यह लेख अक्टूबर 2018 में मेरे द्वारा की गई कुम्भलगढ़ किले की यात्रा के बारे में हैं । उदयपुर से लगभग 84 किलोमीटर उत्तर में जंगल में स्थित कुंभलगढ़ मेवाड़ क्षेत्र में चित्तौड़गढ़ के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण गढ़ है । अरावली पर्वतमाला में स्थित इस किले का निर्माण 15वीं शताब्दी में राणा कुंभा ने प्रसिद्ध वास्तुकार मंडन की देखरेख में करवाया था । स्थलाकृति की दुर्गमता किले को अजेयता का आभास देती है । इसने संघर्ष के समय मेवाड़ के शासकों को आश्रय के रूप में सेवा प्रदान की । यह किला बचपन में मेवाड़ के राजा उदयसिंह के लिए भी आश्रय का काम करता था जब बनबीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी थी और सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया था ।
मेवाड़ के महान राजा महाराणा प्रताप की जन्मस्थली होने के कारण इसका लोगों के लिए अत्यधिक भावनात्मक महत्व है । यह किला लंबी घेराबंदी झेलने के लिए हर तरह से आत्मनिर्भर है । यहां मौर्यों द्वारा निर्मित मंदिरों की एक शानदार श्रृंखला है, जिनमें से सबसे सुरम्य महल बादल महल या बादलों का महल है । किला आसपास का शानदार विहंगम दृश्य भी प्रस्तुत करता है । किले की विशाल दीवार लगभग 36 किलोमीटर तक फैली हुई है, जिसकी चौड़ाई आठ घोड़ों के बराबर होने के लिए पर्याप्त है । इसे "चीन की महान दीवार" की तरह ही "भारत की महान दीवार" भी कहा जाता है ।
19वीं शताब्दी में महाराणा फतेह सिंह ने किले का जीर्णोद्धार कराया । किले के बड़े परिसर में बहुत दिलचस्प खंडहर हैं और इसके चारों ओर घूमना बहुत अद्भुत अनुभव हो सकता है ।
किले के द्वार पर भगवान हनुमान की एक मूर्ति है जिसे नागौर के युद्ध के समय मांडलपुर से लाया गया था । इस किले के अंदर एक छोटा सा किला है जिसे कटारगढ़ कहा जाता है ।
इस किले के बारे में लेखक, इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है, ''यह किला इतना ऊंचा है कि जो भी इसकी चोटी को देखेगा, उसकी पगड़ी गिर सकती है ।''
इस किले को एक तरह से मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर स्थित एक प्रमुख स्थान बोला जा सकता है । इतिहास में इस तरह के जगहें जो दो साम्राज्यों की सीमा निर्धारित करते थे, का काफी महत्व माना गया है ।
अगर कोई पर्यटक यहाँ जाने की इच्छा रखता है तो टैक्सी करना सबसे उपयुक्त साधन हो सकता है । उदयपुर और नाथद्वारा दोनों जगहों से यहां पहुँचने के लिए टैक्सी आसानी से मिल सकती है । किले के पास रुकने और खाने पीने के विकल्प उपलब्ध है । कुंभलगढ़ के सबसे पास अगर किसी बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध स्थान की बात की जाय तो वो शायद रणकपुर के जैन मंदिर कहें जा सकते हैं, मेरा तो वहाँ जाना नहीं हो पाया था पर जो पर्यटक लंबे सफर पर निकले हैं वो किले के बाद रणकपुर जा सकते हैं ।
आप सभी पर्यटन समुदाय सदस्यों और पाठकों को लेख पढ़ने के लिए सादर धन्यवाद ।