दुनिया बदलती रहती है, लेकिन हमेशा कुछ न कुछ होता है, कहीं न कहीं वही रहता है। ऐसा मैं नहीं बल्कि दुनिया के सबसे प्यारे लेखक रस्किन बॉन्ड ने उस जगह के बारे में कहा है जहां हम आज जाने वाले हैं। लंढौर, यह जगह कहने को तो मसूरी से सिर्फ पांच किमी दूर है लेकिन इसकी दूरी का असल अंदाजा इस जगह पर चलकर आने वाले सैलानियों को ही होता है, ख़ासकर ट्रेकिंग के आखिरी तीन किमी जिन्हें हम एक बाजार और कुछ संकरी गलियों से होकर तय करते हैं।
एक थकान क़दमों से होते हुए कब पूरी देह में फ़ैल जाती है पता ही नहीं चलता लेकिन खूबसूरती ऐसी की इंसान अपनी सारी की सारी पीड़ाएं भूल जाए। एक बार इस जगह को जी भरके देख ले तो जीवन भर लौटने को जी नहीं चाहे। आखिर कोई तो बात रही होगी कि रस्किन बॉन्ड जैसे विश्व प्रसिद्ध लेखक ने इस एक जगह पर रहकर अपनी पूरी जिंदगी बिता दी। उसी को तलाशने के क्रम में दिल्ली से लंढौर आया था और यहां आकर मुझे मेरे हर सवाल का जवाब मिला।
यह भी पढ़ें: लंढौर: एक ऐसी जगह जहां हर पर्वत-प्रेमी को जाना चाहिए !
आप अगर इस जगह पर आना चाहते हैं तो मेरी ही तरह लंढौर को लेकर आपके मन में भी कुछ सवाल होंगे। जैसे कि यह जब मसूरी के बिलकुल पास है तो ऑफबीट कैसे हुई ? इसे माउन्टेन ऑफ पैराडाइज क्यों कहा जाता है ? या फिर यह कि इसे दी पीनट बटर कैपिटल ऑफ़ इंडिया क्यों कहा जाता है ? सवाल यह भी हो सकता है कि आखिर इस जगह पर क्यों जाया जाये ? मेरी तरह आपको भी इस जगह पर अपने हर एक सवाल जवाब मिलेगा।
बस आपको करना ये होगा कि दिल्ली से बस, ट्रेन या प्लेन पकड़कर देहरादून पहुंच जाएं। देहरादून से लंढौर की कुल दूरी तक़रीबन 35 किमी है जिसे आप कार या फिर टैक्सी से पूरी कर सकते हैं। अगर आप टैक्सी से जाते हैं तो इसके लिए 500-700 और कार से जाते हैं तो 1500-2000 रुपये खर्च करने होंगे। आप चाहें तो देहरादून से मसूरी पहुंच जाएं फिर ट्रेकिंग या फिर टैक्सी लेकर लंढौर।
कहने को तो लंढौर मसूरी से सिर्फ कुछ ही किमी की दूरी पर स्थित है पर यह जगह अपनी बसावट और भौगोलिक परिस्थतियों की वजह से बाकि दुनिया से बिलकुल अलग है। ब्रिटिश कालीन पुरानी इमारतें, देवदार के खूबसूरत पेड़, शुद्ध हवा, चर्च, कैफ़े और जिंदगी की मद्धिम रफ़्तार किसी ऐसी जगह की याद दिलाते हैं जहां हम आना तो वर्षों से चाहते थे पर उस जगह का हमारे पास कोई पता नहीं था। लेकिन अब पता मिल गया है, वह कोई और जगह नहीं, वास्तव में लंढौर ही है।
इस छोटे से कस्बे के इतिहास पर अगर नजर दौडाई जाए तो, यह वही जगह है, जहां नेपाल और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच गोरखा जंग छिड़ी थी। इस जगह पर ब्रिटेन का काफी दबदबा रहा है जिसका प्रभाव आज भी दिखाई देता है।
