पहाड़ों की खूबसूरती के बारे में सोचें तो ज़रूरी नहीं हर बार हिमाचल और उत्तराखंड का ही नाम लिया जाए। मध्य प्रदेश का पचमढ़ी हिल स्टेशन सुंदरता की एक मिसाल है। यहाँ आपको चारों तरफ हरियाली ही हरियाली नज़र आएगी। पचमढ़ी में सेना की छावनी भी है। ये जगह स्वच्छ, सुंदर और देखी जाने लायक जगह है। इसी खूबसूरती को सुनकर मैं जुलाई 2019 में पचमढ़ी आया था। पचमढ़ी और उसकी गुफाओं के बारे में अच्छे से जानने के लिए एक टूर गाइड किया था। जिसने मुझे घने जंगल के बीच की इस जगह के बारे में बताया।
ये माना जाता है कि ब्रिटिश सेना के कप्तान जेम्स फोर्सिथ ने 1857 में पिपरिया से झांसी के रास्ते में पचमढ़ी की खोज की थी। तब उन्होंने इसे एक सेना छावनी के रूप में बनाने की कोशिश की थी। पचमढ़ी के बारे में ऐसे ही कई और तथ्य टूर गाइडों को मुंह-जबानी याद हैं। जब आप पचमढ़ी जाएँ तो उन तथ्यों को पहले से ही जान लें, जो वहाँ टूर गाइड बताते हैं।
1. पचमढ़ी नाम, यहाँ की पाँच गुफाओं की वजह से पड़ा है। इसके अलावा एक फेमस पौराणिक कथा है, जो इस नाम के बारे में बताती है। कहा जाता है कि पांडवों ने जंगल में अपने वनवास के दौरान इन गुफाओं में ध्यान किया था। हालांकि पुरातत्वविद दावा करते हैं कि इन गुफाओं को बौद्ध भिक्षुओं ने गुप्त काल (900-1,000 ईस्वी) में बनाया था।
2. पठारी क्षेत्र जो भोपाल और नागपुर के प्रमुख शहरों के बीच पिपरिया शहर के दक्षिण में स्थित है जो कभी गोंड इलाका हुआ करता था। भूमि के इस टुकड़े का एक अपना इतिहास है जो मेसोलिथिक युग (9,000-4,000 ईसा पूर्व) से जुड़ा हुआ है। अंग्रेज जब इस जगह पर आए तो उन्होंने इसे गोंड इलाके का नाम दे दिया था। इसकी वजह थी यहाँ रहने वाली गोंड आदिवासी जो इन घने जंगलों में रहा करते थे।
3. गोंड आदिवासियों ने 12वीं-18वीं शताब्दी के बीच इस क्षेत्र पर शासन किया। उन्होंने यहाँ कई महल और किले भी बनाए। बाद में 1702 में नागपुर शहर को भी पा लिया। लेकिन 1700 के दशक के मध्य तक मराठों ने गोंड पर अधिकार कर लिया। कुछ ही दशकों बाद अंग्रेजों ने मराठों को हरा दिया और उनका विस्तार करना शुरू कर दिया।
4. गोंड धीरे-धीरे जंगलों और पहाड़ियों में चले गए। ये पहाड़ियाँ अंग्रेजों के लिए कुछ काम की नहीं थी। अंग्रेज छावनी मैदानी इलाकों में अपने आधुनिक उपकरणों और हथियारों के साथ आराम से रहती थीं। गोंड और कोरकस जो पहाड़ियों में बस गए ,थे यहाँ पर वे गुरिल्ला युद्धाभ्यास किया करते थे। एक आदिवासी इन लोगों का राजा होता था जिनके नेतृत्व में वे आराम से गुजर-बसर करते थे।
5. 1819 में पचमढ़ी ने अंग्रेजों का ध्यान आकर्षित किया। जब नर्मदा घाटी में मराठा प्रमुख अप्पा सबिह भोंसले को अंग्रेजों ने हराया था। अप्पा साहिब शरण लेने के लिए महादेव हिल्स (वर्तमान पचमढ़ी से कुछ किलोमीटर दूर) में भाग गए थे।
6. अपने आधुनिक उपकरण की वजह से अंग्रेजी हुकूमत इस क्षेत्र के सभी छोटे नेताओं, डाकुओं और छोटे राजाओं को बाहर निकालने में सक्षम थे। अन्य जगहों की तरह मध्य भारत का ये पहाड़ी इलाका अंग्रेजों के यहाँ होने के बारे में बताता है।
7. होशंगाबाद में कैप्टन जेम्स फोर्सिथ के आने से 25 साल पहले, 1832 में कैप्टन ऑसली ने पचमढ़ी का पहला दौरा किया। उन्होंने इस जगह की मिट्टी और पेड़-पौधे के नमूने जुटाए। वो पचमढ़ी में किसी विदेशी की पहली यात्रा थी।
8. बाद में 1852 में, डॉ. जेरडन नामक एक सर्जन ने स्वदेशी जड़ी बूटियों पर शोध करने के लिए इस जगह का दौरा किया।
9. 1857 में अंग्रेजों ने आधिकारिक रूप से पचमढ़ी पर कब्जा कर लिया था। 1857 के विद्रोह के लिए तांत्या टोपे, कोरकू प्रमुख भभुत सिंह से मदद लेने के लिए पचमढ़ी आए। हालांकि ये विद्रोह बहुत जल्दी दबा दिया गया। तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने 1859 में पकड़ लिया और फांसी दे दी। भभुत सिंह के लोगों ने इस विद्रोह में साथ दिया था। अंग्रेजों को एक अच्छा मौका मिल गया था बागियों को जंगल से निकालने के लिए। अंग्रेजों ने पचमढ़ी पर अटैक कर दिया और एक साल के अंदर भभुत सिंह और उनके इलाके को कब्जे में ले लिया गया।
10. कुछ महीनों में कैप्टन जेम्स फोर्सिथ को पचमढ़ी के छोटे से गाँव में भेजा गया जहाँ 30 कोरकू झोपड़ियाँ थी। 1862 में बोरी के पास के एक तिहाई क्षेत्र को जैव विविधता अभयारण्य के रूप में स्थापित कर दिया गया। यहाँ रहने वाले लोगों को वन्य संरक्षण के नाम पर यहाँ से हटा दिया गया। 1864 में अंग्रेजों ने स्थानीय सरदार ठाकुर घबर सिंह से पचमढ़ी की जमीन ₹1.70 प्रति एकड़ में खरीदी। 14,580 एकड़ भूमि के लिए ₹23,916 दिए गए थे।
11. अंग्रेजों के पास अब पचमढ़ी में बहुत जमीन हो गई थी। जिसे उन्होंने छावनी बनाने के लिए अच्छी तरह से इस्तेमाल किया। बाकी इतिहास है और हम ये अच्छी तरह से जानते हैं कि कैसे जेम्स फोर्सिथ ने पचमढ़ी की खोज की और उसका विकास किया।
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