चिड़ियों के चहचहाने से सुबह जल्दी ही आँख खुल गयी तो नैनीताल के मॉल रोड पर स्थित शीला होटल के कमरा नंबर 46 की खिड़की से मैंने अलसाई आँखों से बाहर को झांका! सात पहाड़ियों से घिरी नैनी झील का पानी एकदम स्तब्ध और शांत था। कमरे से बाहर निकल कर छज्जे पर आया तो नीचे सुनसान मॉल रोड, आकर्षक डिज़ाइन वाली रेलिंग, फिर नीचे वाली सड़क, और उसके बाद झील दिखाई दी! छज्जे पर पड़ी हुई प्लास्टिक की एक कुर्सी रेलिंग के पास खींच कर मैं वहीं बैठ गया।
झील से भी परे यानी ठंडी सड़क पर कोहरे में लिपटी हुई, लाल रंग से पुती हुई एक इमारत की परछाई सी महसूस हो रही थी। चारों तरफ बिखरी हरियाली के बावजूद, होटल के ठीक सामने एक सूखा हुआ पेड़ था, जिसकी टहनियों से पानी की बूंदें रह-रह कर टपक रही थीं। जब भी कहीं हरियाली के मध्य कोई एकाकी सूखा हुआ पेड़ नज़र आता है तो कटी पतंग फिल्म के गीत की एक पंक्ति कानों में गूंजने लगती है - 'अपनी अपनी किस्मत है, कोई हंसे कोई रोये !'
पेड़ की शाखों से टपकती बूंदें गवाही दे रही थीं कि रात को भी वर्षा होती रही थी। मॉल रोड और उससे नीचे साथ-साथ चल रही सड़क पर जहाँ भी दूर-दूर तक निगाह जा सकती थी, वर्षा के कारण पेड़ों से झड़ी हुई पत्तियाँ बिखरी हुई थीं। इक्का दुक्का व्यक्ति मॉल रोड पर प्रातःकालीन भ्रमण / जॉगिंग हेतु आता जाता दिखाई दे रहा था। मन किया कि नैनीताल के इस अलसाये मूड को नीचे जाकर थोड़ा और करीब से देखा जाए। फटाफट नित्यकर्म से निवृत्त होकर कैमरा कंधे पर डाल कर मैं नीचे उतरा तो देखा कि अभी होटल के मुख्य द्वार पर ताला पड़ा हुआ है और चौकीदार भी लंबी ताने सोया हुआ है। अभी छः ही बजे थे, उसको जगा कर होटल का दरवाज़ा खोलने के लिए कहने का मन नहीं हुआ। मैं वापिस ऊपर आया और अपने कमरे से भी ऊपर के फ्लोर पर सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते टीन के शेड के एक ऐसे कमरे में जा पहुँचा जहाँ काफी सारा इंधन और एक ब्वायलर मौजूद था यानी होटल कर्मचारियों द्वारा होटल के कमरों में गर्म पानी पहुँचाने की व्यवस्था। होटल के पिछवाड़े में यानी मॉल रोड के ठीक विपरीत, स्टाफ के लिए लकड़ी का एक जीना बना हुआ था, उससे उतरते - उतरते एक छोटी सी मुंडेर आई, जिसे पार किया तो मॉल रोड की ओर नीचे जा रही एक सड़क पर जा पहुँचा। मैं उस समय स्वयं को वास्को डि गामा के कम अनुभव नहीं कर रहा था जिसने होटल से बाहर निकलने के लिए एक नये रास्ते की खोज कर डाली थी!
