Have you been to Spiti? Then you already know who are we talking about! If you haven't, then go through this conversation between a host at his dhaba and his guest:
: चाचा, कितने पैसे हुए? (Uncle, how much?):: 6 हज़ार (6 Thousand): हैं? (What?):: नहीं हैं? कोई बात नहीं। पेट भर खाया? और खाना है कुछ? (What, you don't have it? Did you eat well? Do you need something else?) : हाँ पेट भर खा लिया। पर बताओ तो कितने पैसे हुए? (Uncle, we ate well! Tell us, how much it is?):: बताया तो -इस बार चाचा थोड़ा मुस्काए।KNOW ABOUT THIS HIDDEN WONDERLAND IN SAINJ VALLEY (Told you!)
पहचाने? हम बात कर रहे हैं बातल के चंद्रा ढाबा के मालिक और स्पिति जाने वाले यायावरों के चहेते - चाचा बोध दोरजी और उनकी धर्मपत्नी चंद्रा की। हम 4 लोगों ने मिल के खूब अंडे और परांठे पेले थे। मतलब समझो कि कुछ 2 घंटे से हम खा ही रहे थे। हाँ, पर साथ-साथ चाचा - चाची से बातचीत भी चल रही थी.
हर साल बर्फ़ छंटने से ठीक पहले, चाचा बोध दोरजी और उनकी बीवी BRO के कर्मचारियों के साथ इधर पहुंचने वाले पहले लोगों में से एक होते हैं। लगभग 4 महीने यह ढाबा ही उनका बसेरा होता है। यहां चंद्रा ढाबा पर रुकने का भी पूरा इंतजाम है, बगल में स्विस टेंट्स भी लगे हुए हैं।
छतरु से हम सुबह साढ़े पांच बजे निकले। प्लान था कि बातल पर एक हॉल्ट मार कर आगे निकल जाएंगे। कुछ ढाई घंटे में हम पहुंचे 'द फेमस चाचा चाची' ढाबा। बिलकुल वैसा ही जैसा सुना था - पहाड़ों की गोद में बसा एक आशियाना जिसे बोध दोरजी और उनकी धर्मपत्नी चंद्रा पिछले 35-40 सालों से चला रहे हैं।
चाचा-चाची का ओहदा किसी सेलिब्रेटी से कम नहीं है वैसे। एक तो इतने खुशमिज़ाज लोग और ऊपर से न जाने कितनी बार इन्होंने बर्फ़ में फंसे लोगों को अपने ढाबे में लेकर रुकवाया है, उनका खाना पीना, उनकी देखभाल दोनों मिल कर करते हैं। एक और मज़े की बात बताएं? चाचा-चाची के बेटे हैं तेनज़िन बोध - जी, वही जिनके टेंट्स में हम चंद्रताल वाली रात रुके थे।