बाढ़- यह एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो समय समय पर अपनी विध्वंशकारी शक्तियों से हमारे जन-जीवन को अस्त-व्यस्त करते आई है। भारत के मैदानी हिस्से खासकर गंगा किनारे बसे गाँव-शहर तो हमेशा से बाढ़ की त्रासदी झेलते आये हैं। बिहार-बंगाल में कोशी और दामोदर नदियों का भयावह तांडव किसी से छुपा नहीं है, इसलिए इन्हें क्रमशः बिहार एवं बगाल का शोक भी कहा जाता है। खैर, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र तो पूरी तरह से मैदानी ही हैं, इसीलिए इन राज्यों में बाढ़ का आना सर्वथा ही एक सामान्य सी बात है। इनके अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, असम, उड़ीसा जैसे राज्य भी बाढ़ से त्रस्त ही रहते हैं। हर साल सैकड़ों घरों के डूब जाने की कहानी, खेतों-फसलों की बर्बादी जैसे इन राज्यों के निवासियों के ज़िन्दगी का एक अवांछनीय हिस्सा बन चुके हैं।
वहीँ दूसरी तरफ अगर हमारे राज्य झारखण्ड की बात करें, तो यह एक पठारी प्रदेश है, जहाँ की लगभग सभी नदियाँ ही बरसाती हैं। बरसात छोड़ कर साल के अधिकांश महीनों में इनमें नाम मात्र का ही पानी बहता है, किन्तु बरसात में इनका स्वरुप बदल जाता है। झारखण्ड की प्रमुख नदियों में स्वर्णरेखा, दामोदर, खरकई, कोयल, शंख आदि हैं। वैसे गंगा नदी भी झारखण्ड में थोड़ी दूर तक बहती हुई सिर्फ साहेबगंज जिले को पार कर बंगाल में प्रवेश कर जाती है। बाढ़ से तबाह होने के मामले झारखण्ड में बहुत कम ही मिले हैं। दामोदर नदी भी यहाँ है, पर उसका जलवा बंगाल में ज्यादा देखने को मिलता है।
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आज मैं आपको झारखण्ड के एक प्रमुख शहर जमशेदपुर में बाढ़ का एक अनोखा नजारा दिखाने जा रहा हूँ। जमशेदपुर में, जहाँ तक मुझे ख्याल है, सन् 2008 का बाढ़ काफी भयानक था। उस वक़्त खरकई और स्वर्णरेखा- इन दोनों नदियों ने काफी तबाही मचायी थी। नदी किनारे बसे सैकड़ों झोपड़ियाँ और घर बर्बाद हो गए थे। उस बाढ़ के तस्वीर तो अभी शायद ही मेरे पास होंगे।
सन् 2008 के पांच साल बाद एक बार फिर सन् 2013 में बाढ़ की पुनरावृति हुई। इस बाढ़ के कुछ दृश्य मैं कैद करने में सक्षम हुआ जिसे आपलोगों तक जरूर पहुचना चाहूँगा। जमशेदपुर के पश्चिमी हिस्से के कदमा इलाके में एक छोटा सा पार्क है- भाटिया पार्क । अक्टूबर 2013 की एक सुबह जैसे ही मुझे पता चला की जमशेदपुर में बाढ़ आ गया, मैं अवाक् रह गया। मेरे निवास स्थान से कुछ ही दूरी पर खरकई नदी है। पार्क भी नदी के बिलकुल सटकर है, किन्तु नदी की सतह पार्क से काफी नीचे है। तुरंत सुबह सुबह ही कैमरा लेकर मैं पार्क की ओर बढ़ चला। देखा की सभी आज मॉर्निंग वाक के बजाय कैमरा पकड़-पकड़ कर प्रकृति के इस विध्वंशकारी स्वरुप को कैद करने आ पहुचे हैं।
मैंने पहुचते ही देखा की बाढ़ ने पार्क के अधिकांश हिस्से को अपने आगोश में ले लिया था। जहाँ हम शाम को बैठ कर गपशप किया करते थे, वे सीट डूब चुके थे। सामान्य दिनों में नदी पार्क से बीस-तीस फुट नीचे बहा करती है, लेकिन अचानक नदी का ऐसा उफान हैरान कर देने वाला था। यही नहीं बल्कि बगल का एक कॉलोनी भी आधा डूब चूका था।
आईये देखते हैं-- बाढ़ वाले दिन के साथ साथ एक सामान्य दिन की तस्वीरें। तुलना करके आपको पता चल जायगा की बाढ़ कितना भयावह रहा होगा--
भाटिया पार्क, जमशेदपुर
ऊपर बाढ़ प्रभावित, नीचे वर्तमान स्थिति
(छतरी वाले चबूतरे को गौर से देखिये)
ऊपर बाढ़ प्रभावित, नीचे वर्तमान स्थिति
ऊपर नदी का भयावह स्वरुप, नीचे वर्तमान स्थिति जिसमें हरे रंग के शैवाल उगे हुए हैं
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