नेपाल सरकार अपने वर्तमान एवरेस्ट बेस कैंप को पिघलती हुई बर्फ, पीछे हटते और आकार में छोटे होते जा रहे ग्लेशियर की वजह से स्थानांतरित करने का निर्णय ले सकती है। आखिर क्या वज़ह है इसकी आइए जानते हैं......

नेपाल इकलौता देश है जिसका अधिकांश हिस्सा हिमालय में स्थित है। यहां पर दुनिया के 10 सबसे ऊंचे पहाड़ों में से 8 पहाड़ स्थित हैं। दुनिया का सबसे ऊंचा पहाड़ माउंट एवरेस्ट भी यहां स्थित है।

एवरेस्ट बेस कैम्प
नेपाल साइड से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए सभी को पहले एवरेस्ट बेस कैम्प (साउथ साइड) जोकि फ़िलहाल खुंबू ग्लेशियर पर स्थित है, पर पहुंचना होता है। काफ़ी सैलानी तो केवल एवरेस्ट बेस कैम्प तक ट्रेक करने के लिए आते हैं। पिछले कुछ सालों में एवरेस्ट समिट तक पहुंचने की ख्वाहिश लिए पहुंचने वाले पर्वतारोहियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। विशेषकर कॉमर्शियल पर्वतारोहण शुरू होने के बाद। इसी के साथ एवरेस्ट बेस कैम्प ट्रेक के लिए आने वाले सैलानियों की तादाद भी लगातार बढ़ती जा रही है।



अप्रैल से मई के बीच जब सीज़न पीक पर होता है तब करीब 1500-2000 लोग बेस कैंप पर मौजूद होते हैं। भौगोलिक और जैविक रूप से संवेदनशील इलाक़ा होने के कारण ये संख्या काफ़ी अधिक है और इलाके के मौसम पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। जिसकी वज़ह से यहां ग्लोबल वार्मिंग का असर और तेजी से दिख रहा है।


मुख्य प्रभाव
खुंबू ग्लेशियर जहां फ़िलहाल एवरेस्ट बेस कैंप स्थित है, बढ़ते हुए पारे के कारण अधिक गति से पिघल रहा है। रात के समय यहां ग्लेशियर में दिखने वाली दरारों की संख्या भी बढ़ रही है।


ग्लेशियर के पिघलने पर पहाड़ी मलबा और जल मिलकर एक जलधारा का निर्माण करते हैं। वर्तमान बेस कैंप के बीच से बहती एक ऐसी ही जलधारा का भी विस्तार लगातार हो रहा है।

एक अनाधिकारिक बैठक में स्थानीय समुदायों और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए, एवरेस्ट बेस कैंप को किसी ऐसी कम ऊंचाई की जगह पर स्थानांतरित करने पर विचार किया गया जहां, बहुत कम समय बर्फ रहती हो।

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