ओरछा: राम राज्य से लेकर बुंदेलखंड की विरासत तक, सबकुछ है यहाँ!

Tripoto
14th Oct 2019
Photo of ओरछा: राम राज्य से लेकर बुंदेलखंड की विरासत तक, सबकुछ है यहाँ! by Rishabh Dev

मैं अक्सर अपने बुंदेलखंड के बारे में सोचता-रहता हूँ। कभी सूखे के बारे में तो कभी अपने विशेष पर्व के बारे में। मुझे लगता है बुंदेलखंड आज अपनी कला और संस्कृति में इतना परंपरागत है। तो बुंदेलों-हरबोलों में तो यह चरम पर होगा। उस समय के बुंदेलखंड को किताबों में देखा जा सकता है और किलों में। जहाँ का ढांचा और नक्काशी इतिहास के पन्नों में ले ही जाती है। ऐसे ही बुंदेलों के इतिहास में ओरछा का नाम है। ओरछा बुंदेलखंड का वो तिकोना है जिसमें किले ही किले हैं। मेरे घर के रास्ते में ही ओरछा पड़ता है लेकिन कभी जा नहीं पाया। अब घुमक्कड़ी का शौक ऐसा लगा है कि कुछ दिन के लिए घर जाता हूँ। तब भी कहीं ना कहीं घूमने निकल जाता हूँ। इस बार जब घर गया तो ओरछा को देखने निकल गया।

Photo of ओरछा, Madhya Pradesh, India by Rishabh Dev

मैंने ओरछा को कभी अच्छी तरह से नहीं देखा। इसलिए उस शहर और वहाँ की नक्काशी को देखने की योजना बनाई। मेरे घर से ओरछा करीब 100 कि.मी. की दूरी पर है। सुबह-सुबह मैं झांसी जाने वाली गाड़ी पर बैठ गया। मऊरानीपुर होते हुए साढ़े नौ बजे ओरछा तिगैला (ऐसी जगह जहाँ तीन दिशा में रास्ते हों) पहुँच गया। झांसी से आरेछा लगभग 16 कि.मी. की दूरी पर है। जो दिल्ली से ओरछा देखने आना चाहता है, उसके लिए झांसी पहले आना पड़ता है।

ओरछा कूच

ओरछा तिगैला से ओरछा जाने के लिए ऑटो ली। ऑटो भरी हुई थी तो पीछे खड़े होकर जाना पड़ा। बुंदेलखंड में गाड़ी के गेट पर लटककर यात्रा करने वाला दृश्य आम है। मुझे जल्दी पहुँचना था इसलिए मैंने भी वही रास्ता अपनाया। सुबह-सुबह मौसम सुहावना था और रास्ता भी छायादार। रोड के दोनों तरफ बड़े-बड़े पेड़ थे। ओरछा से पहले रास्ते में कई गाँव मिलते हैं, ओरछा मध्य प्रदेश में आता है। थोड़ी देर बाद एक बड़ा-सा पुराना दरवाज़ा दिखता है जो किसी समय नगर का प्रवेश द्वार होगा। आज भी यही बड़ा गेट नगर का द्वार है। उसके बाद लगातार तीन बड़े गेट आते हैं। एक पर गणेश भगवान की मूर्ति उकेरी गई है।

शहर में आते ही हम अचानक भीड़ से घिर गए। ओरछा देखने में बहुत छोटा-सा नगर है। कुछ घर हैं, कुछ होटल हैं, दुकानों की यहाँ भरमार है। लोग बड़े प्यारे हैं, वे ठगी से पैसा तो कमाते हैं लेकिन बात करने में घबराते नहीं है। छोटी जगह का यही फायदा होता है, बड़े शहर की तरह यहाँ डर नहीं होता है। सब कुछ पास-पास ही होता है। हम नगर को छोड़कर घाटों की तरफ बढ़ने लगे। जहाँ बेतवा नदी अपने तेज प्रवाह में बह रही है। घाट पर यहाँ बहुत भीड़ थी। ओरछा में दो प्रकार के लोग आते हैं एक, किले की खूबसूरती को देखने, दूसरे, रामराजा मंदिर के दर्शन करने वाले। हम उन्हीं घाटों पर चलने लगे। बुंदेलखंड के घाटों में सबसे बड़ी कमी है, साफ-सफाई। इनका रखरखाव सही से नहीं होता है। उसी गंदगी को पार करके हम पहुँचे, कंचना घाट।

