"केदारनाथ: मोक्ष और ध्यान की प्राप्ति"

Tripoto
Photo of "केदारनाथ: मोक्ष और ध्यान की प्राप्ति" by zahreen makrani

"आपका स्वागत है, मेरे प्यारे पाठकों! मैं हूं जहरीन मकरानी, और आज मैं आपको अपनी यात्रा के साथ केदारनाथ के पवित्र स्थल की ओर ले जाने का संघर्ष करूँगी। इस यात्रा के दौरान, मैंने न केवल यहाँ के प्राचीन मंदिर और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया, बल्कि मैंने यहाँ के मान्यताओं और आध्यात्मिकता के अद्भुत वातावरण में एक नयी दिशा देखी।

आप सभी को इस सफर पर साथ चलने के लिए धन्यवाद, और मुझे खुशी है कि मैं आपको केदारनाथ के इस महत्वपूर्ण स्थल की यात्रा के दौरान मेरे साथ जुड़ने का मौका दे रही हूँ। आइए, इस यात्रा का आरंभ करते हैं और एक साथ इस पावन स्थल की खोज करते हैं।"

Photo of Kedarnath, Garhwal Division by zahreen makrani

श्रीकेदारनाथ का मंदिर ३,५९३ मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। इतनी ऊँचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इस बारे में आज भी पूर्ण सत्य ज्ञात नहीं हैं। सतयुग में शासन करने वाले राजा केदार के नाम पर इस स्थान का नाम केदार पड़ा। राजा केदार ने सात महाद्वीपों पर शासन और वे एक बहुत पुण्यात्मा राजा थे। उनकी एक पुत्री दो पुत्र थे । पुत्रका नाम कार्तिकेय (मोहन्याल) व गणेश था । गणेश बुद्दि व कार्तिकेय (मोहन्याल) शक्ति के राजा देवता के रुपमे संसार प्रसिद्द है ।उनकी एक पुत्री थी वृंदा जो देवी लक्ष्मी की एक आंशिक अवतार थी। वृंदा ने ६०,००० वर्षों तक तपस्या की थी। वृंदा के नाम पर ही इस स्थान को वृंदावन भी कहा जाता है।

यहाँ तक पहुँचने के दो मार्ग हैं। पहला १४ किमी लंबा पक्का पैदल मार्ग है जो गौरीकुण्ड से आरंभ होता है। गौरीकुण्ड उत्तराखंड के प्रमुख स्थानों जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून इत्यादि से जुड़ा हुआ है। दूसरा मार्ग है हवाई मार्ग। अभी हाल ही में राज्य सरकार द्वारा अगस्त्यमुनि और फ़ाटा से केदारनाथ के लिये पवन हंस नाम से हेलीकाप्टर सेवा आरंभ की है और इनका किराया उचित है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर बंद कर दिया जाता है और केदारनाथ में कोई नहीं रुकता। नवंबर से अप्रैल तक के छह महीनों के दौरान भगवान केदा‍रनाथ की पालकी गुप्तकाशी के निकट उखिमठ नामक स्थान पर स्थानांतरित कर दी जाती है। यहाँ के लोग भी केदारनाथ से आस-पास के ग्रामों में रहने के लिये चले जाते हैं। वर्ष २००१ की भारत की जनगणना[4] के अनुसार केदारनाथ की जनसंख्या ४७९ है, जिसमें ९८% पुरुष और २% महिलाएँ है। साक्षरता दर ६३% है जो राष्ट्रीय औसत ५९.५% से अधिक है (पुरुष ६३%, महिला ३६%)। ०% लोग ६ वर्ष से नीचे के हैं

Photo of Kedarnath trek start, Gaurikund by zahreen makrani
Photo of "केदारनाथ: मोक्ष और ध्यान की प्राप्ति" by zahreen makrani

देश भर से तीर्थयात्री हर साल इस पवित्र यात्रा को अंजाम देते हैं। उत्तराखंड के बाहर से यात्रा करने वालों के लिए, दिल्ली आधार के रूप में कार्य करता है जहां से वे केदारनाथ पहुंचने के लिए ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग की यात्रा करते हैं।

