हिमाचल की खूबसूरती देख कर वैसे तो शब्द कम पड जाते है, छोटी सी कोशिश है।
बात है जून 2017 की। इस समय पंजाब में गर्मी की छुटिया होती है। गर्मी से राहत पाने के लिए सभी पहाडो की ओर रुखसत करते है। जिससे पहाड़ो पर बहुत भीडभाड हो जाती है। हमे ऐसी जगह चाहिए थी जहा भीड कम हो, शांति हो,ठण्ड हो,हरियाली हो,झरने हो,प्रकति अपने जोबन पर हो। फिर मेरे भाई यादविंदर ने सुझाव दिया "बरोट" का। नाम प्रभावित करने वाला और नया था, साथ ही चिंदी और करसोग का।
हम निकल पड़े मंजिल की ओर। रात तक चिंदी पहुंच गए।अब बात करते है चिंडी और करसोग की।
मंडी जिले में स्थित करसोग 1404 मीटर की ऊंचाई पर बसा कसबा है जो अपने मंदिरो के लिए प्रसिद्ध है। इस पुरातन जगह का संबंध पांडवों से भी है।
चिंडी मंदिर करसोग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चिंडी माता का मंदिर क्षेत्र में रहने वाले श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है। चिंडी माता मंदिर में अति प्राचीन अष्टभुजी मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति पत्थर की बनी हुई है। मंदिर में भगवान विष्णु की भी प्रतिमा है।
जून 2017 में इस भव्य मंदिर को देखने का अवसर प्राप्त हुआ। हम चिंडी के होटल गोपाल में ही ठहरे थे। इस लिए करसोग जाने से पहले सुबह-सुबह चिंडी माता के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। बहुत ही शांतिमय वातावरण दिल को सकून दे रहा था। यहा पर एक कुआ भी था। लकडी की अद्भुत निकाशी से बना मंदिर अपने आप में किसी अजूबे से कम न था।
धन्यवाद
अगले दिन चिंडी माता के मंदिर के दर्शन करने के बाद हम ममलेश्वर मंदिर करसोग गए।
*यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की तहसील करसोग के ममेल गाँव में स्थित है. शिमला से इसकी दूरी 107 किलोमीटर है. मंडी से इसकी दूरी 92 किलोमीटर है. इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि यह भृगु ऋषि की तपोस्थली थी.
* ममलेश्वर महादेव के मंदिर में पांडवों के दौर का पांच हजार साल पुराना 200 ग्राम गेंहू का दाना और भीम का ढोल है। इसे यहां सदियों से सहेजकर रखा गया है। देखिए तस्वीरें..मान्यता है कि यह गेंहू का दाना पांडवों ने उगाया था। उसी समय से इसे यहां रखा गया है।
मंदिर में स्थापित पांच शिवलिंगों के बारे में मान्यता है कि यह पांडवों ने ही यहां स्थापित किए हैं।
*ममलेश्वर मंदिर में एक अग्निकुंड है, जो हमेशा जलता रहता है। मान्यता है कि 5 हजार साल पहले पांडवों ने इस अग्निकुंड को जलाया था और तब से यह जल रहा है। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि अज्ञातवास के दौरान पूजा करने के लिए पांडवों ने इस अग्निकुंड को बनवाया था।
* कहा जाता है कि सावन के महीने में यहां पार्वती और शिव कमल पर बैठकर मंदिर में मौजूद रहते हैं।
* कई साल पहले मंदिर के पास कई शिवलिंग, शिव और विष्णु भगवान की मूर्तियां भी मिली थी।
*ममलेश्वर मंदिर में एक बड़ा ढोल भी रखा गया है। लोगों का कहना है कि अज्ञातवास के दौरान भीम ने इसे बनवाया था। भीम खाली समय के दौरान इस ढोल को बजाया करते थे और वहां से जाते समय उन्होंने ये ढोल मंदिर में रख दिया था।
जब भी मौका मिले करसोग के इस मंदिर को जरूर देखे।
धन्यवाद।
फिर हम कामाक्षा मंदिर करसोग हिमाचल प्रदेश गए।
पूरे देश में कामाक्षा के तीन ही मंदिर हैं.
...पहला असम का प्रसिद्व पौराणिक शक्तिपीठ कामाख्या देवी मंदिर है.
