दिल्ली के सात शहर जिनका जर्रा-जर्रा हमारी सांसों में बसता है! | Strolling India

Tripoto
Photo of दिल्ली के सात शहर जिनका जर्रा-जर्रा हमारी सांसों में बसता है! | Strolling India by Sanjaya Shepherd

दिल्ली रंग, रौशनी और विविधतापूर्ण संस्कृतियों का नगर है। यहां का हर रंग जीवन से कुछ कहता है, हर रौशनी हमारा हाथ पकड़कर हमें दूर तक ले जाती है, और संस्कृतियां एक ऐसे समय का दीदार कराती हैं जो इतिहास के सारे बंद पड़े दरवाज़ों को एक-एक करके खोल देता है। इसीलिए तो कहा गया है कि दिल्ली को देखने के लिए समय की हथेली को देखना पड़ता है। लेकिन हम तो दिल्ली की छाती पर सर रखकर सोने और माथा चूमने वाले लोग हैं। दिल्ली हमारे दिलों में बसती है, इसका जर्रा- जर्रा हमारे सांसों में बसा हुआ है।

सच कहें तो दिल्ली का सम्पूर्ण इतिहास ही समय की एक बानगी है। हम जिस समय में प्रवेश करते हैं दिल्ली जर्रा-जर्रा हमें बिल्कुल वैसी ही दिखाई देती है। शायद इसीलिए लुटिएन्ट की दिल्ली लुटिएन्ट की होते हुए भी एक टुकड़ा ग़ालिब तो एक टुकड़ा मीर की हो जाती है। हम खड़े-खड़े देखते रहें। निज़ाम बदला, शहर की सूरत बदल गई। लेकिन दिल्ली का रुआब और रुतबा सदैव क़ायम रहा।

यह शहर जितना खूबसूरत रहा है, उससे भी कहीं ज्यादा खुरदुरा है। दिल्ली की पीठ पर समय के कई ऐसे निशान हैं जो गुजरे हुए वक़्त की दास्तां बयां करते हैं। देश की महानतम कही जाने वाली लड़ाइयां इसी शहर की पीठ पर लड़ी गईं हैं। हर बार रौंदे जाने, हर युद्ध के बाद, दुबारा तख्तों ताज भी दिल्ली के ही माथे पर सजा है। निज़ाम आते-जाते रहे हैं। दिल्ली का श्रृंगार उसकी हर करवट के साथ उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाता रहा है।

लेकिन अंततः यही समझ में आता है कि दिल्ली से गुजरने के लिए सिर्फ दो ही रास्ते हैं। कुछ लोग दिल्ली के दिल से होकर गुजरते हैं, कुछ लोग दिल्ली की छाती से होकर। और इन्हीं दोनों से दिल्ली का वर्तमान और अतीत बनाता है।

खैर, मैं हमेशा दिल्ली के दिल से होकर गुजरता हूं और कई बार गुजरते हुए एकाध मोड़ पर ठहर भी जाता हूं। परन्तु यह एकाध मोड़ मेरी जिंदगी में सैकड़ों बार आएं हैं, और दिल्ली के इस छोटे से दिल में मैंने इतने सारे ठहराव ढूंढ लिए हैं कि इसकी हर धड़कन का इल्म सा हो गया है। यह इतनी बार मेरे सीने में धड़का है कि इसे कभी-कभार महबूबा समझने की गलती भी हो जाती है।

लेकिन सत्ता कभी भी किसी एक हाथ में कब रही है ? इस शहर का वर्तमान जितना ठहरा हुआ नजर आता है, अतीत उतना ही विविधतापूर्ण रहा है। शायद इसीलिए कुछ लोग इस शहर को बेवफ़ा और हरजाई भी कहने से गुरेज नहीं करते हैं। दिल्ली जितनी सहजता से लोगों को अपना लेती है, शायद उतने ही सामान्य तरीके से सबके साथ निर्वाह नहीं कर पाती है। इस शहर में आकर करोड़ों दिल एक-दूसरे से मिलते हैं तो लाखों में दरारें पड़ती हैं, और हजारों टूटते भी हैं। पर इससे किसी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि इस बात को तो सभी जानते हैं कि दिल्ली एक है और दिल लगाने वाले करोड़ों।

यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कि चांद से प्यार सभी कर सकते हैं, लेकिन चांद के लिए यह सहूलियत कहां ?

