यह मई का पहला हफ्ता था | मैं और मंदार (मेरे असामान्य यात्रा साथी) दैनिक दिनचर्या से थोड़े बदलाव के लिए एक छोटी यात्रा की योजना बना रहे थे| हम 2019 में जयपुर और महाबलेश्वर की यात्रा कर चुके थे और ऐसी जगह खोज रहे थे जहाँ हमारे दिमाग और आत्मा को शांति मिले| हमारे जहन में बहुत सारी जगह थी| अजंता एलोरा केव्स - औरंगाबाद, ताडोबा नेशनल पार्क, तारकरली, डांडेली, धर्मशाला, कसोल वगैरा वगैरा....फिर भी वह योजना में आगे बढ़ने में मझा नहीं आ रही थी| अचानक, मंदार और मैं एक निर्णय पर आए कि चलो "केदारनाथ"| वह स्थान जो हमारी सूची में नहीं था| और यही हमारी योजना की शुरुआत थी| KEDARNATH - The land of Shiva. हमको 1-2 दिन तो समज ने में लग गया हम कैसे योजना में आगे बढे|
नौकरी की वजह से हमारी योजना कम दिनों की परंतु बढ़िया होनी चाहिए थी|
हमने दिल्ली विमान से और वहां से बस द्वारा ऋषिकेश जाने का फैसला किया| हमने कुछ ब्लॉग और वेबसाइट पढ़ी थीं, हमने पाया था कि सुबह जल्दी ऋषिकेश से सोनप्रयाग के लिए एक बस थी। इसलिए योजना का एक हिस्सा परिवहन के लिए कम से कम तैयार था| अब मुद्दा आवास के लिए था| हमें केदारनाथ में GMVN कॉटेज मिला| इस तरह हमने योजना बनाई तो वो 5 दिनों की हुई| अब हमारे पास सभी जानकारी थी और योजना के अनुसार सब कुछ बुक करने की आवश्यकता थी|
हमेशा की तरह, मेरी यात्रा उतनी आसान नहीं थी| 1-2-3-4 करके पुरे 6 लोग हो गए पुणे से| अब मुझे 6 लोगों के अनुसार योजना बनानी थी| इस दौरान, मैंने अपने दोस्त के साथ चेन्नई में बातचीत की| बातचीत के दौरान, मैंने केदारनाथ के लिए अपनी योजना के बारे में कहा| अंदाज़ा लगाओ, वह हमारे साथ आने के लिए तैयार था| तो अब 7 लोग| अंत में, हमारी योजना इस प्रकार थी:
6 दोस्त पुणे से दिल्ली तक, 1 चेन्नई से दिल्ली तक प्लेन से|
दिल्ली से सोनप्रयाग तक 7 सीटर इनोवा कार बुक की (वापसी यात्रा सहित)|
GMVN केदारनाथ में आवास|
आखिरकार वह दिन आ गया और हम दिल्ली के लिए रवाना हो गए|
हमारी योजना के हिसाब से हमारा पहला दिन सड़क यात्रा में जानेवाला था| क्यूंकि हमको सोनप्रयाग के जितना नजदीक हो सके उतना जल्दी पहोच जाना था|
Delhi to Rishikesh - 7-8 hrs by road (Plain Area)
जब हम हरिद्वार पहुँचे तो हमारा ड्राइवर ऋषिकेश से आगे जाने को तैयार नहीं था| उन्होंने बताया कि पहाड़ी रास्ते पर कार चलाने के लिए कुछ हरे पास की आवश्यकता होती है और यह अनिवार्य था| इसके बिना वह आगे जाने वाला नहीं था| वहां से समस्या शुरू हुई थी| हम उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे अगर हम ऋषिकेश से आगे नहीं जाएंगे तो हमारी वापसी की उड़ान 100% छूट जाएगी| क्यूंकि Rishikesh to Sonprayag - 9-10 hrs by road (Hilly Area) दूसरे दिन को पूरा करना असंभव था, क्योंकि हमारे पास कोई अतिरिक्त दिन नहीं था|
