जमशेदपुर से नेपाल (काठमांडू) तक की बस यात्रा (Jamshedpur to Nepal By Bus) - Travel With RD

Tripoto
19th Jun 2014
Photo of जमशेदपुर से नेपाल (काठमांडू) तक की बस यात्रा (Jamshedpur to Nepal By Bus) - Travel With RD by RD Prajapati

नेपाल यानि हिमालय की गोद में बसा हुआ एक छोटा सा देश- जिसे हम गौतम बुद्ध की जन्मभूमि कहें या पिछले वर्ष आये विनाशकारी भूकंप का शिकार- हमेशा से ही भारत के सबसे निकटतम पडोसी देशों में शुमार रहा है। यही कारण है की दोनों देशों की ढेर सारी सभ्यता-संस्कृति भी बिलकुल एक जैसी रही हैं। यह हमारा सौभाग्य ही था की उस भयावह भूकंप से ठीक पहले ही नेपाल जाने की आकस्मिक योजना बन पड़ी और हमारी नेपाल यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न हो गयी। दिलचस्प बात यह है की जमशेदपुर से काठमांडू तक एक हजार किलोमीटर की सारी यात्रा सिर्फ बस द्वारा ही तीन चरणों में की गयी, वो भी जून 2014 के भीषण गर्मी में।

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रक्सौल में भारत-नेपाल सीमा द्वार

पहले हम पांच दोस्तों को पटना जाना था, जहाँ एक रात

जमशेदपुर से नेपाल (काठमांडू) तक की बस यात्रा (Jamshedpur to Nepal By Bus) काठमांडू के नज़ारे- पशुपतिनाथ, बौद्धनाथ, भक्तपुर दरबार और नागरकोट- नेपाल भाग -2 (Kathmandu- Nepal Part-II) काठमांडू से पोखरा- सारंगकोट, सेती नदी, गुप्तेश्वर गुफा और फेवा झील (Pokhara- Nepal Part-III) नेपाल से वापसी- बनारस में कुछ लम्हें (Banaras- Nepal IV)

दोस्त की शादी में भी शरीक होना था। तीन जून 2014 की रात दस बजे हम पटना के लिए बस से ही रवाना हुए। जमशेदपुर की भीषण गर्मी से सब बेहाल थे, लेकिन जैस ही बस ने चलना शुरू किया, थोड़ी राहत मिली। हम सब उत्तर की ओर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 33 (NH-33) पर बढ़ रहे थे, जो सड़क झारखण्ड की जीवनरेखा मानी जाती है, लेकिन उसकी स्थिति आदिकाल से ही दुखदायी है। जमशेदपुर से पटना की दुरी लगभग पांच सौ किलोमीटर है, रात भर बस में बैठे रहना था, लगभग तीन घंटे बाद राँची पहुँचने पर, पहला ठहराव लिया गया। फिर प्रस्थान हुआ, नींद भला किसे आ रही थी? राँची से हजारीबाग, गया होते हुए अंत में अगले दिन की सुबह दस बजे हम पटना पहुचे।

पटना की गर्मी तो और भी भयंकर थी। पहली बार पटना आये थे, दोस्त की शादी जहाँ होने वाली थी, वहां पर तुरंत तरोताजा होने के पश्चात् पटना शहर का मुयावना करने की ठान ली। थकान अपने शबाब पर था, लेकिन घुमक्कड़ी का कीड़ा उससे भी ज्यादा। दोपहर तीन बजे की तपती दुपहरिया में भी गाँधी मैदान की तरफ चल पड़े। गंगा किनारे बसा यह मैदान न जाने कितने एतिहासिक और राजनैतिक घटनाओ का गवाह रहा है। साथ ही यहाँ गांधीजी की विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा भी हाल में ही स्थापित की गयी है। भीषण गर्मी में पैदल चल पाना अत्यंत कठिन कार्य था, फिर भी यहाँ से एक किलोमीटर चलकर गोलघर आ गए, जहाँ से पूरा पटना दीखता है, ऐसा सुना था। किन्तु शीर्ष पर चढ़ने के बाद ऊँची इमारतों ने सारा खेल बिगाड़ दिया। सन 1770 में आये भीषण सूखे के कारण अनाज भण्डारण हेतु इसे अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया, जिसमे ऊपर के दरवाजे से भरकर डेढ़ लाख टन अनाज रखा जा सकता है। इसमें कोई भी कंक्रीट का स्तम्भ नहीं है, जो की हैरानी की बात है, साथ ही गुम्बद के अन्दर जाकर यदि कोई हल्ला करे तो उसकी आवाज 30-32 बार गूंजेगी, आश्चर्यजनक!

