यह यात्रा वृतांत पढ़ आपको मजा आए या न आए पर सुकून जरूर मिलेगा. इधर मैं शहर से दूर जाना चाहता था. कुछ दिनों के लिए ही सही. पर कोई ठीक-ठाक नक्शा जेहन में नहीं बन पा रहा था. ठीक ही है नक्शे यूं भी तो आपको बांध कर ही रखते है. बिना नक्शों के भटकने का अलग ही आनंद है. आगे क्या होगा? यह कभी मैंने सोचा नहीं. फिर अभी क्या सोचना. वैसे भी क्या होगा? कैसे होगा? क्यों होगा? जैसे सवाल जिंदगी के सबसे क्रूर सवाल लगते है. बेहतर है. क्या? क्यों? और कैसे? को छोड़कर आगे बढ़ा जाए.
क्या पता फिर खुद से भागने की जरूरत ही न पड़े. और इसका सबसे बेहतरीन जरिया है यात्रा. अगर आप यात्रा में होते है, तो कोई अजनबी आपकी ओर देख बिना वजह यूंही मुस्कुरा देता है. बेवजह. यात्राएं अक्सर बेवजह ही होती है. अकारण जिनका मतलब बस खुद के लिए होता है. और खुद को समझने के लिए गोकर्ण से बेहतरीन जगह और कोई नहीं हो सकती. यहां सबकुछ है, जिसकी तलाश आपको हो सकती है. इसके बारे में और अधिक लिंखू, उससे पूर्व शहर से आपका परिचय करवाएं देता हूं.
गोकर्ण, उत्तर कर्नाटक में बसा एक छोटा-सा शहर है. या यूं कह सकते मिनी गोवा पर गोवा से शांत और कम कमर्शियल. गोकर्ण का शाब्दिक अर्थ है ‘गाय का कान.’ क्यों अब इसके पीछे एक लंबी कहानी. थोड़ा गूगल करेंगे तो जान जाएंगे. यहां आपको हिंदू धर्म का गहरा प्रभाव देखने को मिलेगा. शायद इसलिए यह साउथ का वाराणसी के नाम से प्रसिद्ध है. अब भाई बनारस का जिक्र हो, तो महादेव को कैसे भूल सकते है, यहां विश्वनाथ तो नहीं लेकिन महाबलेश्वर से आपकी मुलाकात अवश्य हो सकती है.
हालांकि मैं धार्मिक व्यक्ति जरूर हूं, पर यहां धर्म से दूर रहा. वजह फिर कभी. यहां घूमते हुए आपको बनारस की याद आएगी. वैसी ही संक्रीण गलियां, भटकते विदेशी पर्यटक, जगमगाते दुकान सब है यहां. बस आपको यहां स्ट्रीट फूड का जायका नहीं मिल पायगा. उसकी भी एक लजीज वजह है. जिसकी चर्चा यहां के जायकों पर जब लिखूंगा, तब होगी. आज फिलहाल गोकर्ण को समझते है, यहां के प्राकृतिक दृश्यों में ही रमते हैं.
यह ट्रिप हमारा हाफ प्लानड था. हमारा यानि मैं और रवि. हाफ प्लानड होने की वजह से KRTC में सीट रिजर्वड थी. कर्नाटक में बस सेवा बहुत ही अच्छी है. ज्यादातर लोग यहां बस से ट्रैवल करना ही पसंद करते हैं. बैंगलुरु से गोकर्ण का मार्ग अच्छी स्थिति में होने के साथ प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है, जो आपको बोर नहीं होने देगी.
रात भर 429 किलोमीटर का सफर तय कर हमारी बस ठीक सुबह गोकर्ण पहुंची. बस स्टैंड से हम लोग पास के ही एक बाइक शॉप पहुंचे. शहर को एक्सप्लोर करने के लिए हमने बाइक रेंट पर बुक कर रखी थी. वहां शॉप ऑनर ने गोर्कन में हम कहां ठहर रहे उसका पता पूछा. पता जानकर चुटिली हंसी के साथ कहां इंटरनेट की दुनिया में सब बकरा ही बनते है.
हम दोनों ने उसपर ध्यान न देते हुए बाइक लेकर अपने कॉटेज की ओर आगे बढ़ना ही उचित समझा. अनजान शहर, भाषा अलग ऐसे में मार्ग दर्शन गूगल बाबा के अतरिक्त और कोई बेहतर नहीं कर सकता. हमने भी गूगल बाबा के दिखाएं रास्ते पर चलने का निश्चय किया. बस स्टैंड से हमारी कॉटेज की दूरी 15 किलोमीटर थी. लेकिन 5 किलोमीटर दूरी तय कर हमने, जो देखा वो निराश कर गया. ये उस शॉप ऑनर की चुटीली मुस्कान के रहस्य को बता रहा था. दरअसल 15 किलोमीटर में से 10 किलोमीटर दूरी समुद्र की लहरों से होकर गुजरती है. यह हमें उदास कर गया.
