'दक्षिण ' का बनारस

Tripoto
18th May 2019

प्रकृति से स्वीकृति पाना , स्वागत पाना , कितना सुखमय होता हैं। मेट्रो की तेज रफतार वाली ज़िन्दगी से नदारद होकर, जहरिले हवा से साँस ले कर, मैंने फैसला किया कि कर्नाटक का कोई गाँव देखा जाए। लाल बस इतना की एक ही दिन की छुट्टी। पड़ोसी ने सुझाव दिया की शिमोगा देखा जा सकता हैं। कर्नाटक का ही एक जिला (district) है, बैंगलुरु से करीब 350 किलोमीटर दूर।

शिमोगा की खूबसुरती निहारने हम निकल पड़े बैंगलुरु से, शुक्रवार रात 11 बजे की भारतीय रेल से। बह इससे पहले की सूरज धूप खिलाते हम शिमोगा में चाय की चुस्की ले रहे थे।

वाह! क्या साफ -सुथरा स्टेशन , वेटिंग रूम में सारी सुविधाएँ। फ्रेश वगैरह होने के बाद एक महिला कर्मचारी से सलाह मांगी की कैसे घूमा जाए शिमोगा। बातों- बातों में पता चला कि वह यहीं शिमोगा डिस्ट्रिक्ट के ही एक गाँव कूडलि में रहती हैं। इस गाँव को लोग 'दक्षिण ' का बनारस कहते हैं। छोटे से गाँव मे भिन्न प्रकार के मंदिर हैं, (जिसकी चर्चा अगली बार ) शांकारचार्य द्वारा स्थापित मठ जहाँ संस्कृत पढाई जाती हैं और अन्य तरह के पौराणिक पाठ और इस तरह कूडलि घूमने की लालसा बढ़ी।

स्टेशन से ही लोकल बस जाती हैं कुछ 500 मीटर की दूरी पर। मैंने स्टेशन से ही ऑटो करना बेहतर समझा जो कि सही फैसला सबित हुआ।

Photo of Koodli, Karnataka, India by In_house.Sunshine
Day 1

नदी और नारियल के खेत के साथ मुस्कुराती सड़के, जो की दो पवित्र नदियों के संगम 'तुंगभाद्रा' के किनारे बसे 'कूडलि' गाँव तक पहुँचाती हैं। शांत स्वागत करती नदी के तट पर रूबरू होंगे पावन पवित्र गाँव से। सबसे पहले गाँव के लोगों से मिली, उन्होंने सांस्कृतिक सुंदरता और परंपरा के बारे में बाते साँझा की।

गाँव से थोड़ी उँचाई पर (अगर पैदल जाती तो ट्रैकिंग के लिए सही वक़्त था) ऑटो से जाने पर पार्किंग के ₹20 लगे। दो मंदिर हैं एक रामेश्वर मंदिर, जहाँ दूर से ही सवागत के लिए नंदी महाराज उपस्थित हैं , इस मंदिर की बनावट , शिल्प शैली , इतिहास की कई भूली- बिसरी बातों में ले जा रही थी मंदिर को। अपनी छाव में लिए खड़ा पीपल का पेड़ , बड़ी बड़ी बिना काटी गई पथरों से बने इसके दरवाज़े और साथ ही शांति सी बहती थी तुंगभद्रा नदी।

मंदिर व्यवस्था इतनी अच्छी हैं की प्रतीत ही नहीं होता हैं की यहाँ कोई आता भी हैं, नदी में नहाने, कुछ देर विश्राम करने, कपड़े बदलने, सबकी अपनी-अपनी साफ सुथरी जगह है। रामेश्वर मंदिर के साथ ही हैं द्रोणाचार्य मठ, जहाँ गुरु अभी भी अपने भेष में पाए गए हैं। यहाँ वेद , ग्रन्थ , संस्कृत, द्रोणाचार्य जी के दर्शनशात्र से अवगत कराया जाता हैं।

साथ ही मिला प्रह्लाद के द्वारा( स्थानियों के मान्यता के अनुसार ) स्थापित किया हुआ श्री चिंतामणि नर्शिमा मंदिर l ऊपर से गाँव का नज़ारा ऐसा लगता हैं जैसे प्रकृति ने अपने सारे रंग यही भर दिए हो (गाँव की तस्वीर आप भी यहाँ देख सकते हैं)। गाँव के लोग इतने मिलनसार की उनके खान पान से भी उन्होंने की अवगत कराया।

शक्ति दीदी वहीं मठ में फूल देने आती हैं ,अकेले घूमता देख, पास में ही रहती हैं और वो थांबली ( दही से बनाया एक प्रकार का व्यंजन) और अक्की रोटी ( चावल के आटे की मसाले दार रोटी ) अच्छा बनती है मुझे ज़रूर स्वाद लेना चाहिए,ऐसा कह कर अपने साथ चलने के लिए राज़ी किया। पड़ोसियों से मिलवाया , ऑटो वाले और मुझे दोनों को खाना खिलाया ,सबसे रोचक तो ये रहा कि हम दोनों को एक दुसरे की भाषा न के बराबर आती आती थी फिर भी काफी वक़्त साथ गुज़ारा I

3.30 की ट्रेन भी थी बैंगलुरु के लिए तो मैं सब से विदा लेकर दुबारा आने का वादा कर के वापस आई। ऑटो को पूरे ₹450 दिए।

स्टेशन पर जिन्होंने सुबह कूडलि से अवगत कराया उनको भी ब्योरा दिया, तब तक ट्रेन आ गई थी और मैं वापस बैंगलुरु।

#HiddenGem

Rameshwara temple

Photo of 'दक्षिण ' का बनारस by In_house.Sunshine

Tungbhadra

Photo of 'दक्षिण ' का बनारस by In_house.Sunshine
Photo of 'दक्षिण ' का बनारस by In_house.Sunshine

Tungbhadra

Photo of 'दक्षिण ' का बनारस by In_house.Sunshine

Rameshwara

Photo of 'दक्षिण ' का बनारस by In_house.Sunshine
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Photo of 'दक्षिण ' का बनारस by In_house.Sunshine
Photo of 'दक्षिण ' का बनारस by In_house.Sunshine
Photo of 'दक्षिण ' का बनारस by In_house.Sunshine

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