महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई है। यह हम सबको पता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाराष्ट्र का टूरिज्म कैपिटल क्या है? आपमें से ज्यादातर लोग बगैर गूगल की गली में जाए शायद ही इस सवाल का सही जवाब दे पाए। तो इस सवाल का जवाब है औरंगाबाद। वैसे इस ऐतिहासिक शहर का नाम बदलकर अब छत्रपति संभाजी नगर हो गया है। बाहरी आक्रमण से शहर को बचाए रखने कर लिए इलाके के चारों ओर करीब 52 प्रवेशद्वारों बनाए गए थे। इस वजह से महाराष्ट्र का यह शहर दुनियाभर में 'सिटी ऑफ गेट्स' नाम से भी जाना जाता है। बाकी छत्रपति संभाजी नगर को महाराष्ट्र का टूरिज्म कैपिटल बनाने के पीछे यहां मौजूद अनगिनत ऐसे पर्यटन स्थलों का होना है, जिनका सिर्फ राज्य या फिर देश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में बोलबाला है।
अब अगर आप महाराष्ट्र के टूरिज्म कैपिटल घूमने का मन बना रहे हैं, तो अपने साथ कम से कम 3 दिनों का समय लेकर आइए। ताकि ऐसा न हो कि यहां से लौटते वक्त आपके अंदर किसी भी एक खास जगह को न देख पाने का मलाल रह जाए। क्योंकि देखने के लिए यहां आपके पास दौलताबाद किला, औरंगजेब के मकबरा, बीबी का मक़बरा, एलोरा केव्स, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, सोनेरी महल, पनचक्की जैसे अनगिनत जगहें हैं। यानी एक अकेले शहर में आपके लिए देखने को इतने भव्य और ऐतिहासिक टूरिस्ट प्लेस हैं कि दिन कम पड़ जाए, लेकिन देखने के लिए कुछ न कुछ छूट ही जाए। तो चलिए बिना देर किए जानते हैं कि कैसे 3 दिनों में छत्रपति संभाजी महाराज शहर की सैर की जाए।
छत्रपति संभाजी महाराज शहर घूमने के लिए जरूरी है सबसे पहले यहां तक पहुंचना। देश का सबसे तेजी से उभरता शहर होने के चलते पर्यटक सड़क, रेल और हवाई तीनों मार्गों के जरिए बड़ी आसानी से यहां तक पहुंच सकते हैं। यहां पहुंचने और घूमने के बीच एक और जरूरी काम जो कि किसी जगह ठहरने का है, तो इसके लिए भी आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। इस शहर में आपको आपके बजट और सुविधाओं के अनुसार बहुत सारे होटल मिल जाएंगे। बाकी घूमने के लिहाज से रेलवे स्टेशन के करीब ही किसी होटल में ठहरना ज्यादा सही होगा। क्योंकि इसके बाद फिर शहर के सभी कोने में घूमना आपके लिए कहीं ज्यादा आसान हो जाएगा। तो चलिए अब जब आपने शहर में आकर यहां ठहरने का कमरा भी तलाश लिया है तो फिर हम अपने सफर पर निकल पड़ते हैं।
Day-1
रेलवे स्टेशन से करीब 6 किमी दूर स्थित बीबी का मकबरा औरंगाबाद शहर को घूमने की शुरुआत करने के लिए सबसे सही जगह होगी। क्योंकि जिस आदमी के नाम पर इस शहर का कभी नामकरण हुआ था,यह मक़बरा उसी की पत्नी का है। औरंगजेब के लड़के ने अपनी मां की याद में साल 1651-61 के दौरान ताज महल की हूबहू नकल कर बीबी का मकबरा बनाया। आगरा के ताजमहल की हूबहू नकल होने के चलते बीबी का मकबरा महाराष्ट्र का ताजमहल भी कहलाता है। बीबी का मक़बरा पयर्टकों के लिए सुबह 8 बजे से शाम 8 तक खुला रहता है। और गेट से अंदर जाने के लिए आपको 25 रुपए का टिकट लेना होता है। हमारी सलाह होगी कि आप सुबह जिनती जल्दी यहां पहुंच सकते हैं, उतनी जल्दी पहुंच जाएं। क्योंकि पहला तो आप बाद में होने वाली भीड़ से बच जाएंगे। और दूसरा कि सुबह के वक्त इस ऐतिहासिक मक़बरे की खूबसूरती को आप इत्मीनान के साथ देख पाएंगे।