अब हमने अपने ड्राइवर को मना लिया था| उन्होंने हमें गुरुद्वारा ऋषिकेश में उतार दिया और ग्रीन पास की प्रक्रिया के लिए चले गए| हमने गुरुद्वारे में लंगर में दोपहर का भोजन किया. हम वहां जा के धन्य हुए|
ड्राइवर ने ग्रीन पास की प्रक्रिया पूरी करने के बाद, हम देवप्रयाग की ओर बढ़े| हमने सूरज ढलने से पहले जल्द से जल्द पहुंचने की योजना बनाई| मानो के सच में हमने शिव की भूमि पे कदम रख दिया| चारों ओर अंधेरा, पहाड़ियों से पत्थर गिरना, जोरदार बारिश में हम रात को 9 बजे देवप्रयाग पहुंचे| जल्द से जल्द एक छोटी होटल में एक बड़ा कमरा लेके 7 लोग सामान रख, खाके, सो गए|
हम अगले दिन सुबह जल्दी उठ गए थे| हमने नाश्ता किया और सोनप्रयाग की ओर बढ़े| हम उत्साहित थे क्योंकि आज हम गौरीकुंड गाँव पहुँच रहे थे, जहाँ से हम केदारनाथ जाने वाले थे| साथ में थोड़े चिंतित भी थे क्यों कि रास्ते के काम की वजह से गौरीकुंड पहोच ने में समय लग सकता था| हमने सोचा था हम गौरीकुंड से शाम को ही केदारनाथ के लिए निकल जायेंगे|
हमने यात्रा के दौरान आनंद लिया, ऊँचे ऊँचे पहाड़, पहाड़ो से बहती नदिया, वादियों में बसे गाँव और गाँव के भले लोग| आज मुझे पता चला कि शहर का जीवन से यहाँ का जीवन क्यों इतना धीमा, शांतिपूर्ण और सुन्दर हे| वे प्रकृति के साथ रह रहे हैं|
रस्ते में हम श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, अगस्त्यमुनि, उखीमठ नाम के छोटे बड़े गाँव और शहर से गुजरे| अब हम ज्यादा उत्साहित थे| मुकाम नजदीक आ रहा था और योजना की हिसाब से हम 1 घंटा पीछे थे| जैसे जैसे हम सोनप्रयाग के नजदीक पहोच रहे थे, हमारी खुशियाँ बढ़ती जा रही थी| आखिरकार 3 बजे हम सोनप्रयाग में थे| अभी भी हमको गौरीकुण्ड जाना था, पर हमारी गाड़ी लेके नहीं जा सकते थे|
गौरीकुंड तक पहुँचने के लिए हमें स्थानीय टैक्सी किराए पर लेनी थी| हमने इंटरनेट के माध्यम से यात्रा पंजीकरण किया, इसलिए हम सीधे गौरीकुंड के लिए निकल गए| 4 बजे हम गौरीकुण्ड में थे|
परेशानी हमारा पीछा छोड़ चुकी थी ऐसा हमको लग रहा था| परन्तु वह हमारे आगे आगे चल रही थी| हम गौरीकुण्ड पहोच के ट्रेक की तरफ बढ़ रहे थे वहाँ पे पुलिस भाईओ ने हमको रोकते हुए बोला अब आप आगे नहीं जा सकते| आज का समय समाप्त| कल सुबह 3 बजे आ जाना आप जा सकते हे|
अब क्या? सोच भी हमको सोच में डाल रही थी कि क्या सोचना सोच सोच के|