बुंदेली प्रतीक

कंचना घाट, इस नगर का आखिरी पड़ाव है। उसके आगे नदी, जंगल और छोटे पहाड़ दिखाई देते हैं। सबसे ज्यादा भीड़ इसी जगह पर होती है। अक्सर ओरछा आने वाले पर्यटक कंचना घाट नहीं आते हैं। मुझे लगता है कि किले को देखने के पहले उन्हें इसी जगह पर आना चाहिए। कंचना में सबसे खूबसूरत हैं राजाओं की छत्रियाँ। इसमें गुंबदनुमे बड़े-बड़े टीले दिखाई देते हैं, जिन्हें महल की तरह बनाया गया है। यहाँ ऐसी ही 15 छत्रियाँ बनी हुई हैं। सभी देखने में एक-दूसरे की कार्बन कॉपी। अलग है तो उनकी नक्काशी और अंदर बनीं चित्रकारी। छत्री का अर्थ होता है समाधि। कंचना घाट पर ओरछा के राजाओं की छत्री हैं।

एक छत्री को राजा वीरसिंह ने बनवाया है और बाकी मधुकर शाह ने। ये छत्रियाँ तीनमंजिला तक बनाई गई थीं। इस समय ऊपर जाने का रास्ता बंद किया हुआ है। जहाँ ये छत्री बनी हुई हैं, वहाँ आसपास का वातावरण बेहद खूबसूरत और मनमोहक है। चारों तरफ हरियाली है और रंग-बिरंगे फूल है। सबसे बड़ी बात यहाँ बहुत शांति है, किले से दूर होने के कारण यहाँ बहुत कम लोग आते हैं। बहुतों को तो इस जगह के बारे में पता ही नहीं है। राजाओं की छत्रियों को इत्मीनान से देखने के बाद हम किले की ओर बढ़ गए।

नहीं बचा पा रहे विरासत

किले और शहर के बीच एक पुल है, बहुत चौड़ा और बहुत मोटा। इतना मजबूत है कि इसे आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता। पुल उस समय की कारीगरी का एक बेहतरीन नमूना है। उसके आगे चलते हैं तो किले का भारी भरकम प्रवेश द्वार मिलता है। आज वो भारी भरकम गेट अपने भार की वजह से एक तरफ रखा हुआ है। ये गेट हमारे कच्चे घरों के उस दरवाजे की तरह हो गया है जहाँ आना-जाना बहुत है इसलिए हमने उसको एक तरफ रख दिया है। किले को देखने का टिकट मात्र ₹10 का है। गेट पर गाइड की भरमार है जो विदेशी पर्यटकों के साथ घूमते-बतियाते मिल जाते हैं।

हमें किले में घुसने के पहले उसके बायें तरफ एक बोर्ड दिख गया। जिसमें लिखा था कि इस तरफ भी कुछ है। हम उसी रास्ते पर चल दिए। कुछ देर बाद एक बोर्ड दिखा श्याम दउआ की कोठी। बोर्ड तो वहीं था लेकिन अब कोठी खंडहर हो गई थी। उसके कुछ अवशेष ही दिख रहे थे। आगे चले तो एक और कोठी दिखाई दी। ये कोठी सही-सलामत थी और अच्छी भी दिख रही थी। कमी थी तो बस लोगों के आने-जाने की।

इस तरफ कोई पर्यटक नहीं दिख रहा था, हम उस कोठी में चल दिए। ये छोटा-सा महल देखने में सुंदर था, यहाँ की दीवारें भी नक्काशी से भरी हुईं थीं। इसके दूसरी मंजिल पर गए तो वहाँ भी नक्काशी थी। जिसमें एक तरफ किसी राजा का चित्र था दूसरी तरफ नृतकी का। इसके बाहर देखने पर लग रहा था ये कोई उद्यान रहा होगा जहाँ राजा अपना कुछ समय बिताते होंगे। कुछ आगे चले तो ऊँटों को रखने का एक बड़ा-सा महल दिखाई दिया। ये देखने पर लग रहा था कि इतना बड़ा तो राज दरबार ही हो सकता है। लेकिन बाहर लिखा था ऊँटों को रखने की जगह। हम वहाँ से आगे बढ़ गए उस किले की ओर जहाँ पर्यटक सबसे पहले जाना पसंद करता है, जहांगीर महल।

ओरछा ने अब तक प्राचीनता की जर्जर तस्वीर दिखाई और दीवार पर बुंदेली नक्काशी। मैं राजस्थान के किले तो नहीं देखे, फिर भी मुझे लगता है कि ओरछा जैसे ही होंगे। जिनमें प्राचीनता झलक रही होगी, आधुनिकता की पुटीन इन किलों पर नहीं चढ़ पाती है। अब तक मैं ओरछा की वो जगहें देख चुका था, जहाँ कम ही लोग जाते। अब मुझे भी उस जगह जाना था जहाँ सभी जाते हैं किला और जहांगीर महल।

