मिशन लद्दाख-1: तैयारियाँ (Preparing for Mission Ladakh) - Travel With RD

Tripoto
22nd Jul 2016
Photo of मिशन लद्दाख-1: तैयारियाँ (Preparing for Mission Ladakh) - Travel With RD by RD Prajapati

लद्दाख यानि हिमालय के पार की धरती! बंजर पहाड़ों से घिरा हुआ भारतवर्ष का एक दुर्गम इलाका, जिसका भौगोलिक स्वरुप देश के अन्य भूभागों से काफी अलग है। मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोग अक्सर गर्मियों में हरे-भरे-बर्फीले हिल स्टेशनों जैसे की मनाली, शिमला, दार्जिलिंग जैसे स्थानों की ओर रुख कर लेते है, हिमालय के ये इलाके सदा हरे-भरे होते हैं। वहीँ दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर राज्य के पूर्वी भाग स्थित यह लद्दाख बिल्कुल अलग नजारा प्रस्तुत करता है, जहाँ बारिश शायद ही कभी होती होगी, पेड़-पौधों के बदले सिर्फ नंगे-भूरे पहाड़। सिर्फ यही नहीं, साल के कुछ महीनों को छोड़ बाकि समय बर्फीले मार्ग में आवागमन बंद रहने के कारण लद्दाख देश के बाकि हिस्सों से कट जाता है, ऐसे में साल के बाकि महीनों में सिर्फ वायु मार्ग से ही लद्दाख जाया जा सकता है। भौगोलिक विशेषताओं के अलावा लद्दाखी जन-जीवन भी देश के बाकि हिस्सों से कुछ अलग होता है। देश के इस सुदूर इलाके में जीवन यापन के तौर तरीकों को जानना हर सच्चे घुमक्कड़ की चाहत होती है।

Photo of मिशन लद्दाख-1: तैयारियाँ (Preparing for Mission Ladakh) - Travel With RD 1/1 by RD Prajapati

लद्दाख: संसार का छत

सड़क मार्ग से लेह जाने के लिए दो रास्ते हैं- एक जम्मू-श्रीनगर-कारगिल होते हुए, दूसरा मनाली होते हुए। अधिकतर लोग मनाली होते हुए जाते हैं और श्रीनगर होते हुए वापसी करते हैं। सड़क मार्ग से लद्दाख जाना काफी दुर्गम तो है, लेकिन बिना इसके आप लद्दाखी धरती का सही मजा नही उठा सकते। हवाई मार्ग से जाने पर आप दिल्ली से लेह मात्र एक घंटे में ही पहुँच जायेंगे, लेकिन रास्तों के रोमांच से वंचित ही रहेंगे।

मनाली से लेह जाने के लिए रोहतांग पास के खुलने का इंतज़ार करना पड़ता है, जो की अक्सर मई-जून के महीने में खुलता है और सितम्बर के मध्य तक खुला रहता है। इसीलिए सिर्फ इन तीन-चार महीनों में ही सड़क मार्ग से लद्दाख जा पाना संभव है। वहीँ दूसरी ओर अगर आप श्रीनगर होकर जाना चाहते हों तो जोजिला पास के खुलने का इंतज़ार करना होगा। दिल्ली से मनाली होते हुए लेह के लिए बस सेवाएं भी इसी समय शुरू हो जाती है। हिमाचल पर्यटन द्वारा संचालित मनाली-लेह वाली बसों से आप लेह तक जा तो सकते हैं लेकिन इन बसों के चलने का कार्यक्रम रास्ता खुलने के बाद ही जारी किया जाता है और सभी बसें रोजाना नहीं भी चलती है। इन्हीं कारणों से मैंने बस से जाने का विचार त्याग दिया था।