केदारनाथ की यात्रा सही मायने में हरिद्वार या ऋषिकेश से आरंभ होती है। हरिद्वार देश के सभी बड़े और प्रमुख शहरो से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। हरिद्वार तक आप ट्रेन से आ सकते है। यहाँ से आगे जाने के लिए आप चाहे तो टैक्सी बुक कर सकते हैं या बस से भी जा सकते हैं।

इस तथ्य के बावजूद कि आप अपनी यात्रा कहाँ से शुरू करते हैं, यदि आप केदारनाथ के लिए सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे हैं, तो ऋषिकेश सामान्य बिंदु होगा। ऋषिकेश से केदारनाथ 230 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गौरीकुंड अंतिम बिंदु है जो सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है (ऋषिकेश से 216 किलोमीटर)। गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर की ट्रेक दूरी 16 किलोमीटर है।

ऋषिकेश में गंगा आरती

Photo of "केदारनाथ: मोक्ष और ध्यान की प्राप्ति" by zahreen makrani

त्रिवेणी घाट उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित एक घाट है । यह गंगा के तट पर ऋषिकेश का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध घाट है । त्रिवेणी घाट अपने पापों से शुद्ध होने के लिए स्नान करने वाले श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहता है। ऋषिकेश में सबसे प्रतिष्ठित घाट होने के नाते, त्रिवेणी घाट का उपयोग भक्त अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार और अनुष्ठान करने के लिए भी करते हैं। यह घाट वैदिक मंत्रोच्चार के साथ की जाने वाली गंगा आरती के लिए प्रसिद्ध है। भक्तों द्वारा छोड़े गए दीयों और पंखुड़ियों से भरे तेल के पत्तों को प्राचीन गंगा पर तैरते हुए और पारंपरिक आरती का दृश्य देखने लायक है। त्रिवेणी घाट के तट पर आप गीता मंदिर, त्रिवेणी माता मंदिर और लक्ष्मीनारायण मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।

त्रिवेणी घाट पर गंगा आरती का दृश्य किसी को भी लुभा सकता है। शाम को होने वाली आरती का ये दृश्य इतना मनमोहक होता है कि देशी ही नहीं विदेशी भक्त भी खासतौर पर यहां आरती में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं। गंगा आरती की परंपरा भी पुरातन बताई जाती है।

नदी पर निर्मित शिव मूर्ति के समीप गंगा के किनारे आरती होती है। इसके लिए करीब शाम 5.00 बजे से ही तैयारी शुरू हो जाती है। गायन, भजन और बेहद आलौकिक मंत्रोच्चार के बीच गंगा की आरती पूरे विधि-विधान से की जाती है। इस आरती में शामिल होने के लिए अक्सर ही यहां सेलिब्रिटीज भी पहुंचती हैं।

पुराणों में महत्व

विद्वानों ने गंगा आरती का अति महत्व बताया है। कहते हैं कि मां गंगा का पूजन करने से जीवन के अनेक कष्टों से मुक्ति मिलती है। मां गंगा अपने भक्तों को सुखद जीवन का वरदान देती हैं।

शिव ने पीया विष

ऋषिकेश से सम्बंधित अनेक धार्मिक कथाएं भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पीया था। विष पीने के बाद उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना गया। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार भगवान राम ने वनवास के दौरान इसी स्थान के जंगलों में अपना समय व्यतीत किया था। लक्ष्मण झूला इसी का प्रमाण माना जात है।

निष्कर्ष

केदारनाथ यात्रा का अनुसंधान समाप्त हो गया है, और इस अद्वितीय अनुभव से हमारा मन और आत्मा भर गए हैं। यह यात्रा हमें न शिव के पवित्र धाम के सानिध्य में ले जाने के साथ-साथ हिमालय की प्राकृतिक सौन्दर्य और शांति से परिपूर्ण वातावरण का आनंद भी मिला। यह एक आध्यात्मिक अनुभव था, जिसमें हमने अपने जीवन को नए दिशाओं में बदल दिया। हमने शिव के धाम में पूजा की और उनकी कृपा का आभास किया, और हमने यह अनुभव किया कि शांति, सौख्य, और आनंद अंतरात्मा से ही प्राप्त होते हैं।

Further Reads