जहांगीर महल

जहांगीर महल, ओरछा का सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र है। इसके मुख्य द्वार पर एक बहुत बड़ा गेट है। दरवाजे के दोनों तरफ बड़े-बड़े हाथी बने हुए हैं। खास बात ये है कि दोनों हाथियों का सिर झुका हुआ है। इस महल की कहानी बहुत रोचक है। मुगल शासक अकबर ने अपने सेनापति अबुल फज़ल को अपने विद्रोही बेटे को पकड़ने का आदेश दिया। जहांगीर को खतरे के बारे में पता चल गया।

जहांगीर ने ओरछा के राजा वीर सिंह को अबुल फज़ल से निपटने को कहा। वीर सिंह ने अबुल फज़ल को हमेशा के लिए जहांगीर के रास्ते से हटा दिया। वीर सिंह से जहांगीर इतने खुश हुए कि कई जागीर उन्हें दे दी। बाद में जब जहांगीर ओरछा आने वाले थे तो उनके स्वागत में ये भव्य जहांगीर महल बनवाया गया।

जहांगीर महल ओरछा का सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र है। महल की छत पर चढ़कर पूरे नगर को देखा जा सकता है। दीवारों पर कुछ नक्काशी भी बनी हुई है। देश-विदेश से पर्यटक इसी महल को देखने आते हैं। जहांगीर महल, किले के अंदर ही है। महल की मोटी दीवार और बाहर का सुंदर नज़ारा बेहद खुशनुमा होता है। गर्मी में किले के लाल पत्थर ठंडक महसूस करवाते हैं। किले को देखने का बाद हम राजमहल की ओर बढ़ गए।

राजमहल

किले के अंदर जाते ही सबसे पहले राजमहल ही मिलता है। उसके ठीक सामने है जहांगीर महल। जहांगीर महल के भांति यहाँ भी एक बड़ा-सा गेट है। महल के बीचों-बीच एक चबूतरा बना है। महल दो भागों में बंटा हुआ है। महल पूरी तरह से भूल-भुलैया टाइप का है। आप जिस जगह जाएँगे, आपको लगेगा मैं इस जगह को देख चुका हूँ। इस महल में भी नक्काशी दिखाई देती है। दीवार कला और संस्कृति से पटी हुई है, ऐसा ही कुछ हाल छज्जों का भी है। ये किला पाँच मंजिला है।

पास में ही खड़ा गाइड कुछ पर्यटकों को बता रहा था कि राजा की 100 रानियाँ थीं और सभी का अलग-अलग कमरा था। राजा का एक अलग कमरा था। महल से बाहर निकलकर हम बाहर की ओर जाने लगे। हमें तभी एक बड़ा-सा कमरा दिखाई दिया जो बहुत बड़ा था। उस बड़े से हॉल में कई मोटे-मोटे खंभे थे। आगे बढ़ने पर एक पत्थर की बनी हुई गद्दी दिखाई दी। मुझे समझने में देर नहीं लगी कि ये राज दरबार है। यहीं बैठकर राजा अपना राज दरबार चलाते होंगे। यहाँ के छज्जे पर भी रंगीन नक्काशी दिखाई दे रही थी। लेकिन राज दरबार किले के कोने पर होने पर यहाँ अंधेरा था।

रामराजा मंदिर

ओरछा बुंदेलखंड की आस्था का केन्द्र है। वजह है यहाँ का रामराजा मंदिर। पुख के दिन ओरछा किसी मेले के समान सज जाता है। रामराजा मंदिर देखकर अमृतसर का स्वर्ण मंदिर याद आता है। बिल्कुल संगमरमर-सा सफेद मंदिर और सोने के समान चमकती चोटियाँ। रामराजा मंदिर में भगवान श्रीराम विराजे हुए हैं। इस मंदिर की भी एक रोचक कहानी है। महाराजा मधुकर शाह कृष्ण के भक्त थे और रानी श्रीराम की। एक दिन दोनों में बहस छिड़ गई कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। रानी ने प्रतिज्ञा कर ली कि वे श्रीराम को ओरछा लेकर आएँगी। श्रीराम के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण भी शुरू कर दिया।

रानी अवध गईं और सरयू नदी के किनारे कठिन तपस्या की। जब भगवान प्रसन्न नहीं हुए तो अंत में सरयू में प्राण देने लगीं। तभी एक झूला नदी से निकला जिसमें बालक रूपी राम थे। भगवान श्रीराम जब ओरछा आए तो वे महल में ही विराजमान हो गये। तब से वो महल रामराजा मंदिर कहलाने लगा। भगवान रामराजा के दर्शन किए और ओरछा से वापस चल दिये। ओरछा में देखने लायक बहुत कुछ था लेकिन शाम होने को थी और हमें लंबा रास्ता तय करना था, गाँव का रास्ता।

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