भारत संस्कृति, परंपरा और विरासत का पर्याय है जिसे हर तरह से एक्सप्लोर किया जाना चाहिए। उत्तर में शक्तिशाली हिमालय से लेकर दक्षिण में हिंद महासागर तक, भारत के पास इतना कुछ है कि बस फेमस जगहों को देखना इस खूबसूरत देश का अपमान है। यहाँ का चप्पा-चप्पा घूमने और समझने लायक है!
भारत कई सांस्कृतियों का ऐसा मिला जुला रूप है जिसनें गौरवशाली विरासत को जन्म दिया है। और अगर आप इसकी विशाल विरासत के एक छोटे से हिस्से को समझने में रुचि रखते हैं, तो भारत भर में ये चार रूट आपको इस शानदार देश को और जानने में मदद करेंगे।
तो, आइए भारत दर्शन पर निकलते हैं और अपनी कला, वास्तुकला और विरासत में पूरी तरह से गोते लगाएँ –
हिंदुस्तान का दिल देखो: झाँसी – ओरछा – खजुराहो
धर्म, इतिहास और कामसूत्र इस रूट के केंद्र बिंदु हैं! झांसी वो जगह है जो नारी शक्ति के लिए एक यादगार मिसाल के रूप में खड़ा है। ओरछा एक ऐसा छुपारुस्तम शहर है जो आज भी कहीं खो चुके इतिहास के बारे में हमें बताता है। वहीं खजुराहो जीता-जागता कला का नमूना है।
सड़क से दूरी
झांसी से ओरछा की दूरी महज 18 कि.मी. है और इसे 40 मिनट में कवर किया जा सकता है। ओरछा से खजुराहो 175 कि.मी. है और इसे चार घंटे में कवर किया जा सकता है।
यात्रा करने का बेहतरीन समय
मध्य प्रदेश भारत के केंद्र में स्थित राज्य है और गर्मी के दिनों में तापमान काफी ज़्यादा होता है। लिहाजा सर्दियों में इस हेरिटेज रूट को एक्सप्लोर करना सबसे अच्छा हो सकता है। वहीं, अगर आप अपने अनुभव को थोड़ा और बढ़ाना चाहते हैं, तो खजुराहो का राणे फॉल्स मॉनसून के दौरान देखने लायक होता है, इसलिए आप अपनी यात्रा की योजना इसे ध्यान में रखते हुए बना सकते हैं।
सबसे ख़ास अनुभव
ये एक ऐसा शहर है जो कि देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले पहली जगहों में से था। इस ऐतिहासिक शहर से अपनी यात्रा की शुरुआत करें। यहाँ आकर ऐतिहासिक झांसी किला, रानी महल, महालक्ष्मी मंदिर और सरकारी संग्रहालय ज़रूर देखें।
ओरछा, ऐसी जगह जहाँ आकर आप समय में वापस यात्रा करने लगते हैं। यहाँ के प्राचीन स्मारकों को देखकर आप आज भी बीते जमाने की भव्यता को देख पाते हैं। जहाँगीर महल, राजा महल, चतुर्भुज, राम राजा और लक्ष्मी नारायण मंदिर को ज़रूर देखें। यहाँ शाम को साउंड एंड लाइट शो देखना ना भूलें जिसमें शक्तिशाली बुंदेल राजाओं के बारे में बताया जाता है।
खजुराहो में मंदिरों पर बारीक और जटिल नक्काशी देखें जिसमें कामसूत्र कला को उकेरा गया है। दिव्य मूर्तियाँ हमारे पूर्वजों की विकसित सोच और विचारधारा के जीवित प्रमाण हैं। कामोत्तेजक नक्काशी देखने के समय गाइड या बच्चों को दूर नहीं रखा जाना चाहिए। खजुराहो गर्व से खड़ा है, दुनिया को दिखा रहा है कि कैसे हम भारतीयों ने प्रेम करने की कला में महारत हासिल की।
प्यार से लेकर स्वाद और अध्यात्म तक: आगरा – लखनऊ – वाराणसी
अनन्त शांति प्राप्त करने के लिए; ज़ायके का आनंद लेने के लिए दुनिया के एक अनोखे टूर पर निकलें ताकि आपके सारे पाप धुल जाएँ – यह सर्किट आपको असाधारण अनुभव देता है। आगरा में प्यार की मिसाल ताजमहल को देखें, लखनऊ में कबाबों पर टूट पड़ें और अंत में वाराणसी में आध्यात्मिकता के अर्थ को जानने और समझने की कोशिश करें।