आप इस शहर के साथ गले में हाथ डालकर सो सकते हैं, इसकी बाहें पकड़कर दूर तक चल सकते हैं, बैठकर इसके साथ चाय और कॉफी पी सकते हैं। गुजरे हुए दिनों को यादकर मुस्करा सकते हैं, भारी- भरकम ख्वाब पाल सकते हैं। दरअसल, यह दुनिया का पहला ऐसा शहर है जो आपको सपने देखने की पूरी आजादी देता है।

यहां की तेज रफ्तार भागती जिंदगी में कुछ लोगों को पीछे छूट जाने का डर सताता है तो कुछ लोग जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर वक़्त को अपनी अंगुलियों से गुजरते हुए देखते तो हैं, पर पकड़ने में यकीन नहीं करते। यह दिल्ली जितनी नई है उससे भी ज्यादा कहीं पुरानी। इसीलिए दिल्ली की छाती में एक साथ दो दिल धड़कता है। एक नया वाला जिसे नई दिल्ली कहा जाता है, एक वही वर्षों पुराना जिसे हम पुरानी दिल्ली के नाम से जानते हैं।

दिल्ली जितनी तेजी से भाग रही है, हमारी हथेलियों पर उतनी ही थमी हुई भी है।

दिल्ली मेरे लिए सदैव एक दोस्त की तरह पेश आती है। यह मुझ पर वैसे ही मेहरबान रही है जैसे किसी अजीज़ दोस्त को होना चाहिए। जाने-अनजाने इसने मुझे कई खूबसूरत रिश्ते दिए हैं। ऐसा लगता है कि हर मोड़ पर इस शहर ने मेरे लिए किसी को छोड़ रखा है और इससे भी बड़ी बात यह कि इस शहर ने मुझे अपनी मानवीय भावनाओं को दूसरों के सामने बेझिझक एक्सप्रेस करना सिखाया है।

इसीलिए स्थितियां कैसी भी हों, जीवन में सदैव सहज स्थिति बनी रहती है।

लेकिन कुछ दिनों से यह भ्रम टूटा है। किसी अंजान से बात करने से पहले सोचना पड़ता है। किसी अजनबी से मिलते हुए डर लगने लगा है। अब किसी के सामने हम अपनी सहज, सामान्य भावनाएं भी खुलकर जागृत नहीं कर पाते हैं। दिन-ब-दिन किसी के सामने खुदको जाहिर करना मुश्किल होता जा रहा है। शहर तो वही है, शायद यहां पर रहने वाले लोग बदल गयें हैं, शायद थोड़े-थोड़े हम आप भी। परन्तु इससे दिल्ली की सेहत और खूबसूरती पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता है। दिल्ली तो यह सब वर्षों से देखती आ रही है। समय की ना जाने कितनी परते हैं ? इतिहास के ना जाने कितने पन्ने ? 735 ईसवी से शुरू होकर 2020 तक के समय के हर रंग और हर रौशनी को खुदमें समेटे दिल्ली का विस्तृत फ़लक आंखों से शुरू होकर सिर्फ आंखों तक में ही नहीं ख़त्म नहीं हो जाता है।

दिल्ली का आकर्षण सिर्फ देह का आकर्षण नहीं है, यह लंबे समय से चली आ रही एक तरह की व्यावहारिकता है।

शायद इसीलिए वर्तमान की दिल्ली को जानने के लिए अतीत की दिल्ली को जानना नितान्त ही जरूरी हो जाता है। शायद इसीलिए हमें एक भारी-भरकम इतिहास से होकर गुजरना पड़ता है। मैंने इसी बात को समझने की कोशिश की और पाया कि सही मायने में वर्तमान दिल्ली जिसे हम आधुनिक दिल्ली भी कहते हैं शहर नहीं बल्कि शहरों का एक समूह है। वर्तमान दिल्ली का स्वरूप मूल रूप से सात शहरों से बनता है जो अलग-अलग समयकाल में अलग-अलग शासकों के द्वारा बसाए गए थे। उन सभी शहरों की छाप और संस्कृति आज की दिल्ली में दिखाई देती है और यह कोई कपोल कल्पना नहीं भारतीय पुरातत्व विभाग का भी यही कहना है।

देखा जाये तो होना तो यह चाहिए था कि एक नए शहर के बसने के साथ ही पुराने शहरों की रौनक खो जाए। लेकिन दिल्ली के साथ ऐसा नहीं हुआ। सैकड़ों बार उजड़ने और बसने के बावजूद दिल्ली ने समय के हर रंग, हर रौशनी को खुदमें समेटकर रखा जो आगे चलकर इस शहर की सभ्यता और संस्कृति का मूल आधार बनीं। यहां के विविधतापूर्ण इतिहास का गवाह बनी। वर्तमान दिल्ली में किसी एक नहीं बल्कि उन्हीं सात शहरों की सभ्यता और संस्कृति का समावेश है।

