अपने पसंदीदा रंग, गुलाल और पिचकारियों के साथ आपकी होली की तैयारी पूरी हो गई होगी। होनी भी चाहिए आखिर होली हम भारतीयों का पसंदीदा त्योहार जो है। सर्दियों के सूने-सूने मौसम को पीछे छोड़ लोग सड़कों में आकर अपनों के बीच रंग और गुलाल की होली खेलते हैं। ये रंग ही है जो आने वाली बसंत ऋतू का संकेत देते है।
शहरों में आपको ज्यादातर होली के दिन पूल पार्टीज, डांस और गानों का चलन देखने को मिलेगा। लेकिन इन बड़े शहरों से दूर भारत में ऐसे कई छोटे शहर हैं जहाँ होली बहुत अलग ढंग से मनाई जाती है। सोचा जाए तो भारत के हर राज्य में होली मनाने के अलग कारण भी हैं। तो चलिए जानते हैं भारत के राज्य में मनने वाली होली के अलग-अलग रंग और ढंग।
होली मनाएँ इंदौर में
आपको जान कर हैरानी होगा की इस शहर में होली एक दिन का त्यौहार नहीं है। यहाँ 5 दिन तक होली मनाई जाती है और आखरी दिन रंगपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। रंगपंचमी रंगों के बारे में उतना नहीं है जितना ये त्यौहार नाचने और गाने के बारे में है। लोग होली खेलने सड़कों में उतर आते हैं और यहाँ की म्युनिसिपल कॉरपोरेशन भी इस त्यौहार में लोगों का साथ देने टैंकरों से सड़कों पर रंग भरा पानी डालती है। यह माना जाता है की इंदौर में शासन करने वाले मराठा होल्कर राजा अपने साथ रंगपंचमी मानाने की प्रथा लाये। तब से यह त्यौहार इंदौर वासियों का अपना हो गया।
कैसे मानते हैं मणिपुर में होली?
क्या आपको पता है की मणिपुर में होली 6 दिन तक मनाई जाती है? इस त्यौहार के बीच में मणिपुर का एक स्थानीय त्यौहार याओसांग भी पड़ता है। पहले दिन एक घास कि कुटिया जला कर ये त्यौहार शुरू होता है। इसके बाद शहरों में छोटे-छोटे बच्चे घर-घर जा कर 'नकादेंग' या कुछ पैसे या उपहार लेते हैं। ये पहले 2 दिन तक चलता है। इस त्यौहार की सबसे ख़ास बात है एक स्थानीय नृत्य जिसका नाम है 'तबल चांगबल'। लोक नृत्य और लोक गीतों का यही सिलसिला 6 दिन तक चलता है। यही अलौकिक अनुभव है मणिपुर की होली का।
कैसी होती है वृन्दावन और मथुरा की मशहूर होली?
सोचिये जिस जगह होली के त्यौहार से 30 दिन पहले ही लोग होली खेलना शुरू कर दें, उस जगह पर होली की धूम कैसी होगी? मथुरा और वृन्दावन में होली के एक महीने पहले ही बसंत पंचमी के दिन से यहां के स्थानीय लोग होली खेलना शुरू कर देते हैं। मथुरा के श्री कृष्णा जन्मस्थान में होली के एक सप्ताह पूर्व से होली की तैयारियां और होली खेलना शुरू हो जाता है। यहाँ स्थित बिहारी मंदिर में भी होली से एक सप्ताह पहले से विशेष होली मिलन समारोह होता है जिसे लोग अलग-अलग जगहों से देखने के लिए यहाँ पहुंचते हैं।
क्या आपने पंजाब के योद्याओं की होली देखी है?
पंजाब की होली में आपको उड़ते हुए रंग नहीं बल्कि दौड़ते हुए घोड़े दिखेंगे! आश्चर्य हुआ? इन घोड़ों पर सवार होते हैं हथियार बंद सिख योद्धा जो तलवार और ढाल लिए मैदान में उतरते हैं। इस त्यौहार का नाम है होला मोहल्ला और यह त्यौहार 1701 से यहाँ मनाया जाता आया है। होला मोहल्ला दो से तीन दिन तक लगातार मनाया जाता है। आखिरी दिन चरण गंगा नदी के किनारे इस त्यौहार को मानाने के लिए कई सिख युवा आते हैं जो अपने युद्धकौशल का परिचय देते हैं।
क्या आप जानते हैं बरसाने की लट्ठमार होली के बारे में?
पहली नज़र में शायद कई दर्शकों को यह त्यौहार नहीं बल्कि किसी प्रकार की मार पीट लगे पर यही खासियत है बरसाने की लट्ठमार होली की। यह माना जाता है की भगवान कृष्ण इस दिन अपनी प्रेयसी राधा से मिलने उनके गांव गए थे और उन्होंने राधा व उनकी सहेलिओं को बहुत छेड़ा था। इस बात से खफा हो कर बरसाने की महिलाओं ने कृष्ण को वहां से भगा दिया। उस दिन से हर साल होली में श्री कृष्ण के गांव, नंदगाव से नौजवान बरसाने की यात्रा करते हैं और वहाँ जाकर बरसाने की महिलाओं के साथ लठमार होली खेलते हैं। है न यह एक अजीब-ओ- -गरीब प्रथा?
क्या आपको पता है बंगाल के डोल त्यौहार के बारे में?
इस त्यहार को पूरे बंगाल में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।कुछ लोग इसे डोल जात्रा कहते हैं और कुछ डोल पूर्णिमा, पर पूरे ही बंगाल में होली सलीके से खेली जाती है। यहाँ होली के दिन लोग श्री कृष्ण और राधा की प्रतिमा एक झूले पर बिठाते हैं। घर के सभी लोग मिल कर ये झूला सजाते हैं। ये झूला फिर शहरों की सडकों में झाँकी की तरह दिखाया जाता है। लोग भगवा और सफ़ेद रंग के कपड़ों में घर से निकलते हैं और सड़को पर अन्य लोगों के साथ नाच-गा कर त्यौहार मनाते हैं। सभी भक्त एक-एक कर इस झूले को हिला कर श्री कृष्ण का आशीर्वाद लेते हैं।
हम्पी में भी खेली जाती है होली
यात्रियों के बीच ज्यादातर हम्पी तो खंडहरों का शहर ही माना है पर कम ही लोग जानते हैं कि होली के दिन इस छोटी सी जगह की क्या धूम होती है। ज्यादातर दक्षिण भारत में होली नहीं खेली जाती पर हम्पी इससे अलग है। होली के दिन हम्पी में सुबह से ही नाच गाने का माहौल शुरू हो जाता है और दिन होने तक यहाँ के सभी लोग ढोल की धुन में सड़कों पर नाचने गाने में मग्न रहते हैं।