विश्व पर्यावरण दिवस लगभग 100 से भी अधिक देशों के लोगों के द्वारा 5 जून को मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना , विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को देखना, प्रकृति को बचाने के लिए प्रयास ,बढ़ते तापमान और प्रदूषण को कम करने का प्रयास करना हैं। पर्यावरण दिवस की हर साल एक नयी थीम होती हैं इस साल की थीम "Ecosystem Restoration" होगी जिसका मतलब हैं -पृथ्वी को फिर अच्छी अवस्था मे ले आना।हर साल एक देश इसको होस्ट करता हैं ,इस साल पाकिस्तान इसकी मेजबानी करेगा। 2011 और 2018 मे भारत ने भी इसे होस्ट किया था।
एक यात्री होने के नाते कैसे आप प्रकृति को बचाने मे योगदान दे सकते हैं इसके लिए आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं हैं। केवल कुछ छोटी छोटी बातों का अगर यात्रा के दौरान या यात्रा की तैयारी के समय ख्याल रखा जाए तो भी हमारा योगदान इसमें काफी होगा -
1. यात्रा के दौरान किसी व्हीकल मे अकेले जाने के बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट या वाहन को साझा करके जा सकते हैं। इससे एक ही गाडी के ईंधन से कई लोग यात्रा कर सकते हैं। इस से नए लोगो से मिलने का मौका तो मिलेगा ही साथ ही साथ ये तरीका काफी सस्ता भी साबित होगा।
2. बिजली के उत्पादन के समय भी कई विषैली गैसे ,धुँआ ,खतरनाक रेडियोएक्टिव अपशिष्ट आदि कही न कही पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती हैं। इसीलिए होटल ,रिसोर्ट आदि मे अनावश्यक रूप से लाइट ,पंखा ,टीवी आदि चालु न छोड़े। इससे बिजली की बचत होगी और अप्रत्यक्ष रूप से आपका प्रकृति को अच्छा सहयोग मिलेगा।
3.अपने साथ काफी जरुरी सामान ही पैक करके ले जाए विशेष रूप से अगर आप एयर ट्रेवल कर रहे हैं तब।अब आप सोचेंगे कि इसका पर्यावरण से क्या लेना देना तो इसको ऐसे समझे कि जितना ज्यादा भार किसी वायुयान मे होगा तो उड़ने के लिए उतने ही ज्यादा ईंधन की उसे जरूरत पड़ेगी।कम भार साथ ले जाने से कोई भी यात्रा भी हमेशा आराम से ही होती हैं।
4.यात्रा के दौरान हमेशा जो चीज सबसे ज्यादा काम आती है वो हैं पानी की बोतल। अगर आप बार बार हर जगह नयी पानी की बोतल खरीद कर पानी पीते हैं और फिर इन बोतल को कही भी फेक देते हैं तो आप यह जान लीजिये कि इन बोतल को विघटित होने मे एक हज़ार से भी ज्यादा साल लग जाता हैं। यह बोतल जमीन मे दबकर या तालाबों,नदियों मे रहकर , मिटटी और पानी मे कई विषैले तत्व और रसायन को छोड़ती रहती हैं। यहाँ तक की अगर आप इन बॉटल्स को बनने की प्रक्रिया को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि ये तो अपने निर्माण के समय से ही हमारे लिए नुकसानदायक होती हैं।
5. पहाड़ों या समुद्री इलाकों मे अगर यात्रा के दौरान आपको कुछ एक्स्ट्रा समय मिले तो आप अपने ग्रुप के साथ मिलकर पौधरोपण , पहाड़ों के कचरों की सफाई ,नदियों की सफाई ,फेंकी हुई प्लास्टिक को इक्क्ठे करना जैसी गतिविधिया आयोजित कर सकते हैं या फिर अगर वहा ऐसी गतिविधी चल रही हो तो उसमें अपना योगदान दे सकते हैं।
6.हर एक जगह के पर्यावरण नियमों का पालन करे। जैसे अगर कोई क्षेत्र नो -प्लास्टिक क्षेत्र हैं तो वहा प्लास्टिक का उपयोग ना करके उनका सहयोग करे।
7. अब कई जगह ईको फ्रेंडली होटल्स एवं रिसॉर्ट्स बन गए हैं।जिनका मुख्य उद्देश्य होता है पर्यावरण को कम से कम नुक्सान पहुचाये आपको सर्वसुविधाये देना। ये होटल्स आपको अच्छे हरे भरे वातावरण मे बनी मिलती हैं ,सूर्य ऊर्जा से बिजली लेती हैं ,प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करने देती और सबसे अच्छी बात आपको प्रकृति के करीब रखकर उसका महत्व समझने को मजबुर कर देती हैं। तो इन होटल्स मे कुछ दिन रहकर आप खुद भी ईको फ्रेडंली आदत मे ढलने लगते हैं।
8.यात्रा के दौरान प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करे। प्लास्टिक हमारी प्रकृति की सबसे बड़ी दुश्मन मानी जाती हैं। यह प्लास्टिक जल और जमीन दोनों को प्रदूषित करती हैं। आप प्लास्टिक के प्रोडक्ट्स की जगह ईको- फ्रेंडली ट्रेवल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करे। ऐसे प्रोडक्ट्स की जानकारी आपको इंटरनेट पर आसानी से मिल जायेगी।एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत से हर दिन करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कूड़ा निकलता है, जिसमें से आधा कूड़ा यानी करीब 13 हजार टन अकेले दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु से ही निकलता है।ये कचरा इधर उधर फेल कर नदी-नालो या समुद्र मे मिल जाता हैं।
9.ये बात भी सही हैं कि अभी तक हम पूर्ण रूप से प्लास्टिक का इस्तेमाल छोड़ नहीं सकते हैं।कई जगह हमे मजबूरी मे भी प्लास्टिक प्रोडक्ट्स इस्तेमाल कर जाने पड़ते हैं। तो यात्रा के दौरान इन अनुपयोगी थैलियां ,कुरकुरे चॉक्लेट्स आदि के पैकेट्स को सीधा डस्टबिन मे डाले या अगर डस्टबिन ना हो तो अपने साथ रखे और डस्टबिन मिलने पर फेंक दे। अगर आपने इन्हे पहाड़ों पर फेंक दिया तो कई बार ये ऐसी जगह पहुंच जाते हैं जहाँ कई बरसो तक इन्हे कोई उठाने वाला नहीं मिलता तो ये मिटटी मे दबकर उसे दूषित और उसकी उर्वरा शक्ति को कम कर देते हैं। कई बार समुद्र ,नदियों और पहाड़ों के जीव इन्हे खा जाते हैं और फिर दम तोड़ देते हैं।आपने सुना होगा कई बार मछलियों को काटने पर उनके शरीर से काफी प्लास्टिक निकल जाता हैं।
10. इन सबके अलावा आप जंगली पेड़ पोधो और जानवरों को नुकसान ना पंहुचा करके , लोकल नियम कायदों और कल्चर का सम्मान करके , बिना जरूरत के कागजों (टिकट्स आदि )को ना प्रिंट करके आप इस प्रकृति के कर्ज को थोड़ा कम कर सकते हैं।
हालाँकि हर जगह इन सभी बातों पर पूर्ण रूप से अमल करना भी कई कारणों से सम्भव नहीं हो पाता हैं लेकिन हमारी कोशिश यह रहनी चाहिये कि जितना हो सके इन चीजों को याद रख कर इनका पालन किया जाये।
धन्यवाद्।
-ऋषभ भरावा (लेखक,पुस्तक :चलो चले कैलाश )