आज से 10 वर्ष पहले तक श्री केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) के बारे में कुछ सामान्य जानकारी तो थी लेकिन अधिक नहीं, केवल इतना ही पता था की श्री केदारनाथ धाम (Kedarnath) कहीं पहाड़ों में है.... शायद हिमाचल में ? नहीं, नहीं... कश्मीर में होगा। आप समझ सकते हैं मेरे सामान्य ज्ञान या ऐसा कहें की घुमक्कड़ी ज्ञान का स्तर क्या रहा होगा। वर्ष 2009 से अपने बूते घूमना - फिरना आरम्भ किया और वैष्णों देवी तीर्थ की यात्रा की। मोहल्ले में तीन साइबर कैफ़े थे और नया - नया इंटरनेट का शौक भी लगा था... तो वहीं पर 20 रुपये प्रति घंटे के हिसाब से इस शौक को पूरा कर लिया करता था।
गूगल मैप तब भी होता था, वो बात अलग है की तब यह आज जितना एडवांस नहीं था लेकिन यह था मेरी प्रिय वेबसाइट्स में एक। कुछ गिने चुने यात्रा वृत्तांत भी इंग्लिश में पढ़ने को मिल जाते थे। इसी गूगल मैप पर पहली बार केदारनाथ धाम सर्च किया और तब जाकर मेरे ज्ञान चक्षु खुले की केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) तो उत्तराखण्ड के प्रचंड पहाड़ी क्षेत्र में है... और यहीं से केदारनाथ धाम सहित उत्तराखण्ड के अन्य धामों के बारे में भी जानने की उत्सुकता बढ़ गयी।
साल 2013 में आयी त्रासदी ने केदारनाथ धाम और उत्तराखण्ड के अन्य क्षेत्रों को विस्तृत रूप से दुनिया के सामने रखा। यह जान पाये की रुद्रप्रयाग कहाँ है ? गौरी कुण्ड का क्या महत्व है ? रामबाड़ा कहाँ है ? यह भी पता लगा की रुद्रप्रयाग शहर से आगे का क्षेत्र किस तरह से बाकी दुनिया से एक महीने के लिये कट गया था ? दुःख हुआ यह सब जानकर लेकिन घुमक्कड़ी मन को घूमने के बहुत से ठिकानों के संकेत मिलने लगे थे।
(आप मेरे 100 से भी अधिक अन्य यात्रा अनुभव मेरे ब्लॉग http://www.yatrinamas.com/ पर भी पढ़ सकते हैं।)
उस समय यात्रा वृत्तांत पढ़ने बहुत शौक हुआ करता था जो की आज भी जारी है। एक वेबसाइट है घुमक्कड़.कॉम। केदारनाथ यात्रा वृत्तांत सर्च करते हुए इस वेबसाइट का पता लगा और अनूप गुसाईं नामक एक गेस्ट ब्लॉगर का केदारनाथ यात्रा वृत्तांत पढ़ने को मिला। लिखने की अद्भुद शैली और यात्रा मार्ग में पड़ने वाले विभिन्न स्थानों के खूबसूरत वर्णन ने इस वेबसाइट की लत ही लगा दी थी... ऊपर से अब तो इंटरनेट वाला मोबाइल भी हाँथ में था। ????
समय बीतता गया और अक्टूबर 2016 में चोपता यात्रा का अवसर मिला। अपने दोस्त देबासीस मोहंती के साथ चोपता से लौटते समय गुप्तकाशी में डेरा डाला था और यहीं से चौखम्बा का विशाल स्वरुप देखा। साथ ही वह साइन बोर्ड भी देखा जिस पर लिखा था गौरी कुण्ड मात्र 47 किलोमीटर दूर है। यह बोर्ड देख कर एहसास हुआ की हम बाबा के धाम के कितने समीप पहुँच चुके हैं। प्रबल इच्छा जाग उठी जाने की किन्तु अवकाश की कमीं ने पैर पीछे खींच लिए और जब हेलीकॉप्टर का किराया पूछा तो लक्ष्मी माता ने हमारी एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दी ???? फिर भी उस बोर्ड को केदारनाथ धाम का शुरुआती प्रतीक मानकर वादा किया आना तो है एक बार, आज नहीं तो कल। वो बात अलग है की वो 'कल' तीन साल बाद 2019 में आया।
वैसे गुप्तकाशी के बारे में बता दूँ की यह केदारनाथ यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव है। बहुत से केदारनाथ यात्री इसी शहर को अपना पहला पड़ाव बनाते हैं। गुप्तेश्वर महादेव के नाम से बसा गुप्तकाशी यहाँ स्थित विख्यात काली मठ के लिये भी जाना जाता है। हमारी इच्छा थी की काली मठ जाया जाये लेकिन फिर पता लगा की वह स्थान बस स्टैंड से बहुत नीच मंदाकिनी के किनारे है।