सड़क से दूरी
आगरा से लखनऊ की दूरी 336 कि.मी. है और बेहतरीन सड़क होने से आप लगभग साढ़े चार घंटे में ही इसको कवर कर लेते हैं। लखनऊ से वाराणसी भी 320 कि.मी. है, लेकिन सड़कें उतनी अच्छी नहीं मिलेंगी, लिहाजा इसमें छह घंटे लग सकते हैं।
यात्रा करने का बेहतरीन समय
इन शहरों की यात्रा अक्टूबर से मार्च के महीने में करना सबसे अच्छा होता है। बेहतरीन अनुभव के लिए आप नवंबर में आगरा के ताज बैलून फेस्टिवल के आसपास या मार्च में होली के समय वाराणसी के लिए अपनी यात्रा की योजना बना सकते हैं।
सबसे ख़ास अनुभव
ताजमहल को देखते हुए आप अपनी यात्रा शुरू करें। सफेद संगमरमर का मकबरा, प्यार और प्रतिबद्धता का प्रतीक, ताजमहल दुनिया के सात अजूबों में से एक है। आगरा घूमें और आगरा किले से एक घंटे की ड्राइव पर स्थित फतेहपुर सीकरी को भी देखें।
आगरा से यूपी की राजधानी लखनऊ के लिए प्रस्थान करें। खाने के शौकीनों में लखनऊ विश्व प्रसिद्ध टुंडे कबाब के लिए जाना जाता है। लेकिन इस शहर में एक्सप्लोर करने के लिए बहुत कुछ है। इमारतें ब्रिटिश राज की याद दिलाती हैं, तो वहीं मकबरे और भुलभुलैया इस शहर में गुम हो जाने के लिए एक मज़ेदार जगह है।
वाराणसी या बनारस, एक आध्यात्मिक केंद्र है। पृथ्वी पर सबसे रंगीन जगहों में शुमार ये शहर अपनी सुंदरता से किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देता है। अपने पापों को धोने के लिए पवित्र गंगा में डुबकी लगाएँ और घाटों पर आरती उतारें। वाराणसी जादुई है और यहां की शांति आपको आध्यात्मिकता से सराबोर कर देती है।
बिहार में आत्मज्ञान: बोधगया – राजगीर – नालंदा
बोधगया वो जगह है जहाँ बौद्ध धर्म की शुरुआत हुई थी। राजगीर शक्तिशाली मगध साम्राज्य की राजधानी थी, जिसने भारत पर लम्बे समय तक शासन किया। नालंदा वह विश्वविद्यालय है जो सदियों पहले उत्कृष्ट शिक्षा के लिए विश्व प्रसिद्ध थी। लिहाजा इस मार्ग पर निकल पड़ें और ज़रा आत्मज्ञान, ज़रा आध्यात्मिक शांति की अनुभूति करें।
सड़क से दूरी
बोधगया से राजगीर तक की दूरी 70 कि.मी. है और NH120 की अवस्था खराब होने की वजह से ये दूरी तय करने में आपको लगभग दो घंटे लगेंगे। राजगीर से नालंदा केवल 15 कि.मी. है और आप आधे घंटे में यह दूरी तय कर सकते हैं।
यात्रा करने का बेहतरीन समय
बिहार गर्मियों के दौरान कुछ ज्यादा ही गर्म हो जाता है और बारिश भी कम ही होती है। इसलिए इस आध्यात्मिक सर्किट पर जाने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का होता है। नवंबर से फरवरी इस रोड ट्रिप के लिए बेहतरीन समय है।
सबसे ख़ास अनुभव
बौद्ध धर्म, बोधगया वह स्थान है जहाँ लुंबिनी के राजकुमार सिद्धार्थ ने ज्ञान प्राप्त किया और भगवान बुद्ध बन गए। यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल, बोधगया में हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं। महाबोधि मंदिर परिसर देखने जाएँ और शांति की अनुभूति करें, आनंद यहाँ चारों तरफ विराजमान है।
पटना से पहले राजगीर मगध साम्राज्य की राजधानी थी। यह स्थान बौद्ध और जैन दोनों ही धर्मों के लिए बहुत बड़ा धार्मिक महत्व रखता है। विश्व शांति स्तूप, अजातशत्रु स्तूप, अजातशत्रु किला और वेनु वन महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल हैं। दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र मंदिर, राजगीर के आसपास की चार पहाड़ियों में आठ मंदिरों का एक समूह है और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
