कोटद्वार (Kotdwar) : गढ़वाल की पहाड़ियों का प्रवेश द्वार

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Kotdwar A Gateway Of Garhwal

Photo of कोटद्वार (Kotdwar) : गढ़वाल की पहाड़ियों का प्रवेश द्वार by Humans Of Uttarakhand

कोटद्वार (Kotdwar) यह उत्तराखंड का महत्वपूर्ण शहर है, कोटद्वार को गढ़वाल के प्रवेश द्वार (Kotdwar A Gateway Of Garhwal) और पौड़ी जिले का सबसे बड़ा शहर के रूप में जाना जाता है। इसके नाम का अर्थ होता है- कोट या पहाड़ी तथा द्वार अर्थात् "पहाड़ियों का द्वार"। प्रभावस्वरूप यह गढ़वाल की पहाड़ियों का प्रवेश द्वार है जो सदियों से रहा है।

कोटद्वार गढ़वाल का प्रवेशद्वार (Kotdwar A Gateway Of Garhwal)

कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल एक छोटा शहर होने के बाबजूद इसका भारतीय इतिहास के पन्नों में एक विशेष महत्वपूर्ण स्थान है। शुरू में कोटद्वार को मौर्य साम्राज्य द्वारा महान अशोक के अधीन माना गया था, उसके बाद यहाँ कत्यूरी राजवंश और फिर गढ़वाल के पंवार वंश का शासन था। फिर गोरखाओं ने कोटद्वार पर लगभग 12 वर्षों तक शासन किया,

कोटद्वार (kotdwar) का पुराना नगर "खोह" और यह गिवइन शोत नदियों के संगम पर स्थित था। इसका पुराना नाम खोहद्वार था, जिसका अर्थ है खोह नदी का प्रवेश द्वार: कोटद्वार खोह नदी के तट पर स्थित है इसलिए इसका नाम बाद में कोटद्वार रखा गया। कोटद्वार उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है। इसे ' गढ़वाल का प्रवेशद्वार' (Gateway of garhwal) भी कहा जाता है।

कोटद्वार में देश का सबसे पुराना रेलवे स्टेशन

कोटद्वार में देश का सबसे पुराना रेलवे स्टेशन है, जिसे 1890 में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया गया था। गढ़वाल क्षेत्र की पहाड़ियों के प्रवेश द्वार के रूप में कोटद्वार भारत के प्रमुख शहरों के साथ रेलवे द्वारा जुड़ा हुआ है। यह स्टेशन भारतीय रेलवे के उत्तरी रेलवे क्षेत्र के मुरादाबाद मंडल के अंतर्गत आता है।

1897 रेलवे लाइन बन जाने के बाद नगर धीरे धीरे दाईं ओर बढ़ने लगा और खोह नदी की पश्चिमी दिशा की ओर विकसित होने लगा। कोटद्वार पूर्वी गढ़वाल क्षेत्र का प्रमुख परिवहन और थोक व्यापार केंद्र रहा है। 1909 में कोटद्वार को नगर का दर्जा दिया गया था तथा उसी वर्ष हुई प्रथम जनगणना में नगर की जनसंख्या 1029 थी।

कोटद्वार में प्रमुख पर्यटक स्थल (Tourist places in Kotdwar)

यहाँ प्रमुख पर्यटक स्थल सिद्धबली धाम मंदिर, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, कण्वाश्रम, दुर्गा देवी मंदिर, सेंट जोसेफ चर्च, ताड़केश्वर मंदिर आदि है।

कण्वाश्रम (Kanvashram) : कोटद्वार से 14 किलोमीटर दूर मालिनी नदी के किनारे स्थित कनव ऋषि आश्रम ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह माना जाता है कि जब ऋषि विश्वामित्र ने यहां ध्यान लगाया तब देवताओं के राजा इंद्र ने उनके ध्यान को भंग करने के लिए स्वर्ग की अप्सरा मेनका को भेजा।

सिद्धबली मंदिर ( Siddhbali Temple) : श्री सिद्धबली मंदिर एक पौराणिक मंदिर है, जो कोटद्वार से 2 किमी की दूर खोह नदी के तट से लगभग 50 मीटर ऊपर पर स्थित है। यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है, वर्ष भर सैकड़ों श्रद्धालु द्वारा यहाँ का दौरा किया जाता है। कहा जाता है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए इसी रास्ते गए थे।

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दुर्गा देवी मंदिर (Durga Devi Temple) : कोटद्वार शहर में स्थित एक प्राचीन एवम् लोकप्रिय मंदिर है | यह मंदिर एक गुफा के अंदर स्थित है और जो की देवी दुर्गा माता ( Durga Devi Temple) जी को समर्पित है, मंदिर को प्राचीनतम सिद्धपिठों में से एक माना जाता है |

कोटद्वार तक कैसे पहुंचे

जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, 110 किमी की दूरी पर स्थित कोटद्वार का निकटतम हवाई अड्डा है। कोटद्वार भारत के प्रमुख शहरों के साथ रेलवे द्वारा जुड़ा हुआ है। यह भारत का सबसे पुराना रेलवे स्टेशन कोटद्वार में स्थित है। यहाँ से दिल्ली, नजीबाबाद आदि जगह के लिए ट्रेनो का आवागमन रहता है। दिल्ली, नजीबाबाद, देहरादून (Dehradun), हरिद्वार व उत्तरप्रदेश से कोटद्वार के लिए बसें आसानी से उपलब्ध रहते हैं। कोटद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग 119 के साथ जुड़ा हुआ है।

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