इस वर्ष केदारनाथ फिल्म आने के कारण कुछ कूल टाइप के लोग जिन्हें इस धाम का नाम तक नहीं पता था, उनका भी घुमक्कड़ी अमीबा जागने लगा है। फिल्म की कहानी को लेकर चाहे कुछ विवाद रहें हों किन्तु यह भी सत्य है की केदारनाथ धाम की त्रासदी का फिल्मांकन विज़ुअल इफ़ेक्ट की सहायता बेहद शानदार तरीके से दिखाया गया है और धाम की सुंदरता तो अप्रतिम रूप से दिखी है। यदि विवादों को एक ओर रख दें तो केदारनाथ धाम की सुंदरता इतने शानदार तरीके से पहले कभी नहीं दिखाई गयी थी।
खैर.. फ्लैशबैक से बाहर आते हैं। जून 2019 में जागेश्वर धाम की यात्रा के बाद से ही पूर्वोत्तर, विशेषकर असम और अरुणाचल की यात्रा के बारे में सोचने लगा था। लगभग फाइनल कर लिया था की इस बार अक्टूबर में असम और अरुणाचल की यात्रा पर निकला जायेगा लेकिन किसे पता था की बाबा भोलेनाथ ने बुलावा भेज दिया है।
ऑफिस में ऐसे ही एक दिन बैठे - बैठे विवेक ने केदारनाथ (Kedarnath) के बारे में पूछ लिया की केदारनाथ जाना तो बताना, मैं भी जाऊंगा। मेरे मुँह से भी निकल गया की चलते हैं सितम्बर / अक्टूबर में। देखते ही देखते मात्र 20 मिनट में हम चार दोस्तों जिनमे की मैं, देबासीस, विवेक और आलोक थे, की योजना केदारनाथ धाम जाने की बन गयी और वो भी विवेक की कार से और तय हो गया की सितम्बर के अंत में चलेंगे। अभी एक ही सप्ताह बीता था की एक और मित्र गौरीशंकर को भी इस यात्रा के बारे में पता चला और उसने भी कह दिया की वह भी जायेगा।
अब हम कुल पांच दोस्त केदारनाथ यात्रा के लिये तैयार थे। ऑफिस में बातों के दो ही प्रिय टॉपिक हुआ करते थे, पहला की केदारनाथ यात्रा की क्या तैयारी करनी है (वो बात अलग है की अंतिम दिन तक भी अधूरी तैयारी थी) और दूसरा वही... आपका, मेरा और हम सभी का फेवरेट... बॉस की बुराई ????
देखते ही देखते 27 सितम्बर आ गया और हम यात्रा के लिये कमर कस चुके थे। विवेक भाई की आज छुट्टी थी तो उनको को ऑफिस के बाहर ही मिलना था और हम चारों को ऑफिस से निकलना था। रात 11 बजे हम पांचों वैगन - आर में सवार हो चुके थे। आगे बढ़ने से पहले अपने साथियों से थोड़ा परिचय करवा देता हूँ।
देबासीस: यदि आपने मेरे ब्लॉग को फॉलो करते रहें हैं तो आप इनको जानते होंगे। लगभग सभी यात्राओं में ये साथ रहे। उम्र में मुझसे छोटे हैं और सबसे खास मित्र हैं लेकिन मेरे लिए बड़े भाई से कम नहीं। शांत और चंचल स्वभाव का मिक्स - अप है इनमें। ओडिशा और शारीरिक रूप से फिट होने के कारण पहाड़ों पर तेज़ी से चढ़ना इनके लिये कोई मुश्किल कार्य नहीं।
विवेक: शांत स्वभाव वाले इंसान लेकिन इनकी शारीरिक काया देख कर शायद ही कोई इनसे लड़ाई मोल ले। कुमाऊ वासी होने के कारण पहाड़ों का अच्छा अनुभव है इन्हें और केदारनाथ यात्रा के दौरान इनकी ड्राइविंग ने तो हमें इनका फैन बना दिया।
आलोक: ग्वालियर के रहने वाले हैं। मैदानी क्षेत्रों और दक्षिण भारत में तो बहुत यात्रायें कर चुके हैं किन्तु उत्तर भारत के पहाड़ों का यह उनका पहला सफ़र होने वाला था। इस कारण स्वास्थ्य को लेकर शायद थोड़ा चिंतित भी थे। सोशल मीडिया पर इनकी गतिविधि नहीं के बराबर ही है।