नालंदा को प्राचीन भारत में शिक्षा के बेहतरीन स्थलों के रूप में स्थापित किया गया था। यह एक आवासीय विश्वविद्यालय था, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें चीन, जापान और दुनिया के कई अन्य हिस्सों के शिक्षक थे। आज, शिक्षा के इस प्रतिष्ठित केंद्र के खंडहर ज्ञान के उस सुनहरे इतिहास के बारे में बताते हैं जिसके चलते ही भारत विश्वगुरु की उपाधि से जाना जाता था।
ओडिशा में इतिहास में डूब जाएँ: भुवनेश्वर – कोणार्क – पुरी
ओडिशा उन यात्रियों के लिए बेहतरीन ऑप्शन है जो अंडररेटेड जगहों की यात्रा पसंद करते हैं। ज्यादातर लोग ओडिशा को तीर्थ यात्रा के रूप में जानते हैं, भुवनेश्वर – कोणार्क – पुरी मार्ग पूर्व का गोल्डन टाइएंगल है। भुवनेश्वर में सबसे पुरानी रॉक कट गुफाओं को एक्सप्लोर करें, कोणार्क में धर्म और विज्ञान की जुगलबंदी को समझें और पता लगाएँ कि पुरी एक तीर्थ स्थल होने के साथ ही समुद्र तट के साथ कैसा लगता है।
सड़क पर बिताया समय
भुवनेश्वर से कोणार्क 72 कि.मी. है और सड़कें बेहतरीन हैं, इसलिए पहुँचने में लगभग एक से डेढ़ घंटा लगता है। कोणार्क से पुरी 35 कि.मी. है और एक खूबसूरत तटीय सड़क आपको सिर्फ एक घंटे में पुरी तक ले जाती है।
यात्रा करने का बेहतरीन समय
इस सर्किट को देखने के लिए नवंबर और फरवरी बेहतरीन समय होता है। दोपहर गर्म होता है, लेकिन गर्म और चिलचिलाती धूप नहीं होती और ठंडी हवा पुरी के समुद्र तट को एक खुशनुमा माहौल देती है!
सबसे ख़ास अनुभव
भुवनेश्वर में आप चाहें तो धार्मिक यात्रा पर जा सकते हैं और लिंगराज (ऐसा मंदिर जहाँ विष्णु और शिव की एक साथ पूजा की जाती है), परशुरामेश्वर और मुक्तेश्वर ('ओडिया वास्तुकला का बेहतरीन नमूना')। इसके अलावा नंदनकानन चिड़ियाघर (सफेद बाघ सफारी के लिए प्रसिद्ध), बोटैनिकल गार्डन और ट्राइबल म्यूजियम देखने जा सकते हैं।
सदियों पहले बनी स्थापत्य कृति, कोणार्क का सूर्य मंदिर गर्व से ओडिशा की सबसे प्रतिष्ठित संरचनाओं में शुमार है। सात पत्थर के घोड़ों और 12 बड़े पहियों के साथ रथ के आकार में बनाया गया, यह मंदिर ऐसी जगह है जहाँ आपको अनुभव होता है कि कैसे हमारे पूर्वजों ने धर्म और विज्ञान को सहजता से जोड़े रखा। मंदिर सूर्य देव को स्वर्ग तक ले जाने के लिए बनाया गया है और इसलिए सुबह पहली किरण मंदिर के सामने पड़ती है और शाम को सूर्य की रोशनी की आखिरी किरण गायब होने से पहले पूरे मंदिर से गुजरती है!
पुरी चार पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यहाँ स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। लेकिन पुरी में सिर्फ मंदिर ही नहीं है बल्कि लंबे रेतीले समुद्र तट भी हैं जो कि रोमांटिक वॉक और मारुआना के जाने जाते हैं, जो कानूनी रूप से यहाँ मिलता है। यही कारण है कि पर्यटक सदियों से यहाँ आकर्षित होते रहे हैं! समुद्र तट वाले इस शहर को एक्सप्लोर करते हुए तीर्थ स्थल पर जाएँ, जहाँ सामान्य पर्यटकों की भीड़ ना हो।
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