बीबी का मकबरा देखने के बाद हम यहां से महज 2 किमी दूर सोनेरी महल की ओर बढ़ जाएंगे। 17वीं सदी में बना यह महल अपनी ऐतिहासिकता की वजह से 1979 में संग्रहालय में तब्दील हो गया। यहां पर आपको प्राचीन कलाकारी से जुड़े बहुत सारे आर्टवर्क सहेजे हुए दिख जाएंगे। इतना ही नहीं तो महल में कई ऐसी पेंटिंग्स भी है, जो सोने से बनी हुई हैं। इसलिए इसका नाम सोनेरी महल रखा गया। सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक सोनेरी महल पर्यटकों के लिए खुला रहता है। एंट्री फीस के नाम पर महज 10 रुपए का टिकट लेकर आप सोनेरी महल की खूबसूरती को निहार सकते हैं।
सोनेरी महल घूम लेने के बाद हम चल देंगे छत्रपति शिवाजी महाराज म्युज़िम देखने। सुबह 10:30 बजे से शाम 6 बजे तक खुले रहने वाले म्युज़िम में एंट्री के लिए पर्यटकों को 80-90 रुपए खर्च करने होते हैं। यहां आप वैभवशाली मराठा इतिहास से जुड़े ढेर सारी कलाकृतियों को देख सकते हैं। इस संग्रहालय में कुल 6 प्रदशनी है। यहां आपको युद्धक्षेत्र में इस्तेमाल हुए हथियार, 500 साल पुराना युद्ध सूट, औरंगजेब की हस्तलिखित कुरान, 400 साल पुरानी पैठनी साड़ी, समकालीन सिक्के देख सकते हैं। जिन्हें देखकर यहां आने वाले पर्यटकों के अंदर मराठा यौद्धाओं की वीरता एहसास होता है और मातृभूमि के प्रति प्रेम का सागर उमड़ पड़ता है।
उपर्युक्त तीन स्थानों को घूमने के बाद हम होटल लौट जाएंगे। यहां दोपहर का खाना खाने के बाद थोड़ा-सा आराम कर लीजिए। और फिर हम निकल जाएंगे एक और नई जगज एक्सप्लोर करने। नई जगह से मेरा मतलब पुरानी जगह पनचक्की यानी पानी से चलने वाली चक्की। सुबह 7 बजे से शाम 8 बजे तक खुले रहने वाली मध्ययुगीन काल से मौजूद यह मशीन उस दौर के विज्ञान का इतिहास बताती है। इस चक्की का निर्माण करीब साल 1695 में कराया गया। इसके मदद से दरगाह पर आने वाले सूफी-संतों की रोटी के लिए आटा पीसा जाता था। यदि आप इतिहास प्रेमी हैं तो आपको यह जगह खूब पसंद आने वाली है।
शाम का वक्त बिताने के लिए आप पनचक्की से महज तीन किमी दूर सिद्धार्थ गार्डन और चिड़ियाघर घूमने जा सकते हैं। चिड़ियाघर में आपको वाइट टाइगर, चीता, लोमड़ी, मगरमच्छ, सांप, हिरन और हाथी जैसे जानवर देख सकते हैं। दूसरे हिस्से में मौजूद गार्डन में बच्चों के उछलकूद के लिए तमाम झूले मिल जाएंगे। शाम के वक्त इस गार्डन में बैठकर सूर्यास्त होते देखने का अपना अलग मजा है। वैसे इसके बाद आप गार्डन के तीसरे हिस्से यानी एक्यूरिएम भी जा सकते हैं। यहां आपको अनगिनत खूबसूरत मछलियों को एक छत के नीचे देखने का मौका मिल जाएगा। सुबह 10 बजे से शाम 7 बजे तक खुले रहने वाले इस चिड़ियाघर में प्रवेश के लिए महज 5 से 10 रुपए का टिकट लेना होता है।
चिड़ियाघर घर से निकलने के बाद आप शहर के नाइट लाइफ को एन्जॉय करने के लिए लोकल मार्केट जा सकते हैं। आप यहां का स्ट्रीट फूड खाकर पेट पूजा कर सकते हैं। और अपनी पंसद के अनुसार शॉपिंग का भी लुत्फ़ ले सकते हैं। इसके बाद सीधा अपने होटल जाकर बिस्तर पर लुढ़क जाना है। ताकि हमारा शरीर अगली सुबह के सफर के लिए तैयार हो जाए।
