गो, गोवा, गॉन - यह वाक्य आपने काफी बार सुना होगा। मीम्स के संसार में गोवा प्लान पर इतने मीम्स बन चुके हैं कि अब शायद हंसी भी नहीं आती। पर फिर भी भारत के हर नौजवान का पहला सपना है गोवा जाकर घूमना। जब यह सपना तीन चार बार पूरा हो जाता है, आदमी कुछ नया ढूँढना चाहता है। अब बीच तो इतनी सारी जगह पर है पर हर जगह की अपनी खासियत और महत्व है। ऐसी ही एक खूबसूरत सी जगह है गोकर्णा। कर्नाटक में स्थित, गोकर्णा गोवा से लगभग 130 कि.मी. आगे हैं। मैं हाल ही में यहाँ होकर आयी हूँ, आइए जानते है मेरे अनुभव के बारे में।
मुंबई से गोकर्णा जाने के दो तरीके हैं- बस और ट्रेन। ट्रेन का सफर आरामदायी और सस्ता है जबकि वॉल्वो बस आपको काफी महंगी पड़ सकती है। बेकार प्लानिंग के चलते मुझे ₹2200 की बस करवानी पड़ी और रात भर अकड़ कर सोना पड़ा। मुंबई से लगभग 650 कि.मी. की दूरी पर है गोकर्णा। सुबह-सुबह जब मैं गोकर्णा पहुँची तो हरियाली की चादर ओढ़े यह ज़िला काफी खूबसूरत दिखाई पड़ रहा था। ज़ॉस्टल, जो इंडिया की जानी मानी हॉस्टल चेन है, वहाँ पर मैंने एक बेड की बुकिंग कर रखी थी। बस ने लगभग 15 कि.मी. दूर उतारा ज़ॉस्टल से, यह दूरी मैंने ऑटो में तय करी। गोकर्णा में एक और भी चीज़ मशहूर है, यहाँ के मंदिर। यह मुझे पता चला जब मैं ऑटो में बैठकर ज़ॉस्टल की तरफ जा रही थी। बाज़ार के बीचों बीच बसे है महागणपति मंदिर और महाबलेश्वर मंदिर। शिव जी के दर्शन से पहले गणपति मंदिर के दर्शन करना अच्छा माना जाता है। हिन्दुओं में इन मंदिरों की काफी मान्यता है। आपको काफी सारे लोग पूजा की थाली हाथ में लिए घूमते नज़र आएँगे।
यह हिस्सा गोकर्णा का धार्मिक है और दूसरा हिस्सा है हिप्पी ज़िन्दगी का धाम। ज़ॉस्टल गोकर्णा बीच के ऊपर एक छोटी से पहाड़ी पर बना हुआ है और वहाँ का नज़ारा देखते ही बनता है। समुद्र और आसमान का अनोखा संगम, जहाँ तक आपकी आखें देख पाएँ। इस नज़ारे को अपनी आँखों में समा कर मैं निकल पड़ी गोकर्णा के बीच ट्रेक पर। पहली मंज़िल थी कुदले बीच जो एक बेहद खूबसूरत बीच है पर मॉनसून की वजह से वहाँ नहाना बिलकुल बंद करवाया हुआ था। बारिश के महीनो में रेनकोट ले जाना मत भूलियेगा, आपको घूमने में काफी आसानी होगी।
उसके बाद आता आधा घंटे ट्रेक करके मैं पहुँची ॐ बीच। ॐ बीच में आपको बड़ी बड़ी चट्टानें मिलेंगी जिसपर चढ़कर आप काफी सारी सेल्फीज़ खींच सकते हैं। और थकने के बाद खाना और बीयर के लिए आप जा सकते हैं नमस्ते कैफ़े। यहाँ आपको अपने गोवा के शैक्स की कमी नहीं खलेगी। स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला की बारिशों के बाद सीज़न आते ही काफी सारे शैक वापिस आ जाते हैं। तो दिसंबर और जनवरी भी अच्छा