पिछले एक दशक से लद्दाख जाने वालों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है, और जिनमें बाइक से जाने वाले अत्यधिक संख्या में हैं। अपने ढेर सारे घुमक्कड़ मित्रों ने भी बाइक से लद्दाख की रोमांचक यात्रा की है। वैसे मैं भी कोई बहुत बड़ा बाइकर नहीं हूँ, लेकिन एक बार बाइक से लद्दाख जाने की दिल से इच्छा जरूर थी। लेकिन जमशेदपुर से सीधे निकल जाना कोई आसान काम न था। अप्रैल के महीने से ही मैं योजना बना रहा था, हवाई मार्ग से जाना न था, बस सुविधाजनक नही लग रही थी, एक और तरीका था- दिल्ली से मनाली तक बस से तो आसानी से पहुंचा जा सकता था, फिर मनाली से लेह तक बाइक किराये पर ली जा सकती थी। लेकिन जब मैंने बाइक के किराये का पता लगाया तब लद्दाख जाने का सपना ही कुछ धूमिल सा हो गया, किराया दो से ढाई हजार प्रतिदिन था, और कम से कम आठ दिन तो लगने ही थे, मतलब पंद्रह-बीस हजार सिर्फ बाइक का किराया, पेट्रोल अलग, यह तो बिलकुल भी किफायती न था क्योंकि हम काफी बजट में चलने वाले हैं।

वैसे शुरुआत में लद्दाख जाने के बारे ब्लॉगर व् घुमक्कड़ मनु प्रकाश त्यागी जी से मेरी बात हुई थी, अपनी डिस्कवर बाइक से जाने वाले थे दिल्ली से, लेकिन उनके साथ पहले ही एक अन्य घुमक्कड़ मित्र प्रकाश मिश्र जी की बात हो चुकी थी। फिर कार से भी जाने के बारे सोचा लेकिन मनुजी ने बताया की उनकी कार छोटी है और अगर किराये पर कार लिए तो दिल्ली-लेह-दिल्ली का किराया करीब पचास हजार रूपये आएगा, इसीलिए यह योजना भी ख़त्म हो गयी।

इसी बीच एक दिन मेरे एक मित्र कमल कृष्ण बेज जो की जमशेदपुर रोड़ मेल्टर्स क्लब के सदस्य हैं, ने अचानक मुझे बताया कि उनके बुलेट वाले ग्रुप का जुलाई में बाइक से लद्दाख जाने का कार्यक्रम बन चुका है जिसमें पहले से ही पांच-छह लोग हैं। मेरी तो बांछे खिल गयीं, तुरंत राजी हो गया। कार्यक्रम कुछ यूँ था कि हमें ट्रेन से दिल्ली तक जाना था, फिर दिल्ली से मनाली होते हुए लेह तक। वापसी का मार्ग तय नही था। बाइक भी ट्रेन में ही पार्सल कर दिल्ली तक ले जाना था। ग्रुप के जाने वाले तीन सदस्य पहले से ही 22 जुलाई को भुवनेश्वर राजधानी ट्रेन में सीट आरक्षित करवा चुके थे, मैंने भी झटपट उसी ट्रेन में टिकट ले लिया। कमल अपने एक अन्य साथी के साथ सीधे जमशेदपुर से ही 21 जुलाई को निकलने वाला था। ट्रेन में सिर्फ दो बाइक ही पार्सल करनी थी। इनके अलावा चार अन्य साथी गुडगाँव से भी जुड़ने वाले थे, जो अपनी दो कारें निकालने वाले थे। इस प्रकार दस लोगों का जाना तय हो चुका था। अब बस तीन महीने तक इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करना बाकी था।

अब कमल से अक्सर लद्दाख यात्रा की बातें होने लगी, क्या क्या ले जाना है, क्या क्या खरीदना है, इसकी एक लम्बी सी सूची ही मानो बन गयी। एक मिशन लद्दाख नाम का व्हात्सएप्प ग्रुप भी बन गया, वैसे ये ग्रुप कमल ने तीन साल पहले से ही बना रखा था। रोज उसमें ढेर सारे आईडिया आते। बहुत मजा आता। जैसे-जैसे दिन गुजरता गया, ग्रुप में जाने वाले कुछ नए लोग भी आये, कुछ पुराने लोगों का कार्यक्रम रद्द भी हुआ।

