हिरनी जलप्रपात और सारंडा के जंगलों में रमणीय झारखण्ड (Hirni Falls, Jharkhand) - Travel With RD

Tripoto
7th Jan 2016
Photo of हिरनी जलप्रपात और सारंडा के जंगलों में रमणीय झारखण्ड (Hirni Falls, Jharkhand) - Travel With RD by RD Prajapati

पिछले कुछ पोस्टों में मैंने झारखण्ड का जिक्र किया, जिनमें मैंने दलमा और पतरातू घाटी का वर्णन किया था। खनिज संसाधनों एवं प्राकृतिक नजारों से समृद्ध होने के बावजूद भी पर्यटन की दृष्टि से देशवासी इस राज्य के बारे बहुत कम ही जानते हैं, इसलिए इसके बारे कुछ न कुछ लिखते ही रहने की चेष्टा करता हूँ।

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हिरनी जलप्रपात, झारखण्ड

झारखण्ड वो राज्य है जो पुरे देश को

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बिजली उत्पादन के लिए कोयला देता है लेकिन इसके खुद अपने ही गांव आज तक ढंग से रोशन नहीं हो पाये हैं। कोयले के अलावा यहाँ लौह अयस्क की भी भरमार है जो मुख्यतः पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा के जंगलों के गर्भ में दबे पड़े हैं। सारंडा का शाब्दिक अर्थ होता है सात सौ पहाड़ियां। इस जंगल के कुछ हिस्से उड़ीसा में भी पड़ते हैं। यहाँ कटहल, साल, पलास, आम, जामुन और बांस के पेड़ मुख्य रूप से पाये जाते हैं। जानवरों में हाथी सबसे ज्यादा पाये जाते हैं, साथ ही तेंदुए, जंगली भैंस, सांभर, भालू आदि भी हैं लेकिन इनकी संख्या अब कम ही रह गयी है। और जंगलों में रहने वाले जनजातियों में मुख्य रूप से हो और संथाली जातियां पायी जाती है। गुआ, नोअमुण्डि, किरीबुरू, बड़बिल ये सारे इलाके सारण्डा में ही हैं और यहाँ के खदान निरंतर लोहा पत्थर उगल रहे हैं।

पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा से 68 किमी उत्तर की और राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 75 किनारे सारण्डा के जंगलों में ही एक रमणीय जल प्रपात है हिरनी। चाईबासा-राँची हाईवे पर यह रांची से 70 किलोमीटर दक्षिण तथा खूंटी से 30 किमी दक्षिण की की ओर स्थित है। मेरी यात्रा जमशेदपुर से चाईबासा-चक्रधरपुर होते हुए शुरू होती हैं। जमशेदपुर से 65 किलोमीटर पश्चिम की ओर चाईबासा स्थित है। जमशेदपुर पूर्वी सिंहभूम जिले में है, जबकि चाईबासा पश्चिमी सिंहभूम जिले में। चाईबासा से NH-75 पर ही बीस किलोमीटर आगे चक्रधरपुर नामक छोटा सा शहर है, आस पास के अभी रेलवे स्टेशन चक्रधरपुर रेलमंडल के अंतर्गत ही आते हैं। फिर चक्रधरपुर से लगभग चार-पांच किलोमीटर बाद रास्ते में ही नकटी जलाशय परियोजना दिखाई पड़ती है। यह डैम खरकई नदी बेसिन पर ही सन 2010 में बनायीं गयी थी, इस डैम की खासियत यह है की दूर से देखने पर लद्दाख जैसा दृश्य पैदा करती नजर आती है।

नकटी देखने के उपरांत पांच-दस किलोमीटर बाद जंगल शुरू होते हैं और टेबो घाटी प्रारम्भ होती है। गाँव का नाम भी टेबो ही है, भयंकर बीहड़ होने के कारण गाड़ियों का आवागमन भी कम ही होता है। इक्के दुक्के ग्रामीण जंगलों में साइकिल से लकड़ियाँ ढोते हुए मिल जाते हैं। इलाका नक्सल प्रभावित होने के कारण भी लोग कम ही इधर आते हैं। यहाँ तक की दिन के दोपहर में भी कई लूट पाट की घटनाएं हो चुकी हैं, रात की तो बात ही अलग है। लेकिन सारंडा के जंगलों का सौंदर्य भी अद्भुत होता है। पेड़ों की सघनता इतनी की रोड तक धुप भी मुश्किल से पहुँच पाती है। ऊंचाई बढ़ने के साथ साथ पीछे की नकटी डैम फिर से एक बार दिखाई पड़ती है। सुनसान-वीरान-बीहड़ जंगलों में आधे घंटे तक गुजरने के बाद घाटी समाप्त होता है और बंदगांव नामक स्थान से कुछ ही दुर आगे हमारी मंजिल आ जाती है यानि हिरनी प्रपात ।

इस गाँव का नाम भी हिरनी ही है तथा यह इलाका रांची के पठार में है। रामगढ नदी जब इन पहाड़ों से गिरती है तब हिरनी फाल्स का निर्माण होता है। मुख्य सड़क से आधे किलोमीटर अंदर जाने पर मुख्य द्वार है जहाँ आजकल प्रपात देखने के लिए झारखण्ड पर्यटन विभाग द्वारा पांच रूपये के टिकट भी लिए जाने लगे हैं।

अंदर प्रवेश करते ही सैकड़ों लोग पिकनिक मानते हुए और नाचते गाते दिखाई पड़ जाते हैं। और इस दृश्य के मध्य में 121 फ़ीट ऊंचाई से गिरती हुई जलधारा दिखाई देती है। पहाड़ी के ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनीं हुई हैं जहाँ से आप नदी का मार्ग देख सकते हैं, साथ ही एक व्यू पॉइंट भी बनाया गया है। वैसे बाकी मौसम में यहाँ भीड़ नदारत ही रहती है। जनवरी का महिना होने के कारण यहाँ के हर पत्थर-चट्टान पर लोग पिकनिक मनाने में व्यस्त थे, जबकि झरने के बाहरी इलाकों में किसी का नामों निशाँ नहीं था। सीढियों से चढ़कर झरने के ऊपर से नीचे का दृश्य तो और भी रूमानी लगता है।

अब एक नजर जरा तस्वीरों पर भी -

सारंडा के इन सुरमयी नजारों में न जाने कब सफ़र समाप्ति की और बढ़ जाता है और हम वापस उस टेबो घाटी की ढलानों में अपनी मोटरसाइकिल को लुढ़काते हुए वापस घर की ओर बढ़ जाते हैं। अगले पोस्ट में झारखण्ड के इससे भी बड़े एक और जलप्रपात दशमफाल्स की चर्चा करूँगा। इस लेख को भी विराम देने का वक़्त हो चुका है।

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