नैनीताल आने से हफ्ते भर पहले से ही गूगल मैप पर मैं नैनीताल का अध्ययन करता रहा था और यद्यपि जीवन में पहली बार उस सड़क पर पाँव पहले दिन शाम को ही रखे थे, तो भी जानता था कि अगर माल रोड पर मेरी बाईं ओर नैनी झील है तो मैं उत्तराभिमुख हूँऔर मल्लीताल की ओर बढ़ रहा हूँ। वापिस आऊँगा तो मेरा मुख दक्षिण की ओर यानी तल्लीताल की ओर होगा जहाँ कल शाम मुझे टैक्सी वाले ने छोड़ा था। झील के उस पार जो यदाकदा हलचल अनुभव हो रही है वह वास्तव में ठंडी सड़क कहलाती है।
मॉल रोड, नैनीताल
सुबह के साढ़े छः बजे थे, स्वाभाविक रूप से बाज़ार पूरी तरह से बन्द था। झील में भी कोई नाव घूमती - फिरती नज़र नहीं आ रही थी। माल रोड पर होटलों की भरमार है और उनमें से अधिकांश अत्याधुनिक शैली में निर्मित भवन हैं। वहीं दूसरी ओर, उनके अगल - बगल में अत्यन्त प्राचीन भवन नज़र आ रहे थे, जिनमें कुछ तो खंडहरनुमा ही थे। ऐसे ही एक प्राचीन भवन में पुस्तकालय नज़र आया जिसके सामने वाले पाये माल रोड पर टिके हुए थे तो पिछले वाले पाये नीचे वाली सड़क पर टिके थे। आगे ऐसे ही सड़क पर एक मंदिर दिखाई दिया। भगवान् जी को हाथ जोड़ कर एक फोटो खींची और आगे बढ़ा तो एक बोट क्लब मिल गया। उसकी भी फोटो लीं और चल दिया आगे!
चलते - चलते मैं बहुत बड़े एक चौराहे पर जा पहुँचा जिस पर गोविन्द वल्लभ पंत की मूर्ति स्थापित है।
वहीं से बायें ओर मुड़ा तो स्पोर्ट्स स्टेडियम नज़र आया जहाँ पर कई सारे चुस्त और फुर्तीले युवक फुटबॉल खेल रहे थे।
इंटरलॉकिंग वाली टाइल्स पर चलते चलते एक बैंड स्टैंड मिला जहाँ पर अब भी घोष वादन के कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहते हैं। आगे एक गुरुद्वारा और फिर नैनादेवी का मन्दिर जो नैनीताल की अधिष्ठात्री देवी हैं!
सीड़ियों से नीचे मंदिर के प्रांगण में उतरा। लगभग डेड़ किमी लंबी नैनी झील को यहीं से प्रारंभ हुआ माना जा सकता है और ये समाप्त होती है दक्षिण पूर्व दिशा में यानि, तल्लीताल में।
नैनीताल की नैनी झील
जैसा कि हम सभी परिचित हैं, नैनी झील नैनीताल शहर के मध्य में स्थित होने के कारण यहाँ का सबसे महत्वपूर्ण आकर्षण है जो इस बार जल स्तर की कमी के कारण समाचार पत्रों में सुर्खियों में रही है। इसके एक ओर मॉल रोड, दूसरी ओर ठंडी सड़क, उत्तर में मल्लीताल और दक्षिण में तल्लीताल मौजूद हैं। मल्लीताल से ऊपर पहाड़ पर चढ़ाई करें तो हिमालयन माउंटेन व्यू प्वाइंट आता है, जहाँ से नीचे झांको तो पूरी झील एक साथ देखी जा सकती है। वहीं से मल्लीताल का टैक्सी स्टैंड, नैना देवी मन्दिर, गुरुद्वारा आदि भी दिखाई देते हैं।
झील की अधिकतम लंबाई 1.4 कि.मी. और गहराई 90 फीट बताई जाती है। इस बार वर्ष 2017 के मई मास में इसके जल स्तर में 18 फीट की कमी देखी गयी जो आने वाले समय के लिये खतरे की घंटी है। बताया गया है कि नैनी झील को पानी से भरा पूरा रखने में सहयोग देने वाले 60 झरनों में से 30 झरने बन्द हो चुके हैं। झील के चारों ओर पहाड़ियाँ हैं जिनसे बह कर नीचे आने वाला पानी झील को पानी से भरपूर रखता है। उत्तर पश्चिम में नैना पीक, उत्तर दिशा में हिमाच्छादित पर्वत श्रंखला, दक्षिण-पश्चिम दिशा में टिफिन टॉप पहाड़ियाँ इस झील की पहरेदार के रूप में देखी जाती हैं। नैनीताल की जलापूर्ति का जिम्मा नैनी झील पर ही है। इस झील का जो भी अतिरिक्त पानी होता है, वह तल्लीताल की दिशा में खाली होता रहता है।
