पैसा बचाना भी एक कला है। लोग भले हमको कंजूस समझें, लेकिन पैसा बचाना तो हर कोई चाहता है। दरअसलu मैं कंजूस नहीं हूँ, मैं तो बस उन ही चीज़ों पर खर्चा करता हूँ, जिनकी मुझे सख़्त ज़रूरत है। बेवजह की अय्याशी मुझे पसन्द नहीं। अब मैंने अपना 6 दिन का स्पीति-कन्नौर का सफ़र ₹6000 में कर लिया तो ये तो मेरा हुनर है ना। आप भी जानो कैसे पूरा किया ये यादगार सफ़र।
अपना क़ीमती वोट डालने के ठीक बाद मैं शाम को सूरत से चंडीगढ़ को जाने वाली पश्चिम एक्सप्रेस ट्रेन में बैठ गया। अगली शाम 4:30 पर मैं चंडीगढ़ स्टेशन पर था।
ट्रेन में ही एक साथी ने बताया कि चंडीगढ़ से हिमाचल के लिए आईएसबीटी सेक्टर 43 से बस मिल जाएगी। बसें तो चंडीगढ़ स्टेशन से सेक्टर 43 के लिए जा रही थीं लेकिन पहले ही लेट होने के कारण मैंने रिक्श पकड़ा। ऑटोवाले ने ₹150 बोला, मोलभाव करके ₹100 पर माना। स्टेशन से बसड्डे की कुल दूरी 11 किमी0 की है तो ₹100 वाजिब ही है। शाम को 5 बजे मैं बस स्टॉप पर था। एचआरटीसी डीलक्स नॉन एसी बस का टिकट मैंने ऑनलाइन बुक किया; ₹200 कैशबैक भी मिले। रात को 9 बजे ढाबे पर बस रुकी ताकि हम अपनी पेट पूजा कर लें।
सुबह 7 बजे मैं रिकॉन्ग पिओ पर था। यहाँ से मैं टिकट बुकिंग काउन्टर पर काज़ा की बस का पता करने निकल पड़ा। केवल एक बस सुबह 5:30 बजे काज़ा के लिए जाती थी जिसको आधे घंटे पहले बुक करना पड़ता था। कुल मिलाकर मैं देरी से पहुँचा था। या तो मैं पछता सकता था या अपना ये दिन पिओ और आस-पास के गाँवों में घूमकर निकाल सकता था। मैंने घूमना बेहतर समझा।
रात को ठहरने के लिए बस स्टॉप के पास ही मैंने गेस्ट हाउस में रुम बुक कर लिया। गेस्ट हाउस वाले ने दो कमरे दिखाए, ₹520 वाला और ₹400 वाला। मुझे सिर्फ़ फ़्रेश होना था, तो मैंने सस्ता वाला रुम लेना बेहतर समझा। सुबह जल्दी उठकर मैंने कल्पा की बस पकड़ी। पिओ से कल्पा का पूरा रास्ता बहुत सुन्दर है। अपने में अलसाई सुबह लेकर पहाड़ों से आपको प्यार ही हो जाएगा। आधे घंटे में कल्पा पहुँच गया मैं और देर तक पहाड़ों को ही निहारता रहा।
बस कंडक्टर ने बताया कि यहाँ से 3 किमी0 दूर सुसाइड पॉइंट है जो आपको कल्पा से रोघी रोड पर मिलेगा। तो बढ़िया ये रहेगा कि बस पकड़ लो, 20 मिनट में पहुँच जाओगे। वहाँ से कल्पा के लिए वापस बस मिलेगी। मैंने झट से हाँ कर दी और अगले आधे घंटे में मैं सुसाइड पॉइंट पर था। वो शानदार नज़ारा तस्वीरों में दर्ज करना नामुमकिन है। मानो स्वर्ग ऐसा ही दिखता है। सेल्फ़ी लेने का हुनर दिखाने वालों के कारण ही ये जगह प्रसिद्ध हुई है। मैंने सेल्फ़ी ना लेना बेहतर समझा। कुछ देर यहाँ बिताने के बाद मैं कल्पा वापस आ गया।
कल्पा में ढेर सारे रिसॉर्ट मिल जाते हैं जहाँ पर से किन्नौर कैलाश रेंज के बहुत सुन्दर दृश्य मिलते हैं। प्रकृति की गोद का ये आनन्द सूरत में कहाँ। इतना सुकून और शान्ति कि मोगैम्बो भी ख़ुश हो जाए। कल्पा की कमाई का मुख्य स्रोत यहाँ पर पैदा होने वाले सेब के पेड़ हैं। ये सेब दुनिया के सबसे अच्छे सेब हैं जिनमें ज़्यादातर तो विदेश भेजे जाते हैं।