हम अवलोकन करें तो सेकंड सिटी ऑफ दिल्ली बनने के साथ ही फर्स्ट सिटी ऑफ दिल्ली की रौनक खो जानी चाहिए थी। इसी तरह थर्ड सिटी ऑफ दिल्ली बनने के साथ सेकंड सिटी ऑफ दिल्ली की। लेकिन ऐसा कहां हुआ ? राय पिथौरा किला, महरौली, सिरीफोर्ट, तुग़लकाबाद, फिरोजशाह कोटला, पुराना किला, लाल किला ! एक के बाद एक शहर उजड़ता और बसता रहा और सैकड़ों बार उजड़ने के बाद 'दिल्ली' दिल्ली ही रही। नाम बदले पर पहचान नहीं बदली।

फिर अंग्रेजी हुकूमत के खात्में और अंग्रेजों के वापस जाने के बाद दिल्ली का स्वरूप एक बार और बदला और आधुनिक दिल्ली अस्तित्व में आयी। देखा जाये तो आधुनिक दिल्ली केवल देश की राजधानी ही नहीं अपितु यह एक पर्यटन का मुख्य केंद्र भी है। पुरातात्विक दृष्टि से पुराना किला, सफदरजंग का मकबरा, जंतर मंतर, कुतुब मीनार और लौह स्तंभ जैसे अनेक विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहां पर आकर्षण का केंद्र समझे जाते हैं।

सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहां किसी ना किसी रूप में मौजूद हैं। बिरला मंदिर, आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ, बंगला साहब गुरुद्वारा, बहाई मंदिर और जामा मस्जिद। देश के शहीदों का स्मारक इंडिया गेट, राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। इसके इतर देश के प्रधानमंत्रियों की समाधियां हैं, जंतर मंतर है, लाल किला है। दिल्ली में इसके साथ ही साथ अनेक प्रकार के संग्रहालय और कनॉट प्लेस, चाँदनी चौक जैसे अनेक बाज़ार और मुगल उद्यान, गार्डन ऑफ फाइव सेंसिस, तालकटोरा गार्डन, लोदी गार्डन, चिड़ियाघर जैसे बहुत से रमणीय उद्यान भी हैं।

मैं दिल्ली के हर एक हिस्से को समझना चाहता हूं। अतीत से लेकर वर्तमान तक को खंगालना चाहता हूं। यह कुछ स्मारकों की ही नहीं बल्कि दिल्ली के तक़रीबन 1400 साल के इतिहास की यात्रा होगी। मैं आपको हर शहर और हर समय से गुजरते हुए आप सबको एक-एक बात बताऊंगा। मैं आपको बताऊंगा। आप बस हमारी अंगुली पकड़कर चलिए। हम आप सबको वर्तमान में रहते हुए भी वर्षों पुराने इतिहास में लेकर जायेंगे।

हम आपको उन तमाम जगहों की जानकारी देंगे जो आपके दिल में धड़कती रही हैं। हम आपको दिल्ली के इतिहास और भूगोल का गणित समझायेंगे। हम आपको यह बताएंगे कि जर्रा जर्रा दिल्ली कैसे हुआ जाता है।

शुरुआत "सेवन सिटी ऑफ दिल्ली" से करते हैं। यह एक इंट्रोडक्टरी ब्लॉग है। अगली कड़ी में- फर्स्ट सिटी ऑफ़ दिल्ली यानि की " किला राय पिथौरा " में लेकर जायेंगे जो कभी लालकोट हुआ करता था और बाद में राय पिथौरा किला बना और वर्तमान में सिर्फ अवशेष बचे हैं लेकिन वह एक ऐसे नगर की भव्यता की कहानी कहते हैं जिसका जो अपने समय का सबसे बड़ा नगर हुआ करता था।

Photo of दिल्ली के सात शहर जिनका जर्रा-जर्रा हमारी सांसों में बसता है! | Strolling India 1/1 by Sanjaya Shepherd

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो वर्षों से घूमने के अलावा कुछ किया ही नहीं। हां, जीविका उपार्जन के लिए कभी कहीं मौका मिला तो थोड़ा-बहुत लिखने-पढ़ने का काम कर लेता हूं।

कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।

बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें

रोज़ाना Telegram पर यात्रा की प्रेरणा के लिए यहाँ क्लिक करें।

Further Reads