आखिरकार थोड़ा शांत हो के हमने गौरीकुंड में ही एक रूम सस्ते में ले लिया और नास्ता करने क लिए निकल गए| नाश्ता कर के टहलते टहलते हम वही आये जहाँ से ट्रेक चालू होता था| पुलिस भइओ के पास आके उनसे बात करने लगे| कहाँ से है? कितने समय से यहाँ पे हे? कितनी समय ऊपर केदारनाथ गए हे? वगैरा वगैरा....उन्होंने भी हमसे थोड़े बहुत प्रश्न पूछे| बातचीत में उन्होंने पूछा कितने लोग हे ? रहने का कुछ किया हे क नहीं? बस और क्या था सब ने एक साथ जवाब दिया हमने GMVN में किया हे सब| उन्होंने रिसीप्ट मांगी हमने दिखाई| और क्या था उनका जवाब सुन के हम सब खुश| तुम लोग जा सकते हो| जवान हो, 7 लोग हो| 8-9 घंटे में पहोच जाएंगे| अब क्या गौरीकुंड में जो रूम लिया था उनसे वापिस पैसा लेना था और निकलना था बाबा के पास|
"बम बम भोले" करके हम शाम 5:30-6 बजे गौरीकुंड से केदारनाथ के लिए निकल गए| मौसम थोड़ा ठंडा था| बारिश होने की सम्भावना थी| वादियों का मजा लेते लेते हम चले| 8 बजे तक तो हमारी एनर्जी उतरने लगी थी| भूख भी लगी थी| रस्ते के बाजु में एक दुकान मिली| भाई को पूछा क्या हे खाने में? भैया दुकान बंद कर रहा था| उसने पूछा अभी ऊपर जा रहे हो? हमने हां बोला तो उसने आलू पराठा गरमा गरम बनाके हमको परोशने लगा|
पेट की आग खत्म होते ही शरीर में ऊर्जा आ गई थोड़ी देर वही आराम करते करते दुकान वाले भाई को पूछा अभी और कितना हे? 16 kms.
भाई का जवाब सुन के शरीर में आई उर्जा धीरे से निकल गई|
हम सोच में पड़ गए थे के एक बोर्ड पे अभी अभी हमने 13 kms देखा था तो वो क्या था????
हमने फिर से चढ़ाई की शुरुआत की...निकलते समय दुकान वाले भाई ने बोला आगे रामबाड़ा करके जगह आएगी वह से गलती से भी ऊपर मत देखना वरना हिम्मत टूट जाएगी| हमने उनकी बात को नकारा और चलना शुरू किया...अब रात हो गई थी.. चढाई क लिए रस्ते पे सिर्फ हम 7 लोग थे...बाकि लोग नीचे की तरफ जा रहे थे|
आखिर 10 बजे हम रामबाडा पहुंचे| चारो और अँधेरा था| तो न जानते हुए हमने ऊपर की तरफ देखा| वह पे स्ट्रीट लाइट जैसे एक पथ दिख रहा था| और क्या था, बात खत्म? दिमाग में सवाल ? हमको इतना ऊपर जाना है??? कैसे होगा? कब पहुंचेंगे?
कैसे भी 7 लोग हिम्मत कर के रास्ता काटते ठंडी रात में 1-2 बजे तक चलते रहे| चढ़ाई के दौरान पताही नही चला के कपडे पसीने से गीले हो गए थे...ऊपर से ठंडा ही इतना था की सभी लोगो की हालत देखने लायक नहीं रही थी...सभी ने तुरंत सभी कपडे बदल के थोड़ा आराम करने का निर्णय किया..
थोड़े समय के आराम के बाद हमने फिर से चढ़ाई की शुरुआत की| फर्क अब सिर्फ इतना था, हमारे पैर के बजाये खच्चर के पैर चल रहे थे| 2 लोगो को छोड़के बाकि के लोग बची 30 मिनट्स की चढ़ाई भी नहीं कर पाए थे...