पहाड़ों और बादलों में सिमटे इस सुन्दर नज़ारे को पैदल पैदल निहारते हुए मैं नज़दीक के ही एक प्राइमरी स्कूल में गया। काश यहाँ पढ़ने वाले बच्चों में एक मैं भी होता, अगर मैं यहाँ पढ़ता तो शायद एक भी दिन छुट्टी नहीं लेता। मज़ाक कर रहा हूँ, इतना सीरियस मत हो।
स्कूल के ठीक पीछे एक प्राचीन मन्दिर है जिसमें हिन्दू और बौद्ध, दोनों धर्मों की कला दिखती है। पूरी शाम मैंने किन्नौर कैलाश की सुन्दर छटा देखने में बिता दी। शाम को चार बजे मैं वापस पिओ पहुँच गया। किसी लोकल ने बताया कि यहाँ पवित्र किन्नौर कैलाश शिवलिंग भी है। यहाँ का ट्रेक 2-3 दिन का होगा।
आज का दिन थोड़ा मेहनती होने वाला था। सुबह पाँच बजे मैं रिकॉन्ग पिओ के बस स्टॉप पहुँचा। टिकट काउन्टर पर बैठे आदमी ने बताया कि पिओ शिमला और काज़ा के बीच का बस स्टॉप है। शिमला से आने वाले पर्यटक पिओ उतरकर काज़ा के लिए बस लेते हैं।
क़िस्मत से शिमला से आने वाली बस पूरी तरह भरी थी, इसलिए हमको जगह मिलना नामुमकिन था। ताबो के लिए 9:30 पर रामपुर से बस जाती है। मैंने सोचा चलो, क़िस्मत ने मौक़ा छीना है तो नया मौक़ा भी दिया है। दो घंटे की देरी से 11:30 पर बस आई जो पूरी खाली थी। मैंने सबसे आगे ड्राइवर के पास वाली सीट पकड़ ली। वो रास्ता सुहाना था, सबसे आगे की सीट में जो बात है वो पीछे नहीं। पहाड़ की चढ़ान उतरान आपकी आँखों के सामने ख़ूब बातें कर रह होती है। शायद मेरी ज़िन्दगी का सबसे डरावना सफ़र। बस का किराया ₹320 लगा। लेकिन पिओ से ताबो तक का ये सफ़र उन पैसों से कहीं ज़्यादा है।
बस पूरे रास्ते में दो जगहों पर रुकी। पूह पर 20 मिनट और नाको पर 10 मिनट के लिए। नाको बहुत सुन्दर गाँव है, समुद्र तल से 3800 मी0 की ऊँचाई पर स्थित इस गाँव की सुन्दरता देखते ही बनती है। मानो पहाड़ों पर बर्फ़ की चादर यूँ उकेरी हो कि कहीं भी ख़ूबसूरती में रत्ती भर की कमी ना रह जाए। मेरा तो मन किया बस वाले से कुछ घंटे यहाँ ही रुकने को बोल दूँ। नाको में रुक भी नहीं सकता था, क्योंकि अगली बस कल शाम 7 बजे थी।
शाम हो रही थी और भूख भी लग रही थी। पंजाबी ढाबा पर मैंने रात का खाना खाया और ताबो मठ की तरफ़ बढ़ गया। वहाँ पहुँचा तो पता चला कि ठहरने के लिए आप लेट हो गए और उन्होंने पास के होमस्टे का पता बता दिया। होमस्टे के परिवार ने बहुत दिल से मेरा स्वागत किया, चाय पिलाई। सुबह के नाश्ता और रहना मिलाकर उन्होंने कुल किराया ₹250 लिया। उनकी दो बेटियाँ हैं और दोनों ही काज़ा में होमस्टे चलाती हैं। उन्होंने अपनी बड़ी बेटी का फ़ोन नम्बर दिया।
Tripoto टिप- काज़ा में सिर्फ़ BSNL प्रीपेड और पोस्टपेड सिम काम करता है।
ताबो से काज़ा की अगली बस दोपहर को 2 बजे की थी जो पिओ से जाती थी। मैंने इधर उधर जुगाड़ लिफ़्ट वगैरह करके काज़ा पहुँचने की कोशिश की। एक घंटा इंतज़ार करने के बाद एक शेयर टैक्सी मिली जिसने ₹150 में मुझे काज़ा पहुँचा दिया।
काज़ा लाहौल और स्पीति के बीच का सबसे बड़ा क़स्बा है। मैं दोपहर 1 बजे काज़ा पहुँच गया और हिमालय कैफ़े पर दोपहर का खाना खाया। यहाँ दिन भर मैं मठों, किब्बर गाँव और आसपास घूमता फिरता रहा।