आगे चलते चलते पटना म्यूजियम या संग्रहालय पहुँच गए, जहाँ महापंडित राहुल संकृत्यायन द्वारा संकलित अनेक वस्तुएं मौजूद है। उन्होंने बौद्ध धर्म और गौतम बुद्ध के ऊपर काफी शोध किया, जिनकी झलक यहाँ मिलती है। साथ ही साथ इस संग्रहालय में पुराने सिक्के, शिलालेख, मूर्तियाँ, पेंटिंग, कपडे, ताम्बे के बने सामान आदि रखे हुए हैं। बिहार, उड़ीसा और अफगानिस्तान तक के अवशेष यहाँ रखे हुए है। 1917 में गंगा किनारे पाए गए विश्वविख्यात दीदारगंज यक्षी की मूर्ति तथा 20 करोड़ साल पुरानी एक पेड़ का जीवाश्म इस संग्रहालय की सबसे बड़ी विशेषता है। इतना सारा सफ़र, वो भी भीषण गर्मी में, पैदल, बहुत ही मुश्किल से अंजाम दिया गया था। इतना करते करते शाम हो गयी, फिर शादी में भी जाना था, थकान भी जबरदस्त थी, लेकिन आनंद के आगे सब बौने साबित हुए। यहाँ से निकलते ही याद आई गंगा की! पटना आकर गंगा तो देखना ही था। गंगा घाट भी जीपीएस की सहायता से पैदल ही ढूँढ लिया, लेकिन अँधेरे में सब कुछ साफ़ नजर नहीं आया। वापस आकर जल्दी जल्दी शादी समारोह निपटा लिया, देर रात गहरी नींद लेने के बाद अगली सुबह पटना से रक्सौल होते हुए काठमांडू की ओर प्रस्थान करना था।

सुबह सुबह पटना बस स्टैंड पर हमलोगों ने काठमांडू की बस ढूँढना शुरू किया, लेकिन पता चला की पटना से सीधे काठमांडू की बसें नहीं मिलती, सिर्फ रक्सौल तक ही मिलती है। रक्सौल के लिए पटना से ट्रेन भी है, लेकिन पटना से रक्सौल यानि भारत-नेपाल सीमा तक की यात्रा भी फिर से बस से ही शुरू हुई। भीषण गर्मी से बदन पक रहा था। यात्रा का यह चरण काफी कष्टदायक रहा। पसीने से तर बतर होकर मुजफ्फरपुर आ पहुंचे, जो लीची की खेती के लिए प्रसिद्द है। फिर मोतिहारी से रक्सौल तक की धूल भरी बदहाल सड़क ने बहुत देर तक परेशान किया। अंततः शाम के चार बजे हम रक्सौल पहुंच गए।

धूल और गन्दगी से भरे रक्सौल में थोड़ा विश्राम करने के बाद चार-पांच किमी दूर पर बीरगंज नामक स्थान की ओर चल दिए, जो नेपाल में पड़ता है। यह दुरी तांगे से तय की गयी। बीरगंज में सबसे पहले हमने कुछ भारतीय रूपये नेपाली रूपये से बदली करवाये। फिर शाम सात बजे रात भर का बस सफर काठमांडू के लिए रवाना हुआ। नेपाल प्रवेश करते ही गर्मी गायब हो गयी, साथ ही मोबाइल नेटवर्क भी। रास्ते भर सिर्फ पहाड़ और वादियाँ थी, फिर भी नजरों से बहुत कुछ ओझल! बस सफर का यह अंतिम चरण काफी बढ़िया रहा, और अगली सुबह छह बजे हम काठमांडू में थे। अब काठमांडू, पोखरा और वापसी की कहानी अगले पोस्टों में!

दुर्भाग्यवश इस यात्रा के कुछ फोटो गुम हो गए इसीलिए अभी मैं आपको पटना के दृश्य नहीं दिखा पा रहा हूँ। सिर्फ भारत-नेपाल सीमा और काठमांडू की ही एक फोटो दिखा रहा हूँ, लेकिन बाकि फोटो मिलते ही उन्हें जरुर यहाँ डाल दूंगा।पटना के कुछ दृश्य एवं अंत में काठमांडू पहुचना -

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पढ़िए अगले पोस्टों में- काठमांडू एवं पोखरा के नज़ारे

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