सबसे पहले मैंने इस फोर्ट के बारे में सुना था कि यह किला बहुत एडवेंचर वाला है,तो फिर मैंने इसके बारे में ग्रुप से डिस्कशन किया,तो उन्होंने तुरंत हां बोला, तो हमने तुरंत ही दूसरे दिन sunday को निकलने की ठान ली.
दूसरे दिन हम मुंबई की लोकल ट्रेन से कल्याण पहुचे और फिर वहासे st बस पकड़के हम लोग मोरोशी गांव में पहुचे,मोरोशी गांव यह भैरवगड का बेस गांव है,वहा पोहोचनके के बाद हमने चाय और पोहा का नाश्ता करके हमारे ट्रेक को चालू किया.
ट्रेक चालू होने के कुछ ही मिनिट बाद ही हमे बहुत ही थकावट लगने लगी,क्योंकि किल्ले पर जाने वाला रास्ता बहुत खड़ी चढ़ाई वाला था,औऱ उसके पहले दिन ही बारिश गिरी थी,हम लोग कैसे फिसलते और चढ़ाई करते करते उस किले के नजदीक पहुँचे,
हमने वहा पहुँचके देखा तो एक खड़ा पहाड हमारा इंतज़ार कर रहा था,उसी दौरान हमारे ट्रेक लीडर ने राकेश ने वहाँ पे रोप लगाने चालू किये,रोप लगाने के कारण हम लोग अब बहुत ही आसानी से (मतलब इतनी भी आसान नही था,बहुत फटी थी भी) वो रॉक patch पार करके आगे आये,तो वहाँ भी देखा तो वही था,उसी पहाड़ो को काटके ऊपर जाने के लिए सीढ़िया बनायी थीं, हम वो सीढिया देख के चकित हो गए,भाई क्या अदभुत काम किया होगा उस टाइम पे.
अभी तो हम वो सीढिया पर करके ऊपर टॉप पे आये,और वहा पोहोचनके बाद दोस्तो क्या बताऊँ क्या नजारा था,चारो और सह्याद्रि की पहाड़ी एरिया और उसके बीच मे ही फॉग जमा हुआ था.