Day-2
दूसरे दिन सुबह-सुबह नास्ता करने के बाद हमें पहुंच जाना है शहर के मुख्य बस स्टैंड पर। यहां से हमें बस पकड़नी है देवगिरी/दौलताबाद किले के लिए। शहर से करीब 15 किमी की दूरी पर स्थिति इस बेहद भव्य और ऐतिहासिक किले तक पहुंचने में आधे घंटे का वक्त लगता है। इस किले की भौगोलिक स्थिति इतनी शानदार है कि यहां से समूचे भारत पर राज किया जा सकता था। यही कारण है कि मोहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी को दिल्ली से यहां पर स्थलांतरित कर दिया था। करीब 200 मीटर की ऊंची संकीर्ण पहाड़ियों पर बना यह किला मध्यकालीन भारत का सबसे मजबूत किला है। इस किले का निर्माण ही कुछ इस तरह किया गया कि युद्ध में बगैर छल-कपट किए इसे कोई जीत नहीं पाया।
किले में प्रवेशद्वार के लिए आपको जिस मुख्य दरवाजे से होकर गुजरना होता है, उसे महाकोट दरवाजा कहा जाता है। किले में प्रवेश के बाद आपको यहां ढेर सारे तोप देखने को मिल जाएंगे। जिनका इस्तेमाल युद्ध में किया जाता था। आप किले के अंदर एक ऐसी मीनार देखकर चौंक जाएंगे। जिसकी ऊंचाई इतनी ज्यादा है कि भारत में कुतुबमीनार के बाद इसी का नंबर आता है। साल 1445 में बनाए गए इस मीनार का नाम चांद मीनार है और इसमें करीब 230 सीढियां हैं। किले को घूमते वक्त आपको हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों से जुड़े स्मारक देखने को मिल जाएंगे। दौलताबाद किले के ऐतिहासिक महत्व के इतर इसकी वास्तुकला और नक्काशी भी आपका मन मोह लेने के लिए काफी है।
महाराष्ट्र राज्य के 7 अजूबों में से एक दौलताबाद किले को ठीक से देखने के लिए बहुत जरूरी है कि इससे जुड़े इतिहास को जानना और समझना। आप अपने लिए एक गाइड हायर कर लें। क्योंकि जब आप किले को तैयार करने में इस्तेमाल हर पत्थर के पीछे की कहानी जानते हुए उन्हें देखते हैं, तब असल मायनों में दौलताबद जैसे ऐतिहासिक किले को घूम पाने में सफल होते हैं। पयर्टकों के लिए किला सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। इसमें प्रवेश पाने के लिए भारतीयों को 50 रुपए और विदेशी पर्यटकों को 300 रुपए खर्च करने होते हैं। इस किले के मुख्य आकर्षण कोर्ट बिल्डिंग, सीढ़ीदार कुएं, भारतमाता मंदिर, हाथी टैंक, चांद मीनार, आमखास इमारत, चीनी महल और रंग महल देखने में दोपहर हो जाएगी।
दौलताबद फोर्ट घूमने के बाद दोपहर के खाने के लिए आप इसके नजदीक ही मौजूद ढेर सारे होटल्स में से किसी भी एक जगह ठहर सकते हैं। यहां आप लोकल फूड के जरिए शहर की पाक-कला को भी नजदीक से देख और समझ सकते हैं। पहले खाने और फिर थोड़ा सुस्ताने के बाद हम निकल जाएंगे एक ऐसे शख़्स की कब्र से मुलाकात करने जिसके नाम पर शहर का नाम पड़ा। जी हां, हम बात कर रहे हैं मुगल काल के सबसे क्रूर शासकों में से एक औरंगजेब के मकबरे की।
