Just imagine आप रात में सोए और अगले दिन आप खुद को अपने बिस्तर पर न पाकर Malshej Ghat View Point पर पाएं। अगर ऐसा हुआ ना... तो I am sure कि आपको लगेगा कि आपकी मौत हो गई है और आप स्वर्ग में आ गए हैं। जी हां, इतना ज्यादा खूबसूरत है मुंबई(Mumbai) से 130Km और पुणे(Pune) से 120Km दूर पश्चिमी घाट की गोद में बैठा मालशेज घाट। मुंबई को अहमदनगर से जोड़ने के लिए इस घाट पर बनाए गए घुमावदार रास्तों से गुजरते वक्त आप मालशेज घाट(Malshej Ghat) की मन मोह लेने खूबसूरती के इतने कायल हो जाते हैं कि वहीं हमेशा-हमेशा के लिए गुम हो जाने का सपना पाल बैठेते हैं।
वैसे तो Malshej Ghat इतना ज्यादा सदाबहार है कि आप साल के बारहों महीने यहां आकर अपना दिन यादगार बना सकते हैं। लेकिन अगर आपने मानसून(Monsoon) के मौसम में मालशेज से मुलाकात का समय निकाल लिया ना... तो यकीन मानिए बरसात की बूंदों से नहाए मालशेज घाट(Malshej Ghat) के नजारों को नजरों में भर लेने के बाद आप ना उन्हें जीवनभर नहीं भुला पाएंगे।
अब मुझे पता नहीं कि आपको मालशेज घाट(Malshej Ghat) के दर्शन कब नसीब हो.. लेकिन मैं मानसून(Monsoon) के इस मौसम में अभी पिछले वीकेंड ही मालशेज घाट जाकर वहां बादलों पर सवार होकर झरनों(Waterfall) के संग झूला झूलने का लाजवाब लुत्फ़ उठा आया हूं। और आज इस ट्रेवल ब्लॉग के जरिए अब आप सभी को मालशेज घाट(Malshej Ghat) की अपनी माइंड ब्लोविंग जर्नी बताऊंगा।
तो इस कभी न भुलाए जा सकने वाले सफर की शुरुआत मेरे घर यानी कल्याण से होती है। कल्याण से करीब 85km दूर मालशेज घाट तक का सफर मैंने अपनी बाइक से तय किया। और सफर के दौरान मुझे यह एहसास हुआ कि मेरी मंजिल मालशेज घाट(Malshej Ghat) तक पहुंचने का रास्ता भी मन मोह लेने के मामले में मेरी मंजिल से जरा भी कम नहीं है। बाकी यह तो हम सब जानते हैं कि मंजिल से ज्यादा और असली मजा उस तक पहुंचने के लिए तय किए सफर में ही होता है।
सच कह रहा हूं... सड़क के दोनों ओर दूर-दूर तक फैली हरियाली को देखते हुए और मीठी-मीठी ठंड लेकर बहती हवा को चीरते हुए बाइक चलाते वक्त ऐसा लग रहा था मानों मेरी गाड़ी के पहिए अपनी रफ्तार से सड़क पर बढ़ते रहे और सामने दिखाई दे रहा सूरज अपनी जगह पर थम जाए। मैं देर तक और दूर तक इसी तरह खामोशी ओढे सड़क पर वक्त-बेवक्त हॉर्न बजाते हुए बेवजह आगे बढ़ते चले जाऊं।
कल्याण से अंबरनाथ और फिर बदलापुर होते हुए मुरबाड़ जाने के दरम्यान कुछ देर सुस्ताने के लिए मैं बारवी डैम(Barvi Dam) पर रुक गया। लेकिन बारवी डैम(Barvi Dam) की खूबसूरती देखकर कुछ की बजाय काफी देर तक डैम में भरे अथाह जलराशि को देखते और तेज आवाज के साथ गिरते झरने(Waterfall) के शोर में अपने अंदर की खामोशी को ही सुनते रह गया। मन तो नहीं भरा लेकिन आगे जाने की मजबूरी के चलते मन को मारकर बारवी डैम(Barvi Dam) को गुड बाय बोला और बाइक स्टार्ट कर आगे बढ़ गया।
