बारिश में अगर आप कोई जगह ढूंढ रहे हैं घूमने के लिए तो लैंसडाउन उसके लिए बेस्ट हैं. उत्तराखंड का एक खूबसूरत-सा हिल्स स्टेशन लैंसडाउन. वैसे तो आप किसी भी महीनें यहां जा सकते हैं लेकिन बारिश के वक्त या फिर अक्टूबर-नवंबर के महीने में यहां जाना एक अच्छा टाईम है. अगर पर नेचर लवर है, अपने चारों तरफ हरे-भरे खूबसूरत पहाड़ आपको देखना पसंद हैं तो लैंसडाउन बारिश के मौसम में जाएं. लेकिन हां बारिश के दौरान पहाड़ो में घूमना थोड़ा खतरनाक हो सकता है इसलिए मौसम की सही जानकारी लेकर जाएं नहीं तो आप बारिश के बाद अक्टूबर के महीने में भी यहां जा सकते हैंइस ब्लॉग में मैं बारिश के मौसम में यहां जाने का अपना अनुभव सांझा कर रही हूं. हम यहां जुलाई के महीने में गए थे. यह ट्रिप था 3 दिनों का. 16 जुलाई शनिवार सुबह हम दिल्ली से लैंसडाउन के लिए निकले. दिल्ली से लैंसडाउन पहुंचने में तकरीबन 7 घंटे लगते हैं. दिल्ली की चुभती गर्मी से दूर जैसे ही उत्तराखंड के कोटद्वार में हम दाखिल हुए हवाओं में ठंडक महसूस होने लगी. इससे पहले भी केदारनाथ यात्रा के दौरान मई में हम उत्तराखंड गए थे लेकिन तब की तस्वीर और अब की तस्वीर दोनों अलग थी. सूख चुके पहाड़ों में रौनक लौट आई थी, जो पहाड़ खाली हो गए थे, जले पड़े थे आज वहां हरियाली-ही-हरियाली थी. यह नजारा आपको मंत्रमुग्ध कर देगा. यह तस्वीरें उस खूबसूरती की गवाह है.
हम यहां पहुंचे तकरीबन दिन के 1 बजे. अपने रिसोर्ट में चेक-इन करने के बाद 3 बजे हम यहां से निकले लैंसडाउन को एक्सप्लोर करने. लैंसडाउन में घूमने के लिए बहुत ज्यादा जगाहें नहीं है. आप वक्त से आएं तो एक दिन में भी इसे पुरा घूम सकते हैं लेकिन हां तब आप इसकी खूबसूरती के मजे नहीं ले पाएंगे. उस सुकुन को महसूस नहीं कर पाएंगे जिसकी तलाश में हम पहाड़ो में जाते हैं.यहां घूमने के लिए हैं टिप-एंड-टॉप, भुल्ला ताल, गढ़वाल म्यूजियम, तारकेश्वर मंदिर, चर्च जिसे ब्रिटिश काल में बनाया गया था और लॉकल मार्केट. हम सबसे पहले गए भुल्ला ताल क्योंकि वक्त कम था तो गर्मियों के दिनों में भुल्ला ताल 6 बजे बंद हो जाता है. हम जब वहां पहुंचे तो हल्की बारिश हो रही थी लेकिन किस्मत अच्छी कि हमारे पहुंचते ही बारिश रुक गई. भुल्ला ताल एक मानव निर्मित तलाब है. भुल्ला एक गढ़वाली शब्द है जिसका मतलब होता है छोटा भाई. यहां बोटिंग करने के बाद हम टिप-एंड-टॉप के लिए निकले लेकिन काले बादलों को देखते हुए हमने वापिस रिसोर्ट जाना ही सही समझा. बारिश के मौसम में पहाड़ खुबसूरत तो बहुत नजर आते हैं लेकिन उतने ही खतरनाक भी हो जाते हैं. अगर आप बारिश के मौसम में कहीं भी पहाड़ों पर जाते हैं तो यह मानकर चलें की आपका बनाया प्लन कभी भी बारिश कारण बदल सकता हैं. कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ और सिर्फ भुल्ला ताल घूमने के बाद हम वापिस आ गए अपने रिसोर्ट.
अगली सुबह साफ मौसम को देखते हुए हम निकले तारकेश्वर मंदिर के लिए. तारकेश्वर मंदिर लैंसडाउन से थोड़ा और ऊपर हैं. मंजिल तो अलौकिक है ही लेकिन सफर भी मनमोहक है. ऊचे-उचें पहाड़, उसपर पर तैरते बादल आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे. लैंसडाउन से तारकेश्वर पहुंचने में 1.30 से 2 घंटे लगते हैं. तारकेश्वर मंदिर महादेव के शक्तिपीठों में से एक हैं. यहां एक पेड़ है जो महादेव के त्रिशूल की तरह है. चारों तरफ देवदार के पेड़ों से ढका यह मंदिर आपको एक अलग ही शांति प्रदान करेगा. आपको जानकर हैरानी होगी कि वैसे तो लैंसडाउन में यहां तक की उत्तराखंड में भी अधिकांश चीड़ के पेड़ है लेकिन यहां केवल देवदार के पेड़ है मानों वो इस जगह के लिए ही बने हो. महादेव के दर्शन करने के बाद हम पहुंचे टिप-एड़-टॉप. यह एक हाई प्वाइंट है जहां से आप उत्तराखंड की खूबसूरती को अपनी आँखों में कैद कर सकते हैं. यहां कुछ पल बिताने के बाद हम पहुंचे चर्च. यह चर्च भारत के कुछ पुराने चर्चो में से एक है. जिसे ब्रिटिश काल में बनाया गया था. इसकी बनावट से आपको इस बात का अंदाजा हो जाएगा. इसी के साथ एक बार फिर मौसम बदलता है और हम वापिस पहुंचते है हमारे खूबसूरत रिसोर्ट और इसी के साथ खत्म हुआ हमारा लैंसडाउन का खूबसूरत सफर.
लैंसडाउन में हमारे सफर को जानने के लिए यह वीडियों जरूर देखें
https://www.youtube.com/watch?v=sus6WXbyLFo&t=13s