दौलताबद से टैक्सी या फिर बस पकड़ हम करीब 10 किमी का सफर तय कर खुलदाबाद नामक इलाके में पहुंच जाएंगे। यही वह इलाका है जहां मुगल साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली शासक औरंगजेब का मकबरा है। औरंगजेब की मृत्यु साल 1709 में अहमदनगर में हुई। लेकिन अंतिम इच्छा के मुताबिक उसकी कब्र को महान सूफी संत शेख जैनुद्दीन की दरगाह के बगल में दफनाया गया। शुरुआत में मिट्टी से बने इस मकबरे को इस्लामिक और राजस्थानी वास्तुकला की झलक देखने को मिलती है। मक़बरे के पास एक पत्थर लगा है जिस पर शहंशाह औरंगज़ेब का पूरा नाम- अब्दुल मुज़फ़्फ़र मुहीउद्दीन औरंगज़ेब आलमगीर लिखा है।
वैसे देखने के लिए बाकी मुगल शासकों की तरह औरंगजेब की कब्र कुछ खास भव्यता समेटे हुए नहीं है। लेकिन अगर आप इतिहास में जरा भी दिलचस्पी रखते हैं, तो फिर आपकी नजरों में इस जगह की बेहद अहमियत होगी। आप करीब एक घंटे में औरंगजेब की कब्र के साथ ही बगल में उसके बेटे और पत्नी की कब्र भी देख सकते हैं। इसके बाद अगर आप चाहे तो शाम का वक्त आसपास के इलाके में चहलकदमी कर बीता सकते हैं। खुलदाबाद के सघन इलाके में टहलते वक्त आपका राबता इतिहास की उन गलियों से होगा जो आपको मध्यकाल में लेकर चली जाएंगी। वैसे इसके बाद आप दोबारा शहर लौटने की बजाय यहां से कुछ 5 किमी दूर एलोरा हेरिटेज रिसॉर्ट में ठहर सकते हैं।
क्योंकि हमारे तीसरे और आखिरी दिन के सफर की शुरुआत यही से होने वाली है।
Day-3
तीसरे दिन की शुरुआत हम भगवान भोलेनाथ के दर्शन के साथ करेंगे। जी हां, इस शहर का सौभाग्य है कि शिव पुराण में जिन 12 ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख किया गया है, उनमें से एक यहीं पर स्थित है। हम बात कर रहे हैं, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की। 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे छोटे ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर में पारंपरिक दक्षिण भारतीय वास्तुकला देखने को मिलती है। मंदिर भक्तों के लिए सुबह 5:30 से रात 9 बजे तक खुला रहता है। सावन के महीने में भक्तों की भीड़ को देखते हुए मंदिर में प्रातःकाल 3 बजे से लेकर देर रात 11 बजे तक प्रवेश की अनुमति होती है। मंदिर में प्रवेश के लिए तो किसी तरह का कोई शुल्क नहीं है। बस शर्त इतनी है कि मंदिर परिसर में जाने के लिए पुरुषों को शर्ट निकालनी होती है और अपना फोन भी गेट के बाहर ही जमा करना होता है। तो सुबह-सुबह भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने के बाद हम अपने साथ शांति और सुकून को सहेजकर अपने अगले पड़ाव की ओर चल देंगे।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग से महज एक किमी की दूरी पर हमारा इंतजार करने रहा टूरिस्ट स्पॉट ऐसा-वैसा नहीं बल्कि यूनेस्को से विश्व विरासत स्थल का दर्ज हासिल करने वाली जगह है। हम बात कर रहे हैं, दुनियाभर के लोगों के लिए आश्चर्य और आकर्षण का विषय बनने वाले अविश्वसनीय कैलाश मंदिर और अद्वितीय एलोरा गुफाओं की। पयर्टकों के लिए एलोरा केव्स के गेट सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक खुले रहते हैं। एंट्री के तौर पर आपको 50 रुपए का टिकट लेना होता है। दुनिया की सबसे नायाब जगहों में शुमार इस पर्यटन स्थल को ठीक से घूमने में कम से कम 4 से 5 घंटे का लंबा समय लग जाता है। इसलिए अंदर जाने से पहले आप भरपेट नाश्ता जरूर कर लें। ताकि फिर एकदम निश्चिंत होकर इतिहास की इमारत की इबादत की जा सके।
