
मध्य प्रदेश को यूँ ही नहीं हिंदुस्तान का दिल कहा जाता है, यहाँ प्राकृतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं मॉडर्न स्थानों की कमी नहीं है. साथ ही कई ऐसे कम जाने पहचाने धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थान भी है जो बड़े महत्त्वपूर्ण है लेकिन जानकारी के अभाव में कई लोग इन जगहों पर नहीं जा पाते. नर्मदा नदी मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी नदी है इसके साथ साथ ही सभ्यताओं का विकास हुआ और कई ऐसे नगर बसे और निर्माण हुए जो इतिहास में अपनी जगह सुरक्षित कर गए. ऐसी ही एक जगह हम आपको ले चलते है इतिहास, धर्म और संस्कृति के हिसाब से एक खजाने की तरह है. यह जगह है मध्य प्रदेश के खरगोन जिले की महेश्वर तहसील के चोली गाँव में स्थित गौरी सोमनाथ मंदिर.

नर्मदा घाटी सभ्यता लगभग 2000 ईसा पूर्व विकसित हो चुकी थी. अन्य काल में भी उतरोत्तर सभ्यताए विकसित होती रही इसका प्रमाण नर्मदा घाटी में समय समय पर खुदाई में मिले अवशेष देते है जो कि ऊन, इंदौर, महेश्वर, मांडू, एवं कसरावद के पुरातत्त्व संग्रहालयों में देखने को मिल जाते है. निमाड़ की घाटी में बसा चोली गाँव (मंडलेश्वर से 8 किमी दूर) भी इतिहास के लिहाज से खास महत्व रखता है।

गाँव में अब भी प्रतिहार एवं परमार शासकों के समय (लगभग 10वीं शताब्दी) की मंदिर, मूर्तियाँ व अन्य ऐतिहासिक विरासतें हैं, लेकिन इनके संरक्षण पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। धार्मिक एवं पर्यटन नगरी महेश्वर के समीप होने के बाद भी यह ऐतिहासिक गाँव पर्यटन गतिविधियों से अछूता सा है। जबकि मंडलेश्वर से जाम गेट जाने वाले अधिकांश पर्यटक इसी गाँव से होकर जाते है. इसका एक कारण यह भी है कि यह मंदिर मुख्य मार्ग से अलग हटकर बबलाई जाने वाले मार्ग पर करीब 200 मीटर अन्दर स्थित है. एक पुराना सा बोर्ड जरुर मुख्य मार्ग पर लगा है लेकिन कई बार स्पीड में चलते हुए वह इतना ध्यान आकर्षित नहीं कर पाता.

दक्षिण में नर्मदा नदी और उत्तर में मालवा के पठार के कारण यह स्थान सुरक्षा व व्यापारिक मार्ग के मामले में महत्व रखता था. 'आईने अकबरी' पुस्तक के अनुसार चोली और महेश्वर मांडू सरकार के अधीन महत्वपूर्ण परगना रहे, जहाँ सेना की टुकडि़या रहती थीं. चोली गाँव नर्मदा नदी के तटीय इलाके में बसा एक प्राचीन गाँव है जिसमे पुरातत्व महत्त्व की अपार सम्पदा जहाँ तहाँ बिखरी पड़ी है. उन्ही में से एक गौरी सोमनाथ मंदिर जो कि अनुमानत: 10 - 11 वीं शताब्दी में निर्मित हुआ है. यह परमार कालीन मंदिर है जो नागर शैली में उर्ध्व शिखर के साथ बना हुआ है. यह मंदिर चोली गाँव में एक बड़े तालाब के किनारे स्थित है.

संभवतः मौसम की मार, भूकंप और लुटेरो के हमले के कारण इस मंदिर का अधिकांश भाग गिर चूका था. सिर्फ नींव का कुछ हिस्सा सही सलामत बचा है जो साफ़ साफ़ दिखाता है कि यह मंदिर खजुराहो शैली के काले पत्थरों से सुन्दर डिजाईनों से उत्कीर्ण हुआ था. नींव के कुछ फीट ऊपर के पत्थर प्लेन होने के कारण साफ़ साफ़ अलग अलग काल में निर्माण और जीर्णोद्वार होने की गवाही देते है. इसी शैली के कुछ मंदिर खरगोन जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर जुलवानिया रोड पर ऊन गाँव में स्थित है.