लेकिन स्थानिय निवासियों ने बताया कि कॉटेज सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है. हम वहां 40 किलोमीटर की यात्रा कर पहुंच सकते हैं. वहीं कुछ लोगों ने फेरी ( बोट ) से जाने का रास्ता बतलाया. फेरी की टाइमिंग बहुत उलझण वाली थी. और अरब सागर की लहरों को देख हिम्मत भी न हुई. हम दोनों ने सफर दोपहिया वाहने से करना उचित समझा.
इसमें समय अधिक लगना था, पर कॉटेज की सुंदर तस्वीरे हमारे जहन में थी. शहर, रास्ते, लोग, भाषा सबकुछ हमारे लिए नया और अलग अनुभव था. लेकिन अच्छा था. शहर के भीतर से गुजरते हुए सड़कों पर हस्तनिर्मित संगीत वाद्ययंत्र, कपड़े और हिंदू धार्मिक कलाकृतियों को बेचने वाले स्टॉल दिख जाते हैं.
40 किलोमीटर की यात्रा को गूगल 1 घंटे में पूरा करता दिखा रहा था. शायद उसे पहाड़ों की जलेबियां रास्ता का अंदाजा न रहा. पहाड़ों पर गोल-गोल भटकते हुए जैसे तैसे हम निरवाना बीच स्थित कॉटेज पहुंच गए. लेकिन सामने जो दृश्य था, वो दिल को तोड़ देने के लिए काफी था. दरअसल निरवाना नेचर कॉटेज की इंटरनेट की तस्वीरों से बिलकुल अलग थी, ये जगह.
हम जैसे- जैसे कॉटेज के अंदर जा रहे मन भारी होता जा रहा था. जिन तालाबों को चिलिंग प्वाइंट की तरह दिखाया गया था. वहां मेंढ़क और कीड़े तैर रहे थे. हमारे अतरिक्त वहां अन्य मेहमानों के चेहरे पर मायूसी साफ देखी जा सकती थी. ऑनलाइन के इस टाइम में सब दिखावा है. हमने वहां न रूकने का फैसला लिया. क्योंकि हमारा एक दिन व्यर्थ हो चुका था. और यहां रूकना यानि आगे के ट्रीप पर रेत फेरना जैसा था. क्विक डीसिजन लेते हुए हम गोकर्ण वापस लौट आएं.
गोकर्ण में दूसरा दिन
कुछ ही घंटो में हम निरवाना बीच के उस भयावह कॉटेज को छोड़ गोकर्ण बीच पर थे. तीन दिनों के बुकिंग के बावजूद हमारे पास रहने को जगह न थी. पर कहते है न महादेव की नगरी उत्तर में हो या दक्षिण में आसरा सबको मिलता है. थोड़ा सर्च करने पर हमें शिवा कैफे में छोटा-सा सुंदर कमरा मिल गया. यह राहत वाली बात थी. रात के ठीक 11 बज रहे थे. शिवा कैफे के हेड शेफ वेंकटेश ने हमारे लिए लजीज प्रॉन्स और कलामारी फिस डीनर प्रीपेयर कर रखा था. साथ ही सामने उंचे सीना ताने हरे-भरे पहाड़ और चारों ओर पसरी शांति के बीच समुद्र की लहरों का शोर मंत्रमुग्ध कर देने वाला था.
मिस्टर वेंकटेश एक बहुत अच्छे मेजबान थे. वो जब भी फ्री होते, तो हमारे साथ बैठ कंपनी देते. जितनी अच्छी वे बातें करते उतना ही स्वादिष्ट सी-फूड भी बनाते थे. हर रोज कुछ नया खिलाकर उन्होंने हमारे ट्रिप को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वहीं स्पेन से आए पिजारो जो की हमारे ठीक बगल वाले कैफे रूके थे, वो अक्सर लंच के लिए यहां आते.
हमारी दोस्ती कुछ ही घंटो में उनसे गहरी हो गई. पिजारो 18 देशों में यात्रा कर चुके हैं. 5 भाषाओं का ज्ञान और विदेश की नौकरी छोड़ ट्रैवल करते है. भारत में पिछले सालों से आ रहे है. गोकर्ण में करीब 15 बार आ चुके है. उन्होंने हमें गोकर्ण के लिए अपने प्यार की कई कहानियां सुनाई, जो की प्रेरणादायक थी.
कुडले बीच
ट्रिप का आज तीसरा दिन था. सूरज की मीठी धूप और समुद्र की लहरों की सुकून देने वाली आवाज से नींद खूली. पटना में जहां देर से उठने की आदत थी. यहां 6 बजे जगना थोड़ा नया जरूर था. फ्रेश होने के बाद ब्रेकफास्ट में टूना फिश सैंडविच वेंकेटेश ने ऑफर किया. विश्वास मानिए मेरे जैसा शाकाहारी आदमी भी टूना फिश सैंडविच के स्वाद को कभी नहीं भूल सकता.