हमारे यहां एक आम चलन है कि जब कोई जगह हद से ज्यादा खूबसूरत नजर आए तो उसे स्वर्ग का हिस्सा बता दिया जाता है। इसी तरह तर्ज पर किसी चीज का अस्तित्व जब अविश्वसनीय लगे तो उसे एलियंस ने ही बनाया होगा कि थियरी गढ़ दी जाती है। ऐसा ही कुछ हमारे एलोरा गुफा के आकर्षण का केंद्र बिंदू 'कैलाश मंदिर' के साथ भी है। एक समूचे चट्टान को काटकर तैयार किया गया 2 मंजिल मंदिर आज भी दुनियाभर के लिए हैरत का विषय है। 276 फीट लंबे और 154 फीट चौड़े मंदिर को बनाने के दौरान करीब 40 हजार टन के पत्थरों को चट्टान से हटाया गया। तब जाकर दुनिया के सामने 90 ऊंचा कैलाश मंदिर अस्तित्व में आया। मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राष्ट्र कूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम ने साल 757-783 के दौरान कराया। यहां घूमने के दौरान आप यह देखकर हैरान हो जाएंगे कि इसकी दीवार पर रामायण और महाभारत की कहानी उकेरी हुई मिल जाएगी। गाइड की मदद से आप यहां की दीवारों पर करीने से की गई कलाकृतियों के पीछे की कहानी जान सकते हैं।
एलोरा स्थित ज्यादातर गुफाओं का निर्माण छठवीं से दसवीं शताब्दी के दौरान हुआ। यहां मौजूद 100 में से सिर्फ 34 गुफाएं ही पर्यटकों के लिए खोली गई हैं। इनमें से 12 गुफा(1 से 12) बौद्ध धर्म, 17 गुफा(13 से 29) हिन्दू धर्म और 5 गुफा(30 से 34) जैन धर्म से संबंधित हैं। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म से जुड़ी या फिर कहें कि मूलतः भारत की आध्यात्मिक, राजनीति और सामाजिक इतिहास की कहानी कहते इन गुफाओं में प्रवेश करने के बाद आपको अतीत के आंगन में पहुंच जाने का आभास होगा। गुफाओं की दीवारों ओर हाथ फेरने भर से ऐसा ऐसा लगेगा कि आप किसी टाइम मशीन में बैठ उस कालखंड में पहुंच गए हैं, जब इनका निर्माण हो रहा था। यहां एक दूसरे के अगल-बगल में इस धरती के तीन प्रमुख धर्मों की गुफाओं को देखकर यह भी समझ आ जाएगा कि क्यों दुनियाभर में लोग भारत के गंगा-जमुनी तहजीब की तारीफ करते हैं।
अगर आप बारिश के मौसम में आएंगे तो आपको आसपास का सारा परिसर हरे घास की चादर ओढ़े मिलेगा। गुफा नंबर 29 के पास तो बरसात के दिनों में आपको महाराष्ट्र के सबसे खूबसूरत झरनों में से एक के दर्शन हो जाएंगे। एलोरा केव्स की 34 गुफाओं से गुफ्तगू कर उनका इतिहास, भूगोल जान लेने के बाद दोपहर खत्म होने तक इस जगह को अलविदा कहने का वक्त हो जाएगा। गेट से बाहर आकर हम अपने दोपहर का खाना खाकर थोड़ा आराम कर लेंगे। और फिर बस पकड़ निकल जाएंगे औरंगाबाद स्टेशन। यहां आकर हमारी तीन दिनों की यात्रा आधिकारिक रूप से खत्म हो जाएगी। तो कैसा लगा आपको महाराष्ट्र के टूरिज्म कैपिटल छत्रपति संभाजी महाराज की ट्रिप के लिए बनाया हमारा तीन दिनों का प्लान? वैसे इसके अलावा और भी बहुत कुछ है इस शहर में एक्सप्लोर करने के लिए। लेकिन, बाकी जगहों को किसी दूसरी ट्रिप के दौरान घूम लिया जाएगा।
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