कैसे पहुँचें
झांसी से ट्रेन द्वारा ग्वालियर पहुँचें।
ग्वालियर मध्य प्रदेश के प्रमुख शहरों में से एक है। यहाँ पहुँचने के लिए हवाई, रेल और सड़क मार्ग में से किसी को भी चुना जा सकता है। प्रसिद्ध टूरिस्ट स्पॉट होने के कारण इस शहर में सभी आधुनिक सुविधाएँ सहजता से उपलब्ध हैं। दिल्ली सहित देश के लगभग सभी मुख्य शहरों से ग्वालियर के सीधी उड़ाने और रेल सुविधा है।
क्या देखें
ग्वालियर का किला शहर के मध्य में स्थित है। इस किले को शहर के लगभग हर हिस्से से देखा जा सकता है। इस किले तक पहुँचने के लिए दो रास्ते हैं। एक प्राचीन रास्ता जो ग्वालियर गेट से होकर जाता है और इस पर केवल पैदल ही जाया जा सकता है। दूसरा ऊरवई गेट, यहां से गाड़ी द्वारा जा सकते हैं। किले के मुख्य प्रवेश द्वार का नाम हाथी पुल है।
टिकट प्राइस 25 रुपए
फोर्ट के अंदर
इस किले के अंदर कई महल और मंदिर हैं। इनमें गुजारी महल, करण महल, मानसिंह महल, जहांगीर महल और शाहजहां महल शामिल हैं। स्मारक, विष्णु-शिव मंदिर और बौद्ध मंदिर दर्शनीय हैं।
म्युजियम टिकट प्राइस 10 रुपये
इसके बाद देखें जय विलास पैलेस जो बहुत ही खूबसूरत है
टिकट प्राइस --200 म्यूजियम का
इसके अंदर 44 रूम है जो ट्रैवलर के लिए खुले हैं
महल में कुल 400 कमरे में हैं,जिन्हें संग्रहालय के रूप में तब्दील कर दिया गया है। बाकी हिस्सों में सिंधिया परिवार रहता है। इस संग्रहालय को जीवाजी राव सिंधिया म्यूजियम नाम दिया गया है। पर्यटक इस संग्रहालय का भ्रमण कर सकते हैं, और यहाँ मौजूद बेशकीमती वस्तुओं को भी देख सकते हैं। यह म्यूजियम बुधवार के दिन बंद रहता है। बाकी दिनों यह सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
इसमे तीन फ्लोर हैं
ग्राउंड फ्लोर पर लिनेज गैलरी, टेक्सटाइल गैलरी, सरदार गैलरी सिल्वर बग्गी कैरिज गैलरी ,इंडोर स्विमिंग पूल ,यूनिफॉर्म, टाइगर गैलरी है। फस्ट फ़्लोर पर आनरेविल माधवरावसिंधिया गैलरी, रिसेप्सन हाल ,स्टडीहाल,एक्सट्रा मचमोर, क्रेस्टरल फाउन्टेन कैरिज कोर्टयार्ड,टाट पाट भोजन हॉल,महाराज हॉल,दरबार हॉल मौजूद है।
इस तरह आप पूरा दिन एन्जॉय कर सकते है ग्वालियर में
फ़ोटो देखें
कैसे पहुँचें
झांसी के मऊरानीपुर नेशनल हाइवे से 18 किलोमीटर अंदर गढ़कुंडार का किला पड़ता है। 11वीं सदी में बना ये किला 5 मंजिल का है। 3 मंजिल तो ऊपर हैं, जबकि 2 मंजिल जमीन के नीचे है। ये कब बनाया गया, किसने बनवाया इसकी जानकारी उपलब्ध ही नहीं है। बताते हैं कि ये किला 1500 से 2000 साल पुराना है। यहाँ चंदेलों, बुंदेलों, खंगार कई शासकों का शासन रहा।
किले का इतिहास
- 1257 से 1539 तक यानि 283 साल तक इस पर बुंदेलों का शासन रहा। इसके बाद ये किला वीरान होता चला गया। 1605 के बाद ओरछा के राजा वीर सिंह देव ने गढ़कुंडार की सुध ली।
- उन्होंने प्राचीन चंदेला युग, कुठारी, भूतल घर जीर्णोधार कराकर गढ़कुंडार को किलों की पहली पंक्ति में स्थापित कर दिया। 13वीं से 16वीं शताब्दी तक ये बुंदेला शासकों की राजधानी रही। 1531 में राजा रुद्र प्रताप देव ने गढ़कुंडार से अपनी राजधानी ओरछा बना ली।
- गढ़कुंडार किले के पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को है।
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