अभी मैं बारवी डैम(Barvi Dam) के खूबसूरत नजारों को दूर छोड़ आने का गम मनाता इसके पहले ही मेरी नजरों ने पाया कि सड़क अचानक से किसी रोलर कोस्टर स्लाइड में तब्दील हो गई है। जी हां, बारवी डैम(Barvi Dam) के बाद सड़क सीधी नहीं चलती बल्कि वो सीढ़ी बन जाती है और फिर आप रोलर कोस्टर स्लाइड की तरह तेज रफ्तार के साथ ऊपर और नीचे झूलने लग जाते हैं। बारवी डैम(Barvi Dam) से करीब 10Km तक रोम-रोम को रोमांचित कर देने वाले ऐसे ही झूले में झूलते हुए NH61 स्थित मुरबाड़ पहुंच जाता हूं। और अब यहां से मालशेज घाट तक की दूरी महज 50Km ही रह जाती है।
नेशनल हाइवे 61 के दोनों तरफ दूर-दूर तक फैले हुए मैदान का खालीपन... उस मैदान पर कब्जा जमाए हरे-हरे घास की हरियाली... किसी रक्षक की भूमिका निभाते हुए इन्हें चारों तरफ से घेरने के बाद खुद काले और घने बादलों से घिर गईं पहाड़ियों की चोटियां और बारिश में भीगकर बहती मदमस्त हवा के बीच खुद को एक पतली-सी सड़क पर बाइक चलाते वक्त ऐसा भ्रम होता है कि किसी भी वक्त आपकों पंख लग जाएंगे और आप हवाओं संग बहकर बादलों पर सवार हो जाएंगे।
मालशेज घाट(Malshej Ghat) पर पहुंचने के बाद सबसे पहले मेरी मुलाकात मालशेज घाट वाटरफॉल(Malshej Ghat Waterfall) से होती है। यहां पहुंचते ही झरने को देख उसमें नहाने की और उससे पहले कंपकंपाते हाथों से गरमागरम भुट्टों से पेट पूजा करने की तीव्र इच्छा पैदा हो जाती है। अपनी दोनों ही चाहतों को पूरा करने के बाद यहां से बढ़ जाता हूं। सड़क पर पसरे कोहरे की चादर को चीरते हुए बाइक चलाना मुश्किल और जोखिम भरा जरूर हो लेकिन उतने ही ज्यादा रोमांच से भर जाने का एहसास भी हो रहा था। और ऐसे ही दिलकश वातावरण में हर पल को जी भर कर जीते हुए मैं आगे बढ़ते जा रहा था।
इसी बीच रास्ते में एक छोटी-सी गुफा से गुजरना होता है। अभी मैं गुफा से गरजने के क्षणों को एन्जॉय करता उससे पहले ही गुफा खत्म हो जाती है। लेकिन गुफा के खत्म होते ही मैं वहां पहुंच जाता हूं- जहां पहुंचने के लिए घर से निकला था। जी हां, करीब 3 घंटे के सुहाने सफर के बाद Malshej Ghat View Point मेरी आँखों के सामने होता है। दोपहर के वक्त भी यहां बहुत ज्यादा ठंड लग रही थी, बहुत ही ज्यादा बारिश हो रही थी और साथ ही बहुत ज्यादा कोहरा भी छाया हुआ था। इन तीनों के कॉकटेल के चलते बहुत ज्यादा मजा भी आ रहा था।
मैं राह के ऐसे ही नजारों को नजरों में नजरबंद और बाहों में कैद कर देखते-ही-देखते मालशेज घाट(Malshej Ghat) पहुंच जाता हूं। और यहां मेरा स्वागत दो दिशाओं से होता है। आसमान से बादल चीनी से ज्यादा मीठे पानी की बरसात कर रहे होते हैं और सामने की दिशा से मेरे सामने एक सफेद कोहरा वेलकम का बोर्ड लिए खड़ा दिखाई पड़ता है। अचानक ही मौसम में ठंड भी बढ़ जाती है और इसके साथ ही मेरे अंदर एक्साइटमेंट का लेवल भी सातवें आसमान पर पहुंच जाता है।
