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पिछले पोस्ट में आपने देखा की जमशेदपुर से काफी जद्दोजहद कर हम काठमांडू तक पहुँच चुके थे। काठमांडू के प्रथम दर्शन से लगा की यह कोई बड़ा शहर ही है। हलकी हलकी बारिश के साथ मौसम बड़ा सुहावना था यहाँ। होटल हमारा पहले से बुक न था, इसीलिए हमने इधर उधर पता कर अंततः फ्री वाई-फाई से लैस होटल पशुपति दर्शन को ही दो दिनों के लिए चुना।
पशुपतिनाथ मंदिर, काठमांडू
नेपाल प्रवेश करते ही हमलोगों ने कुछ पैसे नेपाली मुद्रा
नेपाल जैसे छोटे से देश की राजधानी है काठमांडू, लेकिन यह आज हमारे दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों जैसा ही रूप धारण कर चूका है। सड़कों पर ढेर सारा ट्रैफिक है, पर मौसम बड़ा ही सुहावना है। काठमांडू शहर भ्रमण की शुरुआत में हम पशुपतिनाथ मंदिर की ओर बढे। बागमती नदी के किनारे बसा यह नेपाल का सबसे प्राचीन मंदिर है। मंदिर का स्वरुप पारंपरिक नेपाली पैगोडा शैली का ही बना हुआ लगता है, लकड़ी, ताम्बे और सोने-चांदी जैसी धातुओं का प्रयोग किया गया है। फ़ोटो लेना तो मना था फिर भी मुख्य द्वार का ले लिया, सुबह सुबह भीड़ भी ज्यादा न थी। अप्रैल 2015 के भूकंप में यह मंदिर सुरक्षित बच गया था।
इसके बाद एक और है बौद्धनाथ स्तूप। यह नेपाल के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है। कहा जाता है की गौतम बुद्ध की मृत्यु के तुरंत बाद ही इसका निर्माण किया गया था और इसकी स्थापत्य कला में तिब्बत की भी कुछ झलक मिलती है। यह काठमांडू के सबसे बड़े पर्यटन केन्द्रों में से एक है। गोलाकार संरचना के चारो तरफ से लोग चक्कर लगाते हुए देखे जा सकते हैं, साथ ही अनेक बौद्ध-भिक्षुओं का भी दर्शन कर सकते हैं। अप्रैल 2015 के महाभुकंप से यह बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ, जिससे इसके गुम्बद का उपरी हिस्सा टूट गया था , पर फिर से कुछ ही महीनों में गुम्बद की दुबारा मरम्मत की गयी। पशुपतिनाथ और बौद्धनाथ दोनों ही UNESCO द्वारा विश्व विरासत घोषित किये गए हैं। इसी तरह स्वयंभूनाथ भी प्रसिद्द स्तूप है, वैसे यहाँ और भी ढेर सारे बौद्ध और हिन्दू मंदिरों की लंबी फेहरिस्त है लेकिन सभी की बनावट करीब करीब एक जैसी ही है जिस कारण हमने वहाँ जाने की उतनी जिज्ञासा भी न हुई।
इन मंदिरों और स्तूपों का दर्शन करते करते शाम घिर आई। रात हुई तो इस शहर का स्वभाव ही बदल गया। नाईट लाइफ के मामले में यह शहर कम नहीं है। हर गली-गली में डिस्को और बार खुले हुए हैं, यानि पश्चिमी सभ्यता की जड़ें यहाँ भी गहराई तक समायी हुई हैं। शाम होते ही शहर का एक हिस्सा भड़कीले संगीत और नशे में डूब जाता है। रात के ग्यारह बजे सारी दुकानें बंद कर दी जाती हैं, और हमारा पहला दिन यहीं ख़त्म होता है।
अगले दिन हमने घुमने के लिए दो जगहों का चुनाव किया- भक्तपुर दरबार स्क्वायर तथा नागरकोट। काठमांडू से तेरह किलोमीटर दूर भक्तपुर नाम का एक शहर है, जिसपर यह दरबार स्थित है। यह भी यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया जा चूका है। दरबार चार भागों में विभाजित है- दरबार स्क्वायर ,तौमधि स्क्वायर, दत्तात्रय स्क्वायर, पॉटरी स्क्वायर - और समूचे का नाम भक्तपुर दरबार स्क्वायर है। पचपन खिडकियों वाला महल सबसे प्रमुख ईमारत है। यूँ तो इनमे और भी ढेर सारी इमारतें हैं जिनमे सोने से बने दरवाजे, सिंह दरवाजे, लघु पशुपतिनाथ मंदिर, बत्साला मंदिर, नयातापोला मंदिर, भैरवनाथ मंदिर, उग्रचंडी, उग्रभैरव, रामेश्वर मंदिर, गोपीनाथ मंदिर और राजा भुपतिन्द्र की प्रतिमा। काठमांडू घाटी का यह सबसे ज्यादा देखा जाने वाला जगह है। गौरतलब है की भक्तपुर नेपाल की सांकृतिक राजधानी है, और कभी यह 12वी से 15वी सदी तक यह पुरे नेपाल की राजधानी थी। अप्रैल 2015 के भूकंप में यह दरबार भी काफी नष्ट हुआ था।
काठमांडू दरबार स्क्वायर तथा पाटन दरबार का भी यही स्वरुप है, सभी यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित हैं। किन्तु बारिश के वजह से भली-भाँती दर्शन नहीं हो पाया, फिर हम नागरकोट की तरफ बढ़ चले। यह काठमांडू से 32 किलोमीटर दूर है, भक्तपुर जिले में ही आता है। लगभग सात हजार फीट की ऊंचाई पर यह एक मनोरम हिल स्टेशन है। यहाँ से हिमालय के अनेक चोटियों के साथ ही माउंट एवेरेस्ट का भी सूर्योदय देखा जा सकता है। दिलचस्प है की नेपाल के अधिकांश पर्यटक स्थलों में फ्री वाई-फाई की सुविधा दी गयी है।
काठमाडू के आस पास के नज़ारे अब यहीं समाप्त होते है, अगली सैर होगी पोखरा की।
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