कभी कभी ट्रैवल का जुनून हमें कब ,कैसे और कहां पहुंचा देता हैं, हमें खुद नहीं पता चलता हैं। ऐसा ही एक किस्सा पिछली रात मेरे संग हुआ। मानपुरा, मध्यप्रदेश से जब मैं मंदसौर की तरफ अपने नए सफर की ओर बढ़ रहा था,तो मेरे मित्र( Rishab pal) ने अपने होमटाउन मंदसौर के बारे में मुझे बहुत कुछ बताया। उसमें से एक जगह के बारे में सुन कर मैं आचंभित हो गया था,वो था पशुपतिनाथ मंदिर। जब उसने ये बोला विश्व में दो पशुपतिनाथ मंदिर प्रसिद्ध है एक नेपाल के काठमांडू का और दूसरा भारत के मंदसौर का। दोनों ही मंदिर में मुर्तियां समान आकृति वाली है।तब उस जगह को देखने की इच्छा मेरे मन में उठी और मैने बोला दोस्त मुझे वो देखना हैं।तो कुछ ऐसे शुरू हुआ मेरा लॉकडाउन का सफर।
मानपुरा से मंदसौर की दूरी करीबन 40km हैं।मेरे दोस्त ने बोला मंदिर अंतिम छोर पर हैं तो सबसे पहले मैं तुम्हे मंदसौर की गालियों की सैर कराते हुए वहां तक ले जाऊंगा।रात में मंदसौर के काफी जगहों को मैंने दूर से देखा और पहुंच गया पशुपतिनाथ मंदिर।वो अलग बात हैं की लॉकडाउन की वजह से मुझे मंदिर का दर्शन बाहर से ही करना पड़ा।पर मुझे उस मंदिर के बारे में बहुत कुछ पता चला।
मंदसौर में स्थित पशुपतिनाथ की प्रतिमा की तुलना काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ से की जाती है। मंदसौर स्थित पशुपतिनाथ प्रतिमा अष्टमुखी है। जबकि नेपाल में स्थित पशुपतिनाथ चारमुखी हैं।यह प्रतिमा 75 बरस पहले शिवना की कोख से निकली थी।प्रतिमा को नदी से बाहर निकलने के बाद चैतन्य आश्रम के स्वामी प्रत्याक्षानंद महाराज ने 23 नवंबर 1961 को इसकी प्राण प्रतिष्ठा की। 27 नवंबर को मूर्ति का नामकरण पशुपतिनाथ कर दिया गया। इसके बाद मंदिर निर्माण हुआ।
इस मंदिर के चारों दिशाओं में चार दरवाजे हैं लेकिन प्रवेश द्वार पश्चिम में स्थित है। 101 फीट ऊंचे मंदिर के शिखर पर 100 किलो वजनी कलश स्थापित है, जिस पर 51 तोला सोने की परत चढ़ाई गई है।शिवना नदी के तट पर स्थित होने की वजह से मंदिर और भी खुबसुरत देख रहा था।
करीबन 2 घंटे मंदसौर में बिताने के बाद मेरे ट्रेन का टाइम हो गया था। जहां एक दूसरी सिटी मेरा इंतजार कर रही थी वो सिटी जिससे मुझे प्यार हैं,जयपुर। ट्रेन आते ही। मैने अपने दोस्त से अलविदा लिया और निकल पड़ा जयपुर की तरफ।तो कुछ ऐसे खत्म हुआ मेरा मंदसौर का सफर।
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