झारखण्ड के रमणीय स्थलों की श्रृंखला में पिछली चर्चा हिरनी जलप्रपात की हुई थी।झारखण्ड का सौंदर्य चर्चा करने पर जलप्रपातों की चर्चा स्वतः हो जाती है और जलप्रपातों की चर्चा करने पर राँची के आस पास के इलाकों का चर्चा करना अनिवार्य हो जाता है। इसी सन्दर्भ में आज राँची से लगभग चालीस किलोमीटर दक्षिण की ओर स्थित दशम जलप्रपात का जिक्र करना आवश्यक हो गया है।
दशम जलप्रपात
स्वर्णरेखा की सहायक नदी कांची जब दक्षिणी छोटानागपुर पठार या राँची के पठारी हिस्से से बहती हुई 144 फ़ीट की ऊंचाई से गिरती है तब इस दशम जलप्रपात का निर्माण होता है। झारखण्ड के पहाड़ों की लीला अगर देखनी हो तो यह जगह सर्वोत्तम है जो पहली नजर में सचमुच हिमालय की घाटियों जैसी ही लगती है। चारों तरफ जंगल ही जंगल हैं और झरने की घाटी काफी गहरी है। बरसात के समय तो यह काफी भयावह रूप धारण कर लेती है।
बोलचाल में इसे दशम फाल्स ही कहा जाता है। दरअसल दशम शब्द की उत्पत्ति स्थानीय मुंडारी शब्द दा सोंग से हुई है। मुंडारी भाषा में दा का मतलब होता है पानी और सोंग का मतलब है उड़ेलना। यानि पानी उड़ेलना। प्रकृति द्वारा पानी उड़ेलने की घटना होने के कारण ही स्थानीय लोगों ने ऐसा नाम रखा होगा, लेकिन आज सब इसे दा सोंग के जगह दशम ही कहते हैं।
दशम जलप्रपात का पानी लगभग साफ़ ही रहता है। पिकनिक के समय काफी भीड़ रहती है, हर जगह सिर्फ झारखण्ड के स्थानीय गाने की बजते हैं। बरसाती नदी होने के कारण गर्मियों में कभी कभी यह प्रपात सुख भी जाता है। ऊंचाई से गिरती धारा के नीचे एक छोटा तालाब सा बन गया है जिसमें लोग जी भरकर नहाते है। लेकिन यह काफी खतरनाक भी है और दुर्घटनाओं के कारण अनेक मौतें भी हुई हैं। हाल ही में इसे विकसित कर नीचे तक जाने के लिए बड़ी-बड़ी सीढ़ियाँ बनायीं गयी हैं। चट्टानों पर फिसलने से होने वाले दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तारों के घेरे भी लगाये गए हैं। फिर भी इन चट्टानों पर बड़ी सावधानी से ही चलना पड़ता है।
चूँकि इस जलप्रपात से सबसे नजदीकी शहर रांची ही है, इसीलिए अगर आप अन्य राज्यों से आना चाहें तो पहले रांची ही आना अच्छा रहेगा। फिर वहां से बस द्वारा जमशेदपुर जाने वाले मार्ग NH-33 पर आपको बढ़ना होगा। फिर NH-33 से कोई निजी वाहन ही वहां तक जा पायेगी क्योंकि सार्वजनिक परिवहन वहां उपलब्ध नहीं है। पहाड़ों के बीच वो सुरमई स्थल आपका इंतज़ार कर रहा है।
DEORI TEMPLE, TAMAR, NH-33
फिलहाल इस जलप्रपात का प्रबंधन स्थानीय समिति के लोग ही कर रहे हैं। इसे अभी और विकसित कर राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने की जरुरत है।
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