आखिर पहोच गए GMVN. 1 दिन 1 रात के लिए हमारा घर| तैयार होके सीधे मंदिर के लिए निकल गए| GMVN से मंदिर तक की दूरी लगभग 1 kms हे| सीधा रास्ता बिना चढाई के| अब तो काफी अच्छा बना दिया है मंदिर के आसपास का चौगान| सब साफ़ सुथरा बन गया हे| अब हम मंदिर के चौगान की दाईं तरफ से कतार में खड़े रह गए थे| इतनी जल्दी भी बहुत सारे श्रद्धालु हमारी तरह केदारबाबा के दर्शन करने के लिए उतावले हो रहे थे|
आखिर 2 घंटे बाद, मंदिर का शिखर धीरे धीरे दिखने लगा| शिखर देखते ही मनन में प्रश्न....क्यों, कैसे, कब, किसने ये विशाल वास्तुकला का निर्माण किया होगा| उस समय जब आज के जैसा कोई मशीनरी नहीं थी, तब कैसे लोगोने इतने बड़े पत्थर को तराशकर इतनी ख़ास इमारत को खड़ा कर दिया|
मंदिर के आस पास घूमके हमने अच्छे खासे फोटोज लिए| मंदिर अंदर तो मोबाइल से फोटो खींचना मना था| तो हमने हमारी आंखोसे दिल भर के वास्तुकला और सुंदरता देख ली| मंदिर में 10 मिनट्स रुक के बाबा केदार जी के दर्शन किये| दर्शन लेने के बाद जब में मंदिर से बाहर आया तो मेरा मन एक दम हल्का और प्रफुल्लित हो गया था| बाद में मंदिर के पीछे रही भीम शिला को देखने गए| मंदिर के आकार के जैसे ही शीला की वजह से बाढ़ में ये मंदिर बच गया था| अब तो कंक्रीट के दीवाल बना के नदियों का प्रवाह काफी अच्छी तरह मोड़ दिया गया है|
उस बाढ़ में कुदरत ने हमको एक सबक दिया था...कुदरत के साधनो में एक हद्द से ज्यादा छेड़खानी अपने लिए बहोत नुकशान कारक होती हे| आज भी वो सबक हमको याद हे के नहीं, क्या पता???
थोड़ा समय मंदिर के चौगान में बैठ कर आस पास का कुदरती नजारा देख कर हम वापिस GMVN की ओर निकल गए|
ऐसे "शिवमय" वातावरण में पूरा एक दिन केदारनाथ में बिताने को मिला उसको हम हमारी जिंदगी का बहुत ही सुखमय पल मानते हे|
GMVN में खाने के विकल्प नहीं है परन्तु बहुत अच्छा आराम दायक रूम मिल जाता हे|
अब हमारा वापसी का समय आ गया था| आखिरी बार हमने केदारनाथ मंदिर और आसपास की कुदरती सौंदर्य का दर्शन करा और गौरीकुंड तरफ आने निकल गए| हमने पूरी चढाई रात में की थी तो ट्रेक आसपास के नजारे हमने नहीं देखे थे| तो अब उतरते समय हमको वह भी मजा लेना था| पहाड़ो की खूबसूरती से हम अचंभित हो गए थे|
रास्ते में आते हुए हमको एहसास हुआ की हम लोग हमारे कुदरती संसाधनों की परवाह नहीं करते और उसको प्रदूषित करते रहते हे| मुझे इसके पीछे 2 चीज़ो का दोष लग रहा हे (1)हमारी शिक्षण प्रणाली - जो हमको अच्छा मार्क्स लाना और अच्छी नौकरी ढूंढ़ना सिखाती हे (2) घर में से शिस्त के पाठ नहीं पढ़ाना - शिस्त स्कूल की जिम्मेदारी हे. ऐसा सोच के हम बच्चों को कुछ सिखाते नहीं|
इस दिन, रात को हम हरिद्वार रुकने का फैसला किया. वहा पे एक अच्छा होटल देख के रुक गए. होटल की जगह भी एक दम अच्छी थी ..नदी के पास|
सुबह उठ के सबसे पहले नदी के पास वाले भव्य मंदिर देखने गए| होटल से बाहर निकलते ही हमको खाने की सुवास आने लगी| अब क्या था मुँह में पानी छूटने लगा| पहले पेट पूजा बाद भगवन की पूजा|
हरिद्वार की यात्रा समाप्त करके हम दिल्ली की और चल दिए|
रास्ते में जाते हुए हमने दिल्ली के कुछ भव्य विस्तार देखे| जो मैं 10 साल पहले जब दिल्ली आया था तब देखा था| मित्र मंडल अलग था परन्तु उसमे "मित्र"शब्द एक था|
उस रात को हम पुणे (और एक चेन्नई के लिए) के लिए निकल गए. ऐसे हमारी एक अद्भुत यात्रा समाप्त हुई|