समय है यहाँ जाने के लिए। हाफ मून और पैराडाइस बीच मॉनसून के समय बंद होते हैं और यह सुनकर मैं काफी निराश हुई । पर निराशा को ख़ुशी में बदलते देर नहीं लगी। वापिस आते समय कुडले बीच के पास एक पहाड़ी पर ऊपर पैदल चल कर मुझे समुद्र का ऐसा नज़ारा मिला कि मेरे होश उड़ गए। मेरे पूरे पैसे वसूल हो गए उस खूबसूरती को अपनी आँखों से देखकर। ना तो वो नज़ारा कहीं गूगल पर लिखा था, ना ही किसी एप पर। मेरी किस्मत ही थी कि मैं वो देख पायी। श्याम मैंने ज़ॉस्टल के कैफे में बीयर पीते हुए और सीज़लर खाते हुए गुज़ारी। कुछ दिलचस्प लोग मिले और मज़ेदार बातें हुई।
विभूती वॉटरफॉल
अगला दिन मैं ₹400 दिन के हिसाब से स्कूटी ले ली थी। आज मुझे विभूति वाटरफॉल जाना था जो गोकर्णा से 40 कि.मी. दूर था। ठंडी हवा और मूसलाधार बारिश के चलते थोड़ा डर तो लग रहा था पर अब आ ही गए हैं तो फिर जाने का नशा भी पूरा था। भगवान का शुक्रिआदा करुँगी कि उस मौसम में ठीक ठाक पहुँच गयी। सड़क बिलकुल बढ़िया थी और नज़ारे उस से भी बहतर। वहाँ पहुँचते हुए मैं पूरी गीली हो चुकी थी, गाड़ी से आए लोगों से जलन तो काफी महसूस हुई उस वक़्त। विभूति फॉल्स तक पहुँचने के लिए लगभग एक कि.मी. की ट्रेकिंग है। तो कोशिश करिएगा कि अच्छे जूते पहन कर वहाँ जाएँ। दो छोटे झरनो को पार करके जब मैं वहाँ पहुँची तो एक विशाल चिल्लाता हुआ झरना मेरे सामने था। कुदरत का करिश्मा ही होते हैं यह झरने। किसी की भी हिम्मत नहीं थी उस झरने के पास जाने की, पर मुझे पता चला की दिसंबर में यह भी शांत हो जाता है और लोग यहाँ स्विमिंग भी करते हैं। चलो एक और बहाना मिल गया दुबारा गोकर्णा लौट के आने का। विभूति से 8 कि.मी. आगे हैं याना केव्स मतलब गुफा। मॉनसून के चलते मैं और रिस्क नहीं लेना चाहती थी इसीलिए वापिस चल पड़ी। आप लोग ज़रूर जाइएगा, काफी सुना है मैंने याना के बारे में भी। थकी थकाइ किसी तरह मैं वापिस पहुँची और खुद को सुखाकर सबसे पहले एक गर्म चाय की चुस्की मारी। उस दिन तो कब आँख लग गयी पता भी ना लगा।
अब जाने का वक़्त आ चूका था। सुबह मैं फिर ॐ बीच का चक्कर लगाने गई और नमस्ते कैफ़े पर बढ़िया सा ब्रेकफास्ट किया। फिर बचे कूचे वक़्त में दोनों ऐतिहासिक मंदिरो के दर्शन करे। मज़े की बात तो यह है कि कुडले बीच पर बने एक मंदिर को हनुमान जी कि जन्मभूमि भी माना जाता है।
इसी के साथ मैंने गोकर्ण को अलविदा कहा और स्टेशन के लिए निकल पड़ी। इस छोटे से सफर में गोकर्णा से इश्क़ कर बैठी थी और पूरे ट्रेन के सफर में यही सोच रही थी कि मैं यहाँ कब वापिस आऊँ। गोवा जाने का तो अब बिलकुल भी दिल नहीं करेगा। आप ज़्यादा मत सोचिये और जल्दी से अपना गोकर्णा का ट्रिप प्लान कीजिए।