हेल्दी और टेस्टी ब्रेकफास्ट के बाद हमारी तैयारी गोकर्ण के अन्य बीच पर जाने की था. गोकर्ण पहाड़ियों के बीच स्थित है. यहां के 5 प्रमुख समुद्र तट- गोकर्ण बीच, कुडले बीच, ओम बीच, हाफ मून बीच और पैराडाइज बीच है. कुडले बीच पहाड़ के दूसरी तरफ है, जो मुख्य बीच में से एक है. कुडले बीच में ज्यादातर यूरोपीयन सैलानी आते है. खासकर यंगस्टर. यह बीच गोकर्ण बीच से बिलकुल अलग है.
गोकर्ण बीच पर जहां आपको श्रद्धालु, शांतिप्रिय पर्यटक और लोकल लोग मिलेंगे. वहीं कुडले बीच पर विदेशी पर्यटकों की भीड़ पार्टी करते, संगीत और कई तरह के गेम्स का आंनद लेते दिख जाएगी. यहां भी आपको कई कैफे दिखेंगे. लेकिन गोकर्ण बीच से थोड़े मंहगे. हालांकि 500 प्रतिदिन से लेकर 2500 रुपए तक में आपको यहां रहने की जगह मिल जाएगी. इसके अतरिक्त सुविधाओं के अनुसार भी रेट्स वैरी कर सकते है.
कुडले बीच पर डरैगन कैफे से सूरज को समुद्र को चूमते हुए देखना सुखद एहसास देता है. यहां विभिन्न संस्कृतियों के लोग लहरों की धीमी संगीत और हाथ में बियर लेकर चिल करने आते है. वहीं शाम के वक्त म्यूजिक के दिवाने गिटार और अन्य संगीत वाद्ययंत्र के साथ अपनी संस्कृति से आपको भिगोते रहते है.
गोकर्ण के आखिरी दो दिन
अंतिम दो दिनों में हमने शहर के भीतर जीवन को महसूस करने का निर्णय लिया. सड़को पर घूमकर मंदिरों और सांस्कृति को समझने का प्रयास अच्छा अनुभव देता है. शहर में शाम के वक्त घूमते हुए आपको हर घरों में से शाम की आरती की आवाज सुनाई देगी. जो आपके कानों को सुकून देती है. गोकर्ण रहस्यों की भूमि है. इसे जितना एक्सपलोर करेंगे उतना नया पाएंगे. मुझे यह एहसास था कि यह यात्रा खास होगी. पर इतनी आवशयक ये नहीं पता था.
क्योंकि इस यात्रा ने मुझे कई चीजे सिखाईं. यहां हर वो इंसान आपका दोस्त है, जब तक वो आपसे मिला नहीं. रात कितीनी भी अंधेरी क्यों न हो सुबह की पहली रोशनी का इंतेजार हमेशा एक नया दिन होता है. सचमुच, गोकर्ण जादुई जगह है, क्योंकि यह आपको अपनी सुंदरता के साथ अवाक छोड़ देता है और फिर आपको हजारों शब्दों में पिरो देता है जो कि आधे सौंदर्य का वर्णन करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
गोकर्ण कैसे पहुंचे
बैंगलोर से नियमित रात भर बसें हैं. वैसे मंगलौर कुमटा या अंकोला के लिए ट्रेन भी चलती है. गोवा से एक टैक्सी भी ले जा सकते हैं, लगभग 100 किलोमीटर की दूरी, सड़कें भी काफी अच्छी हैं.
कहां ठहरे
ओम बीच के पास संस्कृति रिजॉर्ट (फैमिली के साथ है तो) कुडले बीच के पास जोस्टल (दोस्तों के साथ है तो) और सोलो ट्रैवलर है तो गोकर्ण में शिवा गार्डेन कैफे एक सुंदर स्थान है, यदि आप एक साफ बिस्तर, लजीज सी-फूड, आदर्श मेजबान, मनमोहक दृश्य और समान विचार वाले विदेशी मित्रों की तलाश में है, तो यहां रहना आपको सुखद अहसास देगा.
घूमने के स्थान
कुडले बीच, ओम बीच, हाफ मून बीच, पैराडाइज बीच,
मंदिर- महाबलेश्वर और गणपति मंदिर
खाने की जगह
गंगा कैफे, ला पिज़ेरिया,शिवा गार्डन कैफे, ऑफ-शोर कैफे, कुडले बीच पर ड्रैगन कैफे
समुद्र तटों और सड़कों पर बहुत सारे आवारा कुत्ते और गाय हैं. हालांकि वे शांत स्वभाव के हैं. लेकिन सर्तक रहने में क्या दिक्कत है. हमेशा साथ में टॉर्च रखे क्योंकि रात के दौरान शहर और समुद्र बीच पर बहुत कम स्ट्रीट लाइटें होती हैं.