नैना देवी शक्तिपीठ
माँ नैना देवी नैनीताल की अधिष्ठात्री देवी हैं! नयना का अर्थ है नेत्र ! पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव माँ सती का हवन कुंड में जला हुआ पार्थिव शरीर लिये हुए विक्षिप्त जैसी सी स्थिति में आकाश में भटक रहे थे तो जिस - जिस स्थान पर माँ सती के शरीर के विभिन्न अंग धरती पर गिरे, वहाँ वहाँ 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई। नैना देवी यहाँ पर अपने नेत्रों के रूप में विद्यमान हैं।
इस मंदिर का ज़िक्र कुशाण काल में ही हुआ बताया जाता है। पन्द्रहवीं सदी में निर्मित इस मंदिर के निर्माण का श्रेय मोती राम शाह नाम के एक श्रद्धालु को जाता है। यह भी बताया जाता है कि वर्ष 1880 में भीषण भूस्खलन के कारण ये मंदिर पूरी तरह से विनष्ट हो गया था। वर्ष 1883 में स्थानीय जनता ने इस मंदिर का पुनः निर्माण किया और यहां पर माँ नैना देवी की नेत्र रूपी प्रतिमा के अलावा माँ काली, सिद्धि विनायक गणेश भी यहाँ मंदिर में विराजमान हैं।
मंदिर की रेलिंग के पास खड़े होकर नैनी झील को घंटों निहारते रहना अत्यन्त सुखद अनुभव है। वैसे भी, सुबह - सुबह मन्दिर में दर्शनार्थी गिने चुने ही थे अतः खुल कर कैमरे पर हाथ आजमाने का मौका मिला। एक - डेढ़ घंटे मंदिर में रह कर, दर्शन करके मैं वापिस बाहर आया तो देखा कि नाश्ता परोसने वाली कुछ दुकानें खुल चुकी हैं। एक दुकान पर पूछा कि नाश्ते में क्या मिलेगा तो एक छूरे से बड़ी तेजी से हरी मिर्च काट रहे उस बन्दे ने दीवार पर टंगे हुए फ्लेक्स की ओर इशारा कर दिया जिस पर आलू परांठा, गोभी परांठा, पनीर परांठा, डोसा, बर्गर, इडली आदि के रेट लिखे थे। एक पनीर परांठा और और आलू परांठा जिसमें हरी मिर्च बहुत कम हो, बना दो - ये आदेश देकर मैं आस-पास का जायज़ा लेता रहा।
होटल के कमरे से ही मल्लीताल में स्थित दो-तीन भवन मुझे आकर्षित कर रहे थे। एक सफेद भवन जिस पर काफी ऊँची और पतली मीनार दूर से दिखाई दे रही थी और एक लाल रंग का भवन! लाल रंग का भवन यानी नैना देवी का मन्दिर तो मैं देख ही चुका था। अब बारी थी उस सफेद वाले भवन की। उदरपूर्ति करके मैं काफी देर तक फुटबॉल के खिलाड़ियों को देखता रहा फिर उस सफेद भवन की ओर बढ़ा तो वास्तव में एक विशाल मस्जिद थी। स्टेडियम इतना बड़ा है कि उस में एक ही समय में कई सारे खेल - कूद चलते रह सकते हैं। क्रिकेट का अभ्यास करने के लिये नेट भी बना हुआ था ताकि फील्डर्स की ज़रूरत न पड़े और गेंद नेट के अन्दर ही रहे।
वहाँ से आगे बढ़ा तो मौसम खराब होने लगा जिसका पहला संकेत कोहरे से मिला ! झील, पंडित गोविन्द वल्लभ पंत जी की मूर्ति, स्टेडियम, सफेद मस्जिद, खिलाड़ी, बैंड स्टैंड सब कोहरे में छिप गये और इससे पहले कि मैं और चित्र लेने के लालच को लगाम लगा कर अपने कैमरे को फटाफट पैक करूँ, भीनी - भीनी फुहार पड़ने लगीं। कैमरे का बैग होटल में ही था, अतः शर्ट के अन्दर कैमरा छुपा कर मैं तेज कदमों से वापिस होटल की ओर चल पड़ा। मल्लीताल की ओर से एक बुलेट मोटर साइकिल पर अकेले व्यक्ति को आते देख कर मैंने होटल तक लिफ्ट मांगी तो उस सज्जन ने मुझे बैठने का इशारा किया और शीला होटल के आगे उतार कर आगे निकल गये।
वर्षा रुकने के बाद बोटिंग और नैनीताल चिड़ियाघर की सैर के लिये चलेंगे, अवश्य आइयेगा। तब तक के लिये नमस्कार!
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