पचमढ़ी मुझे मेरे दोस्त ने बताया था कि काफी खूबसूरत जगह है और मैंने इंटरनेट पर सर्च भी किया था। लेकिन विश्वास तब हुआ जब मैं वहां जाकर देखा कि वाकई पचमढ़ी बहुत खूबसूरत जगह है। सड़के साफ़ सुथरी, पहाड़ो से गिरता हुआ झरना, गुफाओं में ईश्वर का वास वाकई बहुत खूबसूरत जगह है पचमढ़ी।
मेरी यात्रा की शुरुवात ग्वालियर स्टेशन से हुयी। और मैं इस सफ़र में अकेला था मेरे साथ कोई न था। एक बात अगर आप घूमने जा रहे हो तो ग्रुप में जाओ और कम से कम 4दिन के लिए जाओ तभी आप पचमढ़ी घूम पाओगे। मैं ट्रेन में सवार हो गया और ट्रेन घर, पेड़, पहाड़, गाडी को पीछे छोड़ते हुए अपनी रफ़्तार से चली जा रही थी। सुबह करीब 6 बजे मैं पिपरिया स्टेशन से पहुंच जहाँ से पचमढ़ी 53किमी की दूरी पर है जिसका सफ़र मैंने बस से तय किया। और करीब डेढ़ घंटे के सफ़र के बाद मैं फाइनली पचमढ़ी पहुँचा।
मैं बस से उतरा और इधर उधर नज़र दौड़ाई, फिर देखा कि काफी जिप्सी अपनी रफ़्तार से यात्रियों को लेकर इधर से उधर चलती जा रही हैं। मैं होटल में पहुँचा चाय समोसा लिया और जिप्सी बुक की। मैं अकेला था इसलिए उसने मुझसे ₹500 लिए घुमाने के और अगर आप पूरी गाडी बुक करते हो तो आपको ₹1200/- ही देने पड़ेंगे जिसमे करीब 7लोग आ सकते हैं। मैं जिप्सी में बैठ गया उसने बताया की इस गाडी में 3 कपल हैं जो आपके साथ यात्रा करेंगे। फिर एक एक करके उसने उन 6 लोगो को लिया और हम सातों पचमढ़ी की यात्रा के लिए चल पड़े।
सबसे पहले हम डचेस फाल गए वहां का नज़ारा वाकई काफी खूबसूरत था। लेकिन डचेस फाल वही लोग जाएँ जिन्हें सांस की बीमारी न हो, क्योंकि यह पहाड़ से 800मीटर नीचे है जिसके रास्ते में आपको काफी पत्थर, मिट्टियां सीढ़ी और टेढ़े मेढ़े रास्ते मिलेंगे। झरने के नीचे जब मैं खड़ा हुआ और पहाड़ो से गिरते झरने अपने आवेश में ऐसे गिर रहे थे कि वे काफी गुस्से में हो। मैं नीचे खड़ा उस झरने की चोट को महसूस कर रहा था क्योंकि झरने का तेज बहाव मेरे शरीर को चोट दे रहा था। कुछ पल के लिए मैं वही बैठ गया। फिर वहां से हम पैरासेलिंग पॉइंट गए जहाँ मैंने क्रॉस वैली किया। मैं करीब धरती से 80फ़ीट ऊपर था। बहुत अच्छा लगा और दिल को थोडा सुकून भी मिला। उसके बाद वहां से हम रीछगढ़ गए जहाँ मुझे ऐसा प्रतीत हुआ की भालुओं को उनके स्थान से अलग कर उस स्थान को दर्शनीय स्थल में तब्दील कर दिया हो। वहीँ पर इको पॉइंट है जहाँ आप चिल्लाकर कुछ भी बोलेंगे या अपना नाम लेंगे तो वापस आपको वही आवाज़ सुनाई देगी। इसके बाद हम भव्य दृश्य जहाँ से आकाश पर्वत पेड़ खाई का नज़ारा आप एक साथ खुले में देख सकते है और ये जगह आपको धूपगढ़ जाते हुए दिखाई देगा। फिर हम एक होटल में गए जहाँ हमने खाया और खाना खाने के बाद हम धूपगढ़ को गए।
धूपगढ़ एक ऐसी जगह है जो समुद्र से 4447मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ पर दो जगह बनी है एक जिधर से सूरज उगता है और दूसरी तरफ जिधर सूरज डूबता है। वहां पर हम करीब शाम के 5:15 बजे पहुंचे और 15मिनट बाद सूरज ने अपना कार्यक्रम शुरू कर दिया। धीरे धीरे सूरज अपनी छाप छोड़ते हुए डूब गया। और हम वापस अपने होटल आ गए।
दुसरे दिन फिर मैंने गाडी ली लेकिन इस बार वो दोस्त नहीं थे जो पहले दिन के सफर में मिले थे। मैं फिर अकेला हो गया था। दूसरे दिन की सफ़र की शुरुवात सबसे पहले जटा शंकर से हुयी जो एक पर्वत के नीचे शिव जी नाग देवता का वास है। आप या जगह से स्थिर खड़े नहीं हो सकते हैं। उसके बाद मैं गुप्त महादेव गया जो एक पतली गुफा के अंदर शिव भगवान् की प्रतिमा है और इस गुफा में एक बार में 6व्यक्ति ही जा सकता है। उसके बाद मेरे सफ़र में अगला पड़ाव ग्रीन वैली था जैसा की नाम से स्पष्ट है की सब कुछ हरा हरा। उसके बाद हम प्रियदर्शिनी पॉइंट गए फिर हांडीखोह। हांडीखोह एक ऐसी जगह है जिसे सुसाइड पॉइंट भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ से गिरने के बाद व्यक्ति जिन्दा नहीं लौट पाता है और बच भी जाए तो चाहकर न तो वापस आ पायेगा और न बी कोई निकाल पायेगा। इसी पॉइंट पर मैंने घुड़सवारी का भी आनंद उठाया। इसके बाद अगला सफ़र हमारा अम्बा माईं था जो माता रानी का मंदिर है।
समय कम था और रात को 8बजे की ट्रेन थी। इसलिए ज्यादा घूम नहीं पाया। मैं इस सफ़र में उन लोगों को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने मेरे सफ़र को आनंददायक बनाया। पहले तो मेरे वो दोस्त जिन्हें जानता नहीं थी लेकिन उनसे अच्छी दोस्ती हो गयी ...कीर्ति, राहुल, जय और आकांशा। मैं शुक्रिया आपका भी करना चाहूँगा आशुतोष जी एवं उनकी वाइफ।
वाकई अब जब भी घूमने जाएं तो पहले से प्लानिंग कर ले क्योंकि वहां पर होटल काफी खर्चीले हैं। वीकेंड पर होटल का रेट ₹500/- बढ़कर ₹2000/- तक हो जाता है। कम से कम 4 दिन का समय लेकर आएं। मैं इस सफ़र में कुछ जगह नहीं घूम पाया जिसका मुझे अफ़सोस तो है लेकिन कभी दिल ने कहा तो फिर निकल जाऊंगा।