लद्दाख जाने के लिए वैसे तो कुछ साथियों ने बड़ी भारी भरकम तैयारियाँ कर ली, पर मैंने मोटे तौर पर सिर्फ एक बड़ा सा हाईकिंग बैग जिसे रकसक भी कहा जाता है, का जुगाड़ किया, कुछ टी-शर्ट ख़रीदे, कुछ जींस। यात्रा से लगभग एक महीने पहले तक रोजाना कुछ न कुछ बाजार से छोटी-मोटी चीजें खरीदना होता, ऐसा लगता जैसे की किसी शादी की तैयारी कर रहे हों। हाँ, गरम कपड़े ले जाना बहुत जरुरी था, और इधर गर्मी के मौसम में बड़ी मुश्किल से ही एक दुकान में ये मिले।

बाइक से जाने के लिए कुछ आवश्यक चीजों की सूची इस प्रकार है-१. रेन कोट २. राइडिंग जैकेट व दस्ताने ३. हेलमेट ४. नी गार्ड (Knee Guards) ४. बाइक टूल किट ५. लगेज बाँधने के लिए बंजी कार्ड्स ६. जीपीएस यन्त्र अगर हो तो ७. पॉवर बैंक ८. गॉगल्स ९. पानी बोतल १०. उपयोगी दवाईयां जैसे डायमोक्स आदि। इनके अलावा वे सभी चीजें जो आप एक आम सफ़र में ले जाते हैं। वैसे बीहड़ रास्तों में रात गुजारने के लिए जगह जगह टेंट मिल जाते हैं, इसीलिए हम टेंट तो नहीं ले गए थे। और एक बात, मनाली से जाने पर बाइक की परमिट लेनी पड़ती है जो मनाली में ही जारी की जाती है, इसके लिए बाइक के सभी कागजात जैसे की ओनर पेपर, ड्राइविंग लाइसेंस, प्रदुषण प्रमाण पत्र एवं एक भारतीय पहचान पत्र- ये सब होने चाहिए। मनाली से लेह के बीच पेट्रोल पंप भी बहुत कम संख्या में है, इसीलिए अतिरिक्त पेट्रोल रखने के लिए एक-दो गैलन भी रख लेने चाहिए। लगेज बाँधने के लिए बाइक के पीछे आजकल एक कैरियर लगवाया जाता है जिसे लद्दाख कैरियर भी कहा जाता है, आप चाहे तो इसे भी लगवा सकते हैं। इस प्रकार मेरा लगेज लगभग दस-ग्यारह किलो का ही था, जो की बहुत भारी तो नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार जैसे जैसे 22 जुलाई करीब आता गया, उत्साह बढ़ता गया, आख़िरकार वो दिन आ ही गया, जिस दिन मुझे टाटानगर स्टेशन से दोपहर पौने चार बजे ट्रेन पकड़ दिल्ली के लिए रवाना होना था, यह था लद्दाख अभियान का पहला पड़ाव।लद्दाख सीरीज के अन्य पोस्ट-

मिशन लद्दाख-1: तैयारियाँ (Preparing for Mission Ladakh) मिशन लद्दाख-2: दिल्ली से मनाली (Mission Ladakh: Delhi to Manali) मिशन लद्दाख-4: मनाली से भरतपुर (Mission Ladakh: Manali to Leh via Rohtang Pass-Keylong-Jispa-Darcha-Zingzingbar-Baralachala-Bharatpur) मिशन लद्दाख-8: रेंचो स्कूल (Mission Ladakh-8: Rancho School)

इस हिंदी यात्रा ब्लॉग की ताजा-तरीन नियमित पोस्ट के लिए फेसबुक के TRAVEL WITH RD

Further Reads