यहां का मौसम ऐसा जैसे बादल आपके साथ लुक्का-छुप्पी का खेल खेल रहे हो। क्योंकि एक पल को आपकी आंखों के सामने आसमान को गले लगाते पहाड़... उन पहाड़ियों की चोटियों से नीचे गिरते झरने... और फिर नीचे मैदान में जाकर झरने का नदी में तब्दील होने का नजारा होता है। और फिर दूसरे ही पल हवा एक झोंका अपने साथ बादलों की बारात लेकर आ धमकता है। जिसके चलते आपकी आंखों के आगे सफेद अंधकार छा जाता है। इस वक्त कोहरे की सफेद चादर से पूरी तरह ढक जाने के चलते आपको कुछ भी दिखाई नहीं देता। और सच कहूं तो यही वो गोल्डन वक्त होता है जब आपको मालशेज घाट(Malshej Ghat) से 'अंधा प्यार' हो जाता है।
Malshej Ghat View Point पर करीब घंटा भर बिताने के बाद मेरा सफर उस वर्ल्ड फेमस झरने(Waterfall) के तलाश में आगे बढ़ जाता है- जिसके वीडियो/फ़ोटो मालशेज घाट वाटरफॉल(Malshej Ghat Waterfall) गूगल करने पर सबसे पहले नजर आते हैं। जी हां, कुछ ही दूरी तय करने के बाद मैं उस जगह पहुंच जाता हूँ- जहां एक ऐसा झरना(Waterfall) है जो सीधे आसमान से नेशनल हाइवे के ठीक बीचोंबीच गिरता है। इस झरने(Waterfall) को देखने भर से ही मेरे अंदर एकाएक उत्साह, उमंग और उल्लास का ज्वालामुखी फूट गया। झरने(Waterfall) के नीचे खड़े होकर पागलों की तरह नाचने के बाद भी जब मन नहीं भरा तो झरने(Waterfall) के ठीक नीचे खड़े होकर थककर चूर होने तक उसकी चोट सहता रहा।
घर से निकलते वक्त तो मेरा प्लान सिर्फ मालशेज घाट(Malshej Ghat) तक जाकर ही वापस लौट आने का था लेकिन रास्ते में मुझे गूगल से यह बात पता चलती है कि मालशेज घाट(Malshej Ghat) जहां खत्म होता है... ठीक वहीं से एक बेहद ही खूबसूरत Pimpalgaon Joga Dam की शुरुआत होती है। तो फिर अब मेरा प्लान अपनी शाम को इस डैम किनारे टहलते हुए सूरज को ढलते देखने का बन जाता है।
अंधेरा हो जाने और फिर उसके बाद मेरे घर लौटने का सफर भी मुश्किल हो जाने की बातों को नजरअंदाज करते हुए मैं सूरज डूबने तक दूर-दूर तक फैले हरे भरे मैदान की तरफ पीठ कर... अपने बगल में हरिश्चंद्र गढ़ के कंधे पर हाथ रख... सामने आसमान के फलक तक फैले Pimpal gaon Joga Dam के नीले पानी और उसकी परिक्रमा करते पक्षियों की उड़ान को निहारता रहता हूं। औऱ फिर जैसे ही सूरज पश्चिम के रास्ते अपने घर के दरवाजे में पूरी तरह प्रवेश कर लेता है... तब मैं भी अपनी बाइक स्टार्ट कर अपने घर के लिए निकल पड़ता हूं। लौटते वक्त रास्ते भर दिमाग में यही ख्याल चलता रहता है कि हाए! कितने बदनसीब हैं वो लोग जिनकी मानसून में मालशेज से मुलाकात नहीं हो पाती....
- रोशन सास्तिक