नींव के पत्थरो की उत्कीर्णन शैली खजुराहो के मंदिरों से मिलती जुलती है. मूल मंदिर का यही हिस्सा सही बचा हुआ है. शेष भाग बाद में जीर्णोद्वार के समय बनाया गया है इसलिए इसमें पत्थरो में डिजाईन नहीं दिखाई देती.

मंदिर में प्रवेश के लिए तीन द्वार बने हुए है जो आकर्षक खम्भों एवं मंडप से सजाये हुए हैं. मंदिर की योजन में गर्भ गृह, मंडप एवं सभा मंडप में के लिए तीन सोपान सम्मिलित है. मंडप में नंदी की जगह कछुवे की प्रतिमा स्थित है. एक आधी बनी हुई नंदी की प्रतिमा बाहर प्रांगण में स्थित है जो कि उस समय के कटाई एवं उत्कीर्णन की विधि को बताती है. मंडप में विराजित नंदी बाद में होलकर शासकों द्वारा जीर्णोद्वार में स्थापित किया गया था.

मंडप में स्थित कछुवे की प्रतिमा


मंडप के गुम्बद में अन्दर की और कृष्ण लीला की मूर्तियाँ सुसज्जित है.

यह मंदिर एक ऊँचे चबुतरे पर है। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है। मंदिर के एक भाग पर ऊपर जाने के लिए सोपान निर्मित है जो गर्भ गृह में बनी बालकनी में जाने के लिए है एवं दूसरी मंजिल स्थित शिखर पर जाने के लिए है. वर्तमान में गर्भ गृह के अन्दर छत पर गुम्बद पर एक मटका रखा गया है जिसके पानी से मोली (पतला सूत का धागा जो पूजा में उपयोग होता है.) द्वारा शिवलिंग का बूँद बूँद कर अभिषेक होता रहता है. पहली मंजिल की बालकनी पूजा एवं अभिषेक के समय शिवलिंग के अभिषेक के लिए उपयोग होती रही होगी.

द्वार के भीतर गर्भगृह में गौरी सोमनाथ की एक सिंगल पत्थर में निर्मित लगभग 8 फिट की शिवलिंग स्थापित है जो देखने में भी अद्भुत हैं। यह शिवलिंग भूरे पत्थर से निर्मित है। भगवान गौरी सोमनाथ का यह विशाल शिवलिंग ओंकारेश्वर में परिक्रमा पथ पर स्थित गौरी सोमनाथ महादेव मंदिर जैसा ही है. इस तरह के शिवलिंग चोली के अतिरिक्त ओम्कारेश्वर एवं भोजपुर (भोपाल) में भी स्थापित है.

यह मंदिर राज्य पुरातत्व विभाग भोपाल के संरक्षण में है। इसका जीर्णोद्वार महेश्वर की लोकप्रिय शासिका देवी अहिल्या बाई होलकर की बहु कृष्णा बाई होलकर ने 18-19 वीं शताब्दी में करवाया था.









कुछ भी हो इतिहास, कला, संस्कृति में रूचि रखने वालो के लिए ऐसे स्थान किसी खजाने से कम नहीं जो उस समय के आर्किटेक्चर, ज्ञान, विज्ञान एवं अभिरुचियों की झलक दिखलाते है तथा साथ ही समय के कालक्रम में विकसित होती हुई सभ्यताओं के भी दर्शन करवाते है.
कैसे जाये :- मंडलेश्वर और महेश्वर से समय - समय पर चोली गाँव जाने के लिए बस उपलब्ध है फ्रीक्वेंसी कम होने के कारण निजी वाहन से जाना ठीक रहता है.
दुरी : - खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 57 किलोमीटर, मंडलेश्वर से 8 एवं महेश्वर से 13 किलोमीटर है. सबसे पास के रेलवे स्टेशन महू, इंदौर एवं खंडवा है जहाँ से रोड से चोली पहुँचा जा सकता है.
समय : - गर्मी के 3 महीने छोड़कर पुरा साल.
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- कपिल कुमार