कैफ़े के पीछे ही एक दुकान है जो रेंट पर आपको बाइक देती है। सुज़ुकी ₹800 में और रॉयल एनफ़ील्ड ₹500 में। आधे दिन के लिए मैंने सुज़ुकी ले ली। मैंने उस दिन दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित पेट्रोल पंप पर दो लीटर पेट्रोल भरवाया और मुख्य मठ की ओर चल दिया।
काज़ा से किब्बर होते हुए मुख्य मठ की कुल दूरी 16 किमी0 की है। यह मठ स्पीति का सबसे बड़ा मठ है। यहाँ से पूरी घाटी के दर्शन होते हैं, सड़कें, गाँव, स्पीति नदी और गढ़रिये; सब दिखते हैं। अन्दर पहुँच कर पता चला कि हमें प्रार्थनाकक्ष में बुलाया गया है। कुछ भिक्षुओं ने हमें बौद्ध धर्म और मठ के बारे में बताया। प्रार्थनाकक्ष में तस्वीरें खींचना मना है। ऊपर जाकर मैंने भी प्रार्थना की। कुल आधे घंटे बाद एक भिक्षु भी उस कमरे में था। उसने बताया कि अगर मैं यहाँ रुकना चाहता हूँ तो रुक सकता हूँ। वो मुझे दूसरे कमरे में ले गए और चाय बिस्किट दिए।
कुछ समय बिताने के बाद मैं किब्बर की ओर निकल पड़ा। पहाड़ों पर ख़ूब बर्फ़ जमी थी। मैंने अपनी गाड़ी पास में ही लगा दी और बर्फ़ से खेलने लगा। अगर आपको पहाड़ों पर ऑक्सीजन की कमी से सिरदर्द होने लगे तो आपको अपने साथ डायामोक्स दवा रखनी चाहिए। बर्फ़ से खेलने के कारण मेरे हाथ भी सुन्न पड़ गए थे।
मेरा अगला पड़ाव चिमचिम ब्रिज था। 4145 मीटर की ऊँचाई पर बना यह ब्रिज एशिया का सबसे ऊँचाई पर बना ब्रिज है। बस ये कहीं नहीं लिखा कि काज़ा से चिमचिम का रास्ता एशिया के सबसे सुन्दर रोड ट्रिप में एक है। काज़ा वापस आते वक़्त खेतों में काम करने वाली कुछ महिलाओं ने मुझे मोमोस भी खिलाए। लोग तो अच्छे हैं स्पीति में।
शाम ढल रही थी और मैं काज़ा पहुँच गया था। ताबो पर जिस होमस्टे वाले अंकल ने नंबर दिया था अपनी बेटी का, उसने पेट्रोल पंप पर मुझे रिसीव किया। उनका घर बहुत सुन्दर था। बाहर ठंड थी, इसलिए हम सब किचन में बैठे। उनके दो प्यारे प्यारे बच्चे थे, कर्मा और पालज़म। कुछ देर मैं उनके साथ खेल रहा था कि तब तक उन्होंने खाने के लिए बुला लिया। खाना बहुत दिल से बनाया गया था।
सुबह 9 बजे उठने के बाद मैं फ़्रेश हुआ। तिब्बती ब्रेड होती है, जिसको भातुरी बोलते हैं, उन्होंने नाश्ते में बनाई थी। साथ ही उन्होंने मेरे लिए रॉयल एनफ़ील्ड 350 का इंतज़ाम भी कर दिया था। 4.5 लीटर पेट्रोल भरवाकर मैं निकल पड़ा। स्पीति में सिर्फ़ एक ही पेट्रोल पंप है तो इतना पेट्रोल रखना लाज़मी है।
यहाँ से निकलकर मैं सबसे पहले लांगज़ा गाँव में रुका। 16 किमी0 की लम्बी कीचड़ और ऊबड़खाबड़ सड़क को पार करके मैं यहाँ पहुँचा था। स्पीति घाटी के दर्शनीय स्थलों में एक। यहाँ भगवान बुद्ध की एक मूर्ति है। बहुत बड़ी मूर्ति, जिनके सामने कोई भी नतमस्तक हो जाए। इतनी ऊँचाई पर, जहाँ ऑक्सीजन भी बहुत कम है, भगवान जाने कैसे तो ये मूर्ति बनाई गई होगी।
लांग्ज़ा से 9 किमी0 दूर कोमिक गाँव है। मोटरगाड़ियों से आसानी से यहाँ पहुँचा जा सकता है। हड्डियाँ कँपाने वाली ठंड में यहाँ गाड़ी चलाना मज़ेदार होता है और डरावना भी। दोपहर के 1 बज रहे थे और तापमान -2 डिग्री का था। यहाँ एक मठ है जो वाकई में बहुत सही जगह पर बना है। प्रकृति की गोद में कोई भी यहाँ बस जाए। एक कमरे की छत पर बैठ कर मैं इस असीम सुन्दर प्रकृति को निहारने लगा।
