आज का यह लेख तो आपको जरूर कुछ न कुछ नया आजमाने को विवश कर ही देगा। बस और ट्रेन में सफर तो लोग हर रोज करते होंगे, लेकिन इस सफर में ऐसा क्या है भला? आखिर ऐसा क्या अलग लिखने जा रहा हूँ मैं, एक नदी की धाराओं संग बहे कुछ यादगार लम्हों को साझा करने जा रहा हूँ। कुछ ही दिन पहले मैंने चर्चा की थी झारखण्ड के एक पर्वतमाला दलमा की, आज चर्चा करूँगा यहाँ की सबसे मुख्य नदी स्वर्णरेखा की जो यहाँ की जीवनरेखा है। जब स्वर्णरेखा का जलस्तर बढ़ता है तब यहाँ टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (TSAF), द्वारा नौका परिचालन या रिवर राफ्टिंग का आयोजन किया जाता है। एक बार मैंने भी इसमें भाग लिया जिसका एक अलग अनुभव आज भी मुझे ऐसे एडवेंचर की ओर आकर्षित करता है।
अक्टूबर 2013 के महीने में हमारा नौका विहार का कार्यक्रम शुरू हुआ था जमशेदपुर से 15-20 किमी की दुरी पर स्थित मनीकुई नामक जगह से जहाँ राफ्ट में बैठकर आठ-दस लोगो के साथ नदी में सफर प्रारम्भ हुआ। नदी की कलकल करती इन धाराओं में बहने का यह हमारा बिलकुल पहला मौका था। दोनों तरफ पहाड़ और जंगल एवं बीच में हम। मैंने सोचा था की धाराओं में बहकर हम आसानी से दोमुहानी (स्वर्णरेखा और खरकई नदी का संगम) तक 15 किमी तय कर लेंगे लेकिन ऐसा तो बिलकुल ही न था। नदी की धाराओं के खिलाफ चप्पू चलाना कोई आसान काम न था। राफ्ट कभी दायें भागता कभी बाएं। सम्भालना एक मुश्किल काम था।
धीरे धीरे धाराओं के संग संग हमने कांदरबेड़ा नामक जगह पर गहरे पानी में उतर कर थोड़ा मौज मस्ती किया। फिर कुछ देर बार हम फिर से राफ्ट में बैठ गए और इस झारखंडी छटा का आनंद लेते हुए दोमुहानी के करीब पहुंच गए। दोमुहानी स्वर्णरेखा और खरकई नदी का संगम है। दो नदियों का यह अद्भुत संगम काफी भयावह था, बिलकुल सागर जैसा। बस यही हमारा आखिरी पड़ाव था। दोमुहानी पार करते हुए हमारा लहरों के साथ यह सफर यहीं ख़त्म हुआ।
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