुके हैं। इसलिए इस 2 अक्टूबर को आप भी यहाँ आने का प्लान बना सकते हैं।
कैसे पहुँचें
रेल मार्ग से जाना हो तो ग्रांट रोड और चरनी रोड रेलवे स्टेशन सबसे नज़दीक रहेंगे। यहाँ से ₹20 में आप मणि भवन पहुँच जाएँगे।
सड़क मार्ग से दाल्वी अस्पताल और विल्सन महाविद्यालय बस स्टॉप नज़दीक हैं।
हवाई मार्ग से आना है तो मुंबई सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा है।
5. गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति, दिल्ली
गाँधी जी ने अपने जीवन के 144 दिन घनश्याम दास बिरला के इस बिरला भवन में बिताए। उनकी मृत्यु के बाद 1971 में सरकार ने के के बिरला से इसे 54 लाख + 7 एकड़ ज़मीन देकर ख़रीद लिया और अब ये हमारे सामने गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति के नाम से मौजूद है।
15 अगस्त 1973 को ये पहली बार खोला गया। तब से हर दिन यहाँ पर आने वाले लोगों की भीड़ लगी रहती है। म्यूज़ियम में चलने वाली पिक्चर देखने भी लोग दूर दूर से आते हैं। अगर आए हैं यहाँ तो शुद्ध खादी का बना कपड़ा अपने साथ ले जाना न भूलें।
कैसे पहुँचें
मेट्रो में राजीव चौक, पटेल चौक, जनपथ, आरके आश्रम मार्ग और बाराखम्बा रोड मेट्रो स्टेशन से 1 कि.मी. की दूरी पर है गाँधी स्मृति।
बस से आना चाहते हैं तो बस नंबर 522, 610ए, 544, 181, 620 एवं 610 यहाँ से गुज़रती हैं।
हवाई अड्डे से उतरेंगे तो इंदिरा गाँधी हवाई अड्डा इसके सबसे नज़दीक है।
6. राजघाट
जब बरगद का एक पेड़ ढहता है तो साथ में ढहता है सैकड़ों पंछियों का घर, बच्चों का खेलने का अड्डा और बुज़ुर्गों का छाँव लेने का स्थान। उसको अपनी ज़िन्दगी से निकाल पाना इतना आसान नहीं होता।
गाँधी जी के देहावसान के बाद लोगों ने उनकी अन्तिम स्मृति को राजघाट में जगह दी। एक बड़ा बरगद का पेड़ तो नहीं है लेकिन उससे मिलने वाली छाँव आज भी लोगों के दिलों में है। उसकी याद में लोग इस जगह हर दिन आते हैं।
कैसे पहुँचें
इग्नू और दिल्ली गेट राजघाट के सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन हैं। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन यहाँ से 3 कि.मी. की दूरी पर है। वहीं सबसे नज़दीकी बस अड्डा राजघाट का है।
अगर हवाई मार्ग से आना चाहते हैं आप तो दिल्ली का इंदिरा गाँधी हवाई अड्डा सबसे क़रीब है।
सैकड़ों ऐसी जगहें हैं जिनमें बापू का अक्स आज भी ज़िन्दा है। अगर आप को भी किसी ऐसी जगह के बारे में पता है जिसका गाँधी जी के जीवन में योगदान रहा, तो हमें कमेंट बॉक्स में लिख भेजें।