इस जगह को अंग्रेजों ने एक आरोग्य आश्रम के तौर पर 1827 में अपने उन सैनिकों के लिए बनाया था जो इंडिया के गर्म मौसम को नहीं सहन कर पा रहे थे और टीवी के मरीज़ थे। धीरे-धीरे यह छोटी सी जगह एक पूरी छावनी के रूप में विकसित हो गई और आरोग्य आश्रम में रहने वाले अंग्रेजों को अपने मदरलैंड की फील देने लगी। इस तरह इस जगह का नाम वेल्स स्थित ब्रिटिश सिटी लेंडौवरोर के नाम पर लंढौर पड़ा।
लंढौर को लोग माऊंटेन पैराडाइज कहते हैं। यदि आप जगहों को देखने और पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों में दिलचस्पी रखते हैं तो सच मानिये यह जगह आपके लिए ही है। इस जगह पर देखने के लिए ज्यादा कुछ खास नहीं है लेकिन अगर आपको टहलना पसंद है और आप प्रकृति के बीच रहना पसंद करते हैं तो इस जगह से बेहतर कुछ भी नहीं। पहाड़ों पर बसा यह छोटा था हैमलेट आपको प्रकृति के और भी नजदीक ले जाता है।
पिछले दो सालों में इस जगह पर मैं तीन बार आ चूका हूं। इस जगह की हवा में जो बात है वह मुझे कहीं और नहीं मिलती।
लंढौर की शुद्ध हवा और देवदार के ऊंचे पेड़ मेरी पहाड़ की सबसे खूबसूरत स्मृतियों में बसे हैं। यह हमेशा, हर बार मेरे लिए एक ऐसा रहस्यमयी संसार रच देते हैं कि मैं चाहकर भी इनसे बाहर नहीं निकल पाता। हर बार मैं एक टुकड़ा यहीं का होकर रह जाता हूं। गोल चक्कर लंढौर की एक ऐसी जगह है जहां ना चाहते हुए भी हर बार पहुंच जाता हूं और खड़े होकर देखता हूं तो एक तरफ दून घाटी का सौंदर्य तो दूसरी तरफ हिमालय की खूबसूरत चोटियां मन्त्रमुद्ध कर देती हैं।
इस बार भी बिलकुल यही हुआ। सबसे पहले पहुंचा चार दुकान जो कि लंढौर का पहला डेस्टिनेशन है। इस जगह पर अंग्रेजों के ज़माने में कुल चार दुकानें थी, इस जगह का सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब यह दुकानें चार से बढ़कर छह हो गईं हैं। अनिल कैफ़े और टिकटॉक शॉप इस जगह पर 50 सालों से स्थित हैं। इनकी प्रसिद्धि का अंदाजा आप इस जगह पर पहुंचकर, दीवालों पर टंगी तस्वीरों से लगा सकते हैं।
पैन केक हो, आमलेट अथवा जिंजर लेमन टी मुझे इस जगह से ज्यादा अच्छी कहीं और नहीं मिली।
मैंने अपनी सबसे पसंदीदा जिंजर लेमन टी पी और शाम ढ़लते-ढ़लते लंढौर की सड़कों पर निकल गया और अपने लिए ठिकाना ढूंढने के क्रम में मेरी एक ऐसे कपल से मुलाकात हुई जो मुझे रात का ठिकाना ही नहीं बल्कि कुछ ऐसी खूबसूरत स्मृतियां दी, जिन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता।
इस कड़ी में बस इतना ही अगली कड़ी में मैं आपको उस कपल और उस होमस्टे के बारे में बताऊंगा जो लंढौर में ठहरने और समय बिताने के लिहाज़ से एक बेहतरीन जगह है। जहां जाकर आपको इतना होमली फील होगा कि आप चाहकर भी नहीं लौटना चाहेंगे।
दोस्तों, आशा करता हूं कि यह लेख आप लोगों को पसंद आया होगा। मेरी कोशिश अगर आपको अच्छी लग रही है तो हमारे फेसबुक पेज को लाइक और इंस्टाग्राम पर भी फॉलो करें।
खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो वर्षों से घूमने के अलावा कुछ किया ही नहीं। हां, जीविका उपार्जन के लिए कभी कहीं मौका मिला तो थोड़ा-बहुत लिखने-पढ़ने का काम कर लेता हूं।