गौरीशंकर: हम पांचों में सबसे कम उम्र (19 वर्ष) का लड़का और बेहद हंसमुख। इंस्टाग्राम से बेहद लगाव रखने वाले गौरी भाई एक भी दिन इंस्टा पर स्टेटस अपडेट किये बिना नहीं रह सकते। केदारनाथ धाम से इन्ही के स्टेटस सबसे पहले दिल्ली पहुँच रहे थे। गोपेश्वर से सम्बन्ध रखने वाले गौरी भाई सहारनपुर वासी हैं। फ़रवरी में मेरी और इनकी पूर्वोत्तर यात्रा की योजना लगभग फाइनल हो गयी है
हाँ तो हम अपने गुरुग्राम वाले ऑफिस के बाहर कार में सवार हो चुके थे। यहाँ से हमें पेरिफेरल होते हुए मुरादनगर निकलना था लेकिन हम यह अंदाज़ा लगा पाने में विफल रहे की पेरिफेरल का रास्ता किधर से है। अतः सराय कालेखां, गाज़ीपुर, राजनगर एक्सटेंशन होते हुए गाज़ियाबाद के आगे दिल्ली - हरिद्वार हाईवे पर आ चुके थे।
यहाँ दिल्ली - मेरठ रैपिड रेल का कार्य तेज़ी पर चल रहा है और आशा है की अगले 2 वर्षों में यह पूरा हो जायेगा और इसी के साथ हरिद्वार का सफ़र थोड़ा सा और आसान हो जायेगा। कार में CNG ठीक मात्रा में थी किन्तु पेट्रोल भरवाना जरुरी था... लेकिन यह क्या ? यहाँ तो सभी पेट्रोल पंप हमें लाल सलाम कर रहे थे। उनका कहना था की रात 11 बजे के बाद पेट्रोल मीटर डाउन कर दिया जाता है और इसलिये अब पेट्रोल नहीं मिलेगा। यह बहुत ही दुविधा वाली बात थी या ऐसा कहें की भोलेनाथ को भी कहानी में ट्विस्ट डालने में आनंद आ रहा था। इधर - उधर भटकने के बाद अंततः एक पेट्रोल पंप पर पेट्रोल मिल ही गया और अब कोई चिंता वाली बात नहीं थी।
इसके बाद तो लगभग सभी पेट्रोल पंप खुले हुए दिखे। गाड़ी में बजते नए - पुराने गानों और केदारनाथ फिल्म के 'नमो - नमो' गाने ने माहौल को घुमक्क्ड़ी मोड में ला दिया था। वेस्टर्न यूपी टोल को पार करने के बाद कुछ लोगों को थोड़ी नींद सी आ गयी, लेकिन मुझे और विवेक तो जागना ही था क्योंकि विवेक भाई गाड़ी चला रहे थे और मैं उनके साथ आगे बैठा हुआ था। वैसे मोटापा हमेशा बुरा ही नहीं होता, ऐसा आज लग रहा था क्योंकि मुझे आगे की सीट मिल गयी थी और तीन पतले लोग पीछे वाली सीट पर बैठे हुए थे ????
कुछ देर में हम रुड़की पार कर चुके थे और अब हरिद्वार पहुँचने वाले थे। पतंजलि योगपीठ के सामने से गुज़रते हुए पतंजलि का गुरुकुल 'आचार्यकुलम्' दिखा। बहुत ही भव्य गुरुकुल है यह, साधारण गुरुकुल समझने की गलती न करें। सितम्बर के अंतिम दिन होने के कारण सर्दियाँ थोड़ी - थोड़ी दस्तक देने लगी थी और अब यहाँ थोड़ी सर्दी लग रही थी।
कुछ ही देर में हरिद्वार बाई - पास पर थे और अब उजाला हो चुका था। हरिद्वार - ऋषिकेश रोड पर भयंकर ट्रैफिक होता है, इसलिये हमारी योजना चीला के जंगलों से होते हुए जाने की थी किन्तु वो रास्ता शाम 5 बजे से लेकर सुबह 7 बजे तक बंद रहता है। इसलिये अब हमें मुख्य रास्ते से ही बढ़ना था। हाईवे से हर की पौड़ी की ओर देख कर प्रणाम करते हुए और ट्रैफिक में फंसते हुए हम सुबह 6:30 बजे तक ऋषिकेश पहुँच चुके थे और अब हमें पहाड़ों की और बढ़ चलना था।
रात भर लगातार ड्राइविंग के कारण अब तक भूख लग चुकी थी और सुबह वाली एक्टिविटीज भी नहीं की थी। सबकी अलग - अलग राय... राम झूला से थोड़ा आगे बढ़ते ही दाहिनी ओर एक सुनसान सी पार्किंग है। मैंने सोचा था की यहीं कार खड़ी कर दें और गंगा जी के पास जाकर मुँह - हाँथ धो लें लेकिन यहाँ पार्किंग कर किराया सुनकर होश उड़ गए, हमें मात्र एक घंटे का समय चाहिये था और ये लोग पुरे 24 घंटों के हिसाब से 120 रुपये मांग रहे थे। आखिर हम वहां से आगे बढ़ चले इस उम्मीद में कहीं और....
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