...दूसरा तमिलनाडू का कांचीपुरम।
...तीसरा कामाक्षा मंदिर मंडी जिले के करसोग में है. *मंडी जिले की करसोग तहसील के गांव काव में स्थित इस मंदिर में भगवान परशुराम के आगमन का उल्लेख मिलता है. वे प्रदेश में पांच काव, ममेल, निरमंड, निरथ और दत्तनगर गए.
*मान्यता है कि देवी की शक्तिपीठ सतयुग की है. हालांकि, शोधार्थी मानते हैं मंदिर परशुराम या फिर पांडव काल का हो सकता है. क्योंकि, सतयुग का मंदिर आज तक टिका रहना संभव नहीं है।
*पुजारियों के मुताबिक, कामाक्षा देवियों की देवी है. इसे काली पीठ के नाम से भी जाना जाता है. इसका पौराणिक महत्व है. यह देवी राजाओं की भी कुलदेवी रही है. सुकेत, बुशहर और कुल्लू रियासत से देवी का गहरा संबंध रहा है.
*मंदिर में पांडव काल की मूर्तियां मौजूद हैं. ये मूर्तियां अष्टधातु की बनी हुई हैं. मेले के दौरान इन सब मूर्तियों को रथ पर विराजमान किया जाता है. साल में दो बार मेले का आयोजन होता है. इनके दर्शन करने हजारों की भीड़ उमड़ती है. लोग दूर-दूर से दर्शन करने यहां आते हैं. पौराणिक मान्यता है कि कामाक्षा मंदिर में दर्शन करने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है.
*कामाक्षा देवी का मंदिर पौराणिक शैली में तैयार किया गया है. पहले यह पत्थर का ही था. करीब डेढ़ दशक पहले इसे लकड़ी का बनाया गया.
धन्यवाद।
चिंदी करसोग घूम कर हम चल पड़े बरोट की ओर। रास्ते के खूबसूरत दृश्य को देखते-2 कही पर रुक जाते, तता पानी, ठण्डा पानी दो कस्बे आए। यहा पर एक गुरूद्वारा साहब भी था। छठे गुरू श्री गुरू हरगोबिंद साहब जी का गुरुपुरब भी था, वहा पर हम ने लंगर छका। रास्ते को पार करके हम बरोट वाली सडक पर आ गए। छोटी सडक काफी ऊंचाई पर है, साथ में बारिश के कारण रास्ता ओर भी खतरनाक हो गया। हमारा होम सटे पहले से बुक था जो लोहारडी गांव में था।
एक पुल को पार करके जाना था, हमे लगा कार पुल से जा सकती है, पुल कार के बिल्कुल पूरा-2 था, जैसे तैसे कार ले गए, हमारे पास दो कार थी, एक मामा जी की एक हमारी। दोने कार पुल के दूसरी ओर ले जाने के बाद पता चला यह पुल कार के लिए नहीं है सिर्फ पैदल जाने के लिए। भगवान ने बचा लिया। जैसे-तैसे दोनो कार पार्क की।रात वही रहे। अगली सुबह पुल पार करते समय बहुत डर लगा, ऐसा लग रहा था अभी टूट जाए गा।
अब बात करते है बरोट की।
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित बरोट, उहल नदी पर बसा हुआ एक छोटा सा खूबसूरत हिल-स्टेशन है। हिमाचल के छुपे हुए खूबसूरत स्थानों में से एक बरोट घाटी का निर्माण उहल नदी पर बिजली परियोजना के लिए गया था, जो धीरे धीरे पर्यटकों के बीच एक हिल-स्टेशन के रूप में लोकप्रिय हो गया है।
बरोट 1835 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने ट्राउट फिश फार्म के लिए प्रसिद्ध है। अंग्रेजों द्वारा निर्मित शानन पावर प्रोजेक्ट का जलाशय यहां स्थित है जो बरोट की सुंदरता बढ़ाता है। बरोट मोनल, जंगली बिल्लियों, बंदरों और काले भालू का घर है।
बरोट कुल्लू और काँगड़ा घाटी के ट्रेकिंग मार्ग का भी आधार है। यह क्षेत्र सब्जियों और दालों के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। इसमें चारों ओर खूबसूरत दृश्य हैं जो हर किसी को आकर्षित करते हैं।
धन्यवाद