वक़्त गुज़र जाता है यह सोच सोचकर कि
जब वक्त मिलेगा तो क्या करूँगा
तो बस फिर ज़्यादा सोचे समझे, हमने इगतपुरी (जो मुंबई के पास महाराष्ट्र में पड़ता है) में सीक्रेट कैम्पिंग के लिए बुकिंग कर दी। अब ना जगह के बारे में कभी सुना, ना कभी किसी ने बताया। मैं तो बस फोटो देखकर खुश हो गई थी। एक शांत सी झील जिसमें आप लाइफ जैकेट कि मदद से तैर सकते हो। साथ ही साथ कयाकिंग भी कर सकते हैं। वहाँ पहुँचने के लिए हमें बस कसारा स्टेशन पहुँचने को कहा गया जो कांजुरमार्ग से लगभग 170 कि.मी. दूर है । तो वीकेंड का प्रोग्राम बन चुका था और बुकिंग भी हो चुकी थी।
मुंबई कि सेंट्रल लाइन के पास घर होने का हमें फायदा था। हमने सोचा कि 12: 30 दोपहर में मुलुंड स्टेशन से कसारा जाने वाली ट्रेन पकड़ेंगे। अब ट्रैफिक को यह मंज़ूर नहीं था कि हम सुख शान्ति से जी पाएँ। 5 मिनट से लेट होकर हमारी लोकल छूट गयी। मज़े की बात यह है कि कसारा सिर्फ दिन में 2 या 3 ट्रेन जाती हैं, खुशकिस्मती हमारी हमें 1 : 15 पर एक और ट्रेन मिल गई। अब मैं अलग लेडीज डिब्बे में और मेरा दोस्त अलग डिब्बे में। वैसे तो घूमने जाने के लिए लोकल एक आदर्श शुरुआत नहीं है पर कांजुरमार्ग से ₹25 में 170 कि.मी. की दूरी हम और कैसे ही तय कर सकते हैं। कसारा स्टेशन पर हमारा कैंप गाइड अनुराग और बाकी लोग हमारा इंतज़ार कर रहे थे।
कसारा स्टेशन आपकी छोटे शहर की पुरानी यादें ताज़ा कर देगा। वही शोरगुल, वही रंगीन चिप्स और बिस्कुट के पैकेट। कुछ लोग कसारा से रोज़ काम के लिए मुंबई आते हैं, यह सोच कर भी डर लगता है और ऐसे लोगों के लिए इज़्ज़त और बढ़ जाती है। तो एक घंटे के सफर के बाद हम लोग कैम्प साईट पहुँचे जो सच में सीक्रेट कही जा सकती है। छोटे से गाँव के बीचों बीच एक झील और उसके पास कैम्पिंग। क्या खूबसूरत समा था। देखते ही इश्क़ हो जाये, कुछ ऐसा। हमारे साथ और भी गाड़ियाँ वहाँ पहुँची, तो लगभग 40 के करीब लोग आए हुए थे।
खोडाला नाम की इस जगह पर, जो इगतपुरी में पड़ती है, जाने के लिए हमने ₹50 लोकल ट्रेन में खर्चे, और 1 दिन का कैम्प डिनर, स्नैक्स, ब्रेकफास्ट और एक्टिविटीज के साथ हमें ₹1600 प्रति व्यक्ति के हिसाब से खर्च पड़ा। मतलब दो लोग ₹3500 में ट्रिप कम्पलीट करके आ गए।
कैम्प साईट पर जो निहायती खूबसूरत है। झील के आस पास इंस्ट्रक्टर्स खड़े थे जो एक्टिविटीज में मदद कर रहे थे। लाइफ जैकेट पहनते ही हम कूद गए ठन्डे पानी में जो 150 मीटर गहरा है। तभी पानी में जाने का मज़ा ही अलग है। फिर हमने राफ्टिंग और कयाकिंग का आनंद उठाया। चाय और वादा पाव से शाम और ताज़ा होगयी।
रात को डिनर तैयार था। तभी इंस्ट्रक्टर्स ने हमें ट्रेक पर चलने को कहा। यह कोई आम ट्रेक नहीं था। हमारी किस्मत थोड़ी अच्छी थी क्योंकि जुगनू जिन्हें अंग्रेजी में फायरफ्लाई भी कहा जाता है उनका सीज़न चल रहा था। शर्त यह थी कि अगर हमें ढंग से जुगनू को देखना है तो दबे पेअर चलते हुए शान्ति से जाना होगा और उनके पास पहुँचते ही रौशनी से रिश्ता तोडना होगा। सब ही बहुत एक्ससिटेड थे। और हो भी क्यों नहीं, क्या अविश्वसनीय नज़ारा था मेरी आँखों के सामने।
लगभग तीन बड़े पेड़ों पर सिर्फ जुगनू ही नज़र आरहे थे। इतने अँधेरे में भी हमारे कैम्प गाइड ने कुछ बहतरीन तसवीरें ली हैं जो आपको इस आर्टिकल के नीचे मिल जाएंगी। पर फिर भी उस नज़ारे को किसी तस्वीर में शायद उतारा ही नहीं जा सकता। उस खूबसूरती को अपनी आँखों और ज़हन में बसा कर हम वापिस आएं। गाओं वालो के हाथ से बना खाना काफी लज़ीज़ था। इसी के साथ दिन का अंत हुआ। कुछ फिर तारे गईं रहे थे तो कुछ गप्पे हाँक रहे थे। पर एक ख़ुशी सी थी चारों तरफ जो फील भी हो रही थी और नशे कि तरह चढ़ भी रही थी। देखते ही देखते सुबह होगयी और पोहा चाय का इंतज़ाम हो चुका था। उसी के साथ साथ निशानेबाज़ी के लिए एक छर्रे वाली बन्दूक हमें थमा दी गयी थी। थोड़ा नहुत टाइमपास करके हमारा जाने का वक़्त हो चुका था। गाडी हमें लेने आ चुकी थी और एक मुस्कान के साथ सबको धन्यवाद करते हुए हम वहां से निकल पड़े। जैसे कि आपको बताया था, हमने फिर से लोकल ट्रैन का सफर शुरू किया और 4 बजे शाम को तो मैं घर भी पहुँच चुकी थी। इस एक दिन के सफर में इतनी खूबसूरती देखने को मिलेगी, यह सोचा ना था। इसीलिए आप भी सोचिये नहीं, बस बैग उठाइये और निकल पढ़िए। कब कहाँ क्या खूबसूरत दिख जाये, किसको पता।