दुनिया में सबसे ऊँचे मठों में कोमिक मठ भी है। यहाँ के एक भिक्षु ने मुझे बहुत पवित्र लाल धागा दिया। मठ के आगे एक गेट था जिस पर तेंदुए की खाल लटकी हुई थी।
कुछ देर उन भिक्षु के साथ समय बिताकर मैं हिक्किम की तरफ़ बढ़ा। हिक्किम में दुनिया का सबसे ऊँचा पोस्ट ऑफ़िस है। मात्र ₹25 में आप कोई पोस्टकार्ड अपने किसी दोस्त को भेज सकते हैं। मैंने भी अपने परिवार को पोस्टकार्ड भेजा।
मेरा अगला पड़ाव धनकर मठ था। मैंने इस ट्रिप के पहले भी यहाँ का नाम बहुत सुना था। काज़ा से यह 36 किमी0 दूर है। बीआरओ ने यहाँ की सड़क बहुत अच्छी बनाई है। धनकर में दो मठ हैं, एक नया है दूसरा प्रसिद्ध। पुराना मठ मिट्टी का बना है जिसमें छोटे छोटे प्रार्थनाकक्ष हैं। धनकर गाँव से आप प्रकृति का बहुत सुन्दर दृश्य देख सकते हैं।
मैं शाम को 5 बजे काज़ा वापस पहुँचा। काज़ा से शिमला की बस सुबह 7:30 पर थी जो अगले दिन सुबह 4 बजे पहुँचाती। इससे अच्छा अगर दिल्ली पहुँचना हो तो ताबो से सुबह 5 बजे की बस पकड़ लो जो रेकॉन्ग पिओ से होते हुए रामपुर बुशहर तक जाती है। रामपुर से बस शाम को 5 बजे मिलती है जो अगले दिन 7 बजे दिल्ली पहुँचा देती है। मैं दिल्ली जल्दी पहुँचना चाहता था तो सुबह 5 बजे वाली बस का सोचने लगा। रात को डिनर और सुबह के नाश्ते सहित रुकने के मैंने ₹400 दिए और बच्चों से वापस आने का वादा किया।
रात को कुछ घंटे इंतज़ार करने के बाद भी बस नहीं आई। लेकिन लिफ़्ट मिल गई और रात को 9 बजे मैं ताबो में था। गहरा सन्नाटा और उस पर काली रात की चादर। मैं उसी होमस्टे गया जहाँ पहले रुका था। वो भी मुझे देख बहुत ख़ुश हुए। उनको मैंने कर्मा और पुलज़ाम की तस्वीर दिखाई। रात को हमने साथ में ही खाना खाया। लगभग घंटे भर की बात में हमने परिवार, ज़िन्दगी, संंस्कृति, उनकी दैनिक दिनचर्या लगभग सभी पहलुओं पर बात कर ली थी। सोलो ट्रिप की एक ख़ास बात ये है कि आप ख़ुद को पूरी तरह उस संस्कृति में ढाल पाते हो जहाँ आप हो।
उन्होंने उसके एवज में पैसे माँगे जो वाजिब भी था। मैंने ₹400 दिए तो उनको ज़्यादा लगा। लेकिन उनसे प्यारा, छोटा और सुखी परिवार मैंने आज तक नहीं देखा। मैंने उनसे पैसे वापस ना लौटाने का आग्रह किया।
मैं सुबह 5 बजे बस स्टॉप पर था। इस बार भी मुझे मेरी क़िस्मत की सीट मिल गई थी जिसने मुझे ₹320 में पिओ पहुँच गया। आगे ₹180 में मैं पिओ से रामपुर पहुँच गया था। पिओ में आपको बस बदलनी पड़ती है। मैं पहाड़ नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए उन्हें आख़िरी बार दिल से निहार लेना चाहता था।
शाम 4 बजे मैं रामपुर पहुँचा। वहाँ से दिल्ली के लिए शाम 5 बजे बस जाती थी। टिकट पर मैंने ₹1000 दिए और एचआरटीसी की एसी बस ले ली। आख़िरी बार मैं इन पहाड़ों को देख रहा था। फिर पता नहीं कब आना हो।
अगर आप स्पीति घाटी आने का प्लान कर रहे हो तो कम से कम 10 दिन का प्लान बना कर आना। दुनिया के सबसे सुखी लोग मिलेंगे आपको यहाँ। छोटे छोटे प्यारे गाँव, अच्छे व्यवहार वाले लोग। उम्मीद है जल्दी सब ठीक होगा और यहाँ फिर से आना होगा और अपना दूसरा क़िस्